BHOPAL. गब्बर के पूछे सवाल का जवाब करीब-करीब सभी को मिल गया है कि होली कब है? होलिका दहन 7 मार्च को है और धुरेड़ी यानी खेलने वाली होली 8 मार्च को है। गर्मी भी अपना रंग दिखाने लगी है, हां बादल-पानी पुरजोर कोशिश कर रहे हैं कि कुछ तो मौसम सुहावना रहे, लेकिन तपिश को कोई रोक थोड़ी ही पाएगा। इधर, बीजेपी पूर्वोत्तर के 3 राज्यों में मिली जीत के रथ पर सवार होकर कुलांचे भर रही है। यहां कांग्रेस दूर-दूर तक नदारद दिखी। हां, लंदन से राहुल गांधी ने पेगासस का जिन्न एक बार फिर बाहर निकाला। राहुल के बोलों पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि राहुल के फोन में नहीं, दिमाग में पेगासस है। इधर, मध्य प्रदेश में विधानसभा का बजट सत्र चल रहा है। कांग्रेस के तेज-तर्रार विधायक को पूरे सत्र के लिए निलंबित कर दिया तो पार्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी में है। वैसे भी मध्य प्रदेश में इस साल चुनाव हैं और लंबे समय से सत्ता से दूर कांग्रेस हर मौके को भुनाने की तैयारी में है। लाड़ली लक्ष्मी के बाद लाड़ली बहना भी आ गई है। खुशबू तो कई खबरों की उड़ रही है, आप तो बस अंदरखाने चले आइए...
भाई साहब कब हो रहा है
बीजेपी में हर दूसरा नेता एक ही सवाल पूछा जा रहा है भाई साहब कब हो रहा है। सवाल सुनते ही भाई साहब मुस्कराते हुए कहते हुए हैं कि हम भी दिल्ली से यही सवाल पूछ रहे हैं कि भाई साहब कब हो रहा है। प्रदेश में हो रही ताबड़तोड़ बीजेपी की कोर कमेटी, छोटी कोर कमेटी और दूसरे पदाधिकारियों की बैठकों के बाद सब एक दूसरे से पूछ ही लेते हैं भाई साहब कब हो रहा है। बेनूर नेता और बेनतीजा बैठकों के सवाल पर एक पदाधिकारी ने नेता से कहा कि देखो भाई ये सारी बैठकें तयशुदा कार्यक्रम के तहत हो रही हैं, यही हमारी पार्टी की लीला है। राजनीति में मौसम कितना भी बने, बादल कितने भी उमड़े, लेकिन जब तक दिल्ली से हवा नहीं चलेगी यहां पानी नहीं बरसेगा।
अजय-अरुण के ग्रह अच्छे, लेकिन दिन बुरे
कांग्रेस के दिग्गज नेता अजय सिंह और अरुण यादव की नाम राशि मेष के ग्रहों के अनुसार दशम भाव के स्वामी शनि जनवरी से कुंभ राशि में प्रवेश कर चुके हैं, यह दशा जातक के कॅरियर में कुछ नई उपलब्धियां पाने का संकेत करती है। लेकिन दो माह बाद भी दोनों नेताओं को ग्रहों के बदलने का सकारात्मक प्रभाव नजर नहीं आ रहा है। उलट इन्हें पार्टी में अपने अस्तित्व बचाने की जंग लड़ना पड़ रही है। दोनों नेताओं ने दबी छुपी जुबान में प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ का विरोध करके भी देख लिया, लेकिन उससे फायदा मिलने की बजाए नुकसान ही हुआ। दोनों नेताओं के समर्थक भी निराश हैं, कुछ ने तो अपने भविष्य को ध्यान में रखते हुए धीरे से अपने आका बदलना शुरू कर दिए हैं।
भाऊ के मुगालते दूर
एक अदने से टीआई ने भाऊ के मुगालते दूर कर दिए। ताई के हटने के बाद भाई को डाउन करने के लिए भाऊ को शहर संभालने का मौका दिया गया। ऊपर से इशारा मिलते ही जिले के अफसर भाऊ को हीरो बनाने में लग गए। अचानक मिले पॉवर से भाऊ उड़ान भरने लगे। शहर का हर महत्वपूर्ण फैसला भाऊ की सहमति से होने लगा। बड़े अफसरों को आगे-पीछे घूमता देख भाऊ को गुमान हो गया कि शहर के बड़े नेता तो वही हैं, भाई भी अब उनकी टक्कर में नहीं है। इसी बीच एक टीआई ने भाऊ के आदेश की नाफरमानी कर दी। भाऊ ने एक्शन लेने की कोशिश की तो मंत्री उसके बचाव में आ गए। भाऊ ने इसे इगो इश्यू बनाया और सीधे सीएम से सस्पेंड करवा दिया। टीआई भी छुपा रुस्तम निकला, तीन महीने में ऐसा चक्कर घुमाया कि भाऊ को ठेंगा दिखाते हुए अपनी पोस्टिंग करवा ली। अब भाऊ को समझ नहीं आ रहा कि उनके कहने पर सीएम ने हटाया था अब सीएम से बड़ा बल्लम कौन है, जिसकी सिफारिश से टीआई फिर से मैदान में उतर आया है।
बेवड़े हो गए साहब
प्रदेश के सीनियर आईएएस अफसर बेवड़े हो गए हैं, साहब के अधीनस्थ कहने लगे हैं कि सुबह से ही सुरा के सुरूर में डूब जाते हैं। पोस्टिंग राजधानी से सैकड़ों किमी दूर होने से सरकार को पता ही नहीं चलता कि साहब कहां क्या कर रहे हैं। जूनियर अफसर भी नहीं चाहते साहब की पोल खुले, क्योंकि जब तक साहब सुरा पान में व्यस्त हैं, तब तक जूनियर फुल पॉवर एन्जॉय करने में। आपकों बता दें साहब कला प्रेमी हैं, राग-सुर से गहरा ताल्लुक रखते हैं, ईमानदार छवि है, लेकिन कहते हैं ना, कलाकार अपनी दुनिया में रहता है। यही वजह है कि साहब की शुरू से प्रशासनिक कामों से ज्यादा कला संस्कृति में रुचि रही है।
कलेक्टर चले थे छब्बे बनने, दुबे रह गए
एक कहावत तो आपने सुनी ही होगी, चौबे जी चले थे छब्बेजी बनने दुबे बनकर लौटे। कुछ ऐसा ही किस्सा अपने पंडितजी कलेक्टर के साथ हो गया। अरे रायसेन कलेक्टर दुबे के साथ नहीं वो तो पहले से ही दुबे हैं, हम बात कर रहे हैं डिंडोरी कलेक्टर विकास मिश्रा की। कलेक्टर बनते ही मिश्रा जी ने धुआंधार पब्लिसिटी स्टंट कर मामा जी का दिल जीत लिया। भरी महफिल में तारीफ भी पा ली, उसके बाद से मिश्राजी की स्पीड चार गुनी हो गई। यहीं मिश्रा जी गलती कर गए। हाल ही में लाड़ली बहना की वीडियो कॉन्फ्रेंस में मुख्य सचिव ने कलेक्टरों से कहा, आप लोग चुप क्यों हैं, योजना पर आपका क्या कहना है। इस पर तपाक से मिश्रा ने हाथ खड़े कर कहा, मुझे कुछ बोलना है, बस क्या था सीएस बोले, मिश्रा तुम चुप बैठो, कुछ भी बोलते रहते हो। बड़े साहब की डपट से मिश्रा की सारी गलतफहमियां तो दूर हुईं, भरी बिरादरी में किरकिरी अलग हो गई।
ये सोलंकी कौन है भाई
मालवा के एक कद्दावर मंत्री के नाम से जितने लोग नहीं डरते, उससे ज्यादा सोलंकी के नाम से चमकते हैं। आपने तोते में जान वाली कहानी तो सुनी होगी। ऐसा ही कुछ मामला मंत्री और सोलंकी का है। मंत्री का सारा काला धन सोलंकी सफेद करते हैं, सीधे-सीधे बोलें तो जो कुछ है, सोलंकी है, ऐसे में सोलंकी के सीने में दर्द होगा तो मंत्री जी को अटैक आ जाएगा। इतना गहरा मामला है तो मंत्री से ज्यादा सोलंकी की बात का वजन होना तो बनता है मामू।