Jabalpur. जबलपुर हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए एडीजी चयन और एसपी बालाघाट को निर्देश दिए हैं कि वे याचिकाकर्ता का प्रकरण सुप्रीम कोर्ट के मार्गदर्शी सिद्धांतों के अनुसार परीक्षण कर 30 दिन में आदेश जारी करें। दरअसल मध्यप्रदेश पुलिस भर्ती 2020 में छिंदवाड़ा निवासी अमित वर्मा ने पुलिस वैरीफिकेशन के फार्म में किशोरावस्था में किए गए अपराध की जानकारी लिखी थी। जिसके बाद उसे पुलिस की नौकरी के लिए अयोग्य करार दे दिया गया था। जिस संबंध में उसने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने पैरवी की। दलील दी गई कि बच्चों के संरक्षण हेतु विधायिका द्वारा भारत के संविधान के अनुच्छेद 15(3), 21(अ), 45, 47, 39(ई) और 39 (एफ) में विशेष उपबंध किए गए हैं। साथ ही जूविनाइल जस्टिस केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन एक्ट 2015 की धारा 3 में स्पष्ट रूप से प्रावधान है कि वयस्कता यानि 18 वर्ष के आयु से पूर्व किसी भी प्रकार का अपराध किए जाने पर वयस्कता प्राप्त करने पर यह माना जाएगा कि उसने पूर्व में कोई अपराध नहीं किया है और न ही अवयस्कता की आयु में किए गए अपराध का उल्लेख किया जाएगा।
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याचिकाकर्ता के वकील ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा यूनियन ऑफ इंडिया बनाम रमेश बिश्नोई मामले का भी जिक्र किया, जिसमें मार्गदर्शी सिद्धांत प्रतिपादित किए गए हैं कि अवयस्कता में किए गए अपराध के आधार पर अभ्यर्थी को शासकीय सेवा के अवसर से वंचित नहीं किया जा सकता।
सुनवाई के दौरान उभयपक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने याचिका का निराकरण करते हुए एडीजी चयन और पुलिस अधीक्षक बालाघाट को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए मार्गदर्शी सिद्धांतों के तहत याचिकाकर्ता के प्रकरण का परीक्षण करके 30 दिनों में आदेश जारी किया जाए।