ग्वालियर में अफ्रीकन बोमा तकनीक से नील गाय पकड़ने की तैयारी, जानें क्या होती है यह बोमा तकनीक

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The Sootr
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ग्वालियर में अफ्रीकन बोमा तकनीक से नील गाय पकड़ने की तैयारी, जानें क्या होती है यह बोमा तकनीक

देव श्रीमाली, GWALIOR. नीलगायों ने पूरे मध्यप्रदेश के किसानों को परेशान कर रखा है। नील गाय किसानों की खाड़ी फसल बर्बाद कर उन्हें परेशान कर रखा है।  लेकिन इस बार ग्वालियर की नीलगायों के उत्पात की चर्चा दिल्ली के रक्षा मंत्रालय में भी हो रही है। दरअसल देश का सबसे बड़ा एयरबेस सेंटर ग्वालियर के महाराजपुरा इलाके में है । राफेल से लेकर अन्य हर तरह के अत्याधुनिक फाइटर प्लेन प्रशिक्षण उड़ान भरते हैं लेकिन इसके आसपास मौजूद लगभग दो सौ से ज्यादा नीलगायों ने इनमे अड़चन डाल रखी है। अब इनको काबू करने के लिए सरकार पहली बार बोमा तकनीक का इस्तेमाल करने की तैयारी में है इस तकनीक से रणनीतिक ढंग से एक बाडा बनाकर इन्हें पकड़ा जाता है। 



नील गायों से हो रही है फाइटर प्लेन उड़ाने में दिक्कत



नील गायों ने पूरे उत्तर भारत में आतंक मचा रखा है, नीलगायों का झुंड मध्यप्रदेश में भी करोड़ो रूपये की खड़ीं फसल उजाड़कर चले जाते हैं। अनेक बार यह समस्या विधानसभा में भी चर्चा का विषय बन चुकी है। लेकिन इस बार नीलगायों ने देश की सुरक्षा के लिए तैनात लड़ाकू विमानों की उड़ानों में भी चिंताजनक ढंग से खलल डालना शुरू कर दिया है। ग्वालियर के महाराजपुरा में भारतीय वायुसेना के सबसे बड़ा बेस स्टेशन है जो कई किलोमीटर तक फैला है । मिराज से लेकर चर्चित राफेल जैसे अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों का हैंगर भी यहीं है। इन फाइटर विमानों की नियमित अभ्यास उड़ानें होती रहती है, लेकिन इस इलाके में नीलगायों के कई बड़े झुंड बसेरा बनाए हुए हैं जो हवाई पट्टी तक पर कुलांचें भरने लगते है, जिनसे अभ्यास उड़ान के दौरान किसी खतरनाक दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। एक बार दुर्घटना हो भी चुकी है। इस समस्या को लेकर भारतीय रक्षा मंत्रालय ने मध्यप्रदेश सरकार से सहयोग मांगा है, लेकिन यह क्षेत्र अत्यंत संवेदनशील होने के कारण वन विभाग ने इसके लिए बोमा तकनीक का इस्तेमाल करने का प्रस्ताव भेजा है। इससे नील गाय को पकड़ा जा सकता है। पहले इन्हें मारने का प्रस्ताव भेजा गया था, लेकिन संवेदनशीलता के चलते इसे मंजूरी नही मिली तो इस पर विचार शुरू हुआ।



वन विभाग कर रहा है इसकी तैयारी



एसडीओ फारेस्ट राजीव कौशल का कहना है कि अभी इस मामले को लेकर पत्र व्यवहार चल रहा है । एक बार विशेषज्ञों के साथ सीसीएफ और डीएफओ के नेतृत्व में टीम स्थल निरीक्षण कर चुकी है और प्रोजेक्ट भी बन चुका है । सरकार से स्वीकृति मिलते ही विशेषज्ञों द्वारा बोमा हेबिटेट बनाने का काम शुरू होगा।



क्यों खतरनाक है नील गाय



नीलगाय को सबसे फुर्तीला और मजबूत जानवर माना जाता है, लेकिन इसे पकड़ना या मारना बहुत मुश्किल होता है। इसकी वजह उसकी देह ही है, वह इतनी

छलांग लगाते हुए भागती है कि गोली का निशाना भी चूक जाता है । यह घोड़े के आकार की होती है लेकिन इसका पीछे  हिस्सा आगे के हिस्से से कम बड़ा होता है इसलिए यह दौड़ते में अलग नजर आती है और निशाना भी चूक जाता है। इसका वजन भी काफी होता है । हर नीलगाय औसतन डेढ़ सौ से ढाई सौ किलो तक वजन की होती है।



खेतों में नही हो सकता इसका उपयोग



वन अधिकारी कौशल बताते हैं कि इस बोमा तकनीक का इस्तेमाल खेत या खुली जगह में नहीं किया जा सकता क्योंकि एक तो यह खर्चीली है और एक सीमित हिस्से में ही हेविटेट की अधोसंरचना तैयार की जा सकती है। दूसरे इसके लिए बाडा बनांना पड़ता है जो बड़े खुले भूभाग पर बनांना संभव नही है।


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