Jabalpur. जबलपुर से आरक्षण अधिनियम में संशोधन की मांग उठी है। यह मांग सुझाव के रूप में किसी और ने नहीं बल्कि ओबीसी आरक्षण मामले में सरकार की ओर से नियुक्त विशेष अधिवक्ताओं रामेश्वर सिंह ठाकुर और विनायक प्रसाद शाह ने उठाई है। दोनों ने मुख्यमंत्री, सामान्य प्रशासन विभाग और पिछड़ा वर्ग समिति और कल्याण आयोग को चिट्ठी लिखकर यह सलाह दी है कि आरक्षण अधिनियम में संशोधन की दरकार है।
दो स्पष्टीकरण जोड़ने की मांग
दोनों अधिवक्ताओं ने भेजे पत्र में कहा है कि आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 4(4) में संशोधन किया जाना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि धारा में प्रयुक्त ‘चयनित’ शब्द को स्पष्ट किया जाना आवश्यक है। दलील दी गई है कि स्पष्ट प्रावधान न होने के चलते अनारक्षित 50 फीसद पदों को भी सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों से आरक्षित किया जा रहा है, जिससे आरक्षित वर्ग के प्रतिभाशाली अभ्यर्थियों को चयन से वंचित होना पड़ रहा है।
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ओबीसी के मेरिटोरियस अभ्यर्थियों के मामले का भी दिया हवाला
पत्र में यह भी कहा गया है कि स्पष्ट प्रावधान न होने के चलते ही हाईकोर्ट के 1255 पदों की भर्ती का मामला हो या फिर पीएससी का मामला, दोनों में अनारक्षित वर्ग के 50 फीसद पदों को सामान्य वर्ग से आरक्षित कर दिया गया और आरक्षित वर्ग के हजारों मेरिटोरियस अभ्यर्थियों को चयन से वंचित कर दिया गया है। जिसके चलते विशेष अधिवक्ताओं ने प्रक्रिया का समग्र अध्ययन करके शासन को आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 4(4) में संशोधन का सुझाव दिया है।
बता दें कि हाईकोर्ट में 1255 पदों की भर्ती और पीएससी में ओबीसी के मेरिटोरियस छात्रों के चयन के मामले में हाईकोर्ट ने अपने आदेश में यह कहा है कि ओबीसी वर्ग के उम्मीदवारों को आरक्षण का लाभ अंतिम चरण में दिया जाएगा, न कि प्रत्येक चरण में। जिसके बाद हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।