BHOPAL. प्रधानमंत्री आवास योजना मोदी सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट है। रीवा में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 4 लाख से ज्यादा लोगों का पक्के घर में गृह प्रवेश करवाया। आयोजन और कागजों में ये योजना जितनी सक्सेसफुल नजर आती है, लेकिन हकीकत बेहद जुदा है। कहीं पीएम आवास योजना की पहली किश्त मिल गई, दूसरी और तीसरी किश्त का लोग इंतजार कर रहे हैं। कहीं अपात्रों को पीएम आवास योजना का लाभ दे दिया। नगरीय इलाकों में कुछ मामले तो ऐसे हैं जहां दबंगों ने गरीबों के हक पर डाका डालते हुए पीएम आवास योजना के मकान हथिया लिए। यानी योजना की धरातल पर कुछ और ही हकीकत है। द सूत्र ने 5 जिलों में पीएम आवास योजना की हकीकत देखी तो हर जगह कुछ न कुछ खामियां नजर आईं।
रायसेन में 5 साल बाद भी तीसरी किस्त का इंतजार
रायसेन में 2018 में 25 हजार से ज्यादा लोगों को को पीएम आवास योजना का लाभ मिला था। मगर 5 साल बाद भी ज्यादातर लोग तीसरी किस्त का इंतजार कर रहे हैं। हेमंत रैकवार पीएम आवास योजना के हितग्राही हैं और उनके मकान के बाहर पीएम आवास की जानकारी भी दर्ज है। ये जानकारी तभी दर्ज होती है जब हितग्राही को पूरी किस्त मिल जाती है, लेकिन हेमंत को तो तीसरी किस्त मिली ही नहीं है।
3 किस्त में जारी होता है पीएम आवास योजना का पैसा
पीएम आवास योजना में हितग्राही को 3 किस्त मिलती हैं। योजना के नियम के तहत गरीबों को पक्का मकान बनाने के लिए 2 लाख 50 हजार रुपए मिलते हैं और ये पैसा 3 किस्तों में जारी होता है। जैसे ही हितग्राहियों को पहली किस्त मिली तो उन्होंने कच्चे मकानों को पक्का करने का काम शुरू किया। बाजार से उधारी भी ली कि जैसे-जैसे किस्त मिलती जाएगी वैसे वो कर्ज पटा देंगे, लेकिन 2 किस्त मिलने के बाद तीसरी किस्त आज तक नहीं मिली है, कर्ज हो गया सो अलग।
सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा-लगाकर परेशान
कुछ हितग्राही ऐसे हैं जिन्हें 2 लाख मिल चुके हैं, लेकिन 50 हजार अभी तक नहीं मिले। हितग्राही पिछले 1 साल से तीसरी किस्त के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा-लगाकर परेशान हो चुके हैं मगर उन्हें बताने वाला कोई नहीं कि आखिरकार तीसरी किस्त आई क्यों नहीं जबकि पैसा सीधे खाते में आता है। इस मामले में जब द सूत्र ने जिला पंचायत सीईओ अंजू भदौरिया से संपर्क करने की कोशिश की तो उनसे संपर्क नहीं हो पाया और जब उन्हें मैसेज भी भेजकर जानना चाहा कि आखिरकार तीसरी किस्त के लिए लोग परेशान हैं, वजह क्या है तो उसका जवाब भी उन्होंने नहीं दिया।
सीएम के गृह जिले सीहोर के हाल
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गृह जिले सीहोर की कहानी भी ऐसी ही है। हितग्राहियों को दूसरी किस्त नहीं मिली है। अब ऐसा ही मामला और भी कई लोगों का है, कुछ लोग तो ऐसे हैं जो मानते हैं कि वो पात्र हैं, लेकिन उन्हें आज तक इस योजना का लाभ नहीं मिल पाया।
लोगों ने सीएम हेल्पलाइन में की शिकायत
जब लोगों को इसका लाभ नहीं मिला तो उन्होंने सीएम हेल्पलाइन में शिकायत की। लोगों का ये भी कहना है कि नगर पालिका के कर्मचारियों ने झूठा भरोसा देकर शिकायतें वापस करवा दी और अभी भी लोग अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। हालांकि अधिकारियों का कहना है कि जो भी शिकायतें है उनका निराकरण किया जा रहा है।
मूलभूत सुविधाएं आज तक नहीं मिलीं
यानी जो पात्र हैं उन्हें पैसा नहीं मिला और जो पात्रता रखते हैं उन्हें योजना का लाभ नहीं मिल रहा। क्यों नहीं मिल रहा ये कोई बताने को तैयार नहीं। द सूत्र की टीम विदिशा के जतरापुरा गांव पहुंची तो यहां एक दूसरा ही नजारा देखने को मिला। पिछले साल धनतेरस पर करीब 85 परिवारों को यहां बनाए गए मकानों की चाबी दी गई थी, मकान तो बना दिए मगर यहां न तो सड़क है, न पानी है न ही बिजली है। नगर पालिका का टैंकर हर रोज आता है। महिलाएं इस टैंकर से कुप्पियों में पानी भरती है और 7 मंजिला सीढ़ियां चढ़कर पानी अपने घरों में ले जाती हैं। लोगों का कहना है कि बड़े जोर-शोर से पीएम आवास की चाबियां तो थमा दी गई मगर मूलभूत सुविधाएं तो आज तक नहीं मिली।
7 महीने से ज्यादा बीते
जिस दिन इन लोगों को मकानों की चाबियां दी गई थीं। गृह प्रवेश कराया गया था उस वक्त अधिकारियों ने भरोसा दिया था कि बाकी सुविधाएं भी जल्द ही मुहैया करवा दी जाएंगी। 7 महीने से ज्यादा वक्त हो चुका है कोई सुविधा आज तक नहीं मिली। लिहाजा जितने परिवारों को चाबियां दी गई थी उनमें से आधे तो सुविधाएं न होने की वजह से किराए का मकान लेकर गुजर बसर कर रहे हैं। यानी साफ है कि पीएम आवास योजना कागजों में तो अच्छी खासी नजर आती है, लेकिन जहां तक किस्तों की बात करें या फिर सुविधाओं की बात करें तो लोग आज भी इससे जूझ रहे हैं। ऐसे में योजना का क्रियान्वयन करने वाले सिस्टम में बैठे अधिकारियों की नीयत पर सवाल तो उठते हैं।
देवास में नगर निगम ने पकड़ा घोटाला
देवास में तो पीएम आवास योजना में बड़ा घोटाला नगर निगम ने ही पकड़ा मगर पिछले 8 महीने से केवल नोटिस का खेल ही चल रहा है। रसूखदारों और पैसे वालों ने 5-5 मकान खरीदकर हथिया लिए। जब इस पूरे मामले की शिकायत हुई तो नगर निगम ने जांच टीम तैयार की। नगर निगम ने 230 मकान चिन्हित किए जो किराए पर चल रहे थे, जाहिर तौर पर अधिकारियों की बंदरबांट से ये घपला हुआ। जब रिपोर्ट सामने आई तो नगर निगम ने आनन-फानन में 17 आवंटन निरस्त कर दिए और गरीबों को ये मकान दोबारा आवंटित कर दिए, लेकिन जब द सूत्र यहां पहुंचा तो ये हितग्राही आज भी कागज लेकर घूम रहे हैं लेकिन उन्हें मकान नहीं मिला।
निगम के अधिकारी-कर्मचारी लापरवाही मानने को तैयार नहीं
इस मामले की गूंज समय-समय पर नगर निगम परिषद की बैठक में उठती रही है। जाहिर तौर पर ये घोटाला अधिकारी और कर्मचारियों की सांठगांठ से हुआ है मगर निगम के अधिकारी कर्मचारियों की लापरवाही मानने को तैयार नहीं हैं। सूत्र बताते हैं कि इस समूचे मामले में लीपापोती की जा रही है। घोटाला उजागर होने के 8-10 महीने बीतने के बाद भी मामले की जांच कछुआ चाल से चल रही है। सवाल उठ रहे हैं कि आखिरकार नगर निगम इस घोटाले की जांच का जिम्मा लोकायुक्त या ईओडब्लू को क्यों नहीं सौंप रहा है।
सिंगरौली में अपात्रों को पीएम आवास
अब घोटाले का ऐसा ही मामला सिंगरौली का भी है। सिंगरौली के गनियारी में बनाए गए पीएम आवास योजना में कलेक्टर ने जब 249 हितग्राहियों की जांच करवाई तो खुलासा हुआ कि अपात्रों को ये आवास दे दिए गए। लिहाजा कलेक्टर ने आवंटन निरस्त किए और नगर निगम के ईई आर के जैन को निलंबित कर दिया। आर के जैन ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और कोर्ट से कहा कि वो केवल दोषी नहीं है बल्कि और भी अधिकारी है जिनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई और हाईकोर्ट से आर के जैन को स्टे ऑर्डर मिल गया। नगर निगम में जब नई परिषद का गठन हुआ तो फिर जांच कमेटी बैठी और इसमें से केवल 10 हितग्राहियों का आवंटन निरस्त किया और बचे हुए 239 आवासों का अनुमोदन कर दिया गया। जब द सूत्र ने इस पूरे मामले की पड़ताल की तो निकलकर सामने आया कि इन मकानों पर अभी भी रसूखदारों का कब्जा है।
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किराए पर दिया पीएम आवास योजना का मकान
एक मकान राजेंद्र चौबे का है जिन्होंने पत्नी के नाम से मकान आवंटित करवाया है। पत्नी जिला ट्रामा सेंटर में नर्स है और ये यूपी के निवासी हैं। राजेंद्र के पास खुद का पक्का मकान भी है और वो खुद निजी कंपनी में काम करते हैं। इसी कॉलोनी में रमेश प्रजापति को भी मकान आवंटित किया गया है। रमेश भारत सरकार की मिनी रत्न कंपनी एनसीएल में जॉब करते हैं। रमेश के पास पक्का मकान है और पीएम आवास उन्होंने किराए पर दिया है। भूपेंद्र जायसवाल के नाम भी मकान का आवंटन है वो ग्राम पंचायत सचिव हैं। ममता पांडे जो सरकारी टीचर हैं, पक्का मकान समेत 4 पहिया वाहन भी है, इसके बाद भी इन्होंने पीएम आवास योजना में मकान लिया। सभी लोग मकानों को किराए पर देकर 3 से 4 हजार रुपए महीना कमा रहे हैं। ये सारे दस्तावेज द सूत्र के पास मौजूद हैं। जबकि पीएम आवास किन्हें मिल सकता है वो भी देख लीजिए।
क्या हैं शर्तें
- आवेदक के परिवार की कुल सालाना आय 3 लाख से ऊपर नहीं होना चाहिए
जांच टीम ने ही किया गोलमाल
अब इस मामले में नगर निगम कमिश्नर का कहना है कि घोटाले की फाइल अभी बंद नहीं हुई है। मामले की जांच हो रही है, लेकिन दोबारा जो जांच टीम बनाई उसी की रिपोर्ट के आधार पर मकान आवंटित हुए तो क्या दूसरी बार बनी जांच टीम ने ही गोलमाल कर दिया। देवास और सिंगरौली इन दोनों मामलों को देखकर लगता है कि नगरीय इलाकों में तो अधिकारियों ने मिलकर योजना को जमकर पलीता लगाया है।
( रायसेन से पवन सिलावट, विदिशा से अविनाश नामदेव और सीहोर से कवि छोकर की रिपोर्ट )