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संजय गुप्ता, INDORE. रियल एस्टेट कारोबारी बीसीएम पर आयकर विभाग के छापे की खबर लीक होने की आशंका व्यक्त की जा रही है। जब इन्वेस्टीगेशन विंग आईटी की टीम कंपनी के ठिकाने पर पहुंची तो वहां से कम्प्यूटर गायब थे। इसके बाद सीसीटीवी खंगाले गए। इसमें दिखा कि एक व्यक्ति टीम के आने से पहले ही कम्प्यूटर ले जा रहा है। इस ग्रुप पर छापे के दौरान कई प्रॉपर्टी ब्रोकर घर पर ही नहीं मिले और इनके यहां ताला लगा मिला। साथ ही वैसी जब्ती नहीं हो सकी है, जो इसके पहले लाभम ग्रुप और टीनू संघवी के ग्रुप पर छापे के दौरान अक्टूबर माह में हुई थी। वहीं इस पूरे छापे की टाइमिंग को लेकर भी सवाल उठे रहे हैं। कारण है कि अक्टूबर से जनवरी के बीच रियल एस्टेट ग्रुप पर यह विभाग का तीसरा छापा है। इस कारण बीसीएम ग्रुप कहें या कोई अन्य ग्रुप, वह पहले से ही अलर्ट मोड पर है।
डेटा और थोक में दस्तावेज नहीं मिल सके
सूत्रों के अनुसार कई जगह से डेटा गायब मिला हैं। थोक में जो दस्तावेज और जमीन के सौदों की कच्ची जानकारी मिलनी थी, वह भी हासिल नहीं हो पाई है। इसके चलते अब ग्रुप के जहां पर टाउनशिप या अन्य प्रोजेक्ट चल रहे हैं, उन सभी के बयान लिए जा रहे हैं, जिससे सौदों की सच्चाई पता कर टैक्स चोरी का हिसाब लगाया जा सके। कई कम्प्यूटर, लैपटॉप और मोबाइल तक रिफ्रेश मिले, यानी कि इन्हें समय-समय पर ग्रुप द्वारा हटाया जा रहा था। बताया जा रहा है कि लगातार एक के बाद एक हो रहे छापे के बाद से रियल एस्टेट कारोबारी पहले से ही अलर्ट मोड पर है। ये अब आईटी जानकारों की मदद लेकर अपने डेटा को क्लाउड में या फिर अन्य तकनीक के माध्यम से छिपाने लग गए हैं।
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टाइमिंग पर इसलिए उठ रहे हैं सवाल
अक्टूबर माह में विभाग ने लाभम ग्रुप और टीनू संघवी पर छापे मारे थे। फिर दिसंबर में स्काई अर्थ पर दबिश दी। अब फरवरी में यह तीसरा छापा है। तीनों ही रियल एस्टेट ग्रुप है। पहले दो छापे के बाद से ही पूरा रियल एस्टेट कारोबार अलर्ट मोड पर है। वहीं इन सभी ग्रुपों में कई लोगों के आपसी कारोबारी संबंध भी है, जो आपस में भी सौदे करते हैं। जैसे पहले के छापों में भी चुघ से पूछताछ हुई थी और अब बीसीएम ग्रुप के यहां टीम पहुंची है तो उनके कुछ प्रोजेक्ट में चुघ भी शामिल है। ऐसे में इन सभी ग्रुपों को एक साथ छापे नहीं होने से बीच में अपने डेटा हटाने या शिफ्ट करने का पर्याप्त समय मिल गया, जिसके चलते यह तीसरा छापा पहले की तुलना में कमजोर साबित हो रहा है।
प्रापर्टी ब्रोकर के यहां मिलीं डायरियां
वहीं एक ब्रोकर संजय मालानी के यहां सोफे, अलमारी से कई सौदों की डायरियां और जमीन के कागज मिले है, ऐसी जानकरी मिली है। हालांकि वहीं कई ब्रोकर गायब हो गए हैं। ये सभी वे ब्रोकर है, जिन पर डायरियों के सौदे करने के चलते प्रशासन द्वारा बाउंडओवर की कार्रवाई की गई थी। इसके बाद भी रियल एस्टेट ग्रुप और ब्रोकरों के बीच डायरियों का खेल जारी है।
इसलिए हो रहे हैं डायरियों पर सौदे
प्रोजेक्ट को बेचना रियल एस्टेट कारोबारी तभी शुरू कर देता है, जब वह जमीन का सौदा करता है। जबकि टीएंडसीपी, कलेक्टोरेट या नगर निगम से विकास मंजूरी और फिर रेरा का नंबर लेने की प्रक्रिया जमीन बेचने के पहले की जानी चाहिए, जिसमें एक साल तक का समय लग जाता है। रेरा नंबर के बाद ही कोई प्रोजेक्ट खरीदी-बिक्री के लिए मान्य होता है। इसका रास्ता डायरियों से निकलता है, जिसमें कारोबारी अपना प्रोजेक्ट कुछ फिक्स ब्रोकरों को बेच देता है। यह ब्रोकर माल डायरियों पर बेच डालते हैं। फिर जब रेरा नंबर आता है तो फिर उनसे गाइडलाइन के हिसाब से चेक से राशि ली जाती है और ऊपर की राशि पहले से ही डायरियों पर ब्लैक में ले ली जाती है। इसी के जरिए टैक्स चोरी होती है और रियल एस्टेट में ब्लैक मनी खपती है।