Jabalpur. मध्यप्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्याल में वित्तीय कुप्रबंधन की बात उजागर हो गई है। दरअसल विश्वविद्यालय के जिम्मेदारों ने यूनिवर्सिटी के 180 करोड़ रुपए लंबे समय तक चालू खाते में पड़े रहने दिए। जबकि इतनी बड़ी राशि के जरिए काफी बड़ी रकम बतौर ब्याज मिल सकती थी। इस गफलत के कारण यूनिवर्सिटी को राजस्व की हानि उठाना पड़ी है। कार्यपरिषद ने इस मामले को वित्तीय अनियमितता मानते हुए बैठक में विस्तृत चर्चा की और मामला ईओडब्ल्यू को सौंपने की अनुशंसा की है। कार्यपरिषद के इस फैसले से विश्वविद्यालय का एकाउंट संभालने वाले जिम्मेदारों में हड़कंप मचा हुआ है।
कुलसचिव और वित्त नियंत्रक पर आरोप
कार्यपरिषद सदस्यों ने साल 2017 से यूनिवर्सिटी का ऑडिट नहीं कराए जाने और सावधि जमा राशियों की मेच्योरिटी के बावजूद नए सिरे से एफडीआर नहीं बनवाने पर सख्त आपत्ति दर्ज कराई। अनियमितताओं को घोटाला ठहराते हुए इओडब्ल्यू से जांच कराने की अनुशंसा की है। बताया जा रहा है कि परीक्षा शुल्क के 110 करोड़ रुपए और संबद्धता शुल्क के 60 करोड़ रुपए चालू खातों में रखे गए। जो वित्तीय अनियमितता की श्रेणी में आता है। इस संबंध में एमपी स्टूडेंट यूनियन ने विस्तार से इसकी शिकायत राज्यपाल से भी की है। संगठन ने अपनी शिकायत में विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ पुष्पराज सिंह और वित्त नियंत्रक रवि शंकर डेकाटे को इसके लिए जिम्मेदार बताया है। कार्यपरिषद ने भी इस बाबत विश्वविद्यालय से स्पष्टीकरण मांगा है और मामले की जांच ईओडब्ल्यू को सौंपने की अनुशंसा कर दी है।
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चार्टर्ड अकाउंटेंट फर्म की नियुक्ति हुई
उधर मेडिकल यूनिवर्सिटी में लेखा संधारण ठीक ढंग से करने, संस्थान को आर्थिक नुकसान से बचाने के लिए चार्टर्ड अकाउंटेंट फर्म की नियुक्ति के प्रस्ताव को अब जाकर मंजूरी दी गई है। एमयू में अलग-अलग मदों से अर्जित होने वाली राशि 10 करोड़ रुपए से ज्यादा लिक्विड न रखने और इन राशियों का अधिकतम ब्याज दर देने वाले बैंकों में एफडीआर करने के प्रस्ताव को भी स्वीकृति प्रदान की गई है।