BHOPAL. देश के हृदय प्रदेश की राजधानी भोपाल आज अपना गौरव दिवस मना रही है। राजधानी भोपाल में गौरव दिवस के उपलक्ष्य में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। लेकिन इस खूबसूरत शहर की स्थापना आखिर हुई कैसे और कैसा रहा इसका सफर इन सभी चीजों के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं। दरअसल, भोपाल की स्थापना परमार राजा भोज ने 1000-1055 ईस्वी के दौरान की थी। उस समय इसका नाम ‘भोजपाल’ था और राजधानी धार हुआ करती थी। परमार राजवंश के पतन के बाद यह शहर कई बार लूटा। मौजूदा भोपाल की स्थापना अफगान योद्धा दोस्त मोहम्मद खान ने 1720 में की थी। 1818 में भोपाल रियासत बन गया। रियासत बनने के बाद करीब 107 साल तक भोपाल पर महिला शासकों का शासन रहा। 1819 से 1926 तक चार बेगमों का भोपाल पर राज रहा। इसके बाद 1949 तक भोपाल रियासत के शासक हमीदुल्लाह खान रहे। देश को आजादी मिलने के बाद 1 जून को भोपाल रियासत का भारत में विलय हुआ, लेकिन नवाब के अड़ियल रुख के चलते इसके लिए आंदोलन करना पड़ा था। इतना ही नहीं, 1956 में राज्यों के पुनर्गठन के बाद इसको राजधानी बनाने में भी काफी मुश्किलें आई थीं।
ढाई साल बाद भोपाल में लहराया था तिरंगा
आपको बता दें कि 15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी मिली और देश के कौने-कौने में तिरंगा लहराया, लेकिन भोपाल में ढाई साल बाद आजादी का उत्सव मना। 656 दिन के संघर्ष के बाद 1 जून 1949 को पहली बार तिरंगा लहराया गया। इतिहासकार बताते हैं कि देश का दिल माने जाने वाले मप्र की राजधानी भोपाल पाकिस्तान का हिस्सा बनाने की पूरी तैयारी थी और यदि ऐसा होता तो मप्र, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब तक एक कारीडोर बनाया जाता यह कारीडोर भोपाल के राजगढ़, गुना से होते हुए राजस्थान के कुछ जिले और फिर हरियाणा व पंजाब तक बनता। भोपाल नवाब की ब्रिटिश सरकार और कांग्रेस में इतनी पैठ थी कि उन्हें 2 साल तक झुका नहीं पाए, यहां तक कि जब भोपाल का विलय भारत में हुआ तो नवाब ने शर्त रखी कि उनके महल और गाड़ियों पर नवाब का झंडा ही लगेगा।
भारत में विलय के लिए भरी हामी
आजादी से पहले लॉर्ड माउंटबेटन ने भोपाल रियासत के स्वतंत्र बने रहने की मांग इस आधार पर खारिज कर दी कि दो देशों के बीच में एक छोटी सी रियासत कैसे अलग रह सकती है। इस बीच आजादी का दिन पास आने लगा और कुछ अन्य रियासतों ने भारत में शामिल होने के लिए हामी भर दी तो नवाब हमीदुल्लाह के पास विकल्प नहीं रह गया। साल 1947 में उन्होंने भी भारत में विलय के लिए हामी तो भर दी, लेकिन इसके बाद भी वे भोपाल रियासत के स्वतंत्र वजूद की कोशिशों में लगे रहे।
सरदार पटेल के आगे भोपाल के नवाब ने टेके घुटने
आजादी के बाद जब देशी रियासतों का एकीकरण शुरू हुआ तो नवाब हमीदुल्लाह ने भोपाल को एक स्वतंत्र राज्य घोषित करने की वकालत की। असल समस्या यह थी कि भोपाल रियासत का शासक मुस्लिम था, लेकिन आबादी हिंदू थी। नवाब ने अलग राज्य की मांग पर अड़ियल रुख अपनाया तो दिसंबर 1948 में भोपाल में एक जनआंदोलन शुरू हुआ। शंकरदयाल शर्मा और रतन कुमार गुप्ता जैसे नेताओं के नेतृत्व में भोपाल के भारत में विलय के लिए आंदोलन की शुरुआत हुई। आंदोलन ने जोर पकड़ा तो नवाब ने इसे कुचलने की कोशिश की। आंदोलनकारियों पर गोलियां चलाई गईं जिसमें कई आंदोलनकारी शहीद हो गए। इसके बाद तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल ने हस्तक्षेप किया और अपने दूत वीपी मेनन को भोपाल भेजा। मेनन ने भोपाल के नवाब पर दबाव बनाकर एक करार किया, जिसके बाद एक जून 1949 को भोपाल भारत में शामिल हुआ।
नवाब ने पाकिस्तान भेज दिया था पैसा
नवाब हमीदुल्ला के इरादे कितने खतरनाक थे, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने एक झटके में भोपाल की करीब आधी आबादी को कंगाल कर दिया था। साल 1948 में नवाब ने बैंक ऑफ भोपाल की एक शाखा पाकिस्तान के कराची शहर में खोल दी और यहां का सारा पैसा वहां भेज दिया। इसके चलते बैंक की भोपाल ब्रांच का दिवाला निकल गया। उस समय शहर के अधिकांश निवासी इसी बैंक में अपने पैसे रखते थे। नवाब ने एक झटके में उन्हें कंगाल कर दिया था।
फिल्म अभिनेता सैफ अली खान के परनाना थे भोपाल नवाब
भारत में विलय के बाद नवाब हमीदुल्लाह इंग्लैंड चले गए। बड़ी बेटी आबिदा सुल्तान ने पाकिस्तान में रहने का फैसला किया। उनकी शादी कुरवाई के नवाब से हुई थी। पाकिस्तान जाने के बाद वहां की सरकार ने उन्हें ब्राजील में अपना राजदूत नियुक्त कर दिया। इसके बाद भी वे पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय में वरिष्ठ पदों पर रहीं। नवाब की छोटी बेटी साजिदा सुल्तान की शादी हरियाणा के पटौदी रियासत के नवाब से हुई। नवाब के जाने के बाद साजिदा सुल्तान ने गद्दी संभाली। मशहूर क्रिकेटर मंसूर अली खां पटौदी साजिदा सुल्तान के बेटे थे और बाद में उन्हें ही भोपाल के नवाब के तौर पर मान्यता मिली थी। टाइगर पटौदी ने बॉलीवुड अभिनेत्री शर्मिला टैगोर से शादी की थी। सैफ अली खान उन्हीं के बेटे हैं।
भोपाल बना राजधानी तो दिवाली के दिन जबलपुर अंधेरे में डूबा रहा
1 नवंबर, 1956 को राज्यों के पुनर्गठन के बाद नया मध्य प्रदेश राज्य बना तो राजधानी को लेकर काफी जद्दोजहद हुई। राजधानी के लिए पांच प्रमुख विकल्प थे- भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर और रायपुर। ग्वालियर और इंदौर मध्य भारत के बड़े शहर थे और भोपाल के मुकाबले ज्यादा विकसित थे। रायपुर मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल का गृह नगर थे। वे उसे राजधानी बनाना चाहते थे। सबसे गंभीर दावेदारी जबलपुर की थी। राज्य पुनर्गठन आयोग ने भी राजधानी के लिए जबलपुर का नाम प्रस्तावित किया था। उस समय सेठ गोविंददास ने जबलपुर को राजधानी बनाने के लिए सबसे ज्यादा पहल की थी। इसके बावजूद भारत सरकार ने भोपाल को राजधानी बनाने के लिए हामी भर दी और इसका एक बड़ा कारण था विंध्य प्रदेश के लिए आंदोलन को कमजोर करना। जबलपुर राजधानी बनता तो महाकौशल के साथ-साथ विंध्य क्षेत्र की राजनीति का भी केंद्र होता। सरकार ऐसा नहीं चाहती थी। जबलपुर को राजधानी नहीं बनाने के पीछे यह तर्क भी दिया गया कि वहां सरकारी दफ्तरों और कर्मचारियों के लिए पर्याप्त इमारतें और जगह उपलब्ध नहीं थी। वहीं, भोपाल के मुख्यमंत्री शंकरदयाल शर्मा केंद्र सरकार को यह समझाने में सफल रहे कि यहां बहुत सारी सरकारी इमारतें और जमीन खाली हैं। सरकारी कामकाज के लिए यहां अलग से जमीन खरीदने और इमारतें बनाने की जरूरत नहीं होगी। साथ ही साथ नवाब की गतिविधियों पर भी नजर रखी जा सकेगी। ये दोनों ही बातें भोपाल के हित में गई और भोपाल को राजधानी का तमगा मिला। बहुत ही कम ही लोगों को पता है कि जब भोपाल को राजधानी घोषित किया गया तो उस साल जबलपुर में दीवाली नहीं मनाई गई। पूरा शहर अंधेरे में डूबा रहा था।
कई कार्यक्रमों का होगा आयोजन
अपना स्थापना दिवस मना रहे भोपाल के लिए कई कार्यक्रम भी होंगे जिनमें प्रमुख रुप से स्टार नाइट-कॉमेडी शो जिसमें गीतकार मनोज मुंतशिर, श्रेया घोषाल, नृत्य गुरु समीक्षा और अमन वर्मा शामिल होंगे। वहीं, कॉमेडी शो में कृष्णा गिल और सुदेश लहरी लोगों को गुदगुदाएंगे। इसके साथ ही 1 जून को भोपाल विलीनीकरण पर नाट्य प्रस्तुति होगी। 1 जून को ही नेचर फोटोग्राफी एवं नेचर वॉक का भी आयोजन होगा। शाम 6.30 बजे से लाल परेड मैदान भोपाल में सांस्कृतिक इवेंट होंगे। इस दौरान भोपाल के उपलब्धि के लिए ख्याति अर्जित करने वाले व्यक्तियों का सम्मान होगा। सांस्कृतिक संध्या में महाकाल संस्तुति, कत्थक एवं राजस्थानी लोक कलाकार भी प्रस्तुति देंगे। साथ ही भोपाल की आजादी के 74 गौरवशाली साल और भोपाल की पहचान राजा भोज तथा रानी कमलापति का इतिहास, प्रख्यात गीतकार कवि मनोज मुतंशिर द्वारा बताया जाएगा। प्रख्यात गायिका श्रेया घोषाल मुंबई द्वारा भी प्रस्तुति दी जाएगी।