सरकार के दावे और हकीकत में अंतर! 10 सालों में 100 से 150% तक बढ़ी फसल की लागत, मूल्य में सिर्फ 68% तक इजाफा

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Rahul Sharma
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सरकार के दावे और हकीकत में अंतर! 10 सालों में 100 से 150% तक बढ़ी फसल की लागत, मूल्य में सिर्फ 68% तक इजाफा

BHOPAL. केंद्र सरकार हो या प्रदेश सरकार दोनो ही किसानों की आय दोगुनी करने के दावे करती है, पर हकीकत इससे अलग है। राष्ट्रीय किसान दिवस पर द सूत्र ने विभिन्न किसान संगठनों से जब चर्चा की तो पता चला कि बीते दस सालों में फसल की लागत तो 100 से 150 प्रतिशत तक बढ़ गई है, लेकिन फसल के मूल्य में सिर्फ 68 प्रतिशत तक की ही बढ़ोत्तरी हुई है यानी लागत और उत्पादन के बाद हुए मुनाफे का अनुपात निकाले तो 2012 में 105 से 280 प्रतिशत तक और वर्ष 2022 में 43 से 71 प्रतिशत तक मुनाफा सिमटकर रह गया है। 



बीज से लेकर फसल कटाई तक सब कुछ हुआ महंगा



मध्य प्रदेश में गेहूं की बंपर पैदावार होती है, यदि इसके बीज से लेकर कटाई तक का खर्चा निकाले तो पता चलता है कि 10 सालों में सबकुछ महंगा हो गया है। वर्ष 2012 में 1 एकड़ में गेहूं की बोवनी के लिए 1 हजार रूपए के बीज आते थे, जो अब 2500 रुपए में मिल रहे हैं। 2012 में यूरिया 180 रुपए और डीएपी 700 रुपए प्रति बोरी मिलता था, जिसके अब रेट बढ़कर यूरिया 270 और डीएपी 1700 रूपए हो चुका है। 1 एकड़ में एक बार दवाई छिड़काव का खर्चा वर्ष 2012 में 80 से 100 रुपए तक आता था जो अब बढ़कर 150 से 200 रुपए तक हो चुका है। 



कृषि कार्य में यंत्रों को चलाने के लिए डीजल का उपयोग भी होता है। 2012 में डीजल 45 रुपए प्रति लीटर था, जो अब 2022 में 93 रूपए प्रति लीटर तक है। इसके अलावा 2012 में ट्रेक्टर का किराया 400 रूपए प्रति घंटे तक था जो अब बढ़कर 1200 रुपए प्रति घंटे तक हो गया है। पहले हार्वेस्टर 500 रुपए प्रति एकड़ में फसल की कटाई करता था जो अब 1200 रुपए प्रति एकड़ तक चार्ज करता है। रेट कम ज्यादा हो सकते हैं, लेकिन औसत यह कहा जा सकता है कि बीते 10 सालों में फसल की लागत दो से ढाई गुना बढ़ गई है। हरदा के कृषक नानकराम विश्नोई ने कहा कि खाद, बीज, दवाई सब महंगी हो चुकी है, इसलिए किसान को घाटा हो रहा है। वीरेंद्र विश्नोई ने कहा कि फसल का लागत मूल्य 40 प्रतिशत तक बढ़ चुका है। यही किसान का लाभ था, जो खत्म हो रहा है। हर चीज पर टैक्स बढ़ना इसकी मुख्य वजह है। 






ऐसे समझें फसल की लागत मूल्य का गणित



गेहूं : प्रदेश में गेहूं का औसत उत्पादन 15 क्विंटल प्रति एकड़ तक है। 2012 में गेहूं का रेट 1300 रुपए प्रति क्विंटल था, मतलब 1 एकड़ में गेहूं लगाकर किसान को 19 हजार 500 रुपए मिलते थे। जबकि 1 एकड़ में फसल को लगाने का खर्च 9500 रुपए तक था। 2022 में गेहूं का रेट 2100 रुपए प्रति क्विंटल है यानी किसान को 1 एकड़ में गेहूं लगाने से 31 हजार 500 रुपए की आय होती है, जबकि अब गेहूं को 1 एकड़ में लगाने का खर्चा 19 हजार से 22 हजार रुपए तक हो चुका है। 



धान : प्रदेश में धान का औसत उत्पादन 18 क्विंटल प्रति एकड़ तक है। 2012 में धान का रेट 1250 रुपए प्रति क्विंटल था, मतलब 1 एकड़ में धान लगाकर किसान को 22 हजार 500 रूपए मिलते थे। जबकि 1 एकड़ में फसल को लगाने का खर्च 8800 रुपए तक था। 2022 में धान के रेट 2100 रुपए प्रति क्विंटल है यानी किसान को 1 एकड़ में धान लगाने से 37 हजार 800 रु. की आय होती है, जबकि अब धान को 1 एकड़ में लगाने का खर्चा 22 हजार रुपए तक हो चुका है। 



सोयाबीन : प्रदेश में पीला सोना यानी सोयाबीन का औसत उत्पादन 5 क्विंटल प्रति एकड़ तक है। 2012 में सोयाबीन का रेट 4900 रुपए प्रति क्विंटल था, मतलब 1 एकड़ में सोयाबीन लगाकर किसान को 24 हजार 500 रुपए मिलते थे। जबकि 1 एकड़ में फसल को लगाने का खर्च 6400 रुपए तक था। 2022 में सोयाबीन के रेट 5000 रुपए प्रति क्विंटल है यानी किसान को 1 एकड़ में सोयाबीन लगाने से 25 हजार रुपए की आय होती है, जबकि अब सोयाबीन को 1 एकड़ में लगाने का खर्च 16 हजार से 17 हजार रुपए तक हो चुका है।  



औसत उत्पादन मूल्य की गणना ही सही तरीके से नहीं होती



एग्रो एकोनॉमिक्स रिसर्च सेंटर के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रमोद चौधरी ने बताया कि दरअसल फसल का औसत उत्पादन मूल्य की गणना ही सही तरीके से नहीं होती और यही कारण है कि किसान हमेशा घाटे में जाता है। किसान कुशल प्रबंधक है, लेकिन उसे अकुशल मजदूर का मानदेय दिया जाता है। सारी समस्या की जड़ यही है। अन्य व्यवसाय या उद्योग में सभी खर्चों को शामिल किया जाता है, पर औसत उत्पादन मूल्य में किसान की जमीन का किराया नहीं लिया जाता। धान की फसल 140 दिन की होती है, लेकिन मेहंताना 40 दिन का लिया जाता है। इस कारण गेहूं का उत्पादन मूल्य 1000 होता है और 50 प्रतिशत लाभांश जोड़कर उसे 1500 कर दिया जाता है। समर्थन मूल्य 2000 रुपए...इस तरह से कहने को हो जाता है कि लागत से दोगुना दे रहे हैं, जबकि अन्य व्यवसाय की तरह यदि सभी खर्चों को जोड़ा जाए तो लागत मूल्य ही गेहूं का 4 हजार तक आएगा। 50 प्रतिशत लाभांश जोड़ तो यह 6000 रुपए होता है। 



हकीकत से उलट केंद्र और राज्य सरकार के दावे...



मोदी सरकार ने साल 2016 में किसानों की आय को 2022 तक दोगुना करने का वादा किया था। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने 17 जुलाई 2022 में आईसीएआर के आंकड़ों का जिक्र करते हुए कहा कि सरकार ने अपना वादा निभाया है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) द्वारा तैयार की गई ई-पुस्तिका के अनुसार 2016-17 से 2020-21 तक की अवधि में 75,000 ऐसे किसानों की पहचान की गई, जिनकी आय बीते आठ वर्ष में दोगुनी या उससे अधिक हो गई. आईसीएआर ने कहा कि इन किसानों की आय में कुल वृद्धि 125.44 फीसदी से 271.69 फीसदी के बीच रही है। वहीं मध्यप्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल तक का कहना है कि सरकार की नीतियों के कारण किसानों की आय दोगुनी नहीं बल्कि तीन से 4 गुना हो गई है।






कृषि मंत्री जिस योजना की बात कर रहे उसमें मप्र में 99.9% हितग्राही हुई कम



मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल खेती को लाभ का धंधा बनाए जाने के पीछे सबसे बड़ा कारण किसान सम्मान निधि योजना को बता रहे हैं। उनके अनुसार इस योजना के तहत किसानों को केंद्र सरकार से 6 हजार और मध्यप्रदेश सरकार से 4 हजार यानी सालभर में 10 हजार रूपए मिल रहे हैं। जबकि हकीकत बिल्कुल इससे जुदा है। गरीब किसान को आर्थिक सहायता देने के लिए शुरू की गई प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना में मध्यप्रदेश में 3 साल में 99.9 प्रतिशत किसान कम हो चुके हैं, मतलब कहा जा सकता है कि 99.9 प्रतिशत किसान अब आर्थिक रूप से मजबूत है। 



पहली किश्त के रूप में 24 फरवरी 2019 को 2000 रुपए मध्य प्रदेश में 88 लाख 63 हजार किसानों के खातों में जमा किए गए थे, लेकिन जब इसकी 11वी किस्त 31 मई 2022 को खातों में डाली गई तो मध्य प्रदेश में किसानों की संख्या घटकर 12 हजार हो गई। मतलब करीब तीन साल में 99.9 प्रतिशत पात्र किसानों की संख्या में कमी आ गई। भारतीय किसान संघ के प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य मनमोहन व्यास ने कहा कि यह राशि को कम करने का आंकड़ा है, जबकि किसानों की संख्या इससे कहीं ज्यादा है। सिर्फ 60 प्रतिशत किसानों को ही राशि मिली है।   



मुख्यमंत्री किसान सम्मान निधि का तो पैसा मिल ही नहीं रहा



मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किसानों को पीएम किसान योजना के साथ प्रदेश सरकार की ओर से 4 हजार यानी हर छह महीने में दो-दो हजार किसानों को देने का वादा किया था, पर ये राशि तो मिल ही नहीं रही हैं। नर्मदापुरम के किसान उदय पांडे का कहना है कि नर्मदापुरम जिले के एक भी किसान को मुख्यमंत्री किसान सम्मान निधि का एक पैसा तक नहीं मिला। 



ये हालात तब, जब मुख्यमंत्री शिवराज समेत 180 विधायक हैं किसान



किसानों के दम पर मध्य प्रदेश ने सात बार कृषि कर्मण अवार्ड (Krishi Karman Award) जीता है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय (Union Ministry of Agriculture) की अगस्त 2022 में जारी रिपोर्ट के अनुसार मध्यप्रदेश में एक किसान परिवार की औसत मासिक आय 8339 रुपए है। यानी रोजाना की कमाई 277 रुपए है। एक किसान परिवार में चार से पांच लोग होते हैं जिनको इस कमाई से दो जून की रोटी मिलती है। ये कमाई सीमांत यानी छोटे किसानों की है। प्रदेश में एक करोड़ से ज्यादा किसान हैं जिनमें से 75 लाख से ज्यादा सीमांत कृषक हैं। जिन किसानों के पास एक हेक्टेयर से कम जमीन है उनकी संख्या 48 लाख है। जिन किसानों के पास एक से दो हेक्टेयर जमीन है उनकी संख्या 27 लाख है। कुल मिलाकर किसानों की आमदनी ही मजदूरों से कम है। यानी रोजाना मजदूर जितना कमाते हैं किसानों की आय उससे कम है। यह हालात तब है जब मध्यप्रदेश विधानसभा में 230 में से 180 विधायकों का व्यवसाय कृषि है, जिसमें मुख्यमंत्री तक शामिल है।


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