Panna. बाघों के दीदार और दहाड़ के लिए प्रसिद्ध पन्ना टाइगर रिजर्व (Panna Tiger Reserve) में बाघ पी-111 की संदिग्ध हालत में मौत हो गई है। ये वही बाघ है जिसकी पहचान राजाबरिया के राजा के रूप में थी। बाघ विहीन हुए पन्ना टाइगर रिजर्व के फिर से आबाद होने की सफलता की कहानी इसी बाघ पी-111 से शुरू हुई थी। करीब 70 बाघों के कुनबे में सबसे डोमिनेंट ये बाघ गुरुवार ( 09 जून) को पार्क के कोर एरिया (Core Area) में पन्ना-कटनी रोड (Panna-Katni Road) के किनारे संदिग्ध हालत में मरा मिला है। पार्क प्रबंधन मौत कारण बीमारी बता रहा है। लेकिन सूत्र बाघ की मौत की वजह रोड पर किसी वाहन से टक्कर होना बता रहे हैं।
पन्ना का सबसे ताककवर बाघ था पी-111
पन्ना टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर उत्तम कुमार शर्मा (Director Uttam Kumar Sharma) ने 'द सूत्र' को बताया बाघ पी-111 का शव गुरुवार सुबह पार्क के कोर एरिया में राजा बरिया बीट पी-394 में पन्ना-कटनी रोड के किनारे मिला। मृत नर बाघ की उम्र करीब 13 वर्ष थी। ये टाइगर रिजर्व में डील-डौल व आकार में सबसे बड़ा बाघ था। पार्क में आने वाले पर्यटक इसकी एक झलक पाने को बेताब रहते थे। इस बाघ ने यहां बाघों की वंश वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । बेहद ताकतवर इस बाघ का पन्ना टाइगर रिजर्व के काफी बड़े इलाके में साम्राज्य था।
जानिए कैसे बाघ पी-111 से शुरू हुई थी सफलता की कहानी
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2009 में पन्ना टाइगर रिजर्व बाघ विहीन हो गया था। तब यहां बाघों के उजड़ चुके संसार को फिर से आबाद करने के लिए बाघ पुनर्स्थापना योजना शुरू की गई थी। इसके तहत 4 मार्च 2009 को बांधवगढ़ से बाघिन टी-1 पन्ना लाई गई थी। इस बाघिन का पेंच टाइगर रिजर्व से पन्ना लाए गए नर बाघ टी-3 से मेल (मेटिंग) हुआ। दोनों के मेल के बाद बाघिन टी-1 ने 16 अप्रैल 2010 की रात धुंधुआ सेहा में चार शावकों को जन्म दिया। इन्हीं शावकों में पहला शावक पी-111 था। दरअसल पन्ना में इसी शावक के जन्म से टाइगर रिजर्व में बाघों का कुनबा बढ़ाने की सफलता की कहानी शुरू हुई थी। इसीलिए पार्क में हर साल 16 अप्रैल को धूमधाम के साथ बाघ पी-111 का जन्मदिन मनाया जाता था। पार्क में तैनात वनकर्मी उसे राजा बरिया का राजा कहकर पुकारते थे। टाइगर रिजर्व का यह सबसे डोमिनेंट टाइगर और ताकतवर बाघ था। इसकी हुकूमत पन्ना कोर एरिया से लेकर हिनौता रेंज तक चलती थी।
पिता टी- 3 की टेरेटरी पर जमाया था कब्जा
बाघ पी-111 जन्म के बाद 18 माह तक अपनी मां बाघिन टी-1 के साथ रहकर शिकार करने का कौशल सीखा। इसके बाद मां से अलग होकर इसने अपनी टेरेटरी बनाई। इसने अपने पिता टी-3 के ही इलाके तालगांव पठार पर कब्जा जमा लिया। भारी-भरकम डील-डौल वाले इस शानदार नर बाघ का दबदबा पन्ना टाइगर रिजर्व के बड़े इलाके में कायम रहा। आलम यह था कि कोई भी दूसरा नर बाघ इसके इलाके में जाने की जुर्रत नहीं कर पाता था। यही वजह है कि इसने बाघिन पी- 213, पी-234 व टी-2 सहित अन्य कई बाघिनों के साथ पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों की वंश वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दिया। जीवन के अंत तक यह नर बाघ पन्ना कोर एरिया से अकोला बफर जोन तक के जंगल में स्वच्छंद रूप से घूमता रहा।
पन्ना टाइगर रिजर्व में मॉनिटरिंग व्यवस्था पर उठे सवाल
वर्तमान समय में पन्ना टाइगर रिजर्व में 70 से ज्यादा बाघ हैं। जो टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र सहित बफर क्षेत्र के जंगलों में विचरण कर रहे हैं। इसके पूर्व बाघों की इतनी संख्या टाइगर रिजर्व में कभी नहीं रही। इस लिहाज से पन्ना टाइगर रिजर्व बाघों की संख्या के मामले में इस समय अपने शिखर पर है। इस उपलब्धि को बरकरार रखना पार्क प्रबंधन के सामने सबसे बड़ी चुनौती है क्योंकि जरा सी चूक भी बड़े खतरे की वजह बन सकती है। इसलिए जंगल में मॉनिटरिंग सिस्टम को और बेहतर बनाना समय की जरूरत ही नहीं अनिवार्यता है। पन्ना बाघ पुनर्स्थापना योजना (Panna Bagh Restoration Scheme) के शिल्पी रहे पार्क के पूर्व फील्ड डायरेक्टर आर. श्रीनिवास मूर्ति (R. Srinivas Murthy) ने नर बाघ पी-111 की मौत पर गहरा दुःख जताया है। उन्होंने कहा कि जिस बाघ के जन्म से पन्ना टाइगर रिजर्व की सफलता की कहानी शुरू हुई थी उसकी मृत्यु यह बहुत ही दुखद और पीड़ादायी है।
एनटीसीए प्रतिनिधि की मौजूदगी में हुआ अंतिम संस्कार
बाघ की मौत कैसे और किन हालात में हुई ? इस बारे में पूछे जाने पर फील्ड डायरेक्टर ने बताया कि पोस्टमार्टम से संकेत मिला है कि बाघ की किडनी फेल हो गई थी। इसी वजह से उसकी मौत हो सकती है। मृत बाघ का पोस्टमार्टम वन्य प्राणी विशेषज्ञ डॉ. संजीव कुमार गुप्ता ने किया है। मृत बाघ के अवयवों का सैंपल जांच के लिए स्टेट फॉरेंसिक लैबोरेटरी सागर,वेटरनरी कॉलेज जबलपुर एवं बरेली (UP) स्थित वेटरनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट इंडिया (IVRI) भेजा जा रहा है। जांच रिपोर्ट आने पर ही पता चलेगा कि मौत की असल वजह क्या है। मृत नर बाघ का पोस्टमार्टम होने के बाद राजा बरिया में डिप्टी डायरेक्टर रिपुदमन सिंह भदौरिया, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) के प्रतिनिधि इंद्रभान सिंह बुंदेला (Inderbhan Singh Bundela) की मौजूदगी में दाह संस्कार किया गया। टाइगर सहित अन्य दूसरे वन्य प्राणियों की मौत होने पर उनका दाह संस्कार इसलिए कर दिया जाता है ताकि उनके अंगों का किसी प्रकार का दुरुपयोग न हो सके।
मप्र के किस टाइगर रिजर्व में कितने बाघ
मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में पन्ना सहित कुल 6 टाइगर रिजर्व हैं। 2018 में हुई बाघों की गणना में प्रदेश में कुल 525 बाघ पाए गए थे। इनमें सबसे ज्यादा 124 बाघ बांधवगढ़ में मिले थे। इसके बाद कान्हा दूसरे नंबर पर था यहां करीब 108 बाघ पाए गए थे। तीसरे नंबर पर पेंच टाइगर रिजर्व था, यहां 82 बाघों की मौजूदगी मिली थी। इसके बाद चौथे नंबर पर सतपुड़ा में 50 और पांचवें नंबर पर पन्ना में 23 बाघ पाए गए थे। छठवें नंबर पर सीधी जिले के संजय दुबरी टाइगर रिजर्व में 6 बाघों की मौजूदगी मिली थी। पन्ना में 2018 के बाद से अब तक बाघों की संख्या बढ़कर करीब 70 हो गई है। पिछले चार सालों में बाघों की संख्या में खासा इजाफा हुआ है।
(पन्ना से अरुण सिंह का इनपुट)