BHOPAL. मध्यप्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर आदिवासी के बाद दूसरा बड़ा दांव महिला वोटों पर खेला जा रहा है। इसमें भी बीजेपी आगे दिखाई पड़ती है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बजट में 'लाड़ली बहना योजना' का ऐलान कर बड़ी पहल की तो महिला दिवस पर 8 मार्च को सरकारी कामकाजी महिलाओं के लिए 7 दिन ज्यादा आकस्मिक अवकाश (सीएल) की घोषणा कर डाली। बात बहुत साफ है। बीजेपी प्रदेश की 48 फीसदी महिला आबादी को हर हाल में रिझाना चाहती है।
लगातार बढ़ रहा महिलाओं का वोट प्रतिशत
पिछले कुछ चुनावों में महिलाओं का वोट प्रतिशत लगातार बढ़ रहा है। इन महिला वोटों पर विपक्षी कांग्रेस और अन्य दलों की भी नजर है, लेकिन उनके पास महिला कल्याण की कोई ठोस योजना भी है, यह सामने नहीं आया है। गौरतलब है कि जैसे ही शिवराज सिंह चौहान ने लाड़ली बहना योजना के तहत गरीब महिलाओं को 1 हजार रुपए प्रतिमाह देने की घोषणा की, उसके तुरंत बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ऐलान किया कि उनकी सरकार आई तो लाड़ली बहनों को 1500 रुपए प्रतिमाह दिया जाएगा। वो बेटियों के मामा और बहनों के भाई तो पहले से ही हैं। या यूं कहें कि महिलाओं में उनकी लोकप्रियता बनी हुई है और ताजा योजना उस लोकप्रियता की वोटों में लामबंदी का प्रयास है।
महिलाओं को रिझाने के लिए हो रहीं घोषणाएं
कुल मिलाकर मध्यप्रदेश के सत्ता संग्राम के आरंभिक चरण में सीधे लाभ वाली योजनाओं पर जोर है। बीजेपी मान रही है कि इन योजनाओं के अधिकांश लाभार्थी ही चुनाव में वोट में तब्दील होंगे। इसी के तहत महिलाओं को रिझाने के लिए जो घोषणाएं हो रही हैं और पहले जो राज्य और केंद्र सरकार को मिलाकर एक दर्जन से अधिक योजनाएं चल रही हैं, उनका घोषित उद्देश्य तो महिला सशक्तिकरण है, लेकिन अघोषित मकसद वोटों की लामबंदी है। उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश में महिला वोटरों की संख्या 2 करोड़ 60 लाख से ज्यादा है, जो कुल वोटों का लगभग 48 फीसदी है।
बड़ी संख्या में वोट कर रहीं महिलाएं
बीते दो चुनावों में यह देखने में आया है कि महिलाएं बड़ी संख्या में वोट कर रही हैं। वर्ष 2013 के विधानसभा चुनावों में महिला वोटरों का प्रतिशत 70.11 फीसदी था तो वर्ष 2018 के विधानसभा चुनावों में यह बढ़कर 73.86 प्रतिशत हो गया। 2023 के विधानसभा चुनाव में यह अगर और बढ़ता है तो बीजेपी के पक्ष में 'गेमचेंजर' भी साबित हो सकता है।
महिला वोटर्स पर फोकस
आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश के 53 में से 41 जिले ऐसे हैं जहां महिला मतदाताओं की संख्या, पुरुषों की तुलना में तेजी से बढ़ी है। जनवरी में जारी पुनरीक्षित मतदाता सूची में महिला मतदाताओं की संख्या 7.7 लाख बढ़ी बताई गई है। राज्य की 18 विधानसभा सीटों में महिला मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है। ये हैं- वारासिवनी, बरघाट, पानसेमल, अलीराजपुर, जोबट, झाबुआ, बालाघाट, सरदारपुर थांदला, पेटलावद, कुक्षी, सैलाना, डिंडोरी, विदिशा, देवास, मंडला, बैहर, परसवाड़ा में महिला मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक है। मतदाता सूची में महिला मतदाताओं के सबसे ज्यादा नाम जोड़े जाने से प्रदेश में लिंगानुपात भी बढ़कर 926 से 931 हो गया है।
महिलाओं के लिए कई योजनाएं
महिला कल्याण के लिए मध्यप्रदेश सरकार पहले से कई योजनाएं चला रही है। इनमें लाड़ली लक्ष्मी से लेकर हाल में घोषित मेधावी छात्राओं के लिए स्कूटी योजना भी शामिल है। बीते 18 साल से हायर सेकंडरी छात्राओं को साइकिल योजना तो पहले से ही चल रही है। अब सरकार ने लाड़ली बहना योजना लॉन्च की है और इसके लिए बजट में 1 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। मोटे तौर पर मध्यप्रदेश की 2 तिहाई यानी लगभग 6 करोड़ आबादी गरीबी रेखा से नीचे (BPL) श्रेणी में आती है। इनमें आधी महिलाएं भी मान ली जाएं तो यह तकरीबन 3 करोड़ महिलाएं लाड़ली बहना योजना से लाभान्वित होंगी। यह अपने आप में बड़ा आंकड़ा है।
टिकटों पर भी दिखेगा असर
महिला मतदाताओं को रिझाने का असर टिकट वितरण पर भी दिखने की पूरी संभावना है। चर्चा है कि बीजेपी इस बार कुल में से 20 फीसदी टिकट महिलाओं को दे सकती है। यही ट्रेंड कांग्रेस में भी देखने को मिल सकता है। इसका एक कारण यह भी है कि स्थानीय निकायों और पंचायतों में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण के बाद विधानसभा और लोकसभा में भी महिलाओं को ज्यादा टिकटों के लिए राजनीतिक दलों पर दबाव बढ़ने लगा है। हालांकि महिलाओं के लिए अभी राजनीतिक आरक्षण नहीं है।
महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम
राजनीतिक पार्टियां महिला वोट पाने के लिए तमाम खटकरम कर रही हैं, लेकिन विधान मंडलों में उनका प्रतिनिधित्व अपेक्षित से बहुत कम है। मध्यप्रदेश में कुल 230 विधानसभा सीटें हैं, लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में कुल 51 महिला प्रत्याशी चुनाव मैदान में थीं। इनमें से भी केवल 17 महिलाएं चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंची थीं। इनमें भी बीजेपी से सर्वाधिक 14, कांग्रेस से 6 और बसपा से 1 महिला प्रत्याशी जीती थीं। हालांकि बाद में हुए उपचुनावों में यह संख्या 21 हो गई थी। इसके पूर्व 2013 के विधानसभा चुनाव में जीतने वाली महिलाओं की संख्या 31 थी, जिनमें बीजेपी की 24 प्रत्याशी थीं। एक अर्थ यह भी है कि बीजेपी अपनी महिला प्रत्याशियों को ज्यादा जिता लेती है बनिस्बत कांग्रेस के। यद्यपि जितनी महिलाएं चुनाव लड़ती हैं, उनमें से करीब 10 फीसदी ही चुनाव जीत पाती हैं। यदि वोटिंग ट्रेंड का विश्लेषण करें तो अभी भी महिलाएं केवल इस आधार पर वोट नहीं करती कि चुनाव लड़ने वाली प्रत्याशी महिला है। वो अन्य कई दूसरे कारकों की वजह से भी मतदान करती हैं। जैसे कि राजनेता का चेहरा, सरकार का कामकाज, राजनीतिक दलों के वादे और प्रत्याशी की छवि भी शामिल है। अच्छी बात यह है कि महिलाओं में मतदान को लेकर जागृति लगातार बढ़ रही है और सरकार चुनने में उनकी भागीदारी निर्णायक होती जा रही है। ऐसे में सरकारों पर भी दबाव है कि वो महिलाओं के कल्याण का विशेष ध्यान रखें। अगर आगामी चुनावों में प्रमुख पार्टियां लगभग 20 फीसदी टिकट महिलाओं को देती हैं तो यह संख्या 60 के आसपास हो सकती है।