BHOPAL. मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले आदिवासियों को लुभाने में जुटी राज्य सरकार 15 नवंबर से पेसा एक्ट (Panchayat Extension to the Scheduled Areas Act 1996) लागू करने जा रही है। इस मौके को ऐतिहासिक और यादगार बनाने के लिए सरकार आदिवासी समाज में भगवान की तरह पूजे जाने वाले स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने के लिए एक बार फिर बड़ा और भव्य आयोजन करने जा रही है। इस बार ये आयोजन आदिवासी बहुल शहडोल जिले में होगा और इसमें मुख्य अतिथि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू होंगी। आइए आपको बताते हैं कि प्रदेश में पेसा एक्ट लागू होने से आदिवासियों को क्या और कैसे लाभ होगा।
PESA एक्ट की जरूरत क्यों पड़ी ?
देश के संविधान में 73वें संशोधन के माध्यम से त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई थी। लेकिन ये महसूस किया गया कि इसके प्रावधानों में अनुसूचित क्षेत्रों विशेषकर आदिवासी क्षेत्रों की जरूरतों का ध्यान नहीं रखा गया है। इसी कमी को पूरा करने के लिए संविधान के भाग-9 के अंतर्गत अनुसूचित क्षेत्रों में विशिष्ट पंचायत व्यवस्था लागू करने के लिए पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम 1996 बनाया गया।
PESA कानून का उद्देश्य
बता दें कि पेसा (पंचायत-अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार-अधिनियम 1996) कानून का उद्देश्य अनूसूचित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए ग्राम सभाओं के माध्यम से स्वशासन सुनिश्चित करना है। ये कानून देश में 24 दिसंबर 1996 को लागू किया गया था। ये कानून मध्यप्रदेश के ही आदिवासी नेता और पूर्व सांसद दिलीप सिंह भूरिया की अध्यक्षता में बनाई गई समिति की सिफारिश पर एक्ट तैयार हुआ था। इस अधिनियम को 24 दिसम्बर 1996 को राष्ट्रपति के अनुमोदन से लागू किया गया था। लेकिन आदिवासियों को अधिकार संपन्न बनाने के लिए इस केंद्रीय कानून के वजूद में आने के 26 साल बाद भी एक्ट में किए गए प्रावधान पूरी तरह मध्यप्रदेश में लागू नहीं हुए थे। प्रदेश में लंबे समय से ये एक्ट सभी प्रावधानों के साथ पूरी तरह लागू करने की मांग की जा रही थी।
PESA कानून से जनजातियों को लाभ
ये कानून आदिवासी समुदायों को जनजातियों की पारंपरिक और प्रचलित प्रणालियों के माध्यम से स्वयं को शासित करने के अधिकार को मान्यता देता है। ये प्राकृतिक संसाधनों पर उनके पारंपरिक अधिकारों को स्वीकार करता है। इसमें गांव की सामाजिक और आर्थिक विकास योजनाओं को मंजूरी देने और नियंत्रित करने का अधिकार ग्राम सभा के पास होता है। प्रदेश में पेसा एक्ट के लागू होने के बाद ग्राम सभाओं की ताकत बढ़ जाएगी। इस कानून में अधिसूचित क्षेत्र की जल, जंगल, जमीन और संसाधन पर ग्राम सभा का अधिकार होता है। ये जमीन का कटाव रोकने के लिए जरूरी कदम भी उठा सकती है। आदिवासी क्षेत्र में किसी के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने पर पुलिस को इसकी सूचना ग्रामसभा को देनी होगी। गांव के सामाजिक विवाद भी ग्राम सभा के सतर पर सुलझाए जाएंगे।
PESA कानून में ग्राम सभा का महत्व और अधिकार
पेसा एक्ट ग्राम सभाओं को विकास योजनाओं की मंजूरी देने और सभी सामाजिक क्षेत्रों को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने का अधिकार देता है। इसके तहत ग्राम सभा को इन क्षेत्रों के अधिकार दिए जाने का प्रावधान है।
प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण
जल, जंगल, जमीन से जुड़े संसाधन, लघु वनोपज, इन क्षेत्रों में मानव संसाधन से जुड़ीं प्रक्रियाएं, स्थानीय बाजारों का प्रबंधन, जमीन का कटाव रोकना।
सांस्कृतिक पहचान का संरक्षण
ग्राम सभाओं की शक्तियों में सांस्कृतिक पहचान और परंपराओं का संरक्षण, आदिवासियों की सभ्यता-संस्कृति को प्रभावित करने वाली योजनाओं पर नियंत्रण।
विवादों का समाधान
पेसा कानून ग्राम सभाओं को बाहरी या आंतरिक संघर्षों के खिलाफ अपने अधिकारों और परिवेश के सुरक्षा तंत्र को बनाए रखने में सक्षम बनाता है।
नशीले पदार्थों पर नियंत्रण
ग्राम सभा को अपने गांव की सीमा के भीतर नशीले पदार्थों के उत्पादन, परिवहन, बिक्री और खपत की निगरानी और नियंत्रण करने का अधिकार होगा।
PESA कानून में ग्राम सभा के कार्य
ग्राम सभा एक ऐसी संस्था है जिसमें वे सभी लोग शामिल होते हैं जिनके नाम ग्राम स्तर पर पंचायत की मतदाता सूची में दर्ज होते हैं। मतदाता सूची में दर्ज 18 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्ति ग्राम सभा के सदस्य हो सकते हैं। पंचायती राज अधिनियम के अनुसार ग्राम सभा की बैठकें साल में कम से कम दो बार जरूर होनी चाहिए। ग्राम पंचायत को अपनी सुविधानुसार ग्राम सभा की बैठक आयोजित करने का अधिकार है।
पेसा कानून पर अमल से जुड़ी आशंकाएं
जनजातियों के अधिकारों से जुड़े जानकारों के मुताबिक केंद्र सरकार ने ये कानून जिस मंशा से बनाया था उस पर राज्यों में पूरी तरह अमल नहीं हो सका है। इसकी वजह पेसा कानून में स्पष्टता की कमी, कानूनी दुर्बलता, नौकरशाही से जुड़ी उदासीनता और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है। इसी के चलते कई राज्यों में आदिवासियों के हित सुनिश्चित करने में ये महज कागजी साबित हुआ है। इसे लागू करने वाले राज्यों में ये हकीकत भी सामने आई है ग्राम सभाओं के निर्णय के नाम पर सिर्फ कागजी अनुमोदन कराया जा रहा है। असल में ग्रामसभा में आदिवासियों के हितों से जुड़े मामलों पर चर्चा और निर्णय के लिए कोई बैठक ही नहीं हो रही है।