इंदौर की सुमित्रा महाजन, भाई विजयवर्गीय से नहीं बैठी पटरी तो सिंधिया को माना पुत्र, आठ बार लगातार सांसद बनने वाली इकलौती महिला

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BP Shrivastava
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इंदौर की सुमित्रा महाजन, भाई विजयवर्गीय से नहीं बैठी पटरी तो सिंधिया को माना पुत्र, आठ बार लगातार सांसद बनने वाली इकलौती महिला

संजय गुप्ता, INDORE. इंदौर की पूर्व सांसद और लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन बुधवार (12 अप्रैल) को 80 साल की हो गई। महाराष्ट्र के चिपनूर में एक संघ परिवार के घर जन्मी महाजन भारत के इतिहास में इकलौती महिला सांसद है जो लगातार एक ही सीट से आठ बार चुनाव लड़ी और जीती। सभी के बीच ताई नाम से पहचान रखने वाली महाजन के 30 साल के सांसद के दौर में हमेशा बेदाग छवि रही। ताई के साथ ही एक दौर शुरू हुआ था भाई का यानि बीजेपी के वर्तमान राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का। वह भी इसी दौरान विधायक बने थे। इंदौर की राजनीति में ताई और भाई के दो ध्रुव हमेशा चले, दोनों की राजनीतिक लाइन अलग रही, आंतरिक विरोध की स्थिति यह रही कि साल 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान महाजन हारते-हारते बची और मात्र 11 हजार वोट से चुनाव जीती थी। भाई से जहां आंतरिक मनमुटाव लगातार जारी रहा तो वहीं उस दौर में कांग्रेस में होने के बाद भी ज्योतिरादित्य सिंधिया हमेशा पुत्र की तरह रहे और सार्वजनिक तौर पर सिंधिया भी उन्हें मां की तरह सम्मान देने से चूके नहीं, हालत यह रही कि लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान इंदौर आने पर भी उन्होंने ताई के खिलाफ एक शब्द नहीं कहा। 





ताई और भाई की राजनीतिक लाइन इसलिए थी अलग





साल 2009 के चुनाव के दौरान भूमाफिया का मुद्दा छाया हुआ था। ताई ने इसके खिलाफ लगातार अभियान छेड़ा हुआ था। कहा जाता है कि इस अभियान के कारण भाई गुट से दूरी अधिक बढ़ गई, नतीजा यह हुआ विधानसभा दो से जो भारी वोट की लीड मिलने की बात थी, वह 250 वोट पर समिट गई, हालत यह रही है कि मात्र 11 हजार वोट से ताई को जीत मिली। कहा जाता है कि दोनों के बीच की दूरी की सबसे बड़ी वजह राजनीति की अलग लाइन रही। भाई गुट हमेशा अपनों को आगे बढ़ाने में भरोसा रखता रहा। संगठन में नियुक्ति की बात हो या अपनों को टिकट देने की बात। इसी के चलते विधानसभा दो में हमेशा उनके ही पार्षद आते रहे, एमआईसी में भी मनचाहे पद लेते रहे। यहां तक कि पहले साथी रमेश मेंदोला को तो फिर पुत्र आकाश को भी टिकट दिलवाने में कामयाब रहे। वहीं ताई गुट इससे दूर रहा और इसी के चलते उनके लोगों को प्रदेश और इंदौर में वैसी राजनीतिक ऊंचाई नहीं मिली, जो मिल सकती थी। इसी कारण दोनों गुट अलग-अलग हो गए। हालत यह रही कि ताई ने अपने बेटों मिलिंद और मंदार को भी राजनीतिक रूप से आगे नहीं बढ़ाया। वहीं खुद भी कभी सीएम की दावे के लिए आगे नहीं बढ़ी और स्पीकर कार्यकाल खत्म होने बाद राज्यपाल के पद से भी दूर ही रहीं।





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पहला चुनाव पांच हजार वोट से हारी, फिर 1.11 लाख से जीती





महाजन के पिता पुरुषोत्तम साठे संघ के प्रचारक रहे हैं। जयंत महाजन से शादी के बाद वह 1965 में इंदौर आ गई। यहां निगम में एल्डरमैन बनीं और फिर वह उपमहापौर भी रहीं। संघ के कहने पर वह विधानसभा चुनाव में इंदौर तीन से महेश जोशी के खिलाफ मैदान में आई, लेकिन पांच हजार वोट से हार गईं। यह चुनाव में उनकी पहली और अंतिम हार थी। इसके बाद वह 1989 में लोकसभा चुनाव में मैदान में आई 1.11 लाख वोट से पूर्व सीएम प्रकाश सेठी को हराकर चुनाव जीती। फिर 1991, 1996, 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 में लगातार लोकसभा चुनाव जीतती गई। साल 2002-04 के दौरान वह केंद्रीय मंत्री भी रहीं, साल 2014 में स्पीकर बनीं। 





केंद्रीय परिवहन मंत्री को बोला लाश लाकर आपकी टेबल पर रख दूंगी





ताई के साथ हमेशा रहने वाले राजेश अग्रवाल जो उन पर किताब भी लिख रहे हैं, बताते हैं कि ताई ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान ही इंदौर बायपास को मंजूर कराया था। तब केंद्रीय परिवहन मंत्री उन्नीनकृष्णन थे, उस समय इंदौर के एबी रोड को मृत्यु मार्ग कहते थे क्योंकि आए दिन हादसे में लोगों की मौत होती थी। तब ताई पहली बार सांसद बनने पर उनसे मिली और कहा कि मेरे इंदौर का बायपास मंजूर कीजिए, नहीं तो एक भी अब मौत हुई तो लाश लाकर आपकी टेबल पर रख दूंगी। उसी दिन मंत्री ने बायपास को मंजूर कर लिया। ताई ने रेल कनेक्टिवटी के लिए काफी काम किया। पहले इंदौर से दिल्ली, मुंबई तक की कनेक्टिविटी नहीं थी। मिल बंद होने के चलते बढ़ रही बेरोजगारी को देखते हुए ताई ने सांवेर रोड और अन्य औद्योगिक क्षेत्रों के विकास का मुद्दा उठाया। 



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