सतना विधायक नारायण त्रिपाठी की 2023 में रीवा को विंध्य की राजधानी बनाने की घोषणा, सच- मैहर की जनता ही नहीं चाहती प्रदेश का बंटवारा

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Sunil Shukla
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सतना विधायक नारायण त्रिपाठी की 2023 में रीवा को विंध्य की राजधानी बनाने की घोषणा, सच- मैहर की जनता ही नहीं चाहती प्रदेश का बंटवारा

राहुल शर्मा, BHOPAL. सतना जिले की मैहर विधानसभा से बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी लगातार पार्टी गाइडलाइन से हटकर मध्य प्रदेश से अलग विंध्य प्रदेश बनाने की मांग करते रहे हैं। हाल ही में 4 दिसंबर को जोवा में एक सार्वजनिक कार्यक्रम नारायण त्रिपाठी ने एक नई विंध्य पार्टी बनाने की घोषणा तक कर डाली, साथ ही यह तक कह दिया कि यदि 2023 के चुनाव में विंध्य की सभी सीटें उनके पास आ जाएंगी तो वे रीवा को विंध्य की राजधानी बना देंगे। जबकि ठीक इसके उलट मैहर की जनता ही मध्य प्रदेश के टुकड़े कर अलग से विंध्य प्रदेश के गठन को सही नहीं मानती। ऐसे में ये सवाल खड़ा होना लाजिमी है कि विंध्य प्रदेश बनाने की मांग कितनी जायज है या ये सिर्फ राजनीति भर है। इसे लेकर द सूत्र ने विंध्य के अंतर्गत आने वाले सतना, रीवा और सीधी जिले में इसकी पड़ताल की। 





मैहर की जनता है विंध्य प्रदेश के गठन के खिलाफ





विधायक नारायण त्रिपाठी मैहर की जिस विधानसभा से अलग से विंध्य प्रदेश बनाने की हुंकार भरते हैं, वहां हमने करीब 10 लोगों से इस संबंध में बात की, सभी ने इसे मांग को गलत ठहराया। मैहर के शशांक श्रीवास्तव कहते हैं कि इसकी क्या गारंटी है कि विंध्य प्रदेश अलग होने से यह क्षेत्र तरक्की कर लेगा। जो राजस्व है वह भी तो प्रभावित होगा। वर्तमान प्रदेश में ही योजनानुसार काम किया जाए तो पहले जरूरत इसकी है। वहीं प्रकाश सोनी के अनुसार मांग उठाना गलत नहीं है, पर ये अपनी राजनीति अपने को चमकाने के लिए ऐसा कर रहे हैं। ये उनका अपना मुद्दा है, पब्लिक ऐसा कुछ नहीं चाहती है।





बीजेपी नेता बोले- ये नारायण त्रिपाठी की व्यक्तिगत सोच





सीधी से बीजेपी के पूर्व जिलाध्यक्ष डॉ. राजेश मिश्रा ने कहा कि विंध्य प्रदेश की मांग पार्टी की नहीं है, ये नारायण त्रिपाठी के व्यक्तिगत विचार है। हमारा मध्यप्रदेश पूरा है। सतना बीजेपी जिला कार्यसमिति सदस्य रवि सराफ ने कहा कि मध्यप्रदेश इतना बड़ा नहीं है कि उसे और विखंडित कर एक नए प्रदेश का गठन कर दिया जाए। यहां भरपूर विकास हो रहा है। 











समझिए, रह-रहकर क्यों उठती है विंध्य प्रदेश बनाने की मांग





मध्य प्रदेश का गठन 1 नवंबर 1956 को हुआ था, उसके पहले विंध्य प्रदेश का अपना अस्तित्व था। नए प्रदेश के गठन के बाद से इसका अस्तित्व समाप्त हो गया। उस दौरान विलय के समय इस क्षेत्र में जो संसाधन दिए जाने थे, वह नहीं मिले। जिसकी वजह से बार—बार विंध्य प्रदेश के पुनर्गठन की मांग उठती रहती है। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि जिन राज्यों का विलय हो रहा है, उनका गौरव बनाए रखने के लिए प्रदेश स्तर के संसाधन दिए जाएंगे। विंध्य प्रदेश के विलय के बाद इसकी राजधानी रहे रीवा में एक कृषि एवं पशु चिकित्सा के संचालनालय खोले गए। पूर्व में यहां हाईकोर्ट राजस्व मंडल अकाउंटेंट जनरल ऑफिस भी था, पर धीरे-धीरे इस का स्थानांतरण होता गया। ग्वालियर में हाईकोर्ट की बेंच अकाउंटेंट जनरल के प्रदेश स्तरीय कार्यालय खोले गए, इंदौर को लोकसेवा आयोग, वाणिज्यकर, हाईकोर्ट की बेंच, श्रम विभाग के मुख्यालय मिले। जबलपुर को हाईकोर्ट, रोजगार संचानालय मिला था। लेकिन रीवा केवल संभागीय मुख्यालय बनकर रह गया।





कांग्रेस सरकार में हुआ था संकल्प पारित





मध्य प्रदेश विधानसभा ने 10 मार्च 2000 को संकल्प पारित कर विंध्य प्रदेश के अलग राज्य गठित करने की मांग की गई थी। ये संकल्प विधानसभा में अमरपाटन के तत्कालीन विधायक शिव मोहन सिंह ने प्रस्तुत किया था। जिसका विंध्य के सभी विधायकों ने समर्थन किया था। सर्वसम्मति से पारित इस प्रस्ताव के बाद तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी ने केंद्र सरकार से कई बार इस पर विचार करने की मांग की, लेकिन केंद्र सरकार ने मध्यप्रदेश से अलग सिर्फ छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के प्रस्ताव को स्वीकृति दी। 





विंध्य के विधायकों तक का साथ नहीं 





विंध्य प्रदेश का गठन इतना आसान नहीं है। इसके लिए सबसे पहले जरूरी है कि सरकार इसे लेकर केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजे। अन्य विधायकों की छोड़िए...विंध्य के विधायक ही फिलहाल इसके पक्ष में नहीं है। ऐसे में विधानसभा के पटल पर संकल्प पारित होना ही मुकिन नहीं लगता। रीवा में बीजेपी विधायक और पूर्व मंत्री राजेंद्र शुक्ल ने कहा कि बीजेपी सरकार में विंध्य क्षेत्र में लगातार विकास हुआ है, हजारों करोड़ की सड़कें बनी, सिंचाई का रकबा बढ़ा, एयरपोर्ट की जमीन के लिए 200 करोड़ स्वीकृत हुए। विंध्य के विकास में पहले कसर रह गई थी पर अब कोई कसर छोड़ी नहीं जा रही है। विंध्य तेजी से बढ़ रहा है। हालांकि नारायण त्रिपाठी की मांग को लेकर उन्होंने कहा कि ये उनका अपना दृष्टिकोण है और उस पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करूंगा।











एडमिनिस्ट्रेशन चार्जेज ही 2.5 लाख करोड़, इतने में तो विकास की गंगा बह जाए 





भारत में 29वे राज्य के रूप में तेलंगाना का गठन हुआ। यहां प्रशासनिक ढांचे को खड़ा करने के लिए 2.5 ट्रिलियन रूपए खर्च हुए। मतलब एडमिनिस्ट्रेटिव चार्जेज ही 2.5 लाख करोड़ रूपए है। आईआईएम और वल्र्ड बैंक की रिपोर्ट भी यही कहती है कि जितने छोटी स्टेट होंगे उतना ज्यादा खर्चा बढ़ेगा और इकॉनोमी उतनी अनिश्चित होगी। जितनी बड़ी स्टेट होगी इकॉनोमी सरटननिटी उतनी स्टेबल रहेगी और खर्च उतना कम होगा। मध्य प्रदेश में ही 16% बजट एडमिनिस्ट्रेशन पर खर्च होता है। यदि एमपी को और डिवाइड कर दें तो जो दूसरी स्टेट बनेगी, उसमें भी 16 से 18 प्रतिशत जो बजट होगा वह एडमिनिस्ट्रेशन पर खर्च होगा। कुल मिलाकर अर्थशास्त्रियों की माने तो ये पैसा डेव्लपमेंट पर खर्च हो तो ज्यादा बेहतर होगा, न कि छोटी स्टेट का अलग से गठन करने से वहां विकास होगा।  





एक्सपर्ट व्यू : छोटा स्टेट करेंगे तो बढ़ जाएगी कॉस्ट





आईआईएम इंदौर के इंटरनेशनल बिजनेस स्ट्रेटजी के प्रोफेसर डॉ. प्रशांत सल्वान ने कहा कि छोटे स्टेट का गठन करेंगे तो उसको बेलैंस होने में...मिनिमम मेच्यूरिटी लेवल तक आने में ही सालों लग जाएंगे। आंध्रा और तेलंगाना में क्या हो रहा है। आंध्रा की तो केपिटल तक नहीं बनी है। सुप्रीम कोर्ट में मामला विचाराधीन है। दो केपिटल करना है या नहीं। छोटा स्टेट करेंगे तो कॉस्ट बढ़ेगा, इससे बेहतर है कि वहां विकास करें। आंध्रा और तेलंगाना में अभी तक इकोनॉमी का ग्रोथ नहीं हुआ है।



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