देवेंद्र पांडे, SINGRAULI. देश और विदेश में कोयला और बिजली उत्पादन में जाना जाता है, लेकिन वहीं प्रदूषण के मामले में भी यह देश के टॉप 10 में शामिल है। यहां की सड़कों पर कोयले की काली धूल दिखाई देती है। लोगों के घरों में कोयले की परत जम जाती है। सड़कों पर कोयले से लदे वाहन दौड़ते हैं। कोयले की काली धूल का गुबार हवा में घुल कर प्राणवायु को जहरीला बना रहा है। यहां के लोग जब सांस लेते हैं तो उनके नाक से भी कोयले के कण दिखाई देते हैं। यानी सांसों में भी कोयले के कण हवा के साथ मिल गए हैं। यही कारण है है कि ऊर्जाधानी के नाम से विख्यात प्रदेश का इस शहर में टीबी, अस्थमा, दमा जैसे गंभीर बीमारियों से जिंदगियां राख हो रही है। यहां के जमीन पर खेती नहीं होती। पावर हब के चलते जिंदगी अब 'राख हब' के ढेर में बदल गई है। इसके बदले में इस इलाके की बस्तियां, गांव और खेत के आस-पास राख के पहाड़ खड़े हो गए हैं। पढ़िए द सूत्र की ग्राउंड रिपोर्ट।
एक ही शहर में 11 बिजली संयंत्र
सिंगरौली जोन में 11 थर्मल पावर प्लांट, 16 कोल माइन्स, 10 कैमिकल कारखाने, 8 एक्सप्लोसिव, 309 क्रशर प्लांट और स्टील, सीमेंट व एल्युमिनियम के एक-एक उद्योग हैं। इन बिजलीघरों से हर साल लगभग 3 करोड़ मिट्रिक टन राख निकलती है। इसका 30 फीसदी भी इस्तेमाल नहीं होता है। इनसे पैदा हो रहा प्रदूषण यहां के लोगों की जिंदगियां तबाह कर रहा है।
बिजलीघरों से निकलने वाली राख से परेशान
सिंगरौली जिला मुख्यालय बैढन से करीब 5 किलोमीटर के दायरे में बसे बलियरी, गहीगढ़, चन्दावल जैसे अन्य इलाके के लोग बिजलीघरों से निकलने वाली राख से खासा परेशान है। द सूत्र की टीम ने एशिया के सबसे बड़े पावर प्लांट एनटीपीसी के बलियरी में स्थित राखड़ बांध और इस राख बांध से प्रभावित उसके आस-पास इलाके में जाकर पड़ताल की।
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हल्की हवा से किचन तक पहुंच रहे कोयले के कण
राखड़ बांध से राख लेकर जाने वाले भारी वाहनों से भी राख का गुबार उड़ता है। हल्की सी हवा भी चलती है तो डैम से राख उड़कर इलाके के लोगों के घर और किचन तक पहुंच जाती है। बलियरी इलाके के स्थानीय रहवासी राजेश शाह ने बताया कि इलाके के लोग राखड़ डैम के चलते नर्क की तरह जीवन जीने को मजबूर है। इन दिनों आंधी चलने पर आसपास के इलाके में महज 10 फिट की दूरी में देखना मुश्किल हो जाता है। इलाके के लोग घरों में कैद है इसकी वजह राख है।
राख से हो रही गंभीर बीमारी
बलियरी इलाके के 70 वर्षीय सकील अहमद बताते है कि राख के कारण शरीर मे बहुत ज्यादा नुकसान हो रहा है। आंख में डस्ट चली जाती है, जब खाना खाते है तब उसमें भी राख आ जाती है। बाहर की हवा अब सांस लेने के लायक भी नहीं बची है। घर परिवार के लोग इसी राख की वजह से दमा, अस्थमा, एलर्जी जैसे गंभीर बीमारियों से ग्रसित है। इसी इलाके की सीतापति बताती है कि बांध का राख हवा में उड़कर घर में आ जाता है। खाना, पानी में भी राख चला जाता है। हम लोग राख खाते व पीते है और अब तो जीने की भी आदत हो गई है ।
बांध स्थापित करने का किया था वादा
इलाके के स्थानीय लोग बताते है कि जब NTPC का यहां राख बांध स्थापित हो रहा था, तब अफसरों ने इलाके के विकास का सपना दिखाया था, राखड़ बांध बनकर तैयार तो हो गया, लेकिन यहां के लोग राख की वजह से घर में कैद होने व पलायन करने को मजबूर हो गए हैं।
नौकरी का सपना दिखाकर ले ली जमीनें
सिंगरौली जिले के स्थानीय रहवासियों का एक दर्द और भी है। उद्योगपतियों ने नौकरी देने का सब्जबाग दिखाकर उनकी जमीनें ले लीं, जिसके बाद में नौकरियां नहीं दी। रिलायंस पावर प्लांट शासन को अपनी दस एकड़ जमीन देने वाले भगवान दास शाह बताते है कि 2007-2008 में उनकी जमीन रिलायंस पावर प्लांट ने अधिग्रहण किया था, 2012 में उन्हें लिखित आश्वासन दिया गया कि उन्हें कंपनी में स्थाई नौकरी दी जाएगी, लेकिन 10 वर्ष बाद भी कंपनी में उन्हें नौकरी नहीं दी। 10 वर्षो से लगातार वे डीएम की जनसुनवाई का चक्कर लगा रहें है, लेकिन उन्हें झूठा आश्वासन के अलावा कुछ भी नहीं मिलता ।