INDORE. जय बजरंग बली... यह जयकारा इसलिए क्योंकि मप्र में कांग्रेस इसी जयकारे से ही अब चुनावी मैदान में उतरेगी, पीसीसी चीफ कमलनाथ पहले से ही खुद को बजरंग बली का सबसे बड़े भक्त की भूमिका में रमा चुके हैं। अब जयकारे से अलग मैदानी बात करें तो मप्र में सत्ता के गलियारे यानी मालवा-निमाड़ के हिसाब से 23 नवंबर से 4 दिसंबर तक यहीं पर हुई राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा पर बात उठना फिर से लाजिमी है। कर्नाटक में 21 दिन तक यात्रा 511 किमी चली, यहां 51 सीटों तक यात्रा का प्रभाव था और यहां पर 66 फीसदी यानी 34 सीट कांग्रेस के खाते में गई। जिन 21 सीट पर सीधे यह यात्रा निकली, वहां 17 पर कांग्रेस ने जीत हासिल की है। यह आंकड़े कांग्रेस वालों को लुभा रहे हैं। इस यात्रा के दौरान राहुल के साथ कांग्रेस एकजुट हुई खासकर कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की आपसी दोस्ती दिखी, वह चुनाव में कुछ असर तो दिखाएगी, इसमें शक की गुंजाइश अब कम ही है।
इन 6 जिलों की 30 सीटों पर टिकी कांग्रेस की उम्मीद
राहुल की यात्रा 23 नवंबर को बुरहानपुर से मप्र में आई और 4 दिसंबर को आगर-मालवा से होते हुए राजस्थान में चली गई। इस दौरान करीब 400 किमी का सफर 11 दिन में (एक दिन ब्रेक) हुआ और 6 जिलों बुरहानपुर (2 सीट), खरगोन (6 सीट), खंडवा (4 सीट), इंदौर (9 सीट), उज्जैन (7 सीट) और आगर-मालवा (2 सीट) जिले से गुजरी, जहां पर विधानसभा की 30 सीट है। साल 2018 के चुनाव की बात करें तो यहां पर कांग्रेस ने 15 सीटों पर यानि 50 फीसदी पर विजय हासिल की थी, 12 पर बीजेपी और 3 पर निर्दलीय जीते थे। अब कर्नाटक की तरह ही 66 फीसदी पर जीत मिलती है तो कांग्रेस का आंकड़ा हो जाएगा 20 सीट का, जो बीजेपी के लिए तगड़ा झटका साबित होगा।
राहुल की यात्रा में उठाए मुद्दों के मायने नए संदर्भ में देखने की जरूरत
- राहुल ने अपनी यात्रा के दौरान इमेज बिल्डिंग के साथ ही सॉफ्ट हिंदुत्व पर अधिक ध्यान दिया। साथ ही पूरी कोशिश इसी बात पर थी कांग्रेस का पुराने वोट बैंक यानि दलित, आदिवासी और निचले तबके मजदूर इनको साथ में लाया जाए। राहुल ने अपनी यात्रा के में प्रवेश करते ही पहला हमला तो RSS पर टंट्या भील के फांसी वाले इश्यू से ही उठाया, कि इसमें संघ ने अंग्रेजों का साथ दिया, फिर आगे बढ़ते हुए वह ओंकारेश्वर में पूजा करते हुए भी नजर आए, महाकाल मंदिर में भी बैठे।
महाकाल मंदिर में नंदी के कान में क्या बोल गए थे राहुल गांधी
इस यात्रा के दौरान एक चर्चित वाकया महाकाल मंदिर में हुआ, जब राहुल गांधी ने नंदी के कान में कुछ कहा। यह फोटो सामने आई। अब कर्नाटक में जीत के बाद यह बात उठ रही है कि आखिर राहुल बाबा क्या मांग कर गए थे? इसका जवाब शायद नवंबर-दिसंबर में विधानसभा चुनाव के बाद मिले।
अब बात बीजेपी की, अंदरूनी झंझावत से गुजर रही, उम्मीद में विष के बाद अमृत निकले
अब बात बीजेपी की करें तो फिलहाल तो वह अंदरूनी झंझावात से गुजर रही है, कांग्रेस की गुटबाजी की बीमारी और अपने ही नेताओं के खिलाफ बोलने की बीमारी से फिलहाल पार्टी संक्रमित दिख रही है। बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व सीएम कैलाश जोशी के बेटे दीपक जोशी कांग्रेस में जाना मैदानी सीट के हिसाब से ज्यादा असर करें या नहीं लेकिन सांकेतिक मायने काफी घातक है। वरिष्ठ नेता सत्यनारायण सत्तन की कविता और मप्र के लिए चेतावनी जग जाहिर है, तो वहीं शेखावत के बगावती तेवर खासकर सिंधिया और उनके समर्थक मंत्रियों पर लूटमार तक के आरोप संगीन है। कर्नाटक में जिस तरह बीजेपी सीएम गुट, पूर्व सीएम गुट, येदियुरप्पा गुट, बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष गुट, बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष गुट, बीजेपी राष्ट्रीय महामंत्री गुट में बंटी हुई थी। वहीं मप्र में फिलहाल मोटे तौर पर सीएम गुट, प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा गुट, सिंधिया गुट में सीधे तौर पर दिख रह है। वहीं, क्षेत्रीय स्तर पर गुट अलग है जैसे मालवा-निमाड़ की बात करें तो कैलाश विजयवर्गीय गुट अलग है। अब वह इसी उम्मीद में हैं चुनाव के पहले सागर मंथन में जितना विष निकलना है निकल जाए इसके बाद सत्तारूपी अमृत की बूंदें सब ठीक कर देंगी।
उपचार में देरी बीजेपी को पड़ जाएगा भारी
बीजेपी के कई मोर्चे पर हल ढूंढने हैं, अंदरूनी तौर पर मची खींचतान को पहले से ही ठीक करने का वक्त आ गया है। जिस संगठन को बीजेपी की सबसे बड़ी ताकत माना जाता है, उसी में खींचतान शुरू हो गई है। बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय पहले ही खुद घोषित कर दिया कि वह मालवा-निमाड़ देखेंगे। यानि साफ है कि वह यह एरिया नहीं छोड़ेंगे। पार्टी ने भले ही उन्हें विंध्य और दूसरे क्षेत्रों का दौरा करने भेजा हो। बीजेपी को नए सिरे से अभी से सभी की भूमिकाएं तय करना होंगी।
टिकट तो संघ ही तय करेगा, नहीं तो होगी सिर फुटव्वल
कर्नाटक के नाटक के बाद तय है कि बीजेपी में टिकट के लिए गुजरात फार्मूले को साइड में रखा जाएगा और सभी खाटी नेताओं को मनाया जाएगा, नेतापुत्रों को भी टिकट मिलेंगे तो पुराने हारे हुए को भी, मुद्दा सिर्फ यही होगा कि चुनाव जीतने वाला उम्मीदवार हो, बाकी बातें गौण होंगी। साथ ही संघ सबसे अहम होगा टिकट पाने के लिए, क्योंकि गुट को समायोजित करने गए तो सिर फुटव्वल के सिवा कुछ नहीं मिलेगा और टिकट संघ फाइनल करेगा तो कोई ज्यादा बोलने को नहीं बचेगा। इसलिए बीजेपी में टिकट चाहने वाले के लिए यही समय है संघ की शरण में जाने का।
अब तो बीजेपी वाले पूछ रहे हैं क्या कांग्रेस आ रही है?
कांग्रेस का दिया हुआ नारा कि कांग्रेस आ रही है, अब बीजेपी के नेताओं के लिए भी बड़ा सवाल बन गया है, वह भी दूसरों से पूछ रहे हैं क्या हालत है मैदान में क्या वाकई कांग्रेस आ रही है? यदि हालातों को देखें तो कांग्रेस, बीजेपी से बढ़त लिए हुए हैं, मालवा-निमाड़ में पुरानी स्थिति (66 में से 34 सीट) की स्थिति में भी कांग्रेस के लिए विजय समान ही होगी।