इंदौर में एक-एक सीट 33 साल से विजयवर्गीय, 30 साल से गौड़ परिवार तो 43 साल से 3 पटेलों के पास, 51 साल से एक टिकट जोशी फैमिली के नाम

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Neha Thakur
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इंदौर में एक-एक सीट 33 साल से विजयवर्गीय, 30 साल से गौड़ परिवार तो 43 साल से 3 पटेलों के पास, 51 साल से एक टिकट जोशी फैमिली के नाम

संजय गुप्ता, INDORE. मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव की गर्मी तेज होने लगी है और इसी दौरान बीजेपी में गुजरात से लेकर कर्नाटक फार्मूले की बात हो रही है। तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस भी टिकट बांटने का तरीका ढूंढ रही है। चुनाव में परिवादवाद, भाई-भतीजावाद की लगातार बात उठती है। खासकर बीजेपी तो परिवार वाद के खिलाफ ही राजनीति करती आई है। लेकिन इंदौर की सीटों की बात करें तो यहां कई सीटें लगातार एक ही परिवार के पास है, यह चौंकाने वाली बात जरूर लगती है, लेकिन इतिहास पर नजर डालें तो  इंदौर की 9 विधानसभा सीट में से 1 सीट पर 33 साल से बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय के परिवार के पास बनी हुई है। इसी तरह गौड़ परिवार के पास 30 साल से एक अन्य सीट बनी हुई है। उधर देपालपुर में 3 पटेल पिता-पुत्र की जोड़ी ही चुनाव लड़ती आ रही और वही विधायक बन रहे हैं। इसी तरह महू मे भेरूलाल पाटीदार परिवार है तो इंदौर में जोशी परिवार भी है। आईए देखते हैं किस तरह से चल रहा है इंदौर में जमकर परिवारवाद।



देपालपुर बीजेपी, कांग्रेस दोनों में पिता-पुत्र की जोड़ी



यह इंदौर की सबसे पुरानी विधानसभा सीट है, यहां तीन पटेल पिता-पुत्र की जोड़ी ही 43 साल से चुनाव लड़ रही है और विधायक बन रही है। बीजेपी से निर्भय सिंह पटेल और उनके पुत्र मनोज पटेल की जोड़ी, तो कांग्रेस रामेश्वर पटेल और पुत्र सत्यनारायण पटेल के साथ कांग्रेस से ही जगदीश पटेल और उनके पुत्र व वर्तमान विधायक विशाल पटेल।



पटेल परिवार का टिकट पर वचर्स्व



अब देखिए 1980 में बीजेपी से निर्भय सिंह पटेल विधायक बनते हैं, फिर 1990 में कांग्रेसी रामेश्वर पटेल चुनाव जीतते हैं, 1990 और 1993 में फिर निर्भय सिंह जीतते हैं, 1998 में जगदीश पटेल चुनाव जीतते हैं। साल 2003 में दो नए युवा चेहरे आते हैं मनोज पटेल और सत्यनारायण पटेल, इसमें मनोज पटेल बीजेपी नेता निर्भय सिंह के बेटे हैं, तो सत्यनारायण पटेल रामेश्वर पटेल के। साल 2008 में सत्यनारायण चुनाव जीतते हैं तो फिर 2013 में मनोज जीतते हैं, उधर 2018 में कांग्रेस के पूर्व नेता व विधायक जगदीश पटेल के बेटे विशाल मैदान में आते हैं और मनोज को हराकर चुनाव जीतते हैं। यानि इस सीट से चुनाव निर्भय सिंह पटेल के परिवार ने ही बीजेपी से लड़ा और कांग्रेस से जगदीश पटेल या फिर रामेश्वर पटेल के परिवार के पास टिकट गया।



विजयवर्गीय पिता-पुत्र के पास 33 साल से एक सीट



बीजेपी के वर्तमान राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय साल 1990 में पहली बार विधानसभा चार से विधायक बने, फिर 1993, 1998, 2003 में विधानसभा दो से जीते, फिर यह सीट उन्होंने मित्र रमेश मेंदोला के लिए खाली कर दी और महू में 2008 व 2013 में चुनाव जीते। साल 2018 में बेटे आकाश के लिए सीट खाली की और आकाश विधानसभा तीन से विधायक बन गए। यानि उनके परिवार के पास इंदौर की एक सीट 1990 से ही है। 



51 साल से जोशी चाचा-भतीजे के पास कांग्रेस का एक टिकट



कांग्रेस के जोशी परिवार की बात करें तो महेश जोशी कांग्रेस के धाकड़ नेता रहे हैं। वह 1972 में विधानसभा एक से विधायक बने, 1977 में हार गए लेकिन 1980 में विधानसभा तीन से जीते, 1985 में भी जीते, लेकिन 1990 में हार गए। साल 1998 में उनके भतीजे अश्विन जोशी मैदान में आ गए और चुनाव जीते, वह 2003 और 2008 में भी जीते, साल 2013 में उषा ठाकुर से तो फिर 2018 में आकाश विजयवर्गीय से हारे। अब उनके भतीजे पिंटू जोशी साल 2023 में टिकट की दावेदारी कर रहे हैं, वह खुद तो है ही दावेदार। यानि 51 सालों से 1972 से कांग्रेस का एक टिकट जोशी परिवार के नाम पर ही है।



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बीजेपी और कांग्रेस दोनों का शुक्ला परिवार



शुक्ला परिवार का भी इंदौर की राजनीति में गहरी पकड़ रही है। विष्णुप्रसाद शुक्ला (बडे़ भैया) जनसंघ के नेता रहे हैं। साल 1985 और 1990 में चुनाव लड़े, लेकिन जीत नहीं सके। साल 2008 में उनके बेटे संजय शुक्ला कांग्रेस से लडे़ हार गए, लेकिन साल 2018 में वह चुनाव जीत गए। उधर उनके ही परिवार के गोलू शुक्ला बीजेपी से सक्रिय है और वह आईडीए में उपाध्यक्ष हैं।



गौड़ परिवार की 30 साल पुरानी पकड़



एबीवीपी से राजनीति में आए लक्ष्मणसिंह गौड़ (लखन दादा) साल 1993 में विधानसभा चार से विधायक बने और फिर 1998, 2003 में चुनाव जीते, इसके बाद उनकी पत्नी 2008, 2013 और 2018 से लगातार चुनाव जीत रही है, वह महापौर भी रह चुकी है। अब 30 साल से सक्रिय उनके परिवार में बेटे एकलव्य को टिकट दिलाने की कवायद चल रही है।



महू का पाटीदार परिवार



इंदौर की राजनीति में महू के पाटीदार परिवार का भी जिक्र जरूरी है। भेरूरलाल पाटीदार 1980 में पहली बार चुनाव लड़े, 1985 में  पहली बार विधायक बने और फिर 1990 और 1993 में भी चुनाव जीते, लेकिन 1998 और 2003 में अंतर सिंह दरबार कांग्रेस से चुनाव हार गए। इसके बाद साल 2008 में यह सीट उनकी बेटी कविता पाटीदार की जगह कैलाश विजयवर्गीय के पास चली गई। बदले में कविता जिला पंचायत अध्यक्ष हो गई और हाल ही में उन्हें पार्टी ने राज्यसभा सांसद बना दिया है। कांग्रेस से भी यहां साल 1998 से अंतर सिंह दरबार ही लगातर चुनाव लड़ रहे हैं और उनकी भी हार की हैट्रिक हो चुकी है।



सिलावट अकेले ही 38 साल से लड़ रहे चुनाव 



इस परिवारवाद पर अकेले पहलवान कहे जान वाले तुलसी सिलावट ही भारी पड़ते हैं, वह इकलौते व्यक्ति है जो साल 1985 से यानि 38 साल से अकेले चुनाव लड़ते आ रहे हैं। वह सांवेर सीट से ही लगातार चुनाव लड़ रहे हैं। साल 2018 तक वह कांग्रेस से चुनाव लड़ते रहे, फिर बीजेपी में आ गए और साल 2020 के उपचुनाव में बीजेपी से इसी सीट से चुनाव लड़े और जीते और अब फिर 2023 के लिए ताल ठोक रहे हैं, साथ ही अपने बेटे को भी उन्होंने अपनी विधानसभा में सक्रिय कर दिया है।


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