दमोह में इमली के पेड़ के नीचे से निकली थी प्रतिमा, तभी से सिद्ध स्थान का नाम हुआ बकायन के इमला वाले हनुमान

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Rajeev Upadhyay
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दमोह में इमली के पेड़ के नीचे से निकली थी प्रतिमा, तभी से सिद्ध स्थान का नाम हुआ बकायन के इमला वाले हनुमान

Damoh. कलयुग के प्रत्यक्ष देवता भगवान हनुमान को बताया गया है और मंगलवार को ही हनुमानजी का दिन माना जाता है, लेकिन दमोह जिला मुख्यालय से 27 किमी दूर  बटियागड ब्लाक के बकायन गांव में प्राचीन हनुमान मंदिर में मंगलवार ओर शनिवार को हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शनों के लिए पहुंचते है।यहां विराजमान हनुमानजी की प्रतिमा इमली के पेड़ के नीचे खुदाई में मिली थी इसलिए कहा जाने लगा इमला वाले हनुमान। यहां मांगी गई मनोकामना पूरी होने पर कपूर की आरती कराई जाती है।



प्रदेश भर से आते हैं श्रद्धालु



जिला मुख्यालय से 27 कि मी दूर दमोह-छतरपुर मार्ग पर बकायन गांव में यह दिव्य स्थान है जहां इमला वाले हनुमान विराजमान हैं। यह मंदिर लोगों की आस्था का प्रमुख कें द्र है और यहां साल भर भक्तों का आना लगा रहता है, लेकिन मंगलवार और शनिवार को भगवान को झंडा व चोला चढ़ाने की परंपरा है। इस स्थान की ऐसी मान्यता है कि पांच मंगलवार यहां हाजरी लगाने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।



इमली के पेड़ के नीचे निकली थी हनुमान प्रतिमा




कहा जाता है कि यह प्रतिमा 250 साल पुरानी है। गांव के बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि यहां पहले श्मशानघाट हुआ करता था जहां बड़ी संख्या में खजूर और इमली के पेड़ लगे थे। यहां एक संत महाजनदास आए थे।  रात में उन्होंने यहां विश्राम किया। तब उन्हें एक सपना आया कि यहां एक हनुमान जी की मूर्ति है। सुबह होते ही संत ने यह बात ग्रामीणों को बताई और इमली के पेड़ के  नीचे खुदाई करने पर हनुमान जी की प्रतिमा निकली जिसे यहां विराजमान किया गया और तभी से यह स्थान इमला वाले हनुमान मंदिर के रुप में पहचाना जाने लगा। 



इस स्थान के बारे में एक और किवंदती है कि कई साल पहले यहां माफीदार के यहां एक पुत्र ने जन्म लिया था जिसके पैर पीछे थे। तब उसने हनुमान जी से विनती की कि उसके बेटे के पैरे सीधे हो जाएं। जैसे ही माफीदार घर पहुंचा उसके बेटे के पैर सीधे मिले तभी से यह स्थान चमत्कारी स्थान माने जाने लगा। इसके बाद यहां सुंदरकांड, भजन, कीर्तन शुरु हो गया और कपूर आरती भी तभी से प्रारंभ हुई। 



डकैतों को बंदरों ने भगाया था




कहा जाता है कि करीब 55 साल पहले यहां डाकुओं ने दावत दी तो उन्हे बंदर ही बंदर नजर आए जिससे वह डाकू धीरे-धीरे पीछे पिछलते गए और भाग निकले। महंत जयरामदास कुटरी गांव से युवा पंडित महादेवदास को यहां लाए जिन्हे बोरे महाराज के नाम से जाना जाता था।  



110 सालों से हो रही कपूर आरती




देवउठनी एकादशी से लेकर देवश्यनी एकादशी तक यहां हनुमानजी की विशेष कपूर आरती होती है यह क्रम पिछले 110 वर्षों से चल रहा है। प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को यहां सैकड़ों किलो कपूर से आरती हो जाती है। अभी तक इस मंदिर में एक दिन में ढाई क्विंटल कपूर से हनुमान जी की आरती करने का रिकार्ड दर्ज है। देवउठनी एकादशी से देवश्यनी एकादशी तक जो पहला और अंतिम मंगलवार पड़ता है उस दिन यहां मन्नत की आरती होती है उसके बाद इस आरती का आयोजन बंद हो जाता है। मंदिर के महंत और आरती करने वाले पुजारी ने बताया कि हनुमान जयंती पर 125 किलो कपूर से आरती की जाती है।


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