BHOPAL: सितंबर को जब नामीबिया से 8 और बाद में दक्षिण अफ्रीका से 12 चीते कूनो नेशनल पार्क में लाए गए थे, तब खूब चर्चा हुई थी कि एमपी टाइगर स्टेट के साथ चीता स्टेट भी बन गया। बड़े-बड़े दावे किये गए कि जो काम पिछली सरकारें पिछले 70 सालों में नहीं कर सकीं, वो इस सरकार ने कर दिखाया। उम्मीद भी जागी...कि दशकों बाद अब चीते एक बार फिर भारत में बसने लगेंगे। लेकिन चीतों को कूनो में छोड़े जाने के सिर्फ 9 महीने बाद ही हालात बदले हुए नजर आ रहे हैं। कुल 24 में से 4 चीतों की मौत हो चुकी है। और इससे अफ्रीकी चीतों को भारत में बसाने के महत्वाकांक्षी प्रयोग की सफलता पर ही सवाल उठने लगे हैं कि क्या चीतों की ये लगातार मौते प्रशासनिक हैं? साथ ही वन्यजीव संरक्षणवादियों और विशेषज्ञों ने कूनो नेशनल पार्क की वहन क्षमता और चीतों को बाड़े में रखने के फैसले पर भी सवाल उठाते हुआ आरोप लगाएं हैं कि चीता भारत में राजनीति का शिकार हो गया है! क्या है पूरा माजरा, जानने के लिए पढ़िए ये पूरी रिपोर्ट.....
2 महीने के भीतर 4 चीतों की मौत के बाद कूनो नेशनल पार्क में चीतों की मौजूदा स्थिति
सबसे पहले जानते हैं की फ़िलहाल कूनो नेशनल पार्क में चीतों की मौजूदा स्थिति क्या है। पहली खेप में पीएम मोदी के जन्मदिन पर 17 सितंबर 2022 को नामीबिया से 8 चीते भारत के कुनो नेशनल पार्क में लाए गए। इसके बाद दक्षिण अफ़्रीका से भी 12 चीते कूनो नेशनल पार्क में छोड़े गए। लेकिन इन 20 चीतों में से दो चीतों की मार्च और अप्रैल में मौत हो गई - पहले मादा चीता शासा की मौत 26 मार्च हुई। शासा नामीबिया से कूनो लाए गए 8 चीतों में से एक थी और किडनी की बीमारी से पीड़ित थी। तो वहीँ दूसरे चीते उदय की मौत अचानक ही 23 अप्रैल को हो गई। उदय दक्षिण अफ्रीका से कूनो नेशनल पार्क लाए गए 12 चीतों में से एक था। इसके बाद 9 मई को दक्षिण अफ्रीका से कूनो नेशनल पार्क लाइ गई मादा चीता दक्षा की मौत हो गई है। बताया गया कि दक्षा की मौत किसी बीमारी से नहीं बल्कि पार्क में मौजूद दो अन्य चीतों के साथ लड़ाई में हुई है। हालांकि इस बीच 29 मार्च को नामीबिया से आई फीमेल चीता सियाया (ज्वाला) ने 4 शावकों को जन्म भी दिया। लेकिन अब इनमें से भी एक शावक की मौत मंगलवार को हो गई। ये शावक कूनो पार्क प्रबंधन की मॉनिटरिंग के दौरान बीमार मिला और इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। कुल मिलाकर कूनो नेशनल पार्क में अब कुल 20 चीते (17 व्यस्क और 3 शावक) ही बचे हैं।
क्या चीते फंस गए हैं दलीय राजनीति के चक्कर में? राजनेताओं से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक का यही सवाल
अब 2 महीने के भीतर 4 चीतों मौत से मध्य प्रदेश का वन्य प्रबंधन चिंता में आ गया है। कारण है की लगातार हो रहीं चीतों की मौतों को जहाँ कुछ लोग प्रशासनिक हत्या बता रहें हैं, तो कुछ इन मौतों के लिए चीता प्रोजेक्ट में राजनीतिक दखल को जिम्मेदार मान रहें हैं। दरअसल, कूनो में हुई तीसरे चीते यानि दक्षा की मौत के मामले में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ट्वीट कर इसे प्रशासनिक हत्या करार दिया था। उन्होंने ट्वीट में लिखा कि कूनो में तीसरे चीते की मौत दरअसल प्रशासनिक हत्या है। उन्होंने कहा की केंद्र और MP की BJP सरकार ने केवल राजनीतिक प्रदर्शन के लिए चीतों का मजमा तो खड़ा कर दिया पर विदेशी चीतों को बीमारी व आपसी संघर्ष से मुक्त सुरक्षित माहौल नहीं दे पाई। ये जानवरों पर क्रूरता का स्पष्ट मामला है, इस मामले में दंडात्मक कार्रवाई होनी चाहिए। अब कोई राजनीतिक दाल ऐसा कहे तो उसे एक बार के लिए नज़रअंदाज किया भी जा सकता है, पर पिछले सप्ताह देश के सर्वोच्च न्यायालय यानि सुप्रीम कोर्ट ने भी लगातार हो रहीं चीतों की मौतों पर तल्ख़ टिप्पड़ी करते हुए केंद्र की भाजपा सरकार को फटकारा और सलाह दते हुए कहा कि कूनो राष्ट्रीय पार्क में चीतों के लिए जगह और संसाधन की कमी है, इसलिए राजनीति से ऊपर उठकर कूनो से कुछ चीतों को कहीं और शिफ्ट करने पर विचार किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संजय करोल की बेंच ने तो ये भी टिप्पणी कर दी कि सरकार चीतों की शिफ्टिंग के लिए राजस्थान में कोई अच्छी जगह क्यों नहीं ढूंढ रही? कहीं ऐसा तो नहीं कि चूंकि राजस्थान में विपक्षी दल की सरकार है, लिहाजा आप वहां चीते भेजना नहीं चाहते। सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ हिदायत दी की चीतों के मामले में दलीय राजनीति आड़े नहीं आना चाहिए।
कूनो नेशनल पार्क पर क्षमता से ज्यादा दबाव
दरअसल, MP फारेस्ट डिपार्टमेंट के ही अधिकरियों का भी कहना है कि चीता परियोजना के अनुसार 748 वर्ग किमी के कोर क्षेत्र (बफर जोन 487 वर्ग किलोमीट) वाला कूनो पार्क अपने क्षेत्र में 21 चीतों को समायोजित कर सकता है। लेकिन ये संख्या भी चीते के प्रजनन करने के बाद कि संख्या होनी चाहिए, जबकि कुनो में तो पहले से ही चीतों कि ये संख्या लाकर रख दी गई है। तो जब चीते प्रजनन करके अपनी संख्या बढ़ाएंगे तो कुनो पर और भी दबाव बढ़ेगा। यानि अगर चीतों की आबादी सुरक्षित रूप से बढ़ानी है, तो इन चीतों को देश में 3-4 अलग-अलग जगह रखना बहुत आवश्यक है। वही हाल के शोध भी इस बात को पुख्ता करते हैं। इनके अनुसार तो शिकार घनत्व के आधार पर प्रति 100 वर्ग किमी में सिर्फ 1 चीता ही रह सकता हैं, यानि पूरे कूनो पार्क में सिर्फ 7 चीते ही रह सकते हैं। ओबान चीता और आशा चीता का बार-बार पार्क की सीमा से भागकर बाहर जाना भी इसका उदाहरण हैं की कुनो सभी चीतों को रखने के लिए सक्षम नहीं है - ओबान (पवन) बार-बार कूनो नेशनल पार्क क्षेत्र की सीमा भागकर कभी गांवों में, तो कभी उत्तर प्रदेश की सीमा में घुस रहा था और आशा चीता भी ढाई माह में वह तीसरी बार बाहर भहर निकल गई है। अब इस उलझन से बाहर निकलने का एक ही तरीका यह है कि कुछ चीतों को अन्य नेशनल पार्क में स्थानांतरित कर दिया जाए, जिन्हें चीता परियोजना के लिए चुना गया था।
आखिर मुकुंदरा टाइगर रिजर्व क्यों नहीं?
शायद उपरोक्त कारणों से ही चीता एक्शन प्लान की शुरुआत में ही प्लान में कूनो के अलावा 4 अन्य लैंडस्केप - राजस्थान के कोटा जिले के मुकुंदरा टाइगर रिजर्व, मध्य प्रदेश के नीमच-मंदसौर जिले के में बसे गांधी सागर अभयारण्य और सागर, दमोह, नरसिंहपुर जिले में बसे नौरादेही अभयारण्य को भी प्राथमिकता में रखा गया था। जहाँ मुकंदरा की कूनो से नजदीकी और उसमें पहले से ही 82 किमी लंबा चेन लिंक फेंसिंग बाड़ा मौजूद होना इसे दूसरे विकल्पों से बेहतर बनाता है। वहीँ नौरादेही और गांधीसागर अभयारण्य ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ सौ साल पहले तक चीते देखे गए हैं। यानि प्लान के अनुसार उपरोक्त 4 जगहों को भी चीतों के अतिरिक्त रहवास के रुप में तैयार किया जाना था।
मुकुंदरा टाइगर रिजर्व: राजस्थान सरकार पहले भी खुद ऐसा प्रस्ताव नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (NTCA) को दे चुकी है। जुलाई 2020 में जिस वक्त नामीबिया के साथ चीतों को भारत लाने के लिए MoU पर साइन हुआ था, उसके ठीक बाद ही 8 अगस्त 2020 को राजस्थान के फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने NTCA को एक पत्र लिखा था और कुछ चीतों को मुकुंदरा में लाने का प्रस्ताव दिया था। हालांकि इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया था। NTCA ने 24 अगस्त 2020 को अपने जवाब में लिखा था कि टाइगर रिजर्व के उद्देश्य अलग हैं। बाघों की आबादी बढ़ाने का प्रयास जारी है। ऐसे में इस समय मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में चीतों को बसाने के प्रस्ताव पर कोई सहमति नहीं बन पाई।
गांधी सागर अभयारण्य: टाइगर एक्शन प्लान में मंदसौर की गांधीसागर वाइल्ड लाइफ सेंचुरी में प्रे-बेस बढ़ाने का काम हो गया है, लेकिन यहाँ अभी फेसिंग नहीं हो पाई है ...इसकी वजह से चीतों का आबादी से टकराव का खतरा है। फेंसिंग के काम को पूरा करने में कम-से-कम 1 साल लगेगा।
नौरादेही अभयारण्य: प्लान के अनुसार नौरादेही अभयारण्य का दायरा बढ़ाकर टाइगर रिजर्व बनाया जाना था क्योंकि नए चीते देने के लिए दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया के विशेषज्ञों ने संरक्षित क्षेत्र का दायरा बढ़ाने की शर्त रखी है। इसलिए राज्य सरकार ने नरसिंहपुर जिले के रानी दुर्गावती अभयारण्य को मिलाकर नौरादेही अभयारण्य के संरक्षित क्षेत्र का दायरा 1224 वर्ग किमी करने की तैयारी बताई थी। अब इसके लिए राज्य वन्य प्राणी बोर्ड इसकी मंजूरी भी मिल चुकी है। परन्तु नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य को पूरी तरह वैकल्पिक स्थल के रूप में विकसित करने में 1 से 2 साल लगेंगे जाएंगे।
'प्रशासनिक देरी की वजह से चीतों को रिलीज़ नहीं किया जा पा रहा'
चीतों की मौत के बीच मध्य प्रदेश के चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन जेएस चौहान से द सूत्र कि बातचीत में पता चला था कि MP वन विभाग ने पिछले कुछ महीनों के दौरान NTCA से कई बार कुछ चीतों को दूसरी जगह शिफ्ट करने का अनुरोध किया है। चौहान खुद मानते हैं कि कूनों में जगह की कमी तो है ही, साथ ही लॉजिस्टिक्स भी एक बड़ी समस्या है। उन्होंने बताया कि गांधी सागर अभयारण्य या नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य जैसे स्थलों को वैकल्पिक स्थलों के रूप में विकसित करने में 1 से 3 साल लग जाएंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि मध्य प्रदेश के वन विभाग के पास फण्ड की कमी हैं।
जे एस चौहान: "हम खुद नहीं चाहते कि चीतों को और ज्यादा समय बाड़े में रखा जाए। हम चाहते हैं कि उनको खुले में छोड़ दिया जाए। पर प्रशासनिक प्रक्रियाओं में देरी की वजह से चीतो को रिलीज़ नहीं किया जा पा रहा हैं। चीता एक्शन प्लान के अनुसार हमें अल्टरनेटिव साइट्स के बहुत बड़े एरिया को फेंस करने की जरुरत है। हम अभी गांधीसागर में फेंसिंग करने और प्रे-सप्पलीमेंट के लिए तैयारी कर रहे हैं। अगर गांधीसागर में छोटी जगह को ही फेंस करने में 20-25 करोड़ लग जा रहे हैं तो 200-250 किलोमीटर क्षेत्र को फेंस करने में काफी ज्यादा पैसा लगेगा। ऐसे ही अगर नौरादेही की बात करें तो उसमें एक बहुत बड़े एरिया को फेंस करने की जरुरत है, जिसमे काफी रिसोर्सेस और फण्ड लगेगा। ये रिसोर्सेस और फंड्स आज कि स्थिति में हमारे पास नहीं है। इसलिए हमने भारत सरकार को इसके लिए रिक्वेस्ट किया है। उनसे कूनो नेशनल पार्क में मौजूद चीतों के लिए एक वैकल्पिक साइट तैयार करने के बारे में कहा है, जिससे कूनो पर बढ़ते दबाव को कम किया जा सके।" जे एस चौहान की बात से साफ़ जाहिर हो रहा है कि NTCA में MP के वन अधिकारियों कि सुनी ही नहीं जा रही है।
वन अधिकारी और वनमंत्री के चीतों कि शिफ्टिंग को लेकर विरोधाभासी बयान
एक और बात यह गौर करने लायक है की भारत के इतने महत्वकांक्षी और बहुप्रचारित चीता परियोजना को लेकर केंद्र और राज्य स्तर पर अधिकारियों में ही नहीं मंत्री और वन अधिकारियों में भी समन्वय की साफतौर पर कमी है। ऐसा कहने के पीछे भी एक ठोस कारण है वन अधिकारी और वनमंत्री विजय शाह के चीतों कि शिफ्टिंग को लेकर विरोधाभासी बयान। जहाँ वन अधिकारी साफ़ कह रहें हैं कि चाहे गांधीसागर हो या फिर नौरादेही अभ्यारण्य, किसी भी स्थिति में ये दोनों ही जगहें अल्टेरनेटिव साइट्स के तौर पर तैयार होने में 1 से 2 साल का वक़्त लेंगी। पर प्रदेश के वन मंत्री अलग ही बयां देते हुए नज़र आ रहें है। उनका कहना है कि 6 महीने में ही चीतों को गाँधीसागर अभ्यारण्य में शिफ्ट कर दिया जाएगा।
चीता शिफ्टिंग के लिए मुकुंदरा टाइगर रिजर्व बेस्ट: एड्रिअन टोडरिफ, वेटरनरी-वाइल्डलाइफ स्पेशलिस्ट,चीता प्रोजेक्ट
द सूत्र ने बात की चीता प्रोजेक्ट के वेटरनरी-वाइल्डलाइफ स्पेशलिस्ट एड्रिअन टोडरिफ से, तो उन्होंने भी सभी चीतों को एक ही जगह यानी कूनो नेशनल पार्क में ही रखने पर संदेह व्यक्त किया। एड्रिअन टोडरिफ ने भी इस बात पर जोर दिया है कि ये जरुरी है कि चीतों को अब खुले में छोड़ दिया जाए। और ऐसा करने के लिए कुनो के अलावा अन्य विकल्प जैसे मुकुंदरा टाइगर रिजर्व, गांधी सागर अभयारण्य और नौरादेही अभयारण्य को अल्टेरनेटिव साइट्स के तौर पर डेवेलप किया जाए। ये पूछने पर कि उपरोक्त तीनों जगहों में से बेस्ट विकल्प क्या है तो उन्होंने भी राजस्थान के मुकुंदरा टाइगर रिजर्व का ही नाम लिया। उनका कहना है कि गांधीसागर अभ्यारण्य का ग्रासलैंड काफी डिग्रेडेड है।
'पोलिटिकल इंटरफेरेंस की वजह से ये प्रोजेक्ट सफर कर रहा है'
एड्रिअन टोडरिफ के अनुसार कहीं न कहीं पोलिटिकल इंटरफेरेंस की वजह से ये प्रोजेक्ट सफर कर रहा है..और इसका असर सिर्फ इस चीता ट्रांसलोकेशन प्रोजेक्ट पर ही नहीं बल्कि दुनिया के बाकी ऐसे प्रोजेक्ट्स पर भी पड़ेगा। साथ ही इस तरह के लगातार पोलिटिकल इंटरफेरेंस से चीता प्रोजेक्ट की तीन मेंबर्स पर भी काफी असर पड़ता है और वो बेहद दबाव में काम करते हैं कि कहीं उनसे कोई गलती न हो जाए। एड्रिअन ने कहा कि वो उम्मीद करते हैं कि पोलिटिकल पार्टीज आपसी मतभेद दूर करते हुए चीता प्रोजेक्ट कि बेहतरी के लिए काम करेंगी। साथ ही सरकार SC के कमेंट को भी गंभीरता से लेगी और चीतों के लिए वैकल्पिक साईट को जल्द ही तैयार करेगी गांधीसागर।
यानि बीजेपी VS कांग्रेस की लड़ाई में चीते हार रहे अपनी जान!
चुनावी माहौल वाले मध्य प्रदेश में भले ही चीता वोटर नहीं है, पर वोटबैंक जरूर बन गया है। और इसीलिए चीता सियासत का हिस्सा भी है। दरअसल, इस साल के अंत में मध्यप्रदेश और राजस्थान, दोनों में ही विधानसभा चुनाव है। शिवराज सिंह चौहान की भाजपा सरकार के लिए चीता प्रोजेक्ट को बड़ी उपलब्धि है। और जाहिर है कि अगर चुनाव से पहले कुछ चीते राजस्थान भेज दिए गए और उसमें से कोई मरा नहीं और एक-दो मादा चीता गर्भवती हो गईं। तो राजस्थान की अशोक गहलोत वाली कांग्रेस सरकार भी इसका चुनावी लाभ उठाने से नहीं चूकेगी। पर MP की BJP सरकार के साथ दिक्कत ये है कि वो राजस्थान को चीता देना नहीं चाहती और और मध्य प्रदेश के खुद के अन्य पार्क अभी तैयार नहीं है, जहाँ इन चीतों में से कुछ को शिफ्ट किया जा सके। यानि 2023 के अंत या विधानसभा चुनावों तक सभी चीतों को कूनो में ही रहेंगे। कुल मिलाकर MP और राजस्थान या कह लें बीजेपी और कांग्रेस कि इस चुनावी सियासत कि बलि चढ़ रहें हैं भारत लाए गए विदेशी चीते!