अमरकंटक में उपेक्षा की शिकार हो रहीं पांडवकालीन गुफाएं, शैल चित्रों का हो रहा क्षरण; महाशिवरात्रि पर 2 दिन लगेगा मेला

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Rahul Garhwal
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अमरकंटक में उपेक्षा की शिकार हो रहीं पांडवकालीन गुफाएं, शैल चित्रों का हो रहा क्षरण; महाशिवरात्रि पर 2 दिन लगेगा मेला

राजेश शुक्ला, ANUPPUR. अनूपपुर में पवित्र नगरी अमरकंटक के अतिरिक्त भी धार्मिक और पर्यटन की अनेक विरासतें मौजूद हैं। संरक्षण एवं रखरखाव के अभाव में जहां विरासत पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ प्रचार-प्रसार के अभाव में बाकी दुनिया तक इसकी जानकारी भी नहीं पहुंच पाई है। भालूमाड़ा के शिवलहरा धाम में प्राचीनकाल की गुफाएं हैं। गुफा में शैल चित्र के साथ ही शिवलिंग भी मौजूद है। देखरेख के अभाव में शैल चित्रों का क्षरण हो रहा है।



लोगों का कहना है कि यहां पांडवों ने बिताया था अज्ञातवास



स्थानीय लोगों का कहना है कि अज्ञातवास के लिए पांडव यहां रुके थे और अपना अज्ञातवास बिताने के लिए यहीं केवई नदी के किनारे पत्थरों को काटकर अपने रहने के लिए स्थान बनाया। पूजा के लिए मंदिरों का निर्माण भी किया। उसी समय की यहां पांडवकालीन गुफाएं और मंदिर हैं। हर महाशिवरात्रि पर यहां दर्शन के लिए लोग आते हैं और मेला लगता है।



पंचायत के भरोसे जिम्मेदारी



शिवलहरा धाम में मेले की संपूर्ण जवाबदारी स्थानीय ग्राम पंचायत एवं जिला प्रशासन की होती है, लेकिन सालों से देखने को मिला है कि मेला प्रबंधन की केवल खानापूर्ति की जाती है। मेले में आए दुकानदारों-यात्रियों से केवल वसूली की जाती है और अन्य व्यवस्थाओं पर ध्यान नहीं दिया जाता। दुर्लभ शैल चित्र क्षरण होने की कगार पर हैं। जिस गुफा में ये शैल चित्र बने हैं वो पूरी तरह से खुली है और बरसात का पानी रिसकर अंदर पहुंचता है जिससे शैल चित्र खराब होने लगे हैं।



सूचना पटल तक सीमित जानकारी



पुरातत्व विभाग ने इस गुफा के संरक्षण की योजना तो बनाई, लेकिन इतने वर्षों में सिर्फ बोर्ड ही लग पाया। शिवलहरा धाम की गुफा में बने शैल चित्र भी काफी दुर्लभ माने जाते हैं। अब तक कई विद्वान इस पर शोध कर चुके हैं। पुरातत्व विभाग ने इस महत्वपूर्ण धरोहर को सुरक्षित रखने के लिए आज तक ठीक व्यवस्था नहीं की है। गुफा पूरी तरह से खुली है और बरसात में बारिश का पानी रिसकर अंदर तक पहुंचता है जिससे धीरे-धीरे शैल चित्रों को नुकसान पहुंच रहा है। कुछ शैल चित्र खराब भी हो चुके हैं और उनका रंग बदलने लगा है। इस गुफा के बाहर एक स्थान पर आज तक द्वार नहीं बना है। बाउंड्रीवॉल नहीं होने के कारण लोग आसानी से गुफा तक पहुंच जाते हैं। कुछ लोग गुफा के ऊपर बैठकर पिकनिक भी मनाते हैं और यहां तमाम तरह का कूड़ा भी बिखरा रहता है।



प्राचीन विरासत को संजोए हैं गुफाएं



ये गुफा 2 वजह से स्थानीय लोगों के बीच काफी प्रसिद्ध है। पहला कारण है इसका महाभारत काल से जुड़ाव और दूसरा इस गुफा में सबसे पुराने शैल चित्रों का मौजूद होना। माना जाता है कि इस गुफा का संबंध द्वापर युग की महाभारत कथा से है। इसका नाम महाभारत काल के पांडवों के नाम पर पड़ा है। इस मंदिर में लिखी पांडवों की लिपि को आज तक कोई भी नहीं पढ़ पाया है, दूर-दूर से वैज्ञानिक आकर शोध कर के जा चुके हैं।



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एक किवदंती ये भी है



गुफा की दीवारों मे प्राचीन लिपि भी लिखी हुई है जिसके संबंध में कहा जाता है कि इस लिपि को जो भी पढ़ लेगा तो दीवार खुल जाएगी जिसके नीचे खजाना रखा हुआ है, लेकिन अभी तक कोई भी इस लिपि को नहीं पढ़ पाया। यहां पर शिव जी की प्रतिमा स्थापित है। इसके कारण समय-समय पर लोगों का तांता लगा रहता है और महाशिवरात्रि के अवसर पर 2 दिवसीय मेला लगाया जाता है जिसमें दूर-दूर से लोग आते हैं। यहां का मनोरम दृश्य और चट्टानों को काटकर बनाई गए मंदिर लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है।



गुफाओं तक पहुंचने के लिए पक्की रोड नहीं



शिवलहरा धाम जाने के लिए आज तक ग्राम पंचायत या प्रशासन के द्वारा सड़क का निर्माण कार्य नहीं कराया गया। पगडंडी से लोग आना-जाना कर रहे हैं। यहां तक कि रास्ते में मिट्टी-धूल के कारण लोगों को आवागमन करने में परेशानी होती है। पूर्व में जब वन विभाग से ये पूछा गया था कि पांडवकालीन गुफा को देखने के लिए लोग कच्चे रास्ते से आना-जाना करते हैं तो वन विभाग के अधिकारियों ने कहा था कि ग्राम पंचायत के द्वारा हमें कभी प्रस्ताव ही नहीं दिया गया। यदि प्रस्ताव दिया गया होता तो हम उस पर विचार भी करते।


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