बिरसा मुंडा जयंती पर लागू होगा पेसा एक्ट, आदिवासी वोट बैंक को BJP में जाने से रोकने में लगी जयस; क्या कहती है कांग्रेस की खामोशी

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Harish Divekar
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बिरसा मुंडा जयंती पर लागू होगा पेसा एक्ट, आदिवासी वोट बैंक को BJP में जाने से रोकने में लगी जयस; क्या कहती है कांग्रेस की खामोशी

हरीश दिवेकर, BHOPAL. अब तक आदिवासी वोटर्स की फिक्र में घुल रही बीजेपी ऐन बिरसामुंडा की जयंती पर ही उन्हें भूल रही है। पिछले साल पीएम नरेंद्र मोदी ने इस दिन को आदिवासी जनजाति गौरव दिवस का नाम देकर इसका मान बढ़ाया था। अब उसी खास दिन पर कोई बड़ा नेता प्रदेश में झांकने तक नहीं आ रहा। इसकी असल वजह क्या है, सुनकर शायद आप भी चौंक जाएंगे। आदिवासी वोट बैंक किसी भी राजनीतिक दल के लिए कितना जरूरी है, ये किसी से छिपा नहीं है। इस वोट बैंक ने 2018 बीजेपी को धोखा दिया तो कांग्रेस की सरकार बन गई थी। इसके बाद पॉलिटिकल पार्टीज को आदिवासी वोट बैंक की असल कीमत समझ आई। तब से लेकर अब तक कभी नेपथ्य में रहने वाले आदिवासी बीजेपी की आंख का तारा बन गए। न सिर्फ बीजेपी की आंख का तारा, बल्कि छोट से  लेकर बड़े दल तक आदिवासी वोट बैंक पर बड़ा दांव खेलने की तैयारी में हैं। बीजेपी इस दांव में सबसे आगे  चल रही थी, जो दो बड़े भव्य कार्यक्रम कर आदिवासियों के दिल में उतरने की पूरी कोशिश में थी। एक कार्यक्रम साल भर पहले हुआ, जिसमें खुद पीएम मोदी मध्यप्रदेश आए। दूसरा भव्य प्रोग्राम अप्रैल में हुआ, जिसमें केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने शिरकत की। लेकिन इस बार बिरसा मुंडा की जयंती पर बीजेपी के पहले और दूसरे नंबर के नेता गायब हैं। सीएम शिवराज सिंह चौहान अकेले इस जिम्मेदारी को अदा करने की कोशिश में हैं। आदिवासियों के लिए बड़ी घोषणा की भी तैयारी है, लेकिन उस तैयारी से पहले ही जयस ने सारी मेहनत पर पानी फेरने की प्लानिंग कर ली है। 



आदिवासी बीजेपी से छिटके थे



15 नवंबर को भगवान बिरसा मुंडा की जयंती है। अपने इस जननायक को आदिवासियों ने भगवान का दर्जा भी दे दिया है। पिछले साल अपनी हर व्यस्तता से समय निकालकर पीएम नरेंद्र मोदी भोपाल आए थे। भव्य समारोह में इस दिन को आदिवासी जनजातिय गौरव दिवस के रूप में मनाने का ऐलान हुआ। बिरसा मुंडा को सम्मान देने का इरादा तो था ही। खास मकसद आदिवासी वोटर्स को रिझाने का था। ताकि, इस बार यानी 2023 के चुनाव में ये वोटर्स बीजेपी से छिटक कर दूर न जा सके। 



आदिवासी वोटर्स की नजर आयोजन पर टिकी



इसके बाद अप्रैल माह में अमित शाह का दौरा हुआ। केंद्रीय मंत्री ने भोपाल आकर तेंदुपत्ता संग्राहकों और वनवासी समुदाय के लिए सौगातों का पिटारा खोल दिया। ये सौगातें भी आदिवासी समुदाय को रिझाने के लिए ही दी गईं  थीं। एक साल से आदिवासियों को अपने पाले में लाने के लिए बड़े-बड़े जतन हुए। लेकिन इस बार बिरसा मुंडा की जयंती पर कोई बड़ा नेता प्रदेश में झांकने भी नहीं आ रहा। जबकि आदिवासी वोटर्स की नजर अभी से इस दिन पर हो रहे खास आयोजनों पर टिकी है। लेकिन दूसरी व्यस्तताओं के चलते बीजेपी के एक और दो नंबर के नेता मध्यप्रदेश के आदिवासियों के लिए समय निकाल पाने में असमर्थ हैं। जिसकी वजह से पूरी जिम्मेदारी सिर्फ सीएम शिवराज सिंह चौहान के कंधे पर टिकी हैं, जो एक कार्यक्रम  कर आदिवासियों के लिए बड़ी घोषणा करने की तैयारी में हैं।



84 सीटों पर आदिवासियों का प्रभाव



प्रदेश में आदिवासी सीटों की संख्या 47 है। जबकि 84 सीटों पर आदिवासी वोटरों का प्रभाव है। प्रदेश में आदिवासियों की आबादी दो करोड़ के लगभग है। यही कारण है कि बीजेपी और कांग्रेस आदिवासी वोट हाथ से नहीं जाने देना चाहती। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने इन्हीं 47 सीटों में से 30 सीटों पर कब्जा जमाया था। 2013 के चुनाव में यहां कि 31 सीटें जीतने वाली बीजेपी पिछले चुनाव में 16 सीटों पर सिमट कर रह गई थी। 



आदिवासियों को पेसा एक्ट की सौगात 



इन आंकड़ों से ये तय है कि आदिवासी वोटर्स और सीटें ही मध्यप्रदेश में किंगमेकर होने वाली हैं। पर अफसोस की बीजेपी के आलानेताओं के पास ही किंगमेकर वोटर्स के लिए इस बार कोई समय नहीं है। डैमेज कंट्रोल के लिए फिलहाल बीजेपी सरकार ने बड़ा कार्यक्रम कर आदिवासियों को पेसा एक्ट की सौगात देने का फैसला किया है। कोशिश ये है कि इस बड़ी घोषणा के जरिए आदिवासी समुदाय की एक बड़ी डिमांड पूरी कर दी जाए। लेकिन ये पांसा भी जीत का आंकड़ा लाता नहीं दिख रहा। जिस घोषणा के जरिए जयस जैसे संगठनों के एजेंडे को खाक में मिलाने की तैयारी है। वही पांसा उल्टा पड़ता दिखाई दे रहा है।



जयस की दिखेगी चुनाव में दमदारी 



एक साल पहले आदिवासी जनजातीय गौरव दिवस मनाने वाली बीजेपी के राज में बिरसा मुंडा की जयंती पर इस बार के आयोजन एकदम फीके हैं। बीजेपी की आला तिकड़ी पीएम नरेंद्र मोदी, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय मंत्री अमित शाह का पूरा फोकस सिर्फ और सिर्फ गुजरात पर है। डैमेज कंट्रोल में माहिर बीजेपी हर नुकसान की भरपाई करने का दूसरा तरीका निकाल लेगी। फिलहाल गुजरात को किसी भी कीमत से हाथ से नहीं जाने देने की कोशिश है। इस कोशिश में आदिवासी जनजातीय गौरव दिवस को भी खास तवज्जो नहीं दी गई है। बीजेपी ने ये हिमायत उस चुनाव में की है, जब आदिवासियों की फिक्र करने के लिए जयस जैसा संगठन ज्यादा दमदारी से चुनाव में उतर रहा है। कांग्रेस की कोशिशें अलग हैं और आप का खतरा भी मंडरा रहा है। प्रदेश सरकार ने लाज बचाने की पूरी कोशिश की है। सीएम शिवराज सिंह चौहान ने पंचायत स्तर पर बिरसा मुंडा की जयंती मनाने के निर्देश जारी किए साथ ही पेसा एक्ट भी लागू करने की तैयारी में हैं।



कांग्रेस की खामोशी क्या कहती



पार्टी का ये बड़ा दांव उल्टा पड़ जाए तो कोई हैरानी नहीं होगी। क्योंकि पेसा एक्ट लागू करने की घोषणा ही आदिवासियों के लिए काफी नहीं है। बीजेपी पेसा एक्ट की मांग को पूरा कर जिस जयस को घर बिठाने की कोशिश है। उसी संगठन के नेता का दावा है कि पेसा एक्ट लागू करने भर से काम नहीं चलेगा। पेसा एक्ट के तहत ग्राम पंचायतों पर जो इंतमान होने हैं, वो नाकाफी हैं। इसलिए कोरी घोषणा भर से बीजेपी का फायदा होना तकरीबन नामुमकिन है। आदिवासी वोटर्स के मामले में फिलहाल बीजेपी और कांग्रेस के बजाय मुकाबला बीजेपी और जयस में ज्यादा नजर आता है। कांग्रेस इस पूरे मुद्दे पर खामोश है। शायद इस आंकलन में जुटी है कि आदिवासियों की जंग में जयस के आने से क्या नफा नुकसान हो सकता है।



जयस मैदान में पूरी ताकत लगा रही 



2023 में आदिवासी वोट बैंक की जंग आसान नहीं होने वाली। ये साफ नजर आ रहा है। इस वोट बैंक को खींचने के लिए बीजेपी बड़े-बड़े दांव पेंच चल रही है। उन्हें फेल करने के लिए जयस मैदान में पूरी ताकत लगा रही है। आप की आमद से भी समीकरण बदलना तय है। क्योंकि, बीजेपी से पहले अरविंद केजरीवाल गुजरात में पेसा एक्ट लागू करने का ऐलान कर चुके हैं। सो खुद को आदिवासियों का हिमायती बताने से वो भी गुरेज करने वाले नहीं हैं। एक कांग्रेस ही है जिसका रूख अब तक स्पष्ट नहीं है। आदिवासी किसके साथ जाएगा ये तो वक्त ही बताएगा। पर ये तय है कि वोट की राजनीति के भरोसे ही सही आने वाले एक साल में आदिवासी वोटर्स के वारे न्यारे होते रहेंगे।


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