Bhopal. मध्यप्रदेश में एक के बाद एक तालाबों को रामसर साइट घोषित किया जा रहा है। हाल ही में जुलाई और अगस्त में मध्यप्रदेश की दो और तालाबों को रामसर साइट घोषित होने पर पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम शिवराज सिंह चौहान ने बधाई दी, पर क्या तालाबों के रामसर साइट भर घोषित हो जाने से बधाई दी जाना चाहिए। बधाईयों की झड़ी को सुनकर यदि आप यह सोच रहे हैं कि रामसर साइट घोषित भर हो जाने से आपके और हमारे जीवन में चमत्कारी परिवर्तन हो जाएंगे तो आप गलत है। रामसर साइट घोषित होने के बाद इन तलाबों की हुई दुर्दशा के बारे में द सूत्र आपको परत दर परत पूरी जानकारी देगा। साथ ही द सूत्र की पड़ताल में हम आपको यह भी बताएंगे कि इससे आपके और हमारे जीवन पर इसका क्या असर पड़ेगा। सबसे पहले जानिए कि मध्यप्रदेश में रामसर साइट कितनी है। प्रदेश की सबसे पहली रामसर साइट 20 साल पहले 2002 में बड़े तालाब को घोषित किया गया था। इसके बाद जुलाई 2022 में शिवपुरी जिले की साख्य सागर झील और अगस्त 2022 में इंदौर के सिरपुर तालाब को रामसर साइट का दर्जा मिला। प्रदेश की पहली रामसर साइट को 20 साल पूरे होने पर द सूत्र ने पड़ताल की तो जो सच्चाई सामने आई वह बेहद चौंकाने वाली थी। रामसर साइट घोषित होने के बाद बड़े तालाब का संवर्धन और संरक्षण होना था, उल्टा इसके कैचमेंट पर 500 से ज्यादा अतिक्रमण हो गए। यही नहीं जिस तालाब से लाखों लोगों को पीने का पानी सप्लाई होता है, उसमें निगम ने खुद एसटीपी से निकलने वाले पानी को छोड़ने की पूरी तैयारी कर ली थी। इससे यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि रामसर साइट घोषित होने के बाद भोपाल के बड़े तालाब की क्या दुर्दशा हो गई।
पहले समझिए...रामसर साइट का मतलब क्या होता है
दरअसल रामसर एक अंतरराष्ट्रीय संधि है। 1971 में ईरान के रामसर शहर में आयोजित सम्मेलन में विभिन्न देशों ने वेटलैंड यानी नम या दलदलीय भूमि के संरक्षण के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इसके बाद इन वेटलैंड के संवर्धन और संरक्षण को लेकर तेजी से काम हुआ। बायोडायवर्सिटी के कारण भोज वेटलैंड यानी बड़े तालाब को 2002 में रामसार साइट का दर्जा मिला था। 2005 की सेप्ट रिपोर्ट के अनुसार यहां जलीय जीव, जंतु और पौधों आदि को गिना जाए तो उनकी संख्या 805 होती है।
रामसर साइट से बढ़कर भोपाल की लाइफ लाइन है बड़ा तालाब
बड़ा तालाब रामसर साइट से बढ़कर भोपाल की लाइफ लाइन कहा जा सकता है। 12 लाख लोग पीने के पानी के लिए इस पर निर्भर है। राजधानी की 40 फीसदी आबादी को सीधे तौर पर इससे पानी की सप्लाई होती है या यह ग्राउंड वॉटर को प्रभावित करता है। सैंकड़ों टन मछलियां यहां से निकलती है, जो लोगों की थाली में परोसी जाती है। जिसके कारण यह तालाब सीधे तौर पर राजधानी के लोगों के स्वास्थ से जुड़ा हुआ है। इसके बाद भी यहां लापरवाही बरती जा रही है।
बड़े तालाब में 11 नालों से 20 एमएलडी सीवेज रोज मिल रहा
बड़े तालाब में ही प्रतिदिन 20 एमएलडी सीवेज मिल रहा है। बड़े तालाब में वर्तमान में सईद नगर नाला, शिरीन नाला, बैरागढ मेन रोड़ नाला, एमएन एवं एलएन नाला, बोरवेन के पास स्लम नाला, संजय नगर नाला, राजेन्द्र नगर नाला, राहुल नगर नाला, एमपीईबी सब स्टेशन के पीछे का नाला, सीहोर नाका नाला, भैंसाखेड़ी नाला, जमुनिया छीर पुलिया नंबर-01 के पास नाला, जमुनिया छीर पुलिया नंबर-02 मुनार न. 80 के पास नाला, कोलू खेड़ी गांव, कोलूखेड़ी गांव से आगे, वन निधि नर्सरी के पास पुलिया, कोटरा पंप हाउस के पास नाला और भदभदा झुग्गी नाला सीधे बड़े तालाब में मिल रहा है।
तालाब में निगम ने खुद बना दिया एसटीपी, वॉटर एक्ट का उल्लंघन
अंतर्राष्ट्रीय दर्जा मिलने के बाद बड़े तालाब का संवर्धन और संरक्षण होना था, उल्टा इसमें सीवेज छोड़ने की तैयारी कर ली गई। पर्यावरणविद् सुभाष पांडे बताते हैं कि वॉटर एक्ट 1974 और एनजीटी की प्रिंसिपल बेंच के आदेश के अनुसार ऐसी वाटर बॉडी जिससे लोगों को पीने के पानी की सप्लाई होती है, उनमें सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और सीवेज पंप हाउस से निकलने वाले पानी को नहीं छोड़ा जा सकता, लेकिन नगर निगम करबला के पास सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और सीवेज पंप हाउस दोनो संचालित कर पानी बड़े तालाब में छोड़ रहा था, जिसे लेकर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने लाखों की पेनाल्टी भी नगर निगम पर लगाई थी। अब भी ये प्लांट यहीं संचालित हो रहे हैं। इसके अलावा सूरजगंज से गौरे गांव की ओर जाने वाली सड़क पर भी निगम ने ही एक एसटीपी प्लांट बनाया, हालांकि शिकायतों के बाद इसके संचालन पर रोक लग गई।
1600 गुना मल—मूत्र युक्त पानी पी रहे लोग
एनवायरमेंट प्लानिंग एंड कोर्डिनेशन आर्गनाइजेशन (एप्को) 2016 की रिपोर्ट के अनुसार बड़े तालाब में लगातार सीवेज मिलने से यहां का पानी तय मानकों से 14 गुना ज्यादा प्रदूषित हो चुका है। अब यह पीने योग्य नहीं बचा है। पर्यावरणविद् सुभाष पांडे ने जब यहां आसपास के पानी के सेंपल की जांच की तो उसमें पता चला कि टोटल कोलीफार्म बैक्टीरिया जो कि सिर्फ मलमूत्र में होता है वह 1600 पाया गया, जबकि यह होना ही नहीं चाहिए। सीधे तौर पर कहें तो आसपास के लोग 1600 गुना मलमूत्र युक्त पानी पी रहे हैं।