BHOPAL. नालायक, पागल, गुंडे। अरे घबराइए नहीं हम यहां किसी को इन शब्दों के साथ जलील नहीं कर रहे हैं। हम आपको वो शब्द बता रहे हैं जो मध्यप्रदेश की सियासत में गूंज रहे हैं। कुछ नए हैं कुछ पुराने हैं। वैसे तो राजनीति में जुबानी जंग आम बात है। छोटे-मोटे नेता या मझौले कद के नेता अक्सर किसी न किसी बयान से सुर्खियां बटोरते हैं। सियासी पारा तो हाई करते हैं। इस बहाने उनकी ही पार्टी के बड़े नेता उनका नाम भी जान जाते हैं। कहने का मतलब ये कि पहचान बनाने का ये बेकार, लेकिन आसान तरीका है। सोचिए तब क्या हो जब ऐसे शब्दों से जंग की शुरुआत दिग्गज नेता ही कर दें।
मध्यप्रदेश में पागल और गुंडे के साथ जुबानी जंग
मध्यप्रदेश की सियासत में इस बार जुबानी जंग शुरू हुई है पागल और गुंडे के साथ। ताज्जुब इन शब्दों पर नहीं इन शब्दों को कहने वालों पर कीजिए। एक शब्द मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तरफ से उछाला गया है तो दूसरा शब्द पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पलटवार में इस्तेमाल किया है। मामला यूं है कि मध्यप्रदेश की राजनीति बयानों से गरमा गई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ पर आरोप लगाया कि वोटों की भूख में पागल होकर मध्यप्रदेश को अशांति और वैमनस्य की खाई में धकेल रहे हैं। इस पर पलटवार करते हुए कमलनाथ ने शिवराज की भाषा पर ही सवाल उठा दिए। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री सड़क छाप गुंडों की भाषा बोल रहे हैं। पागल और सड़क छाप गुंडों के बाद मध्यप्रदेश वार पलटवार का दौर जमकर शुरू हुआ।
दिग्गजों ने रखी थी मर्यादा की नींव
80 के दशक की बात है। उस वक्त राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे और अटल बिहारी बाजपेयी विपक्ष में थे। 2 पूर्व प्रधानमंत्री, सत्ता की 2 अहम धुरियों की तरह, लेकिन एक-दूसरे के धुर विरोधी। सियासी मर्यादाएं निभाने में दोनों बेमिसाल। ये उस वक्त की बात है जब विपक्ष में बैठे अटलजी किडनी की बीमारी से पीड़ित थे। इलाज सिर्फ न्यूयॉर्क में संभव था, लेकिन आर्थिक हालात ने अटल जी को न्यूयॉर्क जाने की इजाजत नहीं दी। एक दिन राजीव जी ने उन्हें बुलाकर कहा कि आपको एक दल के साथ संयुक्त राष्ट्र की बैठक में भेज रहा हूं। उम्मीद है कि आप वहां इलाज भी करवा सकेंगे। दोनों नेताओं के बीच बंद कमरे में ये बात हुई। ताउम्र राजीव जी ने इसका अहसान नहीं जताया। राजीव गांधी के निधन पर अटल जी ने ये किस्सा साझा किया। कहने का मतलब ये कि एक दौर में पार्टी के दायरे से ऊपर उठकर और सियासी सिद्धांतों पर चलकर नेता मर्यादाएं निभाते थे। यही अनुशासन अंतिम कार्यकर्ता तक पहुंचता था, लेकिन अब हालात जुदा है। जिस पार्टी के दिग्गजों ने मर्यादा की नींव रखी उसी पार्टी के नेताओं के बीच ऐसे शब्दों के साथ जुबानी जंग आम हो चुकी है।
मर्यादा लांघने की शुरुआत
मध्यप्रदेश के राजनीतिक समर में राजनीतिक मर्यादाओं को लांघने की शुरुआत तब से तेज हो गई जब ज्योतिरादित्य सिंधिया दल बदल कर बीजेपी में गए और प्रदेश में 28 सीटों पर उपचुनाव हुए। नेताओं ने बयानबाजी में नए-नए शब्द और जुमले पेश करने में कोई गुरेज नहीं किया। ये बयान कोई छोटे-मोटे नेताओं ने नहीं दिए, बल्कि बीजेपी-कांग्रेस में प्रदेश के शीर्ष नेतृत्व की तरफ से बायनबाजी होती रही। गद्दार-वफादार से शुरु हुई लड़ाई राम और रावण तक पहुंच गई।
सियासी मर्यादा लांघते बयान
- मुरैना में कांग्रेस नेता दिनेश गुर्जर ने मुख्यमंत्री शिवराज को भूखे-नंगे घर से पैदा हुआ बताया। इस बयान के बाद राजनीतिक पारा खूब गर्माया।
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सीएम शिवराज और पूर्व सीएम कमलनाथ ने लांघी मर्यादा
दूसरे नेताओं की बात तो छोड़ ही दें। पिछले चुनाव में खुद शिवराज सिंह चौहान और कमलनाथ ने जुबानी हदें पार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कमलनाथ ने एक बयान में शिवराज सिंह चौहान को नालायक तक कह दिया। उसके बाद शिवराज को राजनीति छोड़कर बालीवुड जाकर एक्टिंग करने की सलाह भी दी। कमलनाथ पर हमले बोलने की कमान संभाली नरोत्तम मिश्रा ने। जिन्होंने कमलनाथ की जवानी और बुढ़ापे पर ही सवाल उठा दिए। नरोत्तम मिश्रा ने कहा, वे हर सभा में जवानी की बात करते हैं, मतलब खुद ही अपने बुढ़े होने का सबूत देते हैं। अभी कुछ ही दिन पहले केबिनेट मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया ने कमलनाथ को कंस और ज्योतिरादित्य सिंधिया को राम बताकर खुद को उनका हनुमान बताया। शीर्ष नेताओं के इस रवैया का कार्यकर्ता और चुनावी फिजा पर क्या असर पड़ेगा। इन जुबानी जंगों से ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि चुनाव आने तक ये जंग और भी ज्यादा तीखी होती चली जाएगी।
चुनाव नजदीक आते ही सुनाई देने लगे हैं बेतुके जुमले
आमतौर पर जुबानी जंग कार्यकर्ताओं के बीच होती है। शीर्ष नेता राजनीतिक मर्यादाओं का पालन करते हुए शिष्टता और अनुशासन का उदाहरण पेश करते हैं। मध्यप्रदेश में जुबानी जंग का ये दौर बहुत पुराना नहीं है। इससे पहले ऐसा सिर्फ 28 सीटों के उपचुनाव के आसपास नजर आया और चुनाव नजदीक आने के साथ ही फिर से ऐसे बेतुके जुमले सुनाई देने लगे हैं जिससे राजनीति की गरिमा खतरे में नजर आ रही है। राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप आम बात है। नेताओं को ये समझना चाहिए कि समर्थक भले ही आपके बयान पर ताली बजाता हो, लेकिन मतदाता सोच-समझकर ही मतदान करता है।