मप्र में पटवारी बनने के लिए नार्मलाइजेशन का टिपिकल फॉर्मूला अहम, उम्मीदवारों को सबसे बड़ी आशंका- ट्रांसपेरेंसी नहीं रही तो गड़बड़

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BP Shrivastava
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मप्र में पटवारी बनने के लिए नार्मलाइजेशन का टिपिकल फॉर्मूला अहम, उम्मीदवारों को सबसे बड़ी आशंका- ट्रांसपेरेंसी नहीं रही तो गड़बड़

संजय गुप्ता, INDORE. लंबे समय बाद आए पटवारी के नौ हजार से ज्यादा पदों के लिए व्यावसायिक परीक्षा मंडल (अब कर्मचारी चयन मंडल, ईएसबी), भोपाल द्वारा ली जा रही भर्ती परीक्षा में इस बार 12.79 लाख उम्मीदवार है। यह परीक्षा 15 मार्च से 26 अप्रैल तक हर दिन दो शिफ्ट में हो रही है। करीब-करीब 80 शिफ्ट में यह परीक्षा होगी। कुल उम्मीदवारों में से 12 लाख ने भी परीक्षा दी तो हर शिफ्ट में करीब 15 हजार उम्मीदवार परीक्षा देंगे। अभी तक सामने आए पेपर और उनके अंकों के आधार पर अच्छी तैयारी वाले उम्मीदवारों के अंक 130 से लेकर 150 तक भी पहुंचे हैं, वहीं कम तैयारी पर यह अंक 100 से 110 के बीच हो रहे हैं। परीक्षा का स्तर कभी किसी शिफ्ट में अधिक बताया जा रहा है तो कभी सामान्य। यानी अंकों में काफी ऊपर-नीचे हो रहा है। ऐसे में उम्मीदवारों के अंतिम अंक तय होगा नार्मलाइजेशन के फार्मूले से। इस फार्मूले के बाद उम्मीदवार के अंतिम अंक तय होंगे और इसी से बनेगी मेरिट।



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क्यों है टिपिकल फार्मूला, क्या हैं आशंकाएं



यह फार्मूला दिखने में तो असमंजस वाला ही है, वहीं इसे लागू करके सभी 12 लाख उम्मीदवारों के अंक तब्दील करना भी आसान नहीं है। मंडल द्वारा इसे साफ्टवेयर के जरिए हल किया जाएगा। इसमें भी निश्चित ही लंबा समय लगेगा, लेकिन उम्मीदवारों की आशंका मंडल के पुराने रिकार्ड को देखकर बहुत ज्यादा है। उन्हें आशंका है कि मंडल के कामों में कभी भी ट्रांसपेरेंसी नहीं रही है। ऐसे में यह फार्मूला किस उम्मदीवार के लिए किस तरह लागू किया गया है और किस तरह से उसके अंक घटाए-बढ़ाए गए हैं यह कभी किसी को पता ही नहीं चलेगा। यदि मंडल इस पूरी प्रक्रिया को लेकर स्पष्ट रहे और रिजल्ट के समय पूरे औसत अंक, शिफ्ट अंक आदि की स्पष्ट जानकारी दे, तभी इस पर विश्वास की बात आएगी, नहीं तो इस पूरे रिजल्ट को तैयार करने में बड़ा खेल हो जाए तो कोई बड़ी बात नहीं होगी।



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किस तरह से काम करेगा यह फार्मूला



फार्मूले में कई सारे फैक्टर है, इसमें मुख्य फैक्टर है, पहला कि पटवारी परीक्षा में कुल बैठे उम्मीदवार में से 0.1 फीसदी के औसत अंक क्या है? फिर परीक्षा में बैठे सभी उम्मीदवारों के कुल अंकों में से औसत अंक क्या है? तीसरा फैक्टर छात्र की शिफ्ट के सभी छात्रों के औसत अंक क्या है? और इस शिफ्ट में बैठे छात्रों के 0.1 फीसदी छात्रों का औसत अंक क्या है। इस फार्मूले से जो अंक आएंगे, उसे छात्र के मूल अंक से प्लस किया जाएगा। पटवारी परीक्षा कुल 200 अंकों की है।




  • माना पटवारी परीक्षा मं 12 लाख उम्मीदवार बैठते हैं, इनके 0.1 फीसदी यानि 1200 छात्रों का औसत अंक 85 आता है. फिर कुल 12 लाख उम्मीदवारों के औसत अंक माना कि 55 आते हैं। तीसरा छात्र के शिफ्ट में बैठे छात्रों का औसत अंक माना 50 है और इस शिफ्ट के 0.1 फीसदी छात्रों का औसत अंक माना 84 है।


  • तब इस फार्मूले से 0.88 गुणांक आता है ( 85-55 डिवाइड 84-50 से)

  • इस गुणांक को छात्र के मूल अंक 75 और उसके शिफ्ट के औसत अंक 50 को माइनस करने पर बचे अंक से गुणा करने पर। यानि 75-50 से बचा 25, इसे अब गुणांक 0.88 से गुणा करेंगे तो आएगा 22 अंक। 

  • अब इस 22 को, परीक्षा में बैठे सभी 12 लाख उम्मीदवारों के औसत अंक जो 55 था उससे जोड़ देते हैं तो नए अंक आएंगे यह होगा 75 प्लस 22 यानि 77 अंक। 



  • 12 लाख लोगों के लिए और 80 शिफ्ट के लिए आसान नहीं



    विशेषज्ञ डॉ. अवनीश पांडे बताते हैं कि कई बड़ी एग्जाम में यह फार्मूला उपयोग करते हैं लेकिन वहां पेपर सेट चार ही होते हैं या फिर उम्मीदवार कम होते हैं, लेकिन पटवारी परीक्षा में यह दोनों ही बातें नहीं है, यहां 80 शिफ्ट में परीक्षा हो रही है, यानी 80 सेट हो गए और फिर 12 लाख से ज्यादा उम्मीदवार। यानि हर छात्र की शिफ्ट का औसत अंक, फिर उसके 0.1 फीसदी का औसत अंक और कुल उम्मीदवारों के औसत अंक आदि की गणना कर छात्र के मूल अंक में जोड़ घटाव कर यह अंक निकालना टिपिकल प्रक्रिया है। हालांकि निश्चित ही एजेंसी के पास आईटी प्रोफेशनल्स होंगे, साफ्टवेयर होंगे लेकिन इन सभी के बाद भी यह आसान नहीं है। 



    पटवारी परीक्षा में मप्र के प्रश्न ही गायब, स्तर भी हर रोज घट-बढ़ रहा



    पटवारी परीक्षा में मप्र के मूल निवासियों को अतिरिक्त लाभ मिलता नहीं दिख रहा है, क्योंकि बहुत ही कम प्रश्न आ रहे हैं और जो आ भी रहे है तो ऐसे जिनका जवाब कोई भी दे सकता है जैसे कि उज्जैन किस प्रदेश में स्थित है। वहीं मैथ्य, रिजनिंग का स्तर भी हर रोज घट-बढ़ रहा है। ऐसे में किसी शिफ्ट, उम्मीदवार के लिए यह आसान हो रहा है तो कहीं पर भारी पड़ रहा है। ऐसे में फार्मूले से क्या बड़ी उठा-पटक होगी, इसके लिए कुछ भी कहना संभव नहीं है। इसके ऊपर मंडल की पुरानी छवि और ट्रांसपरेंसी की कमी, दोनों ही उम्मीदवारों के लिए उलझन बढ़ाने वाली है।


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