Jabalpur. जबलपुर के आदिवासी क्षेत्र कुंडम में राम तिल बहुतायत में मिल जाता है। अपने देश में भले ही इस राम तिल की पूछपरख न हो, लेकिन ऑस्ट्रेलिया में इसकी खासी डिमांड है। ऑस्ट्रेलिया और अन्य देशों में इसे पक्षियों के दाने के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। खासकर बर्ड-मीट इंडस्ट्री में रामतिल की खली को बहुतायत में इस्तेमाल किया जाता है।
जंगली फसल है राम तिल उर्फ जगनी
आदिवासी इलाकों में राम तिल को जगनी भी कहते हैं। वैसे तो आदिवासी इलाकों में इसकी पूछपरख ज्यादा नहीं है, क्योंकि इसका कोई बाजार नहीं है। यह जंगली पौधा पथरीले और पठारी इलाकों में खुद ब खुद उग जाता है। अप्रैल के महीने के आसपास आदिवासी इसकी कटाई कर इसका बीज निकाल लेते हैं। जिसके बाद उन्हें दक्षिण भारत से आने वाले व्यापारियों का इंतजार रहता है।
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85 रुपए किलो की दर से बिका रामतिल
वैसे तो रामतिल का उत्पादन काफी कम होता है, फिर भी किसानों को दलालों के जरिए अच्छी खासी आय हो जाती है। इस साल आदिवासी किसानों से दलालों ने 85 रुपए प्रति किलो की दर से रामतिल खरीदा है। रामतिल की पैदावार मंडला-डिंडौरी और जबलपुर के कुंडम क्षेत्र में होती है। यह अपने आप पैदा होने वाला पौधा है, इसकी खेती नहीं होती। यह दलाल रामतिल का तेल निकालकर इसकी खली ऑस्ट्रेलिया निर्यात कर देते हैं।
पक्षियों के दाने के काम आती है खली
दरअसल रामतिल का तेल भारतीय कॉस्मेटिक आइटम्स में उपयोग में लाया जाता है। वहीं तेल निकलने के बाद जो खली बचती है। उसे ऑस्ट्रेलिया और अन्य देशों में पक्षियों के दाने में उपयोग में लाया जाता है। वहां बर्ड-मीट इंडस्ट्री में इसे काफी अच्छा माना जाता है। इससे पक्षियों का शारीरिक विकास काफी तेजी से होता है।
उपसंचालक कृषि रवि आम्रवंशी ने बताया कि रामतिल की पैदावार आदिवासी बाहुल्य पहाड़ी और पथरीले इलाकों में होती है। इसका स्थानीय स्तर पर तो कोई उपयोग नहीं होता, लेकिन दक्षिण भारत के कुछ शहरों से आने वाले व्यापारी यहां से रामतिल ले जाते हैं। इसका तेल निकाला जाता है वहीं खली को मुंबई के रास्ते ऑस्ट्रेलिया समेत अन्य देशों में निर्यात किया जाता है। मीट इंडस्ट्री में पक्षियों के दाने के रूप में इसे उपयोग में लाया जाता है। इसके तेल को कॉस्मेटिक कंपनियां इस्तेमाल में लाती हैं।