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International Desk. पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुव पर स्थित अंटार्कटिका महाद्वीप के पश्चिमी छोर पर एक विशाल ग्लेशियर बड़ी तेजी से पिघल रहा है। पिघलने की रफ्तार ऐसी है जैसी बीते 5500 साल में नहीं देखी गई। इस ग्लेशियर का नाम थ्वाइट्स ग्लेशियर है लेकिन इसे डूम्सडे ग्लेशियर भी कहते हैं। जिसका मतलब है कयामत के दिन का ग्लेशियर। विज्ञानियों के हालिया अध्ययन से पता चला है कि इस ग्लेशियर के पिघलने से आने वाले समय में समुद्र का जलस्तर दो से दस फीट तक बढ़ सकता है। बता दें कि यह थ्वाइट्स ग्लेशियर आकार में अमेरिका के फ्लोरिडा के बराबर यानि 74 हजार वर्ग मील जितना बड़ा है।
वैसे तो अंटार्कटिका में बर्फ ही बर्फ है, इसका 98 फीसदी भाग औसतन 1.6 किलोमीटर मोटी बर्फ से ढका है। यहां लोग बसने के लिए नहीं आते हैं, आम तौर पर यहां विभिन्न रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक अपने खोजकार्य के लिए पहुंचते हैं। इतनी बर्फ वाले हिस्से के विशालयकाय पर्वत के पिघलने से रिसर्चर्स में चिंता है। 2019 के आखिर और 2020 की शुरुआत में करीब 6 हफ्तों के दरमियान अंटार्कटिका में कॉर्नल यूनिवर्सिटी के विज्ञानी ब्रिटनी श्मिट की अगुवाई में अमेरिका और ब्रिटेन के 13 विज्ञानियों की एक टीम ने अंतरराष्ट्रीय थ्वाइट्स ग्लेशियर सहयोग कार्यक्रम के रूप में एक बड़ा फील्ड कैंपेन चलाया था। इस दौरान एक अंडरवॉटर रोबोट वाहन आइसफिन के जरिये ग्लेशियर के उन हिस्सों तक वैज्ञानिक पहुंचे जहां हर साल टनों बर्फ पिघलकर समुद्र में गिरती है।
इस शोध के संबंध में बीते बुधवार को नेचर जर्नल में दो अध्ययन प्रकाशित किए गए हैं, इनमें बताया गया कि ग्लेशियर की ढाल के रूप में काम करने वाली बर्फीली चट्टान के नीचे मौजूद गर्म पानी इसके सबसे कमजोर हिस्सों में पहुंचकर उन्हें नुकसान पहुंचा रहा है। ग्लेशियर के कई हिस्सों की सुरक्षा इसकी बर्फ की चट्टान करती है जो कि समुद्र की सतह को छूती है। यह चट्टान बचाने वाली ढाल के रूप में मौजूद है, यह ग्लेशियर को जमीन पर बनाए रखने और समुद्र के जलस्तर में इजाफे के खिलाफ अहम सुरक्षा प्रदान करती है। असल में चिंता का कारण यह है कि समुद्र के गर्म होते ही बर्फ की चट्टान कमजोर पड़ने लगती है।
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ग्लेशियर पिघला तो बढ़ेगा समुद्र का पानी
जर्नल नेचर में प्रकाशित अध्ययनों में विज्ञानियों ने खुलासा किया कि बर्फ की चट्टान के नीचे पिघलने की रफ्तार पहले की तुलना में धीमी है लेकिन गहरी दरारें और सीढ़ी नुमा संरचनाएं बहुत तेजी से पिघल रही हैं। हर साल ग्लेशियर की अरबों टन बर्फ पिघल रही है, जो समुद्र के जलस्तर की वार्षिक बढ़ोतरी में 4 फीसद का योगदान देती है। यह पिघलना उस जगह होता है जहां ग्लेशियर समुद्रतल से मिलता है, 1990 के बाद यह करीब 14 किलोमीटर पीछे हट गया।
विज्ञानियों का अनुमान है कि थ्वाइट्स के पूरे पतन से समुद्र का जलस्तर दो फीट (70 सेंटीमीटर) से ज्यादा बढ़ सकता है, जो दुनियाभर के तटीय इलाकों को तबाही लाने के लिए काफी होगा। वहीं थ्वाइट्स पश्चिम अंटार्कटिका में आसपास की बर्फ के लिए प्राकृतिक बांध की तरह भी काम करता है। विज्ञानियों का मानना है कि अगर थवाइट्स पूरी तरह से ढह गया तो महासागरों का स्तर आखिरकार करीब 10 फीट बढ़ सकता है।
टूटा 5 हजार साल का रिकॉर्ड
नेचर जियोसाइंस नामक पत्रिका में गुरुवार को प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, विज्ञानी रेडियोकार्बन डेटिंग तकनीक के माध्यम से ग्लेशियर के पिछलने की रफ्तार का पता लगा रहे हैं। बताया जा रहा है कि लिखित इतिहास के पहले के सीशेल्स और पेंगुइन की हड्डियों के जीवाश्म अंटार्कटिक बीचों से जुटाए गए। ये जीवाश्म 5,000 साल से ज्यादा पुराने थे, बताया गया कि ये जीवाश्म उस समय के हैं जब धरती का टेंपरेचर आज की तुलना में बहुत ज्यादा था। इस रिसर्च से विज्ञानी यह पता लगा सकते हैं कि समुद्र तट कब पैदा हुए और उनके आसपास स्थानीय समुद्र का जलस्तर क्या था। अध्ययन के अनुसार, करीब 5,000 साल पहले ग्लेशियर से नियमित रूप से बर्फ पिघलना शुरू हो गई थी। उस दौरान स्थानीय समुद्र के जलस्तर में हर प्रति वर्ष 0.14 इंच का इजाफा हो रहा था। पिछले 30 वर्षों में यह दर बढ़कर 1.57 इंच प्रति वर्ष हो गई है जो कि 5,500 वर्षों में नहीं देखी गई।
ग्लेशियर के पूर्वी हिस्से से खतरा
रिपोर्ट्स के मुताबिक, इससे पहले शोधकर्ताओं के एक समूह ने चेताया था कि ग्लेशियर के पूर्वी हिस्से की दरारें अगले 3 से 5 साल में इसके पतन का कारण बन सकती हैं, समुद्र के पानी का इस तक रास्ता बन सकता है जो आखिर में इस महाकाय पर्वत को पिघला देगा। पूर्वी अंटार्टिका का यह हिस्सा न्यूयॉर्क शहर के बराबर बताया जाता है, बताया जा रहा है कि मानव इतिहास में पहली बार बर्फीली चट्टान यहां ढह गई।
रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि शोधार्थियों ने अभी उम्मीद नहीं छोड़ी है, वे ग्लेशियर के नीचे बर्फ जमा करने के लिए इसमें ड्रिलिंग करने के प्रयास में हैं। ऐसा करके पता लगाया जाएगा कि तेजी से पिघल रही बर्फ को रोका जा सकता है या नहीं।
इन बड़े शहरों को खतरा
समुद्र का जलस्तर बढ़ने पर दुनिया के कई तटीय स्थानों को नुकसान होगा। वहीं, दुनिया के कई बड़े शहरों के डूबने की आशंका जताई जा रही है, जिनमें शंघाई, न्यूयॉर्क, मियामी, टोक्यो और भारत का मुंबई शामिल है। पिछले साल दिसबंर में अमेरिकी भूभौतिकीय संघ के विज्ञानियों ने दुनियाभर के कई तटीय शहरों को चेतावनी दी थी कि धरती से ग्लेशियर खत्म हो जाने पर अगली सदी में वैश्विक समुद्र का जलस्तर एक फीट तक बढ़ जाएगा।