उज्जैन के महाकाल लोक में त्रिपुरासुर वध का रथ खतरे में, स्ट्रक्चर कमजोर, एक्सपर्ट बोले- कलश गिरेंगे, कारण- ये चिपके हुए हैं

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Neha Thakur
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उज्जैन के महाकाल लोक में त्रिपुरासुर वध का रथ खतरे में, स्ट्रक्चर कमजोर, एक्सपर्ट बोले- कलश गिरेंगे, कारण- ये चिपके हुए हैं

संजय गुप्ता, INDORE. उज्जैन के महाकाल लोक में सप्तऋषियों की मूर्ति तेज हवा में उड़ने और खंडित होने की घटना के बाद अभी भी खतरा टला नहीं है। मूर्तिकार सुंदर गुर्जर ने यहां का दौरा किया है और द सूत्र को उन्होंने बताया कि आने वाला सबसे बड़ा खतरा यहां पर बने भव्य रथ को है। यह रथ कमजोर स्ट्रक्चर पर टिका हुआ है, इसमें अंदर लोहे के पाइप बहुत ही पतले 2.5MM के डले हुए हैं जो 4-5 इंच के होने चाहिए थे। इसके अलावा रथ में लगे कई स्ट्रक्चर जो यहां-वहां लटकाए गए हैं वह कमजोर है। पूरे स्ट्रक्चर का जमीन पर बेस भी मजबूत नहीं है। बीते दिनों आई आंधी में यहां भी नुकसान हुआ है, लेकिन इस पर अभी किसी का ध्यान नहीं है। यह रथ यहां पर भगवान शिव द्वारा किए त्रिपुरासुर वध की कथा के आधार पर बना हुआ है और काफी भव्य, आकर्षक है, जो इस महाकाल लोक की विशेष पहचान है।



मूर्तियों में 1 ही लेयर बनी, जबकि 6 लेयर में बनती है-



मूर्तिकार गुर्जर ने बताया कि यहां प्लास्टिक से जो मूर्तियां बनी है, वह दरअसल 1 ही लेयर पर बनाई गई, जबकि यह कम से कम 6 लेयर में बनाई जाना थी, तभी मजबूत रहती। साथ ही 5 फीट या इससे अधिक ऊंची मूर्तियों को रखने के लिए बेस से काफी मजबूती मिलना चाहिए, जो यहां पर नहीं थी। इसके चलते यह मूर्तियां हवा में उड़ गई और खंडित हो गई।



अभी एक ही कलथ गिरा है लेकिन आगे जाकर और गिरेंगे-



तेज हवा के कुछ दिन बाद यहां एक कलश (लट्‌टू) भी टूटकर गिरा था, जिसके गिरने से फर्श की टाइल्स भी टूट गई थी। इस पर भी गुर्जर कहते हैं कि गर्मी, पानी और बारिश इन तीनों मौसम का असर किसी भी निर्माण पर होता है और खासकर वहां जो किसी पदार्थ से चिपकाकर बनाते हैं। यहां जो भी कलश लगे हैं, वह सीधे बनाकर दीवार, द्वार पर चिपका दिए गए है, जबकि यह लटकाने वाले वजनदार स्ट्रक्चर पहले सॉकेट बनाकर उसमें फंसाएं जाते हैं और फिर उसके गेप में चिपकने वाला पदार्थ डालकर चिपकाया जाता है। लेकिन सीधे चिपकाने के कारण यह पदार्थ सूखेगा, फैलेगा तो कलश की पकड़ ढीली होगी और यह गिरेंगे।



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इंदौर के कलेक्ट्रेट संकुल में भी गिरती थी टाइल्स-



इंदौर में 50 करोड़ की लागत से बने भव्य कलेक्ट्रेट भवन (प्रशासनिक संकुल) में भी यही समस्या थी, यहां चिपकी भारी टाइल्स और कंगूरे गिरते थे, बाद में इसका हल यह निकला कि सभी टाइल्स और लटकाने वाले स्ट्रक्चर को नट-बोल्ट से कस दिया गया, जो अलग ही पूरे भवन में बाहर की ओर साफ नजर आते हैं।

 


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