साहब के गाड़ी में बैठते ही हो जाता है प्रमोशन, उतरते ही पुराने पद पर

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Lalit Upmanyu
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साहब के गाड़ी में बैठते ही हो जाता है प्रमोशन, उतरते ही पुराने पद पर

indore.सरकारी विभाग में प्रमोशन के इंतजार में जहां अफसरों, कर्मचारियों की आंखें थक जाती हैं, लेकिन यहां ऐसा नहीं है। यहां तो गाड़ी में बैठते ही अफसर का प्रमोशन हो जाता है। ये अलग बात है कि शाम को गाड़ी से उतरते ही फिर पुराने पद पर पदस्थ होना पड़ता है।



ममला पीडब्ल्यूडी यानी लोक निर्माण विभाग (इंदौर) का है। यहां बड़े पदों पर छोटों को चार्ज देने की ऐसी मुहिम चल रही है कि पूरी व्यवस्था ही ऊपर-नीचे हो गई है। कुछ मामले तो इतने रोचक हैं कि लगता है विभाग में मनमानी से चल रहा है। 





सुबह सब इंजीनियर, दोपहर एसडीओ





विभाग की इलेक्ट्रिक इकाई में दो सब इंजीनियर ऐसे हैं जिन्हें इंदौर के बाहर एसडीओ का प्रभार मिला हुआ है। वे जब इंदौर के दफ्तर में बैठते हैं तो सब इंजीनियर होते हैं लेकिन जैसे ही गाड़ी में बैठकर अपने निमाड़ जिलों के प्रभार वाले इलाके में पहुंचते हैं तो वहां एसडीओ की भूमिका में आ जाते हैं। सारे हस्ताक्षर, सारी कार्रवाई बतौर एसडीओ करते हैं। एसडीओ मतलब खुद के मूल पद से एक पद ऊपर। यहां पदस्थ चार सब इंजीनियर एसडीओ के चार्ज में हैं, जबकि विभाग में अलग-अलग जिलों में दो एई (असिस्टेंट इंजीनियर) उपलब्ध हैं।



 



ग्यारह एई दफ्तर में, 12 उनसे ऊपर के चार्ज में





पीडब्ल्यूडी के डिवीजन एक और दो में तो और विचित्र कहानी है। यहां बारह असिस्टेंट इंजीनियर संभाग के अलग-अलग दफ्तर में पंखों की हवा खा रहे हैं, जबकि उनसे नीचे के पद के सब इंजीनियर को एई से ऊपर एसडीओ का चार्ज दे रखा है। इनमें से कुछ तो इंदौर में ही पदस्थ हैं, जबकि बाकि महू, बदनावर, धार, सरदारपुर, झाबुआ, हरसूद, भीकनगांव और सेंधवा में हैं । 





चार्ज ने बिगाड़ा खेल





विभाग में चार्ज देने की ऐसी योजनाबद्ध व्यवस्था चल रही है कि पदों की पूरा संयोजन ही गड़बड़ा गया है। जिस तरह सब इंजीनियर एसडीओ के चार्ज में हैं, उसी तरह कई असिस्टेंट इंजीनियर भी हैं जो एक्जीक्यूटिव इंजीनियर के चार्ज में हैं, जबकि असली एक्जीक्यूटिव इंजीनियर दफ्तर में काम कर रहे हैं ।





बड़े चार्ज में रह लिए, छोटे में नहीं जाएंगे





बिगड़ी व्यवस्था का आलम यह है कि जो एई एक बार ईई के चार्ज में रह लिया वो एसडीओ बनना नहीं चाहता। उसका कहना होता है कि एक्जीक्यूटिव इंजीनियर के चार्ज में रहने के बाद अब उससे नीचे के एसडीओ के चार्ज में क्यों रहूं। इसके बाद उनके ऊपर उनसे छोटों को बैठा दिया जाता है।





सरकार, अफसर हैं चार्ज के पीछे





जिसे चाहे जिस जगह का चार्ज और कुर्सी सौंप देने की प्रथा सरकार, चीफ इंजीनियर और सुप्रिंटेंडिंग इंजीनियर के दफ्तर से शुरू हुई है। हालांकि अफसरों का ऑफ द रेकॉर्ड कहना है कि कई  सालों से पदोन्नति कमेटी की बैठक नहीं होने से प्रमोशन नहीं हो रहे हैं इस कारण छोटे अफसरों को बड़े अफसरों की जगह बैठाना पड़ रहा है। वे यह जरूर स्वीकार करते हैं कि सारे चार्ज मजबूरी में नहीं दिए हैं, कुछ में भोपाल या बड़े अफसरों के आदेश हुए हैं। 







 



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