हरीश दिवेकर, BHOPAL. 2023 के विधानसभा चुनाव में बुंदेलखंड और विंध्य में एक नया समीकरण देखने को मिल सकता है। बीजेपी से निकाले जाने के बाद प्रीतम लोधी अपने अपमान का बदला लेने के लिए मैदान में कमर कसकर उतर गए हैं। बीजेपी का तानाबाना उधेड़ने के लिए प्रीतम लोधी ओबीसी के दिग्गज नेताओं से गठबंधन करने में जुट गए हैं। प्रीतम अकेले नहीं हैं। लोधी समाज तो उनके साथ खड़ा हो ही गया है। इसके साथ ही उनसे प्रीत गहरी करने के लिए ओबीसी के बड़े नेता हाथ भी मिलाने लगे हैं।
लोधी के बहाने 3 अंचल और 3 वोट बैंक पर कब्जे की कोशिश
अब बात सिर्फ प्रीतम लोधी तक सीमित नहीं रही है। लोधी के बहाने प्रदेश के 3 अंचल और 3 वोट बैंक पर दूसरे दल कब्जा जमाने की फिराक में नजर आ सकते हैं। ये ऐसे वोट बैंक हैं जो प्रदेश की सियासी तकदीर तय करते हैं। विंध्य और बुंदेलखंड बीजेपी के वफादार वोट बैंक रहे हैं लेकिन नई सियासी परिस्थतियां इशारा कर रही हैं कि वफा कभी भी बदल सकती है। ग्वालियर चंबल तो पहले ही खतरे की घंटी बजा चुका है। इन 3 अंचलों में ओबीसी वोटर्स भी नया विकल्प तलाश लें तो बीजेपी की मुश्किलें बढ़ जाएंगी जबकि कांग्रेस कोई खास घाटे में नहीं होगी।
भूख हड़ताल पर बैठे थे प्रीतम लोधी
बीते कुछ महीनों से लगातार सुर्खियों में बने हुए प्रीतम लोधी इस बार भूख हड़ताल पर बैठने को लेकर चर्चा में रहे। वो जब तक भूख हड़ताल पर रहे बीजेपी ने कोई खास तवज्जो नहीं दी। न उनके अनशन पर बीजेपी ने कोई बात की और न भूख हड़ताल खत्म कराने की कोई फिक्र की। भूख हड़ताल पर बैठे प्रीतम लोधी को तो बीजेपी, स्थानीय नेता और अफसरों से नजरअंदाज कर दिया। लेकिन प्रीतम लोधी का अनशन टूटने पर जरूर बीजेपी की त्योरियां चढ़ गई होंगी। वो कहावत आपने सुनी होगी चाय के प्याले में तूफान। लेकिन प्रीतम लोधी का अनशन टूटना कोई ऐसा वैसा तूफान नहीं, जो चाय खत्म और बात खत्म की तर्ज पर भुला दिया जाए।
नए सियासी समीकरण
प्रीतम लोधी का अनशन प्रदेश में और खासतौर से बुंदेलखंड में बन रहे नए सियासी समीकरणों की तरफ इशारा कर रहा है। क्योंकि ये अनशन तुड़वाया है समाजवादी पार्टी के पूर्व सांसद धर्मेंद्र सिंह सांसद ने। अनशन खत्म कराने के कार्यक्रम में इतनी भीड़ थी जितनी लोधी के अनशन के दौरान नहीं जुटी। हर तरफ सिर्फ एक ही नारा गूंज रहा था समाजवादी पार्टी जिंदाबाद अखिलेश यादव जिंदाबाद।
बीजेपी को हो सकता है नुकसान
इन नारों की ऊंची आवाज को अनसुना करना बीजेपी के लिए इतना आसान नहीं है। ये नारे बीजेपी के लिए जितना नुकसानदायी साबित हो सकते हैं, कांग्रेस के लिए उतने ही फायदेमंद हो सकते हैं। वैसे बात सिर्फ नारों तक नहीं सिमटी रही। जननेता बनने की कवायद में जुटे प्रीतम लोधी इस मौके पर जमकर बरसे भी। ज्यादा बारिश के चलते किसानों को हुए नुकसान की भरपाई की मांग को लेकर अनशन कर रहे लोधी ने 17 सूत्रीय मांगे पूरी न होने पर पीएमओ तक पैदल मार्च करने की चेतावनी भी दे डाली।
बुंदेलखंड में नए संकेत
बुंदेलखंड में प्रीतम लोधी को ओबीसी महासभा, एससी और एसटी वोटर्स का साथ तो मिल ही चुका था। अनशन के बहाने वो किसानों का भरोसा जीतने में भी कामयाब हो सकते हैं। समाजवादी पार्टी तो प्रीतम लोधी का साथ देने का इशारा कर ही चुकी हैं। ये नए संकेत बुंदेलखंड में कुछ नया गुल खिला सकते हैं। सिर्फ बुंदेलखंड का इलाका ही नहीं। समाजवादी पार्टी के जुड़ने से प्रदेश में इतने नए समीकरण खड़े हो जाएंगे कि उन्हें एक रणनीति के तहत समेट पाना आसान नहीं होगा।
प्रीतम लोधी ने दिए साइकिल की सवारी करने के संकेत !
प्रीतम लोधी का अनशन 15 दिन तक चला। इन पंद्रह दिनों में सियासत भले ही खामोश रही हो लेकिन आखिरी दिन जमकर भूचाल आया। समाजवादी पार्टी के नेता के हाथों अनशन खत्म करके लोधी ने साइकिल की सवारी के संकेत दे दिए हैं। हालांकि बाद में इस बात से इनकार भी किया लेकिन राजनीति में इनकार क्या और इकरार क्या। सब हालात के हिसाब से बदल जाते हैं। फिलहाल जो सबसे बड़ा असर दिख रहा है वो बुंदेलखंड में दिखाई दे रहा है लेकिन ये भी तय है कि बुंदेलखंड के अलावा ग्वालियर चंबल और विंध्य भी नए समीकरणों की जद में आसानी से आएंगे। उत्तरप्रदेश से सटे एमपी के इन अंचलों की विधानसभा सीटों पर समाजवादी पार्टी की दस्तक सीधा असर डाल सकती है। सपा के आने से यादव वोट तो प्रभावित होगा ही साथ में नया समीकरण लोधी प्लस यादव वोटर्स का होगा।
किसका फायदा और किसका नुकसान
कांग्रेस को इससे कितना फायदा होगा ये कहना मुश्किल है लेकिन बीजेपी के लिए घाटा बहुत बड़ा होगा। पहले बीजेपी के घाटे को समझिए। 2018 में सत्ता के नजदीक पहुंची बीजेपी का बुंदेलखंड ने भी जमकर साथ दिया था। मालवा, चंबल और महाकौशल की वजह से बीजेपी सरकार बनाने से चूकी लेकिन विंध्य और बुंदेलखंड ने बीजेपी का पूरा साथ दिया था। बुंदेलखंड की 26 में से 18 सीटें जीतने में बीजेपी कामयाब रही थी। वहीं कांग्रेस 7 पर जीती और एक सीट बीएसपी के खाते में गई थी। ये ऐसे आंकड़े थे जिन्हें लेकर बीजेपी इस बार भी बुंदेलखंड की ओर से निश्चिंत थी लेकिन अब प्रीतम लोधी के बहाने बदल रहे सियासी समीकरण बीजेपी को फिक्रमंद कर सकते हैं।
लोधी वोटर्स डाल सकते हैं असर
सिर्फ बुंदेलखंड ही नहीं कुछ और सीटों पर प्रीतम लोधी के समर्थन में आए लोधी वोटर्स असर डाल सकते हैं। लोधी समाज के कार्यकारी अध्यक्ष महेश नरवरिया का दावा है कि प्रदेश में करीब 9 प्रतिशत के करीब लोधी वोट बैंक है। करीब 65 विधानसभा हैं प्रदेश की जिसमें ज्यादातर बुंदेलखंड इलाके में हैं, जहां इस वोटर के वोट से जीत हार तय होती है। बुंदेलखंड के बाद ग्वालियर चंबल इलाके में ये समाज सियासत तय करने की स्थिति में है। लोकसभा सीटों की बात करें तो 29 में से 13 लोकसभा सीटों पर लोधी वोटर निर्णायक है जिनमें बालाघाट, सागर, खजुराहो, दमोह, विदिशा और नर्मदापुरम प्रमुख हैं। इसके अलावा बुंदेलखंड और चंबल की बहुत सी सीटें सीधे यूपी की सरहद से जुड़ती हैं। जहां से समाजवादी पार्टी की एंट्री बहुत आसान होगी। पिछले चुनाव में बिजावर सीट से राजेंद्र शुक्ला ने समाजवादी पार्टी के टिकट से जीत हासिल की थी। हालांकि बाद में सपा विधायक बीजेपी में शामिल हो गए। इस बार समाजवादी पार्टी दुगनी तैयारी से चुनावी मैदान में उतरने के मूड में नजर आ रही है।
यादव वोटर्स को प्रभावित करेगी समाजवादी पार्टी की एंट्री
सिर्फ लोधी वोटर्स ही नहीं समाजवादी पार्टी की एंट्री यादव वोटर्स को भी प्रभावित करेगी। ये वोट बैंक कांग्रेस-बीजेपी दोनों के लिए अहम है। मध्यप्रदेश में ओबीसी वर्ग बहुल राज्य है जिसमें यादव समाज की भागीदारी बड़ी मानी जाती रही है। यही वजह है कि बीजेपी और कांग्रेस की नजर इस वर्ग पर रहती है। दोनों ही पार्टियां विधानसभा चुनाव में यादव समाज से आने वाले प्रत्याशियों को जमकर मौका देती हैं। जबकि मंत्रिमंडल में भी इस वर्ग का अच्छा प्रतिनिधित्व रहता है। वर्तमान शिवराज सरकार में मोहन यादव और बृजेंद्र सिंह यादव मंत्री है। जबकि पूर्व की कमलनाथ सरकार में भी सचिन यादव, लाखन सिंह यादव और हर्ष यादव मंत्री थे। जबकि कांग्रेस नेता अरुण यादव की गिनती प्रदेश के शीर्ष नेताओं में होती है। यानी दोनों पार्टियां यादव समाज को प्रतिनिधित्व देती है जिससे प्रदेश में उनकी सियासी ताकत का अंदाजा लगाया जा सकता है। अब समाजवादी पार्टी की नजर इस वोट बैंक पर होगी। यादव वोट बंट सकता है। इसके साथ ही ओबीसी वोट बैंक को भी नया विकल्प मिल सकता है।
नए समीकरण से प्रभावित होगा विंध्य का बड़ा हिस्सा
बुंदेलखंड में समाजवादी पार्टी जितना जोर लगाएगी कांग्रेस को उतना ही फायदा होने की संभावना भी है। बुंदेलखंड का वोटर खासतौर से लोधी वोटर बीजेपी के साथ ही रहा है। जो अब पार्टी से नाराजगी के बावजूद भी कांग्रेस का रुख शायद न करे लेकिन समाजवादी पार्टी की दस्तक पर दरवाजा खोल सकता है। बुंदेलखंड के अलावा यूपी टच करने वाला विंध्य का बड़ा हिस्सा भी इस नए समीकरण से प्रभावित होगा। ग्वालियर चंबल में भी असर नजर आएगा। खतरा एक तरफा नहीं है। प्रीतम लोधी की कश्ती पर कांग्रेस, समाजवादी पार्टी समेत जयस और आप भी सवार हो सकती है।
प्रीतम लोधी की रणनीति से सियासी बवंडर
अब तक प्रीतम लोधी एक अंचल में सिमटे रहे। अब दावा 5 हजार लोगों के साथ पैदल मार्च करने का है। जिस रणनीति के साथ प्रीतम लोधी धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे हैं। उसे देखकर लगता है कि अभी और सियासी बवंडर आना बाकी हैं। इस मुद्दे पर खामोश रहकर बीजेपी इसे हवा देने के मूड में बिल्कुल नहीं है लेकिन आग सुलगाने के लिए बहुत से दल तैयार नजर आ रहे हैं। जो एक साथ प्रदेश के 6 फैक्टर्स पर असर डालेंगे। इसमें अहम होंगे विंध्य, बुंदेलखंड और ग्वालियर चंबल के सियासी समीकरण। ओबीसी वोट बैंक में लोधी और यादव अहम भूमिका में होने से बीजेपी के लिए अगले चुनाव में मैनेजमेंट करना परेशानी भरा हो सकता है।