देश में टाइगर्स की ग्रोथ दर 33% से गिरकर 6.7% हुई, MP में इसमें 38% की गिरावट! राज्य में टाइगर्स की बढ़ती मौतें, पोचिंग है कारण?

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Ruchi Verma
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देश में टाइगर्स की ग्रोथ दर 33% से गिरकर 6.7% हुई, MP में इसमें 38% की गिरावट! राज्य में टाइगर्स की बढ़ती मौतें, पोचिंग है कारण?

BHOPAL. राज्यों में चुनाव हो और सरकारें जनमानस के इंट्रेस्ट से जुड़े मुद्दों या आंकड़ों का फायदा न उठाएँ, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। ऐसा ही एक मुद्दा हैं टाइगर्स की जनसँख्या का! हाल ही में प्रोजेक्ट टाइगर के 50 साल पूरे होने के मौके पर चुनावी राज्य कर्नाटक में आयोजित एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने लैंडस्केप आधारित टाइगर्स की 'अनुमानित' संख्या जारी की। जारी एस्टिमेट्स के हिसाब पूरे भारत में करीब ये 200 टाइगर्स का इजाफा हुआ है और 5 राज्यों वाले सेंट्रल लैंडस्केप, जिसमें MP भी आता हैं - में 134 टाइगर्स बढ़े हैं। आंकड़े जारी करने के दौरान पीएम मोदी ने कहा कि इन आंकड़ों से हर भारतीय को खुश होना चाहिए...लेकिन क्या वाक़ई ऐसा हैं? दरअसल, जारी की गई टाइगर्स के आंकड़ों में कुछ ऐसा भी छुपा हैं, जिसपर सरकार और वन विभाग को बेहद चिंता करने की जरुरत हैं। आंकड़ों की वाहवाही से इतर द सूत्र आपको दिखाएगा टाइगर एस्टिमेट्स की देश और मध्य प्रदेश से जुड़ी एक अलग सच्चाई....





देश में टाइगर्स की संख्या इस समय 3167 और सेंट्रल लैंडस्केप (MP एवं 6 अन्य राज्य) में 1161 





9 अप्रैल, 2023 को देश में प्रोजेक्ट टाइगर के 50 साल पूरे हुए। इस मौके पर मैसूर में 3-दिवसीय कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आल इंडिया टाइगर एस्टीमेट-2022 (AITE)के आंकड़े जारी किये। ये एस्टिमेट्स लैंडस्केप आधारित हैं, जुलाई में विस्तृत रिपोर्ट आएगी, जिसमें राज्यवार आंकड़े घोषित होंगे। लैंडस्केप आधारित आकड़ा जारी करते हुए पीएम मोदी ने बताया कि आंकड़े सकारात्मक हैं और देश में टाइगर्स की संख्या इस समय 3 हजार 1 सौ 67 है। ये पिछली गणना की तुलना में 200 बाघों का इजाफा हुआ है....क्योंकि साल 2018 में देश में 2967 बाघ पाए गए थे। इन आंकड़ों के जारी होने के बाद से ही प्रधानमंत्री मोदी, भारत सरकार, NTCA और वन विभाग - सभी अपनी पीठ ठोकते नज़र आ रहे हैं। लेकिन AITE में मौजूद आंकड़ों को जरा ध्यान से देखा जाए और अनालाइस किया जाए तो ज्यादा खुश होने जैसे कोई बात है नहीं! ऐसा इसलिए क्योंकि एस्टिमेट्स में टाइगर्स की संख्या में ओवरआल बढ़ोत्तरी तो हुई हैं लेकिन टाइगर की बढ़ोत्तरी की दर देश में 33% से गिरकर 6.7% हो गई हैं और सेंट्रल लैंडस्केप जिसमे MP भी आता है, उसमें इस दर में 38 फीसदी की बड़ी गिरावट हुई हैं! टाइगर्स की संख्या में बढ़ोत्तरी की दर में कमी को इस तरह समझिये:





देश और MP में टाइगर्स की गिरती ग्रोथ दर





भारत में रॉयल बंगाल टाइगर की आबादी का पता लगाने के लिए हर 4 साल में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA-नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथार्टी) भारत भर में बाघों की जनगणना करता है। आल इंडिया टाइगर एस्टिमेट्स के लिए NTCA ने उन सभी 20 राज्यों में मौजूद टाइगर रीसर्व्स का सर्वे किया, जहाँ बाघ पाए जाते हैं। इन 20 राज्यों को 5 लैंडस्केप्स यानी शिवालिक हिल्स और गंगेटिक प्लेन्स लैंडस्केप, सेंट्रल इंडियन हाइलैंड्स और ईस्टर्न घाट्स लैंडस्केप, वेस्टर्न घाट्स लैंडस्केप, नार्थ-ईस्टर्न हिल्स और ब्रह्मपुत्र प्लेन्स लैंडस्केप, सुंदरबन्स  लैंडस्केप में बाँटा गया। और इस रिपोर्ट के अनुसार करीब 32,588 स्थानों पर लगाए गए कैमरों से बाघों की 97,399 तस्वीरें मिली। जिनकी मादा से की गई टाइगर्स की गणना इस तरह निकली।

















लैंडस्केप



2006



ग्रोथ रेट



2010



ग्रोथ रेट



2014



ग्रोथ रेट



2018



ग्रोथ रेट



2022









शिवालिक हिल्स



297



18.8%



353



37%



485



33%



646 



24.5%



804









सेंट्रल इंडियन



601



0%



601



14.5%



688



50%



1033



12%



1161









वेस्टर्न घाट्स



402 



32%



534



45%



776



26.5%



981



(-16%)



824









N-E हिल्स



100



48%



148



35.8%



201



8.9%



219



(-11.4%)



194









सुंदरबन्स 



NA



NA



70



8.5%



76



15.8%



88



13.6%



100









INDIA 



1411



21%



1706



30%



2226



33%



2967



6.7%



3167











इन आंकड़ों के अनुसार साल 2006 में देश में टाइगर्स की जनसँख्या 1,411 थी, साल 2010 में ये बढ़कर 1,706 हो गई,  2014 में 2,226 टाइगर्स पाए गए और साल 2018 में ये 2,967 हो गए। जबकि ताज़ा 2022 के एस्टिमेट्स  के अनुसार देश में अब 3,167 टाइगर्स हैं। यानी 2018 के एस्टिमेट्स में टाइगर्स की संख्या में बढ़ोत्तरी की जो दर थी वो 33% थी। जबकि 2022 के आंकड़ों में ये दर गिरकर 6.7% पर आ गई हैं ...दूसरे शब्दों में कहें तो अगर पिछले 20 सालों का रिकॉर्ड देखें तो पहले के मुकाबले देश में बाघों के बढ़ने के रफ़्तार पहली बार इतनी कम हुई हैं।





वैसे तो सभी 5 लैंडस्केप में ये दर गिरी हैं, लेकिन हम बात करें अपने राज्य मध्य प्रदेश की। जो कि सेंट्रल लैंडस्केप में आता हैं, ये गिरावट काफी चिंताजनक हैं। इन आंकड़ों के अनुसार साल 2006 में सेंट्रल लैंडस्केप में टाइगर्स की जनसँख्या 601 थी। साल 2010 में भी संख्या 601 ही रही, 2014 में ये संख्या 14.5 फीसदी बढ़कर 688 हो गई और साल 2018 में ये संख्या  50% की तेज़ रफ़्तार से बढ़ते हुए 1033 हो गई। जबकि ताज़ा 2022 के एस्टिमेट्स  के अनुसार सेंट्रल लैंडस्केप में अब 3,167 टाइगर्स हैं, यानी 2022 के एस्टिमेट्स में टाइगर्स की संख्या में बढ़ोत्तरी की दर गिरकर 12% पर आ गई हैं। इस तरह बाघों के बढ़ने के दर सेंट्रल लैंडस्केप में 38 फीसदी कम हुई हैं। 





सेंट्रल लैंडस्केप में वैसे तो महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और राजस्थान जैसे और भी राज्यों के टाइगर रीसर्व्स आते हैं...लेकिन हम बात मध्य प्रदेश की इसलिए कर रहें हैं क्योंकि मध्य प्रदेश पूरे देश की टाइगर जनसँख्या में सबसे ज्यादा 20% का कंट्रीब्यूशन करता हैं, जहाँ पर 2018 के हिसाब से अभी तक 526 टाइगर्स होने का दावा हैं। इसलिए अगर सेन्ट्रल लैंडस्केप में बाघों के बढ़ने के दर में गिरावट हैं तो इसका सबसे बड़ा इशारा मध्य प्रदेश की ही तरफ हैं।





अफसरों और एक्सपर्ट्स ने बताए अलग-अलग कारण





इस पूरे मुद्दे के पर द सूत्र ने बात की वाइल्डलाइफ एक्टिविस्ट अजय दुबे से, जिन्होंने सेंट्रल लैंडस्केप में बाघों के बढ़ोत्तरी में आई इस कमी को  सीधे-सीधे मध्य प्रदेश में हो टाइगर्स की चिंताजनक मौतों/शिकार से जोड़ा है....सुनिए:





सवाल: सेंट्रल लैंडस्केप में टाइगर्स की ग्रोथ की दर में कमी के क्या कारण हो सकते हैं?





अजय दुबे: "सेंट्रल लैंडस्केप वाले मध्य प्रदेश में टाइगर्स की ग्रोथ की दर में कमी चिंता का कारण हैं। इसका बहुत बड़ा कारण हैं टाइगर्स की अप्राकृतिक मौत। पोचिंग बैन करने के लिए वाइल्डलाइफ एक्ट 1972 में लागू किया गया था, और 1973 में टाइगर के संरक्षण के लिए प्रोजेक्ट टाइगर शुरू हुआ लेकिन आज 50 सालों बाद भी  MP में आज भी टाइगर्स की पोचिंग यानी शिकार जारी है। हम पिछले 12 सालों से टाइगर्स की पोचिंग और उनकी अप्राकृतिक मौत में नंबर 1 बने हुए हैं। MP में 40-40 टाइगर सालभर में मार दिए जा रहें हैं! इसमें 18-24 टाइगर्स का तो अवैध शिकार हो रहा है। सैटेलाइट और रेडियो कालर पहने टाइगर्स तक को मारा जा रहा है। एक-एक महीने टाइगर गायब रहता है। किसी भी अधिकारी की जिम्मेदारी ही तय नहीं हो रही है। जबकि NTCA का नियम है कि हर टाइगर की मौत पर जिम्मेदार अधिकारी की जवाबदेही तय की जाए। साफ़ है सरकार टाइगर्स को बचाने के लिए कड़े कदम उठाने में फेल साबित हुई है। हमारे यहाँ आज भी स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फ़ोर्स नहीं है। न ही हम इन टाइगर्स के रहने के लिए जंगल नहीं बचा पा रहें हैं...पेड़ कट रहें हैं, जंगल की जमीनों पर अवैध कब्जा हो रहा है। वाइल्डलाइफ ट्रेंड ऑफिशल्स नहीं है, मेडिकल फैसिलिटी नहीं है।बाघों के जिंदा रहने के लिए जंगल में हिरण, नीलगाय, सूअर आदि शाकाहारी जानवरों की बड़ी तादाद बह बेहद जरूरी है। इन जानवरों के अवैध शिकार पर भी रोक लगाना बड़ी चुनौती बना हुआ है।" 







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दिसंबर, 2022 में पन्ना जिले में लगभग दो वर्ष की उम्र का एक नर बाघ पेड़ के फंदे से लटका हुआ पाया गया। (फोटो | ईपीएस)







"सरकार ने टाइगर एस्टीमेट पर जिस तरह से ख़ुशी दिखाई है और आंकड़ों के साथ जो खेल किया है। वो सरकार का मज़ाक़ और लापरवाही दिखाती है। सरकार ने तो ये तक मीडिया में कुछ बयान तो इस तरह दिए हैं कि MP भर में करीब 181 टाइगर्स बढ़े हैं। पर ऐसा कैसे हो सकता है कि जब जारी हुए आल इंडिया टाइगर्स एस्टिमेट्स में पूरे देश में ही 200 टाइगर्स बढ़े हैं, तो अकेले MP में 181 टाइगर्स कैसे बढ़ जाएंगे? क्या इसका मतलब बाकी पूरे भारत में सिर्फ 19 टाइगर्स ही बढ़ें? मेरे हिसाब से ग्राउंड रियलिटी देखें तो MP में सिर्फ 80-90 टाइगर्स ही बढ़ें हैं। एक मुख्य बात और कि 1972 में देशभर में करीब 1800 टाइगर्स थे और आज 3167 टाइगर्स हैं...यानी 50 सालों में टाइगर्स की संख्या डबल भी नहीं हो पाई...और टाइगर स्टेट का दर्ज़ा जो  MP के पास है.. MP में जो टाइगर्स हैं वो अपनी किस्मत से है। MP के टाइगर की संख्या कोई ख़ास बढ़ी नहीं है। वर्ष 2000 में जब छत्तीसगढ़ साथ था..तब MP के पास 700 टाइगर्स थे...आज 526 है....यानी अभी भी हम अपना पुराना दर्ज़ा नहीं प्राप्त कर पाए हैं।"





"हम टाइगर स्टेट का दर्जा पाने की लड़ाई में कर्नाटका से कम्पेरिज़न करते हुए कहते हैं कि हम उनसे आगे, उनके पास केवल 524 बाघ ही हैं...पर ये भी देखने की जरुरत है कि कर्नाटक में टाइगर्स की मृत्युदर भी MP से बेहद कम है। हमारे यहाँ आज भी टाइगर्स के शिकारियों को कुछ ख़ास सज़ा नहीं दी जाती हैं।आज भी हमारे यहाँ स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फ़ोर्स नहीं है, जबकि केंद्र सरकार ने पूरी फाइनैंशल मदद देने की बात कही है।"





ये तो रही एक्सपर्ट के तर्क, जिनपर जब हमने मध्य प्रदेश के वन विभाग PCCF जे एस चौहान से बातचीत की। उन्होंने अजय दुबे के सभी तर्कों को नकार दिया और द सूत्र से बातचीत में बताया...:





टाइगर्स की ग्रोथ दर में 38% की कमी पर: 6.7% की ग्रोथ दर नार्मल है। दरअसल, किन्हीं कारणों की वजह से 2014 में सेंट्रल लैंडस्केप में 2014 में टाइगर्स के रिपोर्टिंग असल संख्या से कम हुई। जिसकी वजह से जब 2018 में दोबारा काउंटिंग की गई। तो टाइगर की संख्या इतनी ज्यादा रिपोर्ट हुई और ग्रोथ परसेंटेज 50% के आसपास आया। और इसी वजह इस बार का ग्रोथ परसेंटेज कम लग रहा है।





टाइगर्स की MP में बड़ी संख्या में मौत पर: "जहाँ टाइगर्स होंगे, वहीँ तो मरेंगे न? वो तो टाइगर्स की नेचुरल डेथ हैं! उसमें अगर ज्यादा नेचुरल डेथ भी हो रहीं हैं तो चिंता वाली बात नहीं है। क्योंकि हमारे पास ज्यादा टाइगर्स हैं।इसलिए ज्यादा मर रहें हैं। जहाँ पर भी टाइगर्स की जनसँख्या ज्यादा होगी, तो उनकी मौत भी होगी। बात अगर पोचिंग की करें तो हमारे यहाँ ऑर्गनाइज़्ड पोचिंग (शिकार) जैसा कुछ नहीं  है। वहीँ कर्नाटका से मुकाबले की जहाँ तक बात है, तो काफी हद तक मुमकिन है कि कर्नाटका टाइगर्स डेथस के बारे में अंडररिपोर्टिंग कर रहा हो, इसलिए वहां टाइगर डेथ कम हैं। हो सकता है वो मरे हुए टाइगर्स की बॉडी को ढूंढ़ ही न पा रहें हो!





स्पेशल टाइगर्स प्रोटेक्शन फ़ोर्स के मुद्दे पर: और मुद्दा रहा टाइगर्स के लिए स्पेशल टाइगर्स प्रोटेक्शन फ़ोर्स (SPTF) का, तो पहले सरकार ने SPTF बनाने के लिए 100% फाइनैंशल सपोर्ट देने की बात की थी। लेकिन बाद में पीछे हैट गई और कहा गया कि वो सिर्फ 60% फाइनैंशल सपोर्ट ही देगी। बाकी का 40% राज्य को देना होगा। तो अगर हमें 40% पैसा खर्च करना ही है तो वो पैसा हम अपने स्टाफ के भर्ती पर करेंगे, जिससे हमें सप्तफ की खास कोई जरुरत ही न पड़े।





टाइगर्स-वाइल्डलाइफ कनफ्लिक्ट के मुद्दे पर: हम तो टाइगर्स-वाइल्डलाइफ कनफ्लिक्ट को कम करने के लिए भी लगतार कर रहें हैं।हमारी पूरी कोशिश है कि टाइगर्स प्रोजेक्ट के तहत विस्थापित किये गए लोगों को समय पर कम्पेन्सेशन दे। हमारे पास 15 रेस्क्यू स्कवाड हैं जिसमे ट्रेंड डॉक्टर्स और प्रोफेशनल हैं जो उन टाइगर्स को बचाने की कोशिश करते हैं।





साफ़ है कि एक्सपर्ट अजय दुबे और जे एस चौहान के बाघों को लेकर गहरे मतभेद हैं। जहाँ टाइगर एक्सपर्ट सरकार पर साफ़ आरोप लगा रहें हैं कि टाइगर्स की ग्रोथ दर में जो कमी आई है, वो मुख्यतः टाइगर्स के शिकार की वजह से है। और सरकार बाघों के शिकार को लेकर सीरियस नहीं है। तो वहीँ जे एस चौहान इस बात से इत्तेफ़ाक़ नहीं रखते कि मध्य प्रदेश में बाघों की मुश्किलें बढ़ रहीं हैं, फिर वो चाहे शिकार की वजह से हो हो या फिर किसी और वजह सेI





CAG ने भी उठाए हैं मध्य प्रदेश में टाइगर्स की सुरक्षा और उनके शिकार पर गंभीर सवाल





वैसे आपको बता दें कि हाल ही में कम्पट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल की रिपोर्ट ने भी मध्य प्रदेश सरकार के उन सभी दावों की धज्जियां उड़ा दी थी जिसमे ये दावा किया जाता है बाघ मध्य प्रदेश में शिकार से सुरक्षित है। बता दें कि मध्य प्रदेश में 6 टाइगर रिज़र्व हैं, जिनमें कान्हा, बांधवगढ़, पेंच, सतपुड़ा, पन्ना और संजय डुबरी शामिल हैं। CAG रिपोर्ट,2022 ने राज्य सरकार और वन विभाग पर साफ़ आरोप लगाया है कि सिस्टम, मैनपावर और प्लांनिंग के कमी की वजह से 2014-2018 के दौरान मानव-वन्यजीव संघर्ष, अवैध शिकार, अतिक्रमण, और एक्सीडेंट्स बढ़े।





साथ ही CAG रिपोर्ट के अनुसार राज्य के इन 6 टाइगर रिज़र्व में से 3 टाइगर रिज़र्व -पन्ना, पेंच, और बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व- में बाघ संरक्षण योजना अटकी पड़ी हुई है। बता दें कि साल 2000 में जब मानव हस्तक्षेप, अवैध शिकार और तस्करी की बढ़ती घटनाओं के कारण बाघों की संख्या में भारी गिरावट आने की वजह से, NTCA ने बाघ रिजर्व वाले राज्यों में स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फ़ोर्स (STPF) स्थापित करने के की सिफारिश की थी। सिफारिश के बाद, ओडिशा, कर्नाटक और महाराष्ट्र ने तो STPF का गठन कर दिया...पर मध्य प्रदेश ने अभी तक ऐसा नहीं किया। 2009-2010 में राज्य सरकार का NTCA के साथ एक त्रिपक्षीय एग्रीमेंट भी हुआ पर तय होने के बावजूद राज्य सरकार द्वारा विशेष बाघ संरक्षण बल स्थापित नहीं किया गया। इसको लेकर 2014 में, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में  वन्यजीव कार्यकर्ता अजय दुबे द्वारा दायर एक याचिका के आधार पर राज्य सरकार को एक बार फिर से STPF स्थापित करने का निर्देश भी दिया था। पर सब फ़िज़ूल।





अब टाइगर रिज़र्व में कोई ठोस बाघ संरक्षण योजना न होने से और टाइगर प्रोटेक्शन फ़ोर्स न होने का असर ये हुआ कि इको-सेंसिटिव ज़ोन्स में टूरिज्म, कंस्ट्रक्सन का मैनजमेंट प्रॉपर नहीं हो पाया और संरक्षण गतिविधियों को ठीक से लागू नहीं किया जा सका। इस वजह से बाघों के संरक्षण के कार्य ठीक से नहीं हुए और सिर्फ 4 सालों में ही यानी 2014-2018 के दौरान, राज्य में कुल 115 बाघों और 209 तेंदुए की मौत के मामले सामने आए। इसमें से एक-चौथाई तो अवैध शिकार की वजह से ही मरे। अकेले कान्हा टाइगर रिजर्व, जिसे दो जिलों मंडला और बालाघाट की परिधि में स्थित कान्हा-किसली राष्ट्रीय उद्यान के रूप में जाना जाता है, में 2012 और 2019 के बीच 43 बाघों की मौत हुई की सूचना दी है, जो देश में सबसे अधिक है। यहीं नहीं मध्य प्रदेश में 2012 से 2022 तक की 10 साल की अवधि के दौरान 270 बाघों की मौतें दर्ज की हैं। ये देश में सबसे ज्यादा हैं और चौंकाने वाली बात ये हैं की इनमे भी ज्यादातर मौतें टाइगर रिज़र्व के अंदर ही हुई हैं। नेशनल टाइगर कंज़र्वेसन अथॉरिटी (NTCA) के आंकड़ों को देखे तो बाघों की मौत का एक बड़ा कारण अवैध शिकार ही रहा। मार्च, 2023 में विधानसभा में किये गए एक सवाल के जवाब में खुद वनमंत्री कुंवर विजय शाह ने ये कहा था कि मध्य प्रदेश में 2022 में 10 टाइगर्स की मौत पोचिंग से हुई।







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NTCA की वेबसाइट पर दिया MP और अन्य राज्यों में टाइगर्स की मौत का आंकड़ा 







MP में टाइगर्स की मौत का आंकड़ा 







  • 2016 में: 34 बाघों की मौत



  • 2017 में: 27 बाघों की मौत


  • 2018 में: 19 बाघों की मौत


  • 2019 में: 28-31 बाघों की मौत


  • 2020 में: 30 बाघों की मौत


  • 2021 में: 41 बाघों की मौत


  • 2022 में: 34 बाघों की मौत


  • 2023 में अब तक : 15 बाघों की मौत






  • वहीँ अगर कर्नाटका के आंकड़ा देखें तो 2012 से 2022 तक की 10 साल की अवधि के दौरान 150 बाघों की मौतें दर्ज की हैं।







    • 2021 में: 15 बाघों की मौत



  • 2022 में: 18 बाघों की मौत


  • 2023 में अब तक: 4 बाघों की मौत




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