BHOPAL. दमोह के सांसद और केंद्रीय जल शक्ति राज्य मंत्री प्रह्लाद पटेल ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को हाल ही में एक शिकायती पत्र लिखा हैं। इसमें उन्होंने पंचम नगर सूक्ष्म सिंचाई परियोजना के क्रियान्वयन में हो रही देरी पर अपनी नाराजगी व्यक्त की है। पत्र में उन्होंने कहा हैं कि “मैंने सीएम को एक और पत्र लिखा है। अगर ड्रॉइंग बदली जाती है तो कई गांव पानी से वंचित हो जाएंगे।” ये पहली बार नहीं हैं जब सीएम शिवराज सिंह चौहान की महत्वाकांक्षी पंचमनगर सिंचाई परियोजना में हो रही देरी पर उन्होंने आपत्ति दर्ज कराई हो। इसके पहले भी 23 दिसंबर 2022 को एक ट्वीट करके उन्होंने इसी मुद्दे पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मुलाकात कर पत्र सौंपा था और समस्या के समाधान का आग्रह किया था।
दरअसल, दमोह जिले में एक बड़ी सीमेंट कंपनी की जिद और प्रशासनिक अदूरदर्शिता की कमी के चलते मध्य प्रदेश की बिना बिजली के उपयोग के खेतों में सिंचाई की पहली परियोजना के भविष्य पर संकट मंडरा रहा है। और इसका खामियाजा राज्य के करीब 54 गांवों के 18 हजार से भी ज्यादा किसानों को भुगतना पड़ सकता हैं, जिनकी करीब 16 हजार हेक्टेयर जमीन सिंचाई से वंचित हो रही है।
सिंचाई परियोजना की पाइपलाइन के रास्ते में जमीन पर सीमेंट कंपनी का दावा
दरअसल, पंचमनगर सिंचाई परियोजना की पाइपलाइन के रास्ते में आ रही जमीन पर माइसेम सीमेंट ने अपना दावा कर दिया है, जिसके चलते CM शिवराज सिंह चौहान का ये महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट अटक गया है। नौबत ये आ गई है कि अब कंपनी की जिद पर पाइपलाइन की डिजाइन और रास्ता बदलने का खाका तक तैयार कर दिया गया है। पर डिजाइन और रास्ता बदलने से प्रोजेक्ट की लागत करीब 20 से 25 करोड़ रुपए तक बढ़ है और इस अतिरिक्त लागत को लेकर WRD और सीमेंट कंपनी हाईकोर्ट में आमने-सामने आ गए हैं। एक्सपर्ट्स का दावा है कि अगर यह प्रोजेक्ट समय पर पूरा नहीं हुआ तो पंचम नगर परियोजना के अंतर्गत 30 गांवों की 9 हजार हेक्टेयर जमीन सिंचाई से वंचित होगी, और आगे स्थित साजलि परियोजना पर भी असर पड़ने से 24 गाँवों की 7 हज़ार हेक्टेयर जमीन भी प्रभावित होने का अंदेशा है...यानी कुल मिलाकर 54 गांवों की 16 हजार हेक्टेयर जमीन सिंचाई से वंचित होगी।
वही, अगर पंचम नगर प्रोजेक्ट का रास्ता बदला जाता है तो भी किसानों का नुकसान है, क्योंकि परियोजना की पाइपलाइन का रास्ता बदलने से 4 गांवों के 2 हज़ार किसानों की जमीन पानी से वंचित हो जाएगी। इसके चलते किसानों को अपनी जमीन आने-पौने दामों पर सीमेंट कंपनी को बेचनी पड़ेगी। यह सब तब हैं, जब स्थानीय लोगों का कहना है कि सीमेंट कंपनी को आवंटित तथाकथित निजी जमीन का 55 फीसदी हिस्सा आज भी किसानों के नाम पर है। इस मामले को लेकर मुख्यमंत्री ने पिछले महीने समीक्षा बैठक कर विभाग के उच्चाधिकारियों को सिंचाई परियोजना का काम मार्च तक पूरा करने के निर्देश भी दिए थे...लेकिन अभी तक कोई प्रोजेक्ट की बाधा दूर नहीं होने से ये असंभव नजर आ रहा है। बता दें, कि दमोह-सागर MP के उस बुंदेलखंड क्षेत्र में आते हैं जो ज्यादातर सूखाग्रस्त रहता है। क्या है सीएम के इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के अटकने के कारण, पढ़िए इस रिपोर्ट में...:
पहले जानिए क्या है पंचम नगर माइक्रो इरीगेशन प्रोजेक्ट
पंचम नगर सिंचाई परियोजना को मध्य प्रदेश में सूखे की सबसे ज्यादा मार झेलने वाले बुंदेलखंड क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए डिज़ाइन किया गया। कई तरह से महत्वाकांक्षी इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य सूखे बुंदेलखंड के सागर-दमोह क्षेत्र के करीब 97 गांवों के लगभग 56,000 किसानों को लाभान्वित करने और क्षेत्र के 300 गांवों में पीने योग्य पानी की आपूर्ति करना था। 25 हजार हेक्टेयर की सिंचाई क्षमता वाली ये परियोजना पगारा बांध से पानी लेगी, जो बेवास नदी पर बना है। नवंबर 2012 में परियोजना को प्रशासनिक स्वीकृति मिली और 2018 में इसे संशोधित किया गया। दिसंबर 2018 में फॉरेस्ट क्लीयरेंस आया और 2019 में काम शुरू हुआ।
प्रोजेक्ट से 300 गांवों तक पानी पहुँचाने की है तैयारी
- डैम का नाम: पगारा बांध
पंचम नगर माइक्रो इरीगेशन प्रोजेक्ट की खासियतें
बगैर बिजली खर्च के संचालित पंचम नगर सिंचाई परियोजना मध्यप्रदेश की पहली प्रेशराइज्ड पाइप माइक्रो इरीगेशन योजना है, जिसमें डैम से खेतों तक पानी बिना बिजली के उपयोग के पहुंचेगा। वैसे तो किसी माइक्रो इरीगेशन तकनीक में अधिक ऊर्जा की जरूरत होती है, पर क्योंकि पंचम नगर सिंचाई परियोजना गुरुत्वाकर्षण (ग्रेविटेशन फोर्स) से संचालित है - जिसमें ऊंचाई पर स्थित पगारा डैम का पानी कमांड क्षेत्र में छोड़ा जाएगा, इसलिए, इसमें पानी को उठाने के लिए पंप की जरूरत नहीं है। परियोजना में पाइपलाइन का वॉटर हेड प्रेशर 20 मीटर होगा यानी पाइप लाइन में पानी का प्रेशर इतना होगा कि ये 07 मंजिला मकान की छत पर रखी टंकी तक अपने आप पहुंच जाएगा। खेतों में भी सिंचाई के लिए किसानों को पंप और स्प्रिंकलर चलाने के लिए बिजली की जरूरत नहीं पड़ेगी। जिससे करीब 20 से 25 करोड़ रुपए मूल्य की बिजली की बचत होगी। ये मध्यप्रदेश के साथ देश में अपने आप में पहला प्रयोग है।
जल उपयोग दक्षता परियोजना को जल उपयोग दक्षता के मामले में भी सिर्फ मध्य प्रदेश में ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर एक अच्छा उदाहरण माना जा रहा है। जल उपयोग दक्षता यानी माइक्रो इरीगेशन प्रणाली की मदद से कम पानी से अधिक क्षेत्र की सिंचाई करना। इस प्रणाली की मदद से सिंचाई में होने वाली पानी की बर्बादी को करीब 30-37 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। साथ ही इससे फसलों की गुणवत्ता और उत्पादकता में भी सुधार होता है। यही वजह रही कि जिस प्रोजेक्ट के लिए मप्र सरकार ने पहले मार्च 2012 में 9900 हेक्टेयर कमांड एरिया के लिए मंजूरी दी थी, उसकी जल उपयोग दक्षता को देखते हुए जनवरी 2017 में इसे 25,000 हेक्टेयर कर दिया था। बाद में यह महसूस किया गया कि पानी के बेहतर उपयोग और टेक्नोलॉजी के जरिए कमांड एरिया 32,000 हेक्टेयर तक पहुंचाया जा सकता है।
सेल्फ-सस्टेनेबल परियोजना एक्सपर्ट्स का कहना है की ये योजना सेल्फ-सस्टेनेबल है…यानि ये एक ऐसा प्रोजेक्ट है जो अगर समय पर पूरा होता है और निर्धारित क्षेत्रों में समय पर पानी पहुँच जाता है तो, ये अपनी लागत कुछ ही सालों में वसूल कर लेगा।
मामला क्या है
- सागर-दमोह जिले में पंचम नगर मध्यम सिंचाई प्रोजेक्ट करीब 300 गांवों तक पानी पहुंचाने की योजना है। इसके अलावा गांवों में पीने के पानी की भी सप्लाई की जाएगी। निर्धारित क्षेत्र में पानी पहुंचाने के लिए प्रोजेक्ट में दो पाइप लाइन डाली जा रहीं हैं: ग्रेविटी-1 या GM 1 और ग्रेविटी-2 या GM 2। इन दो ग्रेविटी पाइप लाइन के जरिए 97 गांवों की कुल 25 हजार हेक्टेयर जमीन की सिंचाई का लक्ष्य है।
पूरे मसले से प्रोजेक्ट में 4 बड़े नुकसान
प्रोजेक्ट में देरी से 16 हजार हेक्टेयर जमीन सिंचाई से वंचित WRD के पास परियोजना समय पर पूरी करने के लिए सिर्फ मार्च से जुलाई तक का समय ही है...क्योंकि मानसून के वक़्त किसी तरह का कंस्ट्रक्शन का काम नहीं हो सकता और उसके बात बुवाई का सीजन आ जाएगा, जो अगले मार्च तक चलेगा। यानी प्रोजेक्ट 1 से डेढ़ साल तक लेट हो जाएगा। पंचम नगर परियोजना में करीब 300 गांवों तक पानी पहुंचाने की योजना है। इसमें 97 गांवों की कुल 25,000 हेक्टेयर जमीन पर सिंचाई की योजना है, जो 32 000 हेक्टेयर तक जा सकती है। और प्रोजेक्ट लेट होने से 30 गांवों की 9 हजार हेक्टेयर जमीन सिंचाई से वंचित होगी। साथ ही आगे स्थित साजलि परियोजना पर असर पड़ने से 24 गाँवों की 7 हज़ार हेक्टेयर जमीन भी प्रभावित होने का अंदेशा...यानी कुल मिलाकर 54 गांवों की 16 हजार हेक्टेयर जमीन सिंचाई से वंचित होगी।
पाइपलाइन का रास्ता बदलने से 30 गाँवों तक पानी न के बराबर पाइपलाइन का रास्ता बदलने से एक बहुत बड़ा नुकसान ये है कि रास्ता बदलने से जिन 30 गाँवों तक पानी पहुंचेगा भी तो सिंचाई के लिए बहुत कम पानी मिलेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि जैसा की पहले बताया है कि पूर्वनिर्धारित परियोजना की पाइपलाइन में वॉटर हेड प्रेशर 20 मीटर होता है यानी पाइप लाइन में पानी का प्रेशर इतना होगा कि ये 07 मंजिला मकान की छत पर रखी टंकी तक अपने आप पहुंच जाएगा। जिसके चलते खेतों में भी सिंचाई के लिए किसानों को पंप और स्प्रिंकलर चलाने के लिए बिजली की जरूरत नहीं पड़ती। लेकिन अगर पाइप लाइन का डिजाइन और रास्ता बदला गया तो पानी के प्राकृतिक दबाव पर विपरीत असर होगा। पाइपलाइन घुमाने से पानी का फोर्स कम हो जाएगा। पाइपलाइन जैसे-जैसे आगे जाएगी पानी का प्रेशर कम होता जाएगा। दूसरे शब्दों में कहें तो पाइपलाइन तो होगी, लेकिन रास्ता बदलने के कारण पानी की उपलब्धता घट जाएगी।
4 गांवों के 2 हज़ार किसान परियोजना से ही बाहर वहीँ अगर परियोजना की पाइपलाइन को रीरूट किया गया तो 4 गांवों परियोजना से पूरी तरह बाहर ही हो जाएंगे। यानी 2 हज़ार किसानों की जमीन पानी से वंचित होगी। किसानो को जाहिर तौर से जब सिंचाई के लिए पानी नहीं मिलेगा तो दूसरे किसान भी अपनी जमीनें डायमंड सीमेंट मैनेजमेंट को औने-पौने दामों पर बेचने को मजबूर हो जाएंगे। परियोजना से संबंधित अधिकारियों की राय है कि 1250 हेक्टेयर में से 1100 हेक्टेयर से अधिक भूमि उपजाऊ है और मिट्टी में कैल्शियम की उपस्थिति के कारण किसानों को गेहूं का भरपूर उत्पादन हो सकता है।
प्रोजेक्ट की लागत 25 करोड़ रुपए ज्यादा क्योंकि पूर्वनिर्धारित डिसाइन में और रीरूट करि गई डिसाइन में बिछने वाली पाइपलाइन की लम्बाई में 4 से 5 किलोमीटर का अंतर है ….इसलिए प्रोजेक्ट की लागत भी करीब 20 से 25 करोड़ रुपए तक बढ़ जाएगी। WRD के ब्यूरो ऑफ डिजाइन (बोधि) ने इस मुद्दे पर जो अपनी रिपोर्ट दी है उसमें दावा किया गया है कि ड्राइंग बदलने पर भारी मात्रा में अतिरिक्त स्टील (MS पाइप) की आवश्यकता होगी। द सूत्र ने मामले को लेकर प्रोजेक्ट एक्सपर्ट और सरकारी अधिकारियों से बात कीजानिये उन्होंने क्या कहा:
पाइप लाइन 5 किमी घुमानी पड़ेगी: पुष्पेंद्र सिंह, एग्जीक्यूटिव इंजीनियर, पंचम नगर सिंचाई प्रोजेक्ट
मुख्यमंत्री ने 19 जनवरी को सिंचाई परियोजना की समीक्षा कर जल्द इसका समाधान निकालने को कहा है। विभाग के उच्च अधिकारी और प्रशासन इस मामले में सहमति बनाने का प्रयास कर रहा है। यदि सीमेंट फैक्टरी प्रबंधन प्रोजेक्ट की पाइप लाइन निकालने के लिए जगह नहीं देता है तो करीब 5 किलोमीटर लाइन घुमाकर बिछानी पड़ेगी। इसमें प्रोजेक्ट की लागत बढ़ जाएगी।
मामला अभी सब-जुडिस है: एस एन मिश्रा, पी एस, WRD
मामला अभी सब-जुडिस है…इसलिए इसपर ज्यादा कुछ बोलना सही नहीं है…पर हम प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं…और कोई न कोई हल निकल आएगा।
कोर्ट के निर्देशानुसार मीटिंग की हैं, कोशिश रहेगी कि मामला सुलझ जाए: निकुंज श्रीवास्तव, पी एस, माइनिंग डिपार्टमेन्ट
हमने कोर्ट के निर्देशानुसार मीटिंग की हैं। जिसमें दमोह कलेक्टर, वर्ड के अधिकारी, मैं और डायमंड सीमेंट कंपनी यानी हेइडेलबर्ग कंपनी के मालिक MR. कूपर भी मौजूद थे। हमारी कोशिश रहेगी कि मामला आपसी सूझबूझ से सुलझ जाए जिसके आसार हैं।
कंपनी का हस्तांतरण भी सवालों में
इस पूरे मामले में सूत्रों का कहना हैं कि भारतीय सीमेंट कंपनी (डायमंड सीमेंट कंपनी) से लीज पर ली गई जमीन का एक विदेशी सीमेंट कंपनी (हेइडेलबर्ग कंपनी) को हस्तांतरण भी कथित तौर पर सवालों के घेरे में है। यह भी आरोप लगाया जा रहा है कि एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी और एक पूर्व मंत्री सीमेंट कंपनी का पक्ष ले रहे हैं, जबकि किसान खनन पट्टे और इसके आगे नवीनीकरण के खिलाफ हैं।
शिवराज के ड्रीम प्रोजेक्ट में देरी: केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल ने भी लिखा सीएम को पत्र
केंद्रीय जल शक्ति राज्य मंत्री प्रहलाद पटेल ने 23 दिसंबर 2022 को एक ट्वीट करके बताया था कि माईसेम सीमेंट का कारखाना पंचम नगर परियोजना की राह में बाधा बन रहा है। इस बारे में उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मुलाकात कर पत्र भी सौंपा था। पटेल की पहल के बाद मुख्यमंत्री ने जल संसाधन विभाग और दमोह जिला प्रशासन के अफसरों को परियोजना की गति बढ़ाने के निर्देश दिए थे। और इस हफ्ते उन्होंने एक बार फिर से शिकायती पत्र लिखा हैं। जिसमें उन्होंने भी साफ़ किया हैं कि “मैंने सीएम को एक और पत्र लिखा है। अगर ड्राइंग बदली जाती है तो कई गांव पानी से वंचित हो जाएंगे।” लेकिन समस्या का समाधान निकालने के नाम पर सीमेंट फैक्टरी प्रबंधन और WRD के बीच अदालती कार्यवाही का खेल खेला जा रहा है जिससे फायदा सीमेंट फैक्ट्री का होता नज़र आता है। और उनकी इस कवायद का खामियाजा 30 गावों के किसानों को भुगतना पड़ सकता है। बता दें की पहली ही ये प्रोजेक्ट देरी से चल रहा है क्योंकि मार्च के पहले सप्ताह में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस परियोजना का उद्घाटन करने वाले थे।
सीएम की प्राथमिकता सिंचाई
आपको बता दे की ये सब तब हो रहा है जब सीएम शिवराज सिंह चौहान ने - जो मार्च के प्रथम सप्ताह तक इस परियोजना का उद्घाटन करना चाहते थे - हाल ही में विभाग की उच्चस्तरीय बैठक में कहा था कि मार्च में एक सप्ताह को सिंचाई सप्ताह घोषित किया जाए और सिंचाई परियोजनाओं को किसानों को सौंपा जाए। सीएम ने WRD के डिज़ाइन ब्यूरो (बोधि) को एक तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए कहा था। और बोलै था कि डायमंड सीमेंट फैक्ट्री के मैनेजमेंट को मंत्रालय बुलाकर सीएम ऑफिस के सहयोग से निराकरण कराया जाए।
एक सिंचाई परियोजना के आने से क्षेत्र में सिर्फ खेती ही नहीं फलती-फूलती, बल्कि इसके व्यापक असर होते हैं - खेती बढ़ेगी तो इंफ्रास्ट्रक्चर बनेगा, रोजगार के अवसर भी आएंगे जिससे पलायन रुकेगा। पर शायद इससे प्रसाशन और प्राइवेट कंपनियों को कोई लेना-देना नहीं हैं। तभी प्रोजेक्ट अपनी तय समयसीमा से आगे बढ़ता जा रहा है, फिर चाहे इससे किसानों का अहित होता रहे।
(इनपुट: दिनेश शुक्ला, दमोह)