संजय गुप्ता, INDORE. पूरे देश मे प्रसिद्ध गौतमपुरा का हिंगोट युद्ध इस बार सूर्य ग्रहण के कारण पड़वा पर नहीं हो सका। एक दिन की देरी के बाद यह युद्ध 26 अक्टूबर की शाम भाई दूज के दिन आज होगा। प्रशासन ने भी हिंगोट युद्ध मैदान पर पूरी व्यवस्था पहले से जमा दी है युद्ध को अधिकारियों ने हिंगोट मैदान का भी निरीक्षण भी किया और मैदान के चारों ओर जालियां भी बढाई गई है।जनता को हिंगोट न लगे इस लिए मैदान के चारों ओर 12 फीट ऊंची जालिया नगर परिषद के कर्मचारियों द्वारा बिछाई गई।
यह व्यवस्थाएं की गई मौके पर
उबड़ खाबड़ मैदान पर रोलर घुमाया गया , वहां की सफाई, विभिन स्थनों पर लाइटिंग की व्यवस्था , परिषद द्वारा सीसी टीवी कैमरे के अलावा पेयजल आदि व्यवस्था की गई है। गौतमपुरा, देपालपुर, बेटमा, हातोद से चार फायर ब्रिगेड , चार एम्बुलेंस , 400 से अधिक का पुलिस बल , व ट्रैफिक पुलिस चप्पे चप्पे पर तैनात रहेगी और व्यवस्था संभालेगी।
यह होगा युद्ध में
हिंगोट मैदान के लिए तुर्रा (गौतमपुरा) कलंगी (रुणजी) दोनो दलों के योद्धा ढोल ढमाकों के साथ सर पे साफा कंधे पर हिंगोट से भरा झोला एक हाथ में ढाल ओर दूसरे हाथ में जलती लकड़ी लिए नाचते हुए पहले भगवान देवनारायण जी के मंदिर पहुंच कर दर्शन करेंगे ओर फिर मैदान पर दलों के योद्धा एक दूसरे के गले मिलेंगे और फिर इशारा मिलते ही शुरू होगा एक दुसरे पर हिंगोट फैंकने का रोमांचकारी
युद्ध में हार-जीत वाली बात नहीं होती
कहने को तो यह युद्ध है पर यह ऐसी परंपरा है जो सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है और आज तक इसमें भाग लेने वालों ने इस परंपरा को खेल भावना से ही लिया है और आपसी मतभेद को इससे दूर ही रखा। कहा जाता है कि मुगलिया हमलों से क्षेत्र को बचाने के लिए मराठा इस तरह ही युद्ध किया करते थे और अचानक छुपकर किए गए हमले के आगे मुगल टिक नहीं पाते थे। इस युद्ध में हार-जीत जैसी कोई बात ही नहीं होती और ना ही युद्ध ने दोनों दल के योद्धाओं के बीच कभी विवाद को जन्म दिया। गले मिलकर युद्ध की शुरुआत होती है और समापन के बाद भी दोनों दल गले ही मिलते है
इस तरह दिया जाता है नाम
गौतमपुरा के योद्धाओं को तुर्रा नाम दिया जाता है और रूणजी गांव के योद्धा कलंगी। सुबह गोवर्धन पूजा के बाद पशुधन पूजे जाते हैं। उसके बाद गांव में पाड़ों की लड़ाई होती है और इसके बाद दोनों समूह के योद्धा देवनारायण भगवान के मंदिर जाकर पूजा करते हैं। इसके बाद सभी एकसाथ मैदान पहुंचते हैं और वहां शाम को युद्ध शुरू हो जाता है। दोनों दल के नेतृत्वकर्ता के पास एक थैला होता है जिसमें हिंगोट रखे रहते हैं। हार-जीत का फैसला इसी थैले से होता है। जिसके हिंगोट पहले खत्म हो जाएं वह विजयी होता है।
जिसमें बारूद भरते हैं वह एक फल हैं
हिंगोट स्थानीय फल है जो गौतमपुरा के आसपास ही पाया जाता है। इस फल को खोखला कर उसमें बारूद भरा जाता है और यहां पाई जाने वाली लकड़ी जिसे अरण्या कहा जाता है उसे अगरबत्ती की तरह जलाकर उससे हिंगोट को सुलगाया जाता है जिसे विपक्ष पर फेंका जाता