ICU में MP की स्वास्थ्य व्यवस्था! स्वास्थ्य केंद्रों पर ताले, जरुरी दवाइयां गायब, डॉक्टर ड्यूटी से नदारद, मरीज़ झोलाछापों के शिकार

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Ruchi Verma
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ICU में MP की स्वास्थ्य व्यवस्था! स्वास्थ्य केंद्रों पर ताले, जरुरी दवाइयां गायब, 
डॉक्टर ड्यूटी से नदारद, मरीज़ झोलाछापों के शिकार

BHOPAL: आज विश्व स्वास्थ्य दिवस है और वर्ष 2023 के लिए इसकी थीम रखी गई है - 'हेल्थ फॉर आल' यानी सभी के लिए स्वास्थ्य व्यवस्थाएँ। बात करें मध्य प्रदेश की तो राज्य में स्वास्थ्य केंद्रों और अस्पतालों की कमी नहीं है। तमाम उप स्वास्थ्य केंद्र (SHC), प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC), सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) और जिला अस्पताल हैं। लेकिन फिर भी ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में ये किसी काम के नहीं। कारण है करोड़ो रुपए खर्च करने के बावजूद संसाधनों का घोर अभाव! कहीं चिकित्सक और विशेषज्ञ नहीं हैं तो कहीं स्टाफ नर्स, ANM व अन्य स्वास्थ्यकर्मी। उप स्वास्थ्य केंद्र में तो खांसी-जुकाम की मामूली दवा ही वक़्त पर मिल जाए, वही गनीमत है। जरुरी स्वास्थ्य जांचे होना तो दूर की कौड़ी हैं। CHC यानी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भी रेफर सेंटर से अधिक कुछ नहीं रह गए हैं। इन सबसे बड़ी बात तो ये कि ज्यादातर स्वास्थ्य केंद्रों पर कई-कई दिनों तक ताला पड़ा रहता है। जिसकी वजह से गरीब ग्रामीण महंगे अस्पतालों में इलाज कराने को मजबूर हो रहे हैं।



ये सब तब है जब मध्यप्रदेश सरकार ने साल 2023-2024 के बजट में घोषणा की है कि वह अब प्रदेश में इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड यानी IPHS को लागू करेगी। इसके तहत सरकार प्रदेश के 10 हजार हेल्थ एंड वेलनेस केन्द्रों में 12 प्रकार की स्वास्थ्य सेवाएं या प्रसव देखभाल, शिशु स्वास्थ्य देखभाल एवं आपातकालीन चिकित्सा सेवाएं देगी। इसके साथ ही सरकार ने ये भी तय किया है कि मीजल्स रूबेला को 2023 तक, क्षय रोग को 2025 तक कुष्ठ रोग, मलेरिया, फाइलेरिया को 2030 तक दूर कर दिया जाए। इसके चलते स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए सरकार ने इस बजट में 16 हजार 55 करोड़ रुपए का बजट आवंटन किया है जो पिछले वर्ष की तुलना में 17% अधिक है। अब सरकार कागज़ों में लचर स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत करने के लिए नए स्वास्थ्य केंद्र बनाने और उनमें उन्नत तकनीक की स्वास्थ्य सुविधाएँ लाने में करोड़ो खर्च का दावा तो कर रही है, लेकिन जमीनी स्तर पर इन स्वास्थ्य केंद्रों में बेसिक स्वास्थ्य सुविधाएँ तक उपलब्ध नहीं हो पा रही है। इसके चलते MP प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं के मोर्चे पर बुरी तरह पिछड़ रहा है। पढ़िए राज्य की चरमराई हुई स्वास्थ्य व्यवस्था और सरकार के खोखले दावों की पोल खोलती ये द सूत्र की रीवा, रायसेन, भोपाल और भिंड से ये ग्राउंड रिपोर्ट....




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6 अप्रैल, 2023 को मुरैना के स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी 




हाल ही में MP के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और स्वास्थ्य मंत्री प्रभु राम चौधरी मुरैना के दूसरे पर थे। मौका था वहां आयोजित स्वास्थ मेले का। स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार कार्यक्रम के दौरान अपने भाषण में मुख्यमंत्री ने सभी 52 जिलों के लिए 1942 करोड़ रुपए लागत की 629 नई स्वास्थ्य संस्थाओं के कार्य का शुभारभ किया। राज्य में नई स्वास्थ्य सुविधायों का आना अच्छी बात है। लेकिन पहले से मौजूद उन उप स्वास्थ्य केंद्रों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों का क्या, जिनको बनाने में करोड़ो खर्च कर दिए गए लेकिन फिर भी स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर वहाँ सिर्फ खाली बिल्डिंग और गन्दगी का अम्बार मौजूद है? रीवा जिले की मनगवां में स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के हालात देखकर तो यही सवाल मन में उठता है।



रीवा प्राथमिक स्वास्थ केंद्र: अस्पताल में चारों तरफ गंदगी का अंबार, 1 नर्स के सहारे पूरा केंद्र



रीवा ज़िले की मनगवा में स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र की इमारत पर अक्सर ताला ही लटकता रहता है। और जब कभी खुलता भी है तो यहां पर तैनात कर्मचारी नाम मात्र ड्यूटी कर चलते बनते हैं। वैसे तो इस प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में 2 डाक्टरों के साथ कुल 16 स्टॉफ की पदस्थापना की गई है। परंतु मज़ाल है कि कभी पूरा स्टाफ यहाँ नज़र भी आ जाए। हालत ये है कि पूरा प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र महज एक स्टॉफ नर्स के भरोसे पर ही चल रहा है। PHC में पदस्थ डॉक्टर और अन्य स्टॉफ घर में बैठकर सिर्फ मुफ्त की तनख़ाह उठा रहें है। 



यही नहीं, जांच के लिए बनाए गए कमरे भी बंद ही पड़े हुए हैं और अस्पताल में तमाम चारों तरफ गंदगी का अंबार लगा हुआ है। 15 बिस्तरों के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में बिस्तरों की हालत भी जर्जर हो चली है। अस्पताल कैंपस में खड़ी एम्बुलेंस के जमीन में धंसे टायर देखकर तो लगता है कि जैसे सालों से उसका उपयोग ही न किया गया हो! 



जब द सूत्र की टीम ने वहां मौजूद स्टाफ से बात की तो स्टाफ ने सीधे तौर पर छुट्टी का हवाला देकर अपनी कन्नी काट ली। प्रशासनिक उदासीनता का आलम तो ये है कि इन अव्यवस्थाओं की सुध लेने ही कोई तैयार नहीं है। अब सवाल यह उठता है कि अगर सरकार के राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था को पटरी में लाने के बड़े-बड़े दावे सच है तो ये मनगवां के PHC की तस्वीरें किस तरह की स्वास्थ्य व्यवस्था की ओर इशारा करती हैं?



रायसेन का ऊटियाँ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र: स्वास्थ्य मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी का गृह जिला, फिर भी डॉक्टर पदस्थ नहीं 



धूल-मिटटी, टूटे हुए स्वास्थ्य उपकरण, लटकते बिजली के तार, उखड़े हुए स्विच, जंग खाकर निचे गिरा पंखा, जर्जर पलंग। ये हाल हैं खुद स्वास्थ्य मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी के गृह जिले रायसेन के ऊटियाँ में स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के। यहाँ स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर बस दिखावे के लिए एक भवन बना दिया गया है और ऊपर से लीपापोती कर दी गई है। न ही यहाँ कोई डॉक्टर या नर्स है, और न ही किसी भी तरह की कोई स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हैं। हालत ये हैं कि आसपास के ग्राम पंचायतों के गरीब वर्ग के लोगों को मजबूरी में इलाज के लिए झोलाछाप डॉक्टरों के पास जाना पड़ रहा है।



रायसेन जिले में कुल 28 उप स्वास्थ्य केंद्र भी ऐसे हैं जो बदहाली में खंडर हो चले हैं। ये सभी वर्ष 1990 के दशक में चालू हुए थे। तभी से इनका संचालन नियमित रूप से नहीं हो रहा है। पास ही में उदयपुरा विधानसभा में बरेली सिविल अस्पताल के भी हाल अच्छे नहीं है। वहां मरीज़ों को जरुरी दवाई तक नहीं मिल पाती। ऊटियाँ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के बारे में जब विकासखंड कार्यक्रम प्रबंधक सुनील मनोहर से बात की गई तो उन्होंने कहा कि डॉक्टर पदस्थ न होने की वजह से केंद्र पर स्वास्थ्य व्यवस्थाएँ प्रभावित हो रहीं हैं।  वहीँ, जब सीबीएमओ हेमंत यादव से जब ग्राम पंचायतों में बने आरोग्य केंद्रों को लेकर चर्चा की गई तो उन्होंने मीटिंग की बात करके बात टाल दी।



जिले के इन स्वास्थ्य केंद्राें के ठप होने की वजह से इनसे लगे गांवों में बीते तीन साल में आधा सैकड़ा लोगों की मौत इलाज के अभाव में हुई है। कई प्रसूताओं को डिलीवरी के लिए कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। परेशान ग्रामीणों ने स्वास्थ्य केंद्रों की बदहाली दूर करने कलेक्टर और तहसीलदारों को ज्ञापन भी सौंपे हैं। लेकिन स्वास्थ्य मंत्री का गृह जिला होने के बावजूद यहां पर स्वास्थ्य सुविधाओं बहाल नहीं हो पा रहीं हैं।अब बताइये जब खुद राज्य के स्वास्थ्यमंत्री के क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाएं वेंटिलेटर पर हों तो उनसे दूसरे जिलों की लचर स्वास्थ्य व्यवस्थाएं सुधारने की उम्मीद कैसे की जाए?

 




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रायसेन का ऊटियाँ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र




भिंड सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र: ना बच्चों के डॉक्टर और ना ही प्रसूताओं को देखने के लिए कोई गायनिक



भिंड के मेहगांव स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टर तो हैं, पर वो भी मरीज़ों को घंटों इंतज़ार करवाने से बाज़ नहीं आते। ऐसे में मरीज के पास दर-दर भटकने के सिवा कोई चारा नहीं रह जाता। द सूत्र की टीम जब मेहगांव सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंची तो देखा कि मरीज़ और उनके रिश्तेदार इलाज़ के लिए डॉक्टरों के चक्कर काट रहे हैं।



यही नहीं, कुछ अन्य लोगों की शिकायतें थी कि केंद्र पर नियमनुसार ना तो बच्चों के डॉक्टर हैं और ना ही प्रसूताओं को देखने के लिए कोई गायनिक डॉक्टर है। ऐसे में यहां से मरीजों को जिला अस्पताल रेफर कर दिया जाता है या फिर निजी अस्पतालों में दिखाना पड़ता है।



बाकी जगहों के ही तरह भिंड क्षेत्र में भी अस्पतालों में डॉक्टरों और स्पेशलिस्ट टेक्निशियंस की भारी कमी है। हर जगह इंफ्रास्ट्रक्चर तो बनाकर तैयार कर दिया गया है। साथ ही जांच मशीनें भी दी गई हैं। लेकिन टेक्नीशियन और डॉक्टरों के अभाव में वह शोपीस बनकर रह गई हैं। आलम ये है कि 1 टेक्नीशियन को 22 अस्पतालों की जिम्मेदारी संभालनी पड़ रही है। भिंड जिला अस्पताल में तो मेडिसिन का डॉक्टर ही उपलब्ध नहीं है। खानापूर्ती करते हुए हाल ही में एक अस्थाई डॉक्टर अस्पताल में अनुबंध पर हायर किया गया है।



आदमपुर छावनी उप स्वास्थ्य केंद्र: केंद्र पर लटका ताला, खुलने का कोई समय निश्चित नहीं 



रीवा, रायसेन और भिंड के स्वास्थ्य केंद्रों के हालात देखकर तो आप समझ ही गए होंगे कि मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ व्यवस्था पर किस तरह बट्टा लगा हुआ है। सरकारें स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने के भले ही लाख दावे करें, लेकिन हकीकत यह है कि लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया नहीं हो पा रहीं हैं। लेकिन आपको जानकार अचरज होगा कि ये अव्यवस्थाएं सिर्फ ग्रामीण इलाकों में ही नहीं हैं बल्कि राज्य की राजधानी भोपाल के नजदीक आदमपुर छावनी-आदमपुर में स्थित उप स्वास्थ्य केंद्र भी कमोबेश यही हाल हैं।आदमपुर छावनी उप स्वास्थ्य केंद्र भी मध्य प्रदेश के खोखले स्वास्थ्य तंत्र की नज़ीर पेश करता है।



उप स्वास्थ्य केंद्र पर जब द सूत्र की टीम पहुंची तो वहाँ ताला लटका मिला। और आसपास मौजूद कुछ लोगो से कार्यकर्ताओं से बात करने पर पता चला कि केंद्र के खुलने का कोई ठिकाना ही नहीं है। लोग इस बात से काफी खफा नज़र आये कि स्टाफ के बेवजह छुट्टी करने की वजह से वहाँ आए गरीब मरीज़ों को वापस लौटना पड़ता है। यही नहीं लोगों का कहना है कि जो डॉक्टर केंद्र पर पदस्थ है, वह मरीज़ों को धमकाती भी है।



आसपास रहने वाले ग्रामीणों की परेशानी हाल ही में तब ज्यादा बढ़ गई जब यहाँ आदमपुर खांटी में मौजूद शहर की भारी कचड़े में आग लग गई। और पूरा इलाका प्रदूषित धुँए की चपेट में आ गया। ग्रामीणों को सांस की समस्याएं, आँखों में जलन के साथ और गंभीर बीमारियों की शिकायतें हो रहीं हैं। लेकिन इस उप स्वास्थ्य केंद्र से उन्हें कोई मदद नहीं मिल पा रही है।



साफ़ समझा जा सकता है कि प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में इलाज पाना आम जनता के लिए कितना मुश्किल है। डॉक्टरों और अस्पताल कर्मियों का लापरवाही भरा और असंवेदनशील रवैया और सुविधाओं का नितांत अभाव सिर्फ रीवा, रायसेन, भिंड और भोपाल के स्वास्थ्य केंद्रों में ही नहीं है। बल्कि प्रदेश के ज्यादातर SHC,PHC और CHC के हैं। बता दें कि मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग के दिसंबर 2022 के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में 10111 उप स्वास्थ्य केंद्र, 1445 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, 353 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, और इंदौर/उज्जैन/ग्वालियर/जबलपुर में 5 पाली क्लीनिक हैं।




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आदमपुर छावनी उप स्वास्थ्य केंद्र




बड़ी समस्या: बिना डाक्टरों और मेडिकल स्टाफ के IPHS स्टैंडर्ड को पाना बेहद कठिन



इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड के मानकों के नजरिए से प्रदेश की स्थिति को देखें तो फिलहाल स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। जिन हेल्थ और वेलनेस केन्द्रों की बात की जा रही है वहां पर डॉक्टरों की कमी एक बड़ी समस्या है। और बिना डाक्टरों और मेडिकल स्टाफ के इन स्वास्थ्य केंद्रों पर इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड के उस स्टैंडर्ड को पाना बेहद कठिन साबित होगा। इन हेल्थ और वेलनेस केन्द्रों पर 603 महिला एनएनएम और 1601 पुरुष स्वास्थ्य कार्यकर्ता के पद खाली हैं। यदि पुरुष कार्यकर्ता के पदों को देखा जाए तो प्रदेश में 10287 उप स्वास्थ्य केन्द्रों पर स्वास्थ्य कार्यकर्ता के स्वीकृत 4260 पदों पर 2659 कार्यकर्ता ही कार्यरत हैं। तय मानकों के हिसाब से 7628 पदों को स्वीकृत कर नियुक्ति की जाएगी। तभी इंडियन पब्लिक हेल्थ के स्टैंडर्ड पर आ पाएंगे।



आंकड़े बताते हैं कि प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर डॉक्टरों के 315, फार्मासिस्ट के 308, लैब टेक्निशियन के 645 पद हैं। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में भी विशेषज्ञ चिकित्सों के 1127 पद खाली हैं, यदि आईपीएच के स्टैंडर्ड को देखा जाए तो 1262 पद भरे होने चाहिए। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर सर्जन के 248, स्त्री रोग विशेषज्ञों के 232, फिजिशयन के 328, बाल रोग विशेषज्ञों के 319 पद खाली हैं। कुल विशेषज्ञों के 1127 पद खाली ही पड़े हुए हैं। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में 509 नर्सिंग स्टाफ की भर्तियों की जरूरत इस स्टेंडर्ड के लिए होगी। इसी तरह राज्य में नियमित चिकित्सा अधिकारियों के 5097 पद स्वीकृत हैं जिनमें से सिर्फ 3378 भरे हैं।.यानी जरुरत से करीब 1719 चिकित्सा अधिकारी कम हैं!



प्रदेश में चिकित्सकों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए चिकित्सा महाविद्यालयों में सीट बढ़ाने तथा नए  चिकित्सा महाविद्यालयों की स्थापना की बात तो सरकार बार-बार करती आई है। लेकिन आज की हकीकत में फिलहाल प्रदेश में एमबीबीएस की 2055 और पीजी की मात्र 649 सीटस ही हैं।



आखिर भारतीय जन स्वास्थ्य मानक (IPHS) दिशानिर्देश क्या है और क्यों जरुरी हैं?



दरअसल, देश के सभी राज्यों के सरकारी उप-स्वास्थ्य केंद्र (SHC), प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC), सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) और जिला अस्पताल भारतीय जन स्वास्थ्य मानक (IPHS) दिशानिर्देशों के अनुसार स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराते हैं। IPHS दिशानिर्देश स्वास्थ्य सुविधाओं वितरण की गुणवत्ता में सुधार के लिए एकसमान मानकों का एक सेट है, जो स्वास्थ्य सुविधाओं के बेंचमार्क के रूप में कार्य करते हैं। और राज्य के सभी स्वास्थ्य केंद्र इन्हीं IPHS दिशानिर्देश के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य होते हैं। साल 2022 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन यानी NHM ने इन IPHS मानकों को अपग्रेड किया। ऐसा देश के ग्रामीण इलाकों में कमज़ोर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकेतकों और कमज़ोर बुनियादी स्वास्थ्य ढांचें  को दश्ते हुए उसमें सुधार के लिए किया गया। लक्ष्य था ग्रामीण आबादी को प्रभावी स्वास्थ्य देखभाल देना। अब कागज़ों में मौजूद इन मानकों की बात करें तो इस हिसाब से मध्य प्रदेश के सभी सरकारी उप-स्वास्थ्य केंद्रों (SHC), प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC), सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (CHC) और जिला अस्पतालों में मौजूद स्वास्थ्य सुविधाएं एक प्राइवेट मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल को मात दे दें।



मौजूदा SHC,PHC और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की मॉनिटरिंग की कमी 



SHC,PHC और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों के इन खराब व्यवस्थाओं के पीछे एक बड़ा कारण मौजूदा SHC, PHC और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की सही मॉनिटरिंग न होना है। इस मुद्दे पर द सूत्र ने CMHO भोपाल प्रभाकर तिवारी से बात की। उनका कहना है कि राज्य की दूर-दराज के इलाकों में मौजूद SHC,PHC और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में अव्यवस्थाएँ न हो, इसके लिए SHOs और IT के माध्यम से एक प्रॉपर मॉनिटरिंग व्यवस्था है। जिसकी मदद से जो SHC,PHC और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ठीक से काम नहीं कर रहे हैं, उनकी कमी को दूर किया जाता है। अब सवाल ये उठता है कि जब राज्य के SHC,PHC और  CHC का सुचारु प्रबंधन करने के लिए इतना तगड़ा IT मॉनिटरिंग सिस्टम है तो फिर रीवा, रायसेन, भिंड और यहीं भोपाल के स्वास्थ्य केंद्र इनके राडार से कैसे छूट गए?



1 PHC सेंटर पर एक लाख 75 हजार रुपए का फंड



बता दें कि प्रत्येक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के मेंटेनेंस पर एक लाख 75 हजार रुपए का फंड जारी किया जाता है। लेकिन बदहाल स्वास्थ्य केंद्रों को देखकर सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर इन स्वास्थ्य केंद्रों की देखरेख के लिए आने वाले इस फंड को कहा पर खर्च किया जाता रहा है? द सूत्र ने जब राज्य में प्राइमरी हेल्थ केयर की इन दयनीय हालातों के बारे में स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी से बात करने की कोशिश की तो वो जवाब देने से बचते हुए द सूत्र से मिले ही नहीं।



कुल मिलाकर, भले ही राज्य सरकार स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर लाख दावे कर रही है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह दम तोड़ रही हैं।कोविड-19 के संक्रमण काल में भयावह स्थिति देखने के बाद भी SHC, सीएचसी और पीएससी की हालत खराब है, डॉक्टर नहीं है, आधुनिक उपकरणों की कमी है, जरूरत की दवाएं अस्पतालों में नहीं हैं, इमरजेंसी सेवा नदारद है। ऐसे में स्वास्थ्य सेवाओं को पटरी पर लाना टेढ़ी खीर दिखाई दे रहा है।



IPHS स्टैंडर्ड्स के हिसाब से एक उप स्वास्थ्य केंद्र में मिलने वाली जरुरी स्वास्थ्य सुविधाएं




  • 3000 से 5000 की जनसँख्या पर एक उप स्वास्थ्य केंद्र, जो 30 मिनट की पहुंच पर हो


  • उप स्वास्थ्य केंद्र में कम्प्यूटरीकृत पंजीकरण की सुविधा, पंखे, साफ़ पीने का पानी और साफ़ टॉयलेट्स

  • उप स्वास्थ्य केंद्र में 2 बेड, 1500 लीटर वाले 3 ऑक्सीजन सिलिंडर और 1 ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर

  • स्टाफ इतना होना चाहिए: 1 CHO, 1 ANM, 1 आशा कार्यकर्त्ता , 1 मल्टी-पर्पस पुरुष कार्यकर्त्ता, 1 मल्टी-पर्पस महिला कार्यकर्त्ता, साफ़ सफाई और सुरक्षा के लिए व्यक्ति

  • बायोमेडिकल वेस्ट से निबटने के लिए अगर 75 KM दूर जाना पड़े तो एक बायोमेडिकल ट्रीटमेंट प्लांट SHC के पास ही होना चाहिए

  • गाइडलाइंस के अनुसार SHC में 105 तरह की जरुरी दवाइयां मिलनी चाहिए

  • यहाँ मिलने वाली जरुरी सुविधाएं: 1. गर्भावस्था और प्रसव में देखभाल 2. नवजात और शिशु स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं 3. बाल्यावस्था और किशोर स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं 4. परिवार नियोजन, गर्भनिरोधक सेवाएं और अन्य प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं 5. संचारी रोगों का प्रबंधन: राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम 6. मामूली बीमारियों के लिए OPD 7. गैर-संचारी रोगों की जांच, रोकथाम, नियंत्रण और प्रबंधन 8. आम आई और ईएनटी समस्याओं की देखभाल 9. बेसिक ओरल हेल्थ केयर 10. बुजुर्ग के लिए स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं 11. जलने और आघात सहित आपातकालीन चिकित्सा सेवाएं 12. मानसिक स्वास्थ्य रोगों की जांच और बुनियादी प्रबंधन

  • इन परीक्षणों की सुविधा होनी ही चाहिए: हीमोग्लोबिन, HCG, मूत्र परीक्षण, ब्लड शुगर , मलेरिया परीक्षण, HIV, डेंगू, कैंसर, आयोडीन, मल संदूषण और क्लोरीनीकरण के लिए जल परीक्षण, हेपेटाइटिस बी परीक्षण, फाइलेरिया, सिफलिस, सिकल सेल रैपिड टेस्ट

  • इमरजेंसी उपकरण जो होने ही चाहिए: बच्चों के मास्क के साथ एम्बू बैग, सक्शन मशीन, ऑक्सीजन लगाने के उपकरण, I/V स्टैंड,ऑक्सीजन सिलिंडर, माउथ गैग, नेब्युलाइज़र



  • IPHS स्टैंडर्ड्स के हिसाब से प्राथमिक स्यास्थ्य केंद्र में मौजूद जरुरी स्वास्थ्य सुविधाएं




    • ग्रामीण क्षेत्र में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र 20,000 से 30,००० की जनसँख्या पर होना चाहिए / शहरी क्षेत्र में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र 50,000 की जनसँख्या पर होना चाहिए/ पालीक्लिनिक 2.5 लाख - 3 लाख  की जनसँख्या पर होना चाहिए....और ये सभी 30 मिनट की पहुंच में आने चाहिए


  • हर PHC में प्रसव कक्ष, IPD, OPD, एक छोटा ऑपरेशन थिएटर, इंजेक्शन रूम, लेबोरेटरी, इम्यूनाइजेशन रूम, हेल्थ एंड वैलनेस रूम, न्यूबॉर्न केयर कॉर्नर होना जरुरी है

  • सभी PHC में आवश्यक 171 दवाएं, 73 के आसपास जांच सुविधाएं और 20 तरह के जांच उपकरण उपलब्ध होने चाहिए

  • प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में 6 से 10 बेड, 1500 लीटर वाले 4 से 5 ऑक्सीजन सिलिंडर और 1 ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर

  • यहाँ मिलने वाली जरुरी सुविधाएं: 1. गर्भावस्था और प्रसव में देखभाल 2. नवजात और शिशु स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं 3. बाल्यावस्था और किशोर स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं 4. परिवार नियोजन, गर्भनिरोधक सेवाएं और अन्य प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं 5. संचारी रोगों का प्रबंधन: राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम 6. मामूली बीमारियों के लिए OPD 7. गैर-संचारी रोगों की जांच, रोकथाम, नियंत्रण और प्रबंधन 8. आम आई और ईएनटी समस्याओं की देखभाल 9. बेसिक ओरल हेल्थ केयर 10. बुजुर्ग के लिए स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं 11. जलने और आघात सहित आपातकालीन चिकित्सा सेवाएं 12. मानसिक स्वास्थ्य रोगों की जांच और बुनियादी प्रबंधन

  • सभी प्राथमिक स्वास्थ्यकेंद्रों पर जरुरी स्टाफ: 1 MBBS मेडिकल अफसर, 2-7 नर्सेज, 1 फार्मासिस्ट, 1-2 लैब तकनीशियन, 1-5 महिला स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता या ANM, 1 पुरुष स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता, 1 हेल्थ असिस्टेंट, 1 ड्रेसर, 1 डाटा एंट्री ऑपरेटर, 1-4 सफाई कर्मचारी (पालीक्लिनिक-जो कि फ़क का ही एक प्रकार हैं में 1 डेंटल मेडिकल अफसर, 1 मेडिसिन स्पेशलिस्ट, 1 प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ, 1 शिशु रोग विशेषज्ञ, 1 नेत्र विशेषज्ञ, 1 त्वचा रोग विशेषज्ञ, 1 मनोचिकित्सक भी जरुरी हैं)

  • प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में कम्प्यूटरीकृत पंजीकरण की सुविधा, पंखे, साफ़ पीने का पानी और साफ़ टॉयलेट्स होने चाहिए



  • IPHS स्टैंडर्ड्स के हिसाब से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में मौजूद जरुरी स्वास्थ्य सुविधाएं




    • ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र 80,000 से 1,20,000 के आबादी के पर एक होना चाहिए / शहरी क्षेत्र में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र 2.5 लाख - 5 लाख  की जनसँख्या पर होना चाहिए....और ये सभी 30 मिनट की पहुंच में आने चाहिए


  • सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र एक रेफेरल यूनिट की तरह कार्य करते हैं जहाँ SHC और PHC से मरीज़ रेफेर होकर आते हैं...साथ ही यहाँ के गंभीर मरीज़ों को जिला अस्पताल रेफर किया जाता है

  • सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में मौजूद जरुरी विभाग:  मेडिसिन डिपार्टमेंट/ सर्जरी डिपार्टमेंट/पीडियाट्रिक्स डिपार्टमेंट/ प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग /एनेस्थीसिया डिपार्टमेंट/ दंतरोग विभाग / नेत्र रोग विभाग/ हड्डी रोग विभाग/ ईएनटी विभाग/ पैथोलॉजी / माइक्रोबायोलॉजी /बायोकेमिस्ट्री विभाग/NCD क्लिनिक/ काउंसलिंग डिपार्टमेंट/ फॅमिली वेलफेयर क्लिनिक/ इम्यूनाइजेशन विभाग/ पोषण विभाग/  AYUSH विभाग/ फिजियोथेरेपी विभाग

  • प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में 30 से 100 बेड, 30 से 60 ऑक्सीजन सिलिंडर और 5 से 10 ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर

  • हर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में ब्लड सपोर्ट यूनिट, प्रसव कक्ष, IPD, OPD, एक ऑपरेशन थिएटर, इंजेक्शन रूम, लेबोरेटरी, इम्यूनाइजेशन रूम, हेल्थ एंड वैलनेस रूम, न्यूबॉर्न केयर कॉर्नर, फार्मेसी होना जरुरी है

  • यहाँ मिलने वाली जरुरी सुविधाएं: 1. गर्भावस्था और प्रसव में देखभाल 2. नवजात और शिशु स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं 3. बाल्यावस्था और किशोर स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं 4. परिवार नियोजन, गर्भनिरोधक सेवाएं और अन्य प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं 5. संचारी रोगों का प्रबंधन: राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम 6. मामूली बीमारियों के लिए OPD 7. गैर-संचारी रोगों की जांच, रोकथाम, नियंत्रण और प्रबंधन 8. आम आई और ईएनटी समस्याओं की देखभाल 9. बेसिक ओरल हेल्थ केयर 10. बुजुर्ग के लिए स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं 11. जलने और आघात सहित आपातकालीन चिकित्सा सेवाएं 12. मानसिक स्वास्थ्य रोगों की जांच और बुनियादी प्रबंधन

  • सभी CHC में आवश्यक 300 दवाएं, 70 के आसपास जांच सुविधाएं और 20 तरह के जांच उपकरण लैब में उपलब्ध होने चाहिए

  • सभी सामुदायिक स्वास्थ्यकेंद्रों पर जरुरी स्टाफ: एडमिनिस्ट्रेटिव स्टाफ/डॉक्टर्स (मेडिकल ऑफिसर्स एंड स्पेशलिस्ट्स), नर्सिंग स्टाफ, जरुरी हेल्थ प्रोफेशनल्स, सपोर्ट स्टाफ

  • सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में कम्प्यूटरीकृत पंजीकरण की सुविधा, पंखे, साफ़ पीने का पानी और साफ़ टॉयलेट्स होने चाहिए  



  • इनपुट:  रायसेन से पवन सिलावट/रीवा से अर्पित पांडे/ भिंड से योगेंद्र सिंह 


    मध्य प्रदेश मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान विश्व स्वास्थ्य दिवस उप स्वास्थ्य केंद्र प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड मध्य प्रदेश लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग स्वास्थ्य मंत्री प्रभु राम चौधरी WORLD HEALTH ORGANISATION National Health Mission