BHOPAL: ईएसआईसी को ट्रांसफर होगा राज्य बीमा अस्पताल, 2.50 लाख निजी कर्मचारियों को मिलेगा लाभ

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Sunil Shukla
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BHOPAL: ईएसआईसी को ट्रांसफर होगा राज्य बीमा अस्पताल, 2.50 लाख निजी कर्मचारियों को मिलेगा लाभ

BHOPAL. भोपाल-मंडीदीप सहित आस-पास के जिलों में निजी संस्थानों (private institutions) और उद्योगों (industry) में काम करने वाले करीब 2.50 लाख निजी कर्मचारियों (private employee) को अपने और अपने परिजनों के इलाज के लिए जल्द ही ज्यादा और बेहतर सुविधाएं मिलेंगी। प्रदेश सरकार (mp government) ने व्यवस्था में सुधार के लिए राज्य स्तरीय बीमा अस्पताल (state insurance hospital) को श्रम विभाग (labour department) से लेकर केंद्र सरकार के कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ESIC) को सौंपने का निर्णय लिया है। हालांकि निजी कर्मचारियों के हित में ईएसआईसी के प्रस्ताव पर अमल करने में सरकार को करीब साल लग गए।  



तीन साल से फाइलों में अटका था ईएसआईसी का प्रस्ताव 



बता दें कि ईएसआईसी, नई दिल्ली की ओर से 2017 में प्रत्येक राज्य के  2 बीमा अस्पतालों को टेकओवर करने का प्रस्ताव दिया गया था। इसके तहत इंदौर के नंदा नगर स्थित अस्पताल को ईएसआईसी ने टेकओवर कर  लिया था। नतीजा यहां अस्पताल की क्षमता और सुविधाओं के विस्तार से मरीजों को बेहतर इलाज मिलने लगा था।  करीब तीन साल पहले 2019 में ईएसआईसी ने इंदौर की तर्ज पर भोपाल के सोनागिरी में स्थित राज्य स्तरीय बीमा अस्पताल को टेकओवर करने का प्रस्ताव मप्र श्रम विभाग को दिया था। इस बारे में औपचारिक प्रस्ताव जुलाई 2021 में हुई कर्मचारी राज्य बीमा निगम की क्षेत्रीय परिषद की बैठक में रखा गया था। इसे मप्र सरकार के श्रम मंत्री का भी अप्रूवल मिल गया था। लेकिन विभागीय उदासीनता के चलते यह प्रस्ताव लंबे समय तक ठंडे बस्ते में पड़ा रहा। इस फरवरी में जब द सूत्र ने इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया तो सरकार में हलचल शुरू हुई। तब श्रम विभाग के प्रमुख सचिव सचिन सिन्हा (sachin sinha IAS) ने  इस बारे में जल्द ही निर्णय लिए जाने की बात कही थी। करीब 3 साल तक चली कवायद के बाद सरकार ने अब ईएसआईसी के प्रस्ताव पर अमल करने का निर्णय लिया है।



सितंबर से बीमा अस्पताल का संचालन करेगा ईएसआईसी 



ईएसआईसी मप्र के डायरेक्टर डॉ.नटवर शारदा ने मंगलवार ( 28 जून) को भोपाल का राज्य स्तरीय बीमा अस्पताल का संचालन राज्य सरकार से लेकर ईएसआईसी को सौंपे जाने के निर्णय की पुष्टि करते हुए बताया कि टेकओवर करने की प्रक्रिया शुरू की जा रही है। इसी साल अगस्त- सितंबर से अस्पताल का संचालन ईएसआईसी के अधीन हो जाएगा। अस्पताल में कार्यरत सभी वर्तमान डॉक्टर्स, पैरामेडिकल स्टॉफ औऱ अन्य कर्मचारी दो साल तक यहीं काम करेंगे। ईएसआईसी इस अस्पताल को मॉडल हॉस्पिटल के रूप में डेवलप करेगा। यहां मरीजों की जांच और इलाज के लिए नई मशीनें लगाई जाएंगी। इससे भोपाल और आस-पास के जिलों में ईएसआईसी से जुड़े सभी निजी संस्थानों और उद्योगों में काम करने वाले कर्मचारियों औऱ उनके परिजनों को इलाज की सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध होंगी।



इलाज के लिए सैलरी से बड़ी राशि कटने के बाद भी सुविधाएं नहीं  



प्रायवेट कंपनियों, उद्योग और कारखानों में 21 हजार रूपए से कम सैलरी वाले कर्मचारियों और उनके परिजनों को इलाज की सुविधा के लिए कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) कर्मचारी राज्य बीमा योजना (ईएसआईएस) के तहत कर्मचारी की सैलरी से हर महीने 0.75 प्रतिशत राशि काटता है। इसके अलावा निगम 3.25 प्रतिशत राशि का शेयर कंपनी या नियोक्ता संस्थान (एम्प्लॉयर) से लेता है। मध्यप्रदेश में करीब 10 लाख 60 हजार निजी कर्मचारी इस योजना से जुडे़ हुए हैं। ऐसे में प्रति कर्मचारी के औसत 10 हजार रूपए वेतन के हिसाब से 4 प्रतिशत राशि करीब 95  करोड़ रूपए हर माह और सालाना करीब 504 करोड़ रूपए ईएसआईसी के पास पहुंचते हैं।



भोपाल के करीब 2.52 लाख कर्मचारियों की सैलरी से हर महीने 2 करोड़ की कटौती



यदि भोपाल औऱ मंडदीप की बात की जाए तो यहां निजी संस्थानों के करीब 2 लाख  52 हजार कर्मचारियों के वेतन से ईएसआई की राशि कटती है। भोपाल-मंडदीप के ईएसआईसी से बीमित 2 लाख 52 हजार कर्मचारियों की 0.75 प्रतिशत राशि के रूप में हर माह करीब 2 करोड़ रूपए की राशि काटी जाती है। साल में यह राशि करीब 24 करोड़ रूपए होती है। वहीं नियोक्ता संस्थानों के 3.25 प्रतिशत शेयर की बात की जाएग तो हर माह यह राशि करीब  8 करोड़ रूपए और सालभर में करीब 98 करोड़ रूपए होती है। इन दोनों को मिला दिया जाए तो 4 प्रतिशत के हिसाब से सालभर में 124 करोड़ रूपए ईएसआईसी के पास पहुंचती है।



ऐसे समझें इलाज के लिए वेतन से कटौती की राशि का गणित 



दरअसल, प्रति व्यक्ति औसत 10 हजार रूपए आय के हिसाब से 0.75 प्रतिशत राशि 75 रूपए होती है। इस हिसाब से प्रदेश के 10 लाख 60 हजार कर्मचारियों के वेतन से हर माह करीब 8 करोड़ रूपए और सालभर में करीब 95 करोड़ रूपए काटे जाते हैं। वहीं संस्थान की ओर से मिलाए जाने वाले 3.25 प्रतिशत की बात करें तो, प्रति व्यक्ति के हिसाब से यह राशि 325 रूपए होती है। ऐसे में हर माह संस्थानों की ओर से करीब 35 करोड़ रूपए और सालभर में करीब 415 करोड़ रूपए की राशि ईएसआई में मिलाई जाती है। दोनों कटौती को जोड़कर हर साल करीब 509 करोड़ रूपए ईएसआईसी को पहुंचते हैं।



बीमा अस्पताल में न पर्याप्त डॉक्टर, न जरूरी जांच की सुविधाएं 



निजी कर्मचारियों की सैलरी से काटी जाने वाली राशि के बदले में ईएसआईसी और मप्र श्रम विभाग की जिम्मेदारी बनती है कि वह बीमित व्यक्तियों को बेहतर औऱ मुफ्त इलाज मुहैया कराए। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। हालात ये हैं कि इतनी बड़ी राशि के लेने के बाद भी निजी कर्मचारियों को बीमा अस्पताल में बेहतर इलाज तो दूर सामान्य दवाओं और सोनोग्राफी, एक्सरे जैसी सामान्य जांचों के लिए भी परेशान होना पड़ता है। स्टाफ की भारी कमी से जूझ रहे अस्पताल में फिलहाल एक भी स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं है। अस्पताल करीब 20 सहायक डॉक्टर के भरोसे चल रहा है। अस्पताल में 14 स्पेशलिस्ट, 12 असिस्टेंट सर्जन के साथ बड़ी संख्या में पैरामेडिकल स्टॉफ के पद खाली पड़े हैं। यहां अभी रोजाना 300 से 350 मरीज  ओपीडी में पहुंचते हैं। जबकि यहां भर्ती मरीजों की संख्या एक दर्जन भी नहीं होती क्योंकि यहां कोई मरीज भर्ती नहीं होना चाहता। 



बीमा अस्पतालों पर सालाना 220 करोड़ का खर्च  



ईएसआई के तहत बीमित निजी कर्मचारियों के इलाज के लिए कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) और मप्र श्रम विभाग द्वारा अस्पतालों का संचालन किया जाता है। प्रदेश में इंदौर स्थित 1 टीबी अस्पताल मिलाकर 6 ईएसआईएस अस्पताल और 42 डिस्पेंसरी का संचालन श्रम विभाग करता है। यह 6 अस्पताल इंदौर, भोपाल, सागर, देवास, उज्जैन, ग्वालियर और मंदसौर में संचालित हैं। वहीं इंदौर स्थित राज्य कर्मचारी बीमा अस्पताल एवं 7 डिस्पेंसरी का संचालन ईएसआईसी करता है। ईएसआईसी द्वारा संचालित संस्थाओं में व्यवस्थाएं बहुत हद तक ठीक हैं।  लेकिन मप्र श्रम विभाग द्वारा संचालित अस्पताल और डिस्पेंसरी के हालात ठीक नहीं है। अस्पताल डॉक्टरों और जरूरी व्यवस्थाओं की कमी से जूझ रहे हैं। इसी कारण से 2021-22 में प्रदेश में 43 प्रायवेट अस्पतालों से मरीजों के इलाज औऱ जांच की कैश रहित सुविधा के लिए अनुबंध किया गया है। लेकिन इसकी लंबी प्रक्रिया के कारण निजी कर्मचारी औऱ उनके परिजन परेशान होते हैं। श्रम विभाग के सूत्रों के मुताबिक सालाना करीब 220 से 250 करोड़ रूपए की राशि श्रम विभाग द्वारा संचालित अस्पतालों पर खर्च की जाती है। लेकिन इतनी बड़ी राशि खर्च होने के बाद भी इन अस्पतालों में मरीजों को अपेक्षित बेहतर इलाज औऱ जांच की सुविधाएं नहीं मिल पातीं है।  


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