Jabalpur. जबलपुर हाईकोर्ट ने मुआवजे के फैसले के खिलाफ अपील दायर करने में हुई 8 साल की देरी पर सख्त रुख अपनाया है। जस्टिस जीएस अहलूवालिया की अदालत ने राज्य के मुख्य सचिव को यह निर्धारित करने के लिए जांच करने के निर्देश दिए हैं कि परिसीमा अवधि के भीतर अपील दायर नहीं करने के लिए कौन जिम्मेदार हैं, और दोषी अधिकारियों से उनके आचरण की व्याख्या करने की अनुमति देने के बाद समान अनुपात में शामिल राशि की वसूली करने का आदेश दिया है।
हाईकोर्ट ने हाल ही में हुई सुनवाई के दौरान मामले में कहा कि यह सच है कि राज्य को अपने पदाधिकारियों के माध्यम से कार्य करना पड़ता है और कभी-कभी हर कार्य में विलंब हो जाता है। लेकिन इस बात का बहाना बनाकर राज्य के पदाधिकारियों को बिना किसी कारण 8 साल से ज्यादा देरी के साथ अपील दायर करने के अनुमति नहीं दी जा सकती।
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यह था मामला
बैतूल की लेबर कोर्ट ने आवेदक डोमलाल के पक्ष में फैसला सुनाते हुए मुआवजा भुगतान का आदेश दिया था। हाईकोर्ट ने निर्णय के खिलाफ विविध अपील पर विचार करते हुए कहा कि 8 साल बाद दायर अपील और उसमें एकमात्र कारण माफी के लिए आवेदन में निर्दिष्ट किया गया। विलंब का कारण यह था कि संबंधित अधिकारी द्वारा उच्च अधिकारियों को पत्र भेजे जाने पर आवश्यक स्वीकृति दाखिल नहीं की जा सकी और स्वीकृति अक्टूबर 2019 को प्राप्त हो गई। अदालत ने पाया कि प्रक्रियात्मक आवश्यकता के बहाने, राज्य को देरी के साथ अपील दायर करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
दोषी अधिकारी से वसूली जाए राशि
हाईकोर्ट ने कहा कि जिन्हें सरकारी खजाने में लगने वाली चपत की चिंता नहीं है और फाइल दबाकर सो गए उन्हें इसका परिणाम भुगतना चाहिए। मुख्य सचिव जिम्मेदारों का नाम पता लगाकर 8 साल में जो मुआवजे की रकम 3 गुना हो गई, उसकी वसूली उन अधिकारियों से कराएं।