मध्यप्रदेश में किस बैठक में मामा को नहीं बुलाया, क्यों हो रही बाप-बेटे में कलह और किसके फोन ने बिगाड़े गणित?

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Harish Divekar
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मध्यप्रदेश में किस बैठक में मामा को नहीं बुलाया, क्यों हो रही बाप-बेटे में कलह और किसके फोन ने बिगाड़े गणित?

BHOPAL. 1977 में एक फिल्म आई थी- दूसरा आदमी। इसमें चिंटू जी (ऋषि कपूर) और नीतू सिंह थे। फिल्म में किशोर दा और लता जी की आवाज में एक गाना था- क्या मौसम है, ऐ दीवाने दिल, चल कहीं दूर निकल जाएं....। आजकल रोज शाम को कुछ ऐसा ही मौसम हो रहा है कि कहीं दूर निकल जाएं। गर्मी की आहट से सहमे लोगों ने कूलर-एसी चुस्त करवा लिए, लेकिन इनके खोलने की नौबत नहीं आ रही। माना कि मौसम बदलता है साहब, लेकिन इतना बदलेगा, किसी को अंदाजा भी नहीं था। खैर...थाली में जो परोस दिया जाए, उसे बिना नुक्ताचीनी के ग्रहण कर लेना चाहिए। हंगामाखेज रहा संसद का बजट सत्र खत्म हो गया। विपक्ष अडाणी मुद्दे पर जेपीसी की मांग को लेकर आंदोलित रहा तो सत्ता पक्ष राहुल गांधी के लंदन में दी स्पीच पर माफी की मांग करता रहा। दोनों पक्षों की मांगें आपस में टकरा-टकराकर चूर हो गईं। जनता की गाढ़ी कमाई से चलने वाली संसद में काम नाममात्र को ही हुआ। पीएम नरेंद्र मोदी ने एक हफ्ते में दूसरी वंदे भारत रवाना करवाई। पहले मध्यप्रदेश आए थे, ठीक एक हफ्ते बाद तेलंगाना पहुंच गए। वहां के सीएम उन्हें रिसीव करने नहीं पहुंचे। उन सीएम साहब का तुर्रा भी कम नहीं है। वो 'तू डाल-डाल, मैं पात-पात' वाले सिद्धांत पर काम करते हैं। लेकिन किसकी, कब बैंड बजानी है, ये मोदी से बेहतर कोई नहीं जानता। इधर, मध्यप्रदेश में चुनावी रंग चढ़ रहा है। सीएम और पूर्व सीएम अपने-अपने बयानों से पारा हाई करने में लगे हैं। वहीं, कांग्रेस एक बार फिर 'महाराज' को गद्दार बताने में जुटी हुई है। 'महाराज' ने भी सोशल मीडिया पर जमकर तर्क दिए। मध्यप्रदेश के एक दिग्गज नेता ने लड़कियों के एक पहनावे की शूर्पणखा से तुलना कर बखेड़ा कर दिया। राजनीति में साहब किस्सागोई ना हो तो फिर राजनीति कैसी। इसके लिए तो आप सीधे अंदरखाने उतर ही आइए...



मामा को क्यों नहीं बुलाया



क्या आप ऐसा सोच सकते हैं कि बीजेपी एमपी विधानसभा चुनाव की रणनीति पर चर्चा करे और उसमें मुख्यमंत्री को ना बुलाया जाए। तो आप तपाक से कहेंगे....कतई नहीं..। लेकिन भाई लोगों ऐसा हो गया है। इंदौर के संघ कार्यालय केशव विद्यापीठ में हुई बैठक में मामा को नहीं बुलाया गया। जबकि उन्हें उम्मीद थी कि संघ की समन्वय बैठक में चुनावी चर्चा के दौरान कभी भी बुलावा आ सकता है, इसलिए उन्होंने पूरा दिन अपने लिए रिजर्व रखा था। स्टेट हैंगर पर पायलेट को मैसेज था कि कभी भी उड़ान भरनी पड़ सकती है, लेकिन बुलावा नहीं आया। संघ समन्वय बैठक में सरसह कार्यवाह मनमोहन वैद्य और अरुण कुमार, क्षेत्रसंघ कार्यवाह अशोक सोहनी, क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल, शिवप्रकाश, बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष, प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव, प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, संगठन महामंत्री हितानंद मौजूद थे। मुख्यमंत्री का इस बैठक में ना होना राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ है। हर कोई जानना चाहता है कि आखिर मामा को क्यों नहीं बुलाया। वैसे आपको बता दें मामा कहीं नहीं जा रहे इसलिए बेवजह के कयास लगाने में समय ना गवाएं।



ग्वालियर में हावी ठाकुरवाद



अब तक पावर गैलरी में कहा जाता था ग्वालियर यानी महल और महल यानी ग्वालियर। लेकिन, अब हालात कुछ बदलते दिख रहे हैं। ग्वालियर यानी ठाकुरों का गढ़। यहां बीजेपी हो या फिर कांग्रेस दोनों में ठाकुरों का दबदबा है। जिले के आला अफसरों की बात करें तो हर कुर्सी पर ठाकुर जमे हुए हैं। चलिए प्रथम नागरिक से शुरुआत करते हैं, यहां शोभा सिकरवार बैठी हैं, उनके पति सतीश सिकरवार विधायक हैं। बीजेपी के मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर हैं। इतना ही नहीं नरेन्द्र सिंह तोमर सांसद भले ही मुरैना के हों, लेकिन जलवा पूरा ग्वालियर में ही बिखेरते हैं। अफसरों की बात करें तो कलेक्टर अक्षय सिंह और एसपी राजेश चंदेल हैं। ग्वालियर कमिश्नर की कुर्सी पर दीपक सिंह जमे हैं तो हाल ही में नगर निगम कमिश्नर भी हर्ष सिंह को बनाया गया है। जहां देखो वहां आपको सिंह मिलेंगे। अब आप ही बताइए इतने सिंहों के बीच एक टाइगर क्या गुल खिला पाएगा। वैसे अब दिसंबर 2023 ज्यादा दूर नहीं है।



कुर्सी के लिए बाप-बेटे में कलह



कसम से सत्ता की कुर्सी जो कराए सो कम है, अब बताओ ना, प्रदेश के एक शालीन परिवार में इसी कुर्सी ने कलह मचा दिया है। बेटा राजनीति के मैदान में उतरना चाहता है जबकि पिताजी एक बार और जोर मारना चाहते हैं। दोनों की राजनीतिक आकांक्षाएं आपस में टकरा रही हैं। बाप-बेटे की खींचतान में मां ने बेटे का साथ दिया है, ऐसे में नेताजी अकेले पड़ गए हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें बुंदेलखंड से आने वाले ये नेताजी बीजेपी के कद्दावर नेता रहे हैं। लंबे समय तक बड़े विभागों में मंत्री पद भी संभाला। पिछला चुनाव हारने के बाद से नेताजी की राजनीति को ग्रहण लग गया था, पार्टी ने भी दूरी बना ली थी, लेकिन चुनाव आते ही नेताजी की पूछ-परख फिर से बढ़ गई है। यही वजह है कि नेताजी आखिरी बार दम लगाना चाहते हैं, लेकिन बेटे की जिद ने उन्हें उलझन में डाल दिया है।



दक्षिण पश्चिम बनी हॉट सीट



कहावत है ना, एक अनार सौ बीमार। ये कहावत राजधानी की दक्षिण पश्चिम सीट पर सटीक बैठ रही है। यहां बीजेपी के कद्दावर नेता उमाशंकर गुप्ता की मजबूत दावेदारी है। इसके बावजूद कई दावेदार यहां खंब ठोककर गुप्ता जी की नींद उड़ाए हुए हैं। पहले से दावेदार कम थे कि अब एक युवा नेता राहुल कोठारी ने भी एंट्री मार दी है। हालांकि कोठारी सीधे दावेदारी ना करते हुए धार्मिक द्वार से घुसने की कोशिश कर रहे हैं। वे टीटी नगर के दशहरा मैदान में होने वाली देवकीनंदन की कथा करवा रहे हैं। उनके इस आयोजन को उनकी दावेदारी के साथ जोड़कर देखा जा रहा है। अब सच क्या है ये तो कोठारी ही बताएंगे।



मेयर-अध्यक्ष में दमदार कौन?



भोपाल के राजनीतिक गलियारों में ये चर्चा आम है कि मेयर और अध्यक्ष में दमदार कौन है। क्योंकि जब जिसे मौका मिलता है वो उसे पटक देता है। दरअसल ये लड़ाई मेयर और अध्यक्ष की नहीं है इनके आकाओं की है, बोले तो मामा और भाई साहब की। मामा का आर्शीवाद मेयर के साथ है तो भाई साहब ने अध्यक्ष पर हाथ रखा हुआ है। यही वजह है कि विंड पावर का विरोध कर अध्यक्ष ने मेयर को झटका दिया तो वहीं हाल ही में अध्यक्ष के क्षेत्र में ही मेयर ने विकास कार्य की बैठक कर उन्हें ही नहीं बुलाकर नाराजगी का संदेश दे दिया। अब बीजेपी के कार्यकर्ता बोलने लगे हैं कि हमारे नेता बोलते हैं कि मतभेद करो मनभेद नहीं, लेकिन यहां तो बड़े नेताओं में हर जगह भेद ही भेद नजर आ रहा है।



किसके फोन ने बिगाड़े गणित



खाता ना बही, जो हम कहें सही.. वाले समीकरणों पर काम करने वाले साहब लोगों को बड़ा झटका लगा है। देशी भाषा में कहें तो भद पिट गई है। मामला भोपाल कलेक्टर के आदेश बदलने का है। साहब लोगों को इस पलटवार का अंदेशा भी नहीं था। ऐसा नहीं है कि तबादला आदेश में बदलाव नहीं होता, लेकिन उसके लिए वाजिब कारण होता है। लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं था। सिर्फ एक फोन आया और गणित गड़बड़ा गए, किसका फोन था ये अंदर की बात है, इसे अंदर ही रहने दें तो अच्छा है। साहब लोगों ने अपनी भद पिटने से बचाने के लिए एक की जगह 4 अफसरों को इधर-उधर कर दिया, जिससे ये ना लगे कि अकेले भोपाल कलेक्टर बदलने का आदेश जारी किया गया है, लेकिन साहब लोग भूल गए ये पब्लिक है सब जानती समझती है। मंत्रालय में सीनियर अफसरों के चेहरे की मुस्कान देखकर आपको समझ आ जाएगा कि साहब लोगों को पहली बार जोर का झटका धीरे से लगा है।



बीजेपी मीडिया कमजोर



बीजेपी चुनावी मोड में आ चुकी है। क्षेत्रीय संगठन मंत्री अजय जामवाल खुद एक-एक जिले में जाकर कार्यकर्ताओं को जगा रहे हैं, लेकिन बीजेपी की प्रदेश मीडिया टीम सुस्त बनी हुई है। उसकी मुख्य वजह इनमें से ज्यादातर लोग टिकट लेने की जुगाड़ में लग गए हैं, ये लोग अपना ज्यादातर समय अपनी फिल्डिंग जमाने में लगा रहे हैं। पार्टी ने अपना पक्ष रखने के लिए प्रवक्ताओं की भारी-भरकम फौज बना रखी है, लेकिन इसके बावजूद टीवी चैनल वालों को बाइट के लिए प्रवक्ता नहीं मिल रहे। चैनलों में प्रवक्ताओं की ड्यूटी लगाने वाले गेस्ट कॉर्डिनेटर नरेन्द्र पटेल भी परेशान हैं। प्रवक्ता उनका ही फोन नहीं उठाते। ऐसे में टीवी चैनल वाले पूर्व प्रवक्ता, सह मीडिया प्रभारी या मीडिया पैनलिस्ट से काम चला रहे हैं। हालांकि चैनल वालों के लिए आलू साबित हो रहे 2 प्रवक्ता राकेश शर्मा और दुर्गेश केसवानी आपको हर मुद्दे पर बोलने के लिए मिल जाते हैं।


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