राहुल शर्मा, BHOPAL. न खाऊंगा न खाने दूंगा, यह सूत्रवाक्य मोदी कैंपेन का हिस्सा रहा है और इसी राह पर चलते हुए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी हाल ही में 28 दिसंबर को निवाड़ी के एक सार्वजनिक कार्यक्रम में न खाऊंगा न खाने दूंगा लाइन को दोहराया। लेकिन सवाल यह है कि यह संभव कब है। जवाब सीधा-सा है पारदर्शी व्यवस्था। पारदर्शी व्यवस्था के दो सबसे बड़े हथियार हैं - पहला, आम नागरिकों के लिए सूचना का अधिकार और दूसरा माननीयों यानी विधायकों के लिए विधानसभा में प्रश्न लगाने का अधिकार। लेकिन क्या वाकई में मध्यप्रदेश में इन अधिकारों को लेकर सरकार गंभीर है। द सूत्र ने इसकी पड़ताल की और जो सामने आया वह बेहद चौकाने वाला है। सबसे पहले बात की जाए आम नागरिकों को मिले अधिकारों की, तो सूचना के अधिकार के तहत जनहित से जुड़ी जानकारियां छुपाने के मामले में मध्यप्रदेश के अफसर कर्नाटक के बाद दूसरे नंबर पर हैं।
एमपी में 222 अफसरों पर लग चुका जुर्माना
बीते एक साल में आरटीआई एक्ट के उल्लंघन पर मध्यप्रदेश के 222 अफसरों पर 47.50 लाख रुपए की पेनॉल्टी राज्य सूचना आयोग ने लगाई है, जो कि कर्नाटक के बाद सर्वाधिक है। पेनाल्टी की यह राशि 1 जुलाई 2021 से 30 जून 2022 के बीच की है। मतलब राज्य सूचना आयोग की सख्ती के बाद ही यहां आरटीआई के तहत जानकारी मिलती है। सामान्य शब्दों में कहे तो जानकारियां छुपाने के मामले में मध्यप्रदेश के अफसर देश में कर्नाटक के बाद दूसरे नंबर पर हैं। सरकारी तंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिए काम करने वाली संस्था सतर्क नागरिक संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले एक साल में मध्यप्रदेश में आरटीआई में जानकारी नहीं दिए जाने की 9005 शिकायतें और अपीलों का निराकरण किया गया हैं। वहीं इस अवधि में आरटीआई की 5929 सेकंड अपीलें राज्य सूचना आयोग में लंबित हैं।
17 सालों से मध्यप्रदेश कर रहा एक्ट का उल्लंघन
आरटीआई की धारा 7(1) में प्रावधान है कि अगर जानकारी किसी व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता से जुड़ी है, तो वह 48 घंटे में प्रदान की जानी चाहिए, यह तब ही संभव है जब व्यवस्था आनलाइन हो। इसलिए ही आरटीआई एक्ट की धारा 6 के अनुसार यह व्यवस्था दी गई है कि यदि आवेदक चाहे तो आवेदन लिखित रूप से, ऑनलाइन अथवा अन्य युक्ति से प्रेषित कर सरकार या विभाग से दस्तावेज या जानकारी मांग सकता है। आरटीआई एक्ट 2005 से लागू है, पर मध्यप्रदेश में आरटीआई के आनलाइन की व्यवस्था है ही नहीं। कुल मिलाकर मध्यप्रदेश 17 सालों से आरटीआई एक्ट की धारा 6 का उल्लंघन कर रहा है। राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा कि यदि कोई आनलाइन आरटीआई का आवेदन नहीं कर पा रहा है तो यह उसके अधिकारों का हनन है। शासन प्रशासन को चाहिए कि वह आनलाइन आरटीआई की व्यवस्था जल्द से जल्द लागू करे।
भारत सरकार का पोर्टल कारगर, मप्र में आवेदन से पहले ही कई मुश्किलें
भारत सरकार ने वर्ष 2013 में आरटीआई पोर्टल बनाकर RTI आवेदन के लिए ऑनलाइन व्यवस्था कर दी थी। इससे आवेदन करना बेहद आसान है। आपको https://rtionline.gov.in पोर्टल के पेज को ओपन करना होगा। यहां Submit Request के आप्शन पर क्लिक करने के बाद गाइडलाइन के नीचे बाक्स में टिक कर सबमिट करना होगा। इसके बाद आनलाइन फार्म खुल जाएगा। सभी विकल्प को भरने के बाद यदि आप गरीबी रेखा के नीचे नहीं है तो आनलाइन 10 रूपए का पेमेंट जमा करना होगा। जिसके बाद आपका आवेदन जमा हो जाएगा। इसका एक कन्फर्मेशन मेल भी आपको आ जाएगा, जिससे आप अपने आवेदन की अपडेट स्थिति भी देख सकेंगे। इसके ठीक उलट मध्यप्रदेश में आनलाइन आरटीआई का पोर्टल भारत सरकार के पोर्टल जैसा सहज और सरल नहीं है। यहां आवेदन करने से पहले ही कई मुश्किलें है। एमपी के पोर्टल https://rti.mp.gov.in को जब आप ओपन करेंगे तो यहां आपको आरटीआई आनलाइन के नीचे एप्लाई आनलाइन का आप्शन मिलेगा, इस पर क्लिक करने के बाद रजिस्टर्ड एज सिटीजन में जाकर पहले आपको रजिस्ट्रेशन करना होगा। रजिस्ट्रेशन करने के बाद आप अपने मोबाइल नंबर और पासवर्ड से इसे लागिन करेंगे। इसके बाद प्रोफाइल में जाकर पूरा पता लिखना होगा। इसके बिना आवेदन सबमिट नहीं हो सकेगा। वापस सर्विस सेक्शन में आकर आनलाइन आवेदन पर क्लिक करेंगे। इसके बाद सामने जो विकल्प खुलेंगे उनमें पांचवा विकल्प सूचना का अधिकार है, उस पर क्लिक करने पर आनलाइन आवेदन का फार्म खुल जाएगा।
मप्र के आनलाइन पोर्टल में विभाग ही नहीं जोड़े
मध्यप्रदेश ने 2021 में ऑनलाइन पोर्टल तो बना लिया, पर उसमें सभी विभागों और शासकीय ऑफिस को जोड़ा ही नहीं है, जिससे आवेदन को ऑनलाइन लगाने में परेशानी हो रही है। द सूत्र ने 5 प्रमुख विभाग गृह, स्वास्थ, कृषि, पंचायत और शिक्षा विभाग में आरटीआई लगानी चाही तो सभी में पोर्टल में हर बार लिखा आया कि... यह आनलाइन सेवा चयनित कार्यालय में वर्तमान में लागू नहीं है, कृप्या संबंधित कार्यालय में संपर्क करें...सिर्फ राज्य शिक्षा केंद्र में आनलाइन आवेदन सबमिट हुआ तो उसमें 10 रूपए के पेमेंट के आप्शन पर क्लिक ही नहीं होने से पेमेंट जमा नहीं हो सका। पोर्टल पर हेल्पडेस्क नंबर 0755—2700800 पर 6 बार काल किया, 10—10 मिनिट तक वेट भी किया पर कोई रिस्पांस ही नहीं मिला।
आनलाइन आरटीआई का जवाब नहीं, अपील आफलाइन ही करनी पड़ी
सीधी चुरहट के आरटीआई एक्टिविस्ट प्रदीप सिंह एक साल से जनपद पंचायत देवसर के अंतर्गत आने वाले स्कूलों में विकलांगता श्रेणी में चयनित अभ्यर्थियों की जानकारी के लिए परेशान हो रहे हैं। उन्होंने जनवरी 2022 में आरटीआई के तहत आनलाइन आवेदन किया था, पर जनपद सीईओ की ओर से कोई जवाब ही नहीं आया। जिसके बाद 10 मार्च को प्रथम अपील की गई। प्रदीप सिंह ने बताया कि एमपी के पोर्टल में आनलाइन की कोई व्यवस्था नहीं है, इसलिए अपील आफलाइन ही की गई। इसके बाद भी कोई जवाब नहीं मिला तो दिसंबर में द्वितीय अपील सूचना आयुक्त को की है।
ऑनलाइन आरटीआई नहीं होने से यह हो रहे नुकसान
- जिस विभाग में आरटीआई लगानी है यदि वह आवेदक के निवास स्थान से दूर है तो उसे डाक या कोरियर के माध्यम से ही आवेदन करना होगा। जिसका जवाब भी डाक से ही आएगा, इसमें काफी वक्त लगता है।
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और सूचना आयुक्त को जारी किया है नोटिस
मध्यप्रदेश में आनलाइन आरटीआई को लेकर हो रही खानापूर्ती को लेकर मध्य प्रदेश लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने जबलपुर हाईकोर्ट में एक याचिका भी लगाई है, जिसकी सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने 3 नवंबर 2022 को राज्य सरकार और सूचना आयुक्त को नोटिस जारी करते हुए पूछा था कि प्रदेश में आरटीआई आनलाइन क्यों नहीं लग रही है। लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन की ओर से एडवोकेट विशाल बघेल ने बताया कि जवाब 4 हफ्तों में देना था। मामले में सुनवाई जनवरी में प्रस्तावित है, सुनवाई के दौरान ही पता चल सकेगा कि राज्य सरकार ने इस मामले में क्या जवाब दिया है।
प्रदेश सरकार धारा 4 का भी नहीं करवा सकी पालन
आरटीआई आनलाइन के अंतर्गत धारा 6 और धारा 7 का उल्लंघन तो छोड़िए मध्यप्रदेश सरकार धारा 4 का भी पालन नहीं करवा सकी। मध्य प्रदेश लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन के विशाल बघेल ने बताया कि आरटीआई एक्ट की धारा 4 में विभागों को यह निर्देश दिए गए थे कि वह अपने कर्मचारियों को मिलने वाले वेतन भत्ते, खर्चे सहित 17 बिंदुओं पर जानकारी एकत्र कर वेबसाइट पर प्रदर्शित करना थी, इसका भी पालन नहीं हुआ है, इसकी भी एक याचिका हाईकोर्ट में लगी है और हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब तलब किया है।
विधानसभा में ही नहीं मिलते सवालों के जवाब
पारदर्शी व्यवस्था के लिए दूसरा बड़ा अधिकार माननियों यानी विधायकों को दिया गया है। वे सवाल लगाकर विधानसभा में इसका जवाब हासिल कर सकते हैं, लेकिन ऐसा होता नहीं है। पूर्व मंत्री जीतू पटवारी आरोप लगा चुके हैं कि किसान कर्जमाफी को लेकर उन्होंने 10 बार विधानसभा में सवाल लगाए, पर हर बार जवाब मिला कि जानकारी एकत्रित की जा रही है। हाल ही में शीतकालीन सत्र में 4 दिन 19 से 22 दिसंबर तक विधानसभा चली। इस दौरान 55 सवाल ऐसे थे, जिनके बारे में जवाब दिया गया कि जानकारी एकत्रित की जा रही हैं। यही नहीं 20 दिसंबर की प्रश्नोत्तरी में सीएम के पास जो विभाग है उनसे संबंधित सवाल लगाए गए थे। उसी दिन 20 सवाल में कहा गया कि जानकारी एकत्रित की जा रही है। कृषि विभाग के 7, उद्योगिक नीति निवेश के 4, नगरीय प्रशासन के 9, वित्त विभाग के 6, स्कूल शिक्षा विभाग, पंचायत, धार्मिक न्यास, परिवहन, जल संसाधन, फूड, स्वास्थ, पीडब्ल्यूडी, उच्च शिक्षा विभाग के एक—एक सवाल में जवाब यही मिला है।