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Jabalpur. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने नर्मदा इंस्टीट्यूट ऑफ पैरामेडिकल साइंसेज डिंडौरी और एमपी पैरामेडिकल काउंसिल के खिलाफ तल्ख टिप्पणी करते हुए कॉलेज की याचिका खारिज कर दी। हाईकोर्ट के न्यायाधीश शील नागू और जस्टिस वीरेंद्र सिंह की युगलपीठ ने कहा कि अवैध रूप से प्रवेश देने से छात्रों का भविष्य खतरे में पड़ गया है। हाईकोर्ट ने कॉलेज को निर्देश दिए हैं कि वह प्रति छात्र को 25 हजार रुपए हर्जाना राशि दे। कोर्ट ने अवैध रूप से प्रवेश देने के मामले में एमपी पैरामेडिकल काउंसिल पर 50 हजार का जुर्माना लगाया।
नर्मदा इंस्टीट्यूट ऑफ पैरामेडिकल साइंसेज, डिंडोरी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर मांग की थी कि उसे वर्ष 2018-19 के लिए मप्र आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय से संबद्धता दिलाई जाए और डिप्लोमा इन मेडिकल लैब टेक्नीशियन कोर्स में प्रवेशित विद्यार्थियों की परीक्षा आयोजित कराई जाए। कॉलेज ने तर्क दिया था कि पैरामेडिकल काउंसिल से मान्यता लेने के बाद सभी शर्तें पूरी कीं और छात्रों को प्रवेश दिया था। वहीं मेडिकल यूनिवर्सिटी की ओर से अधिवक्ता सतीश वर्मा ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता संस्थान ने कभी शैक्षणिक वर्ष में डिप्लोमा इन मेडिकल लैब कोर्स संचालन के लिए विश्वविद्यालय में आवेदन ही नहीं किया। तर्क दिया गया कि नियमानुसार बिना संबद्धता के कोई भी कॉलेज किसी भी कोर्स में छात्रों को प्रवेश नहीं दे सकता।
हाईकोर्ट ने मेडिकल यूनिवर्सिटी का तर्क सुनने के बाद एमपी पैरामेडिकल काउंसिल और संबंधित कॉलेज को जमकर फटकार लगाई। हाईकोर्ट ने कहा कि कॉलेज ने अवैध रूप से छात्रों को प्रवेश देकर उनका भविष्य खराब किया है। हाईकोर्ट ने कहा कि कॉलेज को राहत नहीं दी जा सकती है। कॉलेज प्रत्येक प्रवेशित छात्र को हर्जाने के रूप में 25-25 हजार रुपए का भुगतान करे। यह राशि छात्रों के बैंक अकाउंट में ट्रांसफर की जाए। कोर्ट ने कहा कि पैरामेडिकल काउंसिल ने अवैध प्रवेश की जानकारी होने के बावजूद कॉलेज के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। कोर्ट ने काउंसिल पर 50 हजार रुपए की कास्ट लगाई है।