गुजरात में कैबिनेट बदलाव का फार्मूला रहा सक्सेस, अब मध्यप्रदेश के तकरीबन 30 मंत्री हो सकते हैं कैबिनेट से बाहर

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Shivasheesh Tiwari
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गुजरात में कैबिनेट बदलाव का फार्मूला रहा सक्सेस, अब मध्यप्रदेश के तकरीबन 30 मंत्री हो सकते हैं कैबिनेट से बाहर

BHOPAL. गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बड़ी सफलता मिली है। चुनाव से पहले गुजरात में मुख्यमंत्री विजय रूपाणी और उनकी कैबिनेट को हटाया गया था। इसे जीत का कारण माना जा रहा है।  गुजरात में एक तरफा भगवा लहराने पर एंटी इंकम्बेंसी को खत्म करने वाले फार्मूले की चर्चा जोरों पर है। इसी के चलते अब एमपी के मंत्रिमंडल में भारी उठापटक की अटकलें जोर पकड़ती जा रही हैं। बीजेपी ने सत्ता और संगठन दोनों को मंत्रियों की निगरानी के काम पर लगा दिया है, जिनकी रिपोर्ट तय करेगी कि कैबिनेट में कौन रहेगा कौन नहीं रहेगा। बीजेपी ऐसे मंत्रियों की छुट्टी करने का मूड बना चुकी है, जिनकी सुस्ती पार्टी पर भारी पड़ सकती है। इसके लिए बकायदा मंत्रियों को टास्क दिया गया है। मंत्री उस टास्क को जितनी शिद्दत से पूरा करेंगे। उसकी कुर्सी उतनी ही मजबूत रहेगी। जो मंत्री पार्टी की कसौटी पर अब तक खरे नहीं उतरे, वो कैबिनेट से बाहर हो सकते हैं। या उनके विभाग घट सकते हैं। इसके बाद उन विधायकों को मौका मिलेगा, जो लंबे समय से मंत्रिमंडल में शामिल होने की राह देख रहे हैं, जिन्हें कैबिनेट में शामिल कर खुद पार्टी को भी कई सियासी समीकरण साधने हैं। 





एमपी में होगा बदलाव?





गुजरात चुनाव से बमुश्किल तीन महीने पहले बीजेपी ने सख्त फैसले लिए। जिन मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे वो तुरंत बदल दिए गए। इन सख्त फैसलों का असर क्या हुआ ये गुजरात के नतीजों में साफ नजर आ गया। मंत्रियों पर हुई सख्ती से जनता की नाराजगी कम हुई और एंटी इंकम्बेंसी का खतरा भी कम हुआ। गुजरात में ये फॉर्मूला सक्सेसफुल होने के बाद अब बीजेपी का उसे मध्यप्रदेश में भी आजमाने का इरादा है। अटकलें हैं कि चुनावी साल शुरू होने से पहले बीजेपी मध्यप्रदेश में भी बड़ा फेरबदल कर सकती है। 





नाराजगी दूर करने का आखिरी मौका





इसके लिए बीजेपी ने एक फॉर्मूला तैयार किया है। जिसके तहत अब मंत्री खुद अपने परफॉर्मेंस के लिए जिम्मेदार होंगे। अपनी परफॉर्मेंस रिपोर्ट को सुधारने के लिए मंत्रियों को अपने-अपने प्रभार वाले क्षेत्रों का दौरा करना है। खासतौर से ग्रामीण इलाकों में जाकर वहां लोगों से मिलना है और चौपाल भी लगानी हैं। संगठन इस बात पर नजर रखेगा कि मंत्री ये जिम्मेदारी निभा रहे हैं या नहीं। गांवों में रात में रुक कर वहां चौपाल लगाना और  लोगों की शिकायतें सुनना और उन्हें दूर करना हर मंत्री के लिए जरूरी है। शिवराज कैबिनेट में ऐसे तीस मंत्री हैं, जिनकी रिपोर्ट इस मामले में काफी खराब मानी जा रही है। कुछ मंत्री ऐसे भी हैं जो अपने विभागीय कामों को ही पूरी जिम्मेदारी के साथ अदा नहीं कर पा रहे। ऐसे तीस मंत्री अब सत्ता और संगठन की रडार पर हैं। जिनके पर गांव में चौपाल लगाकर लोगों की नाराजगी दूर करने का आखिरी मौका है। उस पर खरे नहीं उतरे तो पद गंवाना पड़ सकता है। वैसे भी अलग-अलग अंचलों से कई विधायक अब भी मंत्रिमंडल में अपनी बारी आने का इंतजार कर रहे हैं। 





इन अंचलों को कैबिनेट में जगह मिलने का इंतजार





महाकौशल और बुंदेलखंड जैसे अंचलों को कैबिनेट में जगह मिलने का इंतजार है। विंध्य का भी कमोबेश यही हाल है। यही वजह है कि न सिर्फ सत्ता में बैठे लोग बल्कि संगठन भी अपने मंत्रियों के कामों पर पैनी नजर रखी है। ताकि वेटिंग लिस्ट में लगे लोगों को वाजिब  जगह मिल सके और जो बार-बार ताकीद करने के बाद भी सक्रिय नहीं हुए। ऐसे मंत्रियों को बाहर किया जा सके। हर अंचल में ऐसे नामों की लंबी फेहरिस्त है, जो कैबिनेट में जगह मिलने का इंतजार कर रहे हैं।





फेरबदल का दौर कभी भी शुरू हो सकता





मंत्रिमंडल में कुछ नए चेहरे शामिल कर या थोड़ा बहुत फेरबदल कर बीजेपी की कोशिश आंचलिक समीकरणों को साधने की भी है। इसके अलावा जो मंत्री सुस्त हैं, उन्हें बदलकर जनता की नाराजगी को भी काफी हद तक कम किया जा सकता है। इसलिए इस बार परफॉर्मेंस पर खासा जोर दिया जा रहा है। खबर है कि संगठन ने तीस मंत्रियों का परफॉर्मेंस पुअर कैटेगरी में रखा है, जिन्हें बदलने पर जोर है। हालांकि इस खबर की वजह से कैबिनेट में हड़कंप मचा हुआ है। ये अंदेशा सभी को है कि अब फेरबदल का दौर कभी भी शुरू हो सकता है। उससे बचने के लिए अपना टास्क पूरा करना जरूरी है। क्योंकि इस बार मामला सिर्फ सीएम तक रहने वाला नहीं है। संगठन जो रिपोर्ट तैयार करेगा उसकी रिपोर्ट पार्टी के आला नेताओं तक पहुंचाई जाएगी ताकि सही फैसला लिया जा सके।





दावेदारों की लाइन लंबी





शिवराज कैबिनेट में अभी चार मंत्री पद खाली हैं। जिनके लिए दावेदारों की लाइन लंबी है। मंत्रिमंडल में शामिल होने वाले दावेदारों में गौरीशंकर बिसेन, रामपाल सिंह, राजेंद्र शुक्ला, पारस जैन,  सुरेंद्र पटवा, करण सिंह वर्मा, महेंद्र हार्डिया, सीतासरन शर्मा, सुलोचना रावत का नाम चर्चा में है। इन दावेदारों में से अधिकतर नेता पहले मंत्री रह चुके हैं। इसके अलावा बीजेपी कई चौंकाने वाले नाम भी ला सकती हैं, क्योंकि बीजेपी में ऐसे विधायकों की भी लंबी फेहरिस्त है, जो तीसरी या चौथी बार विधायक बने हैं। इसके चलते यह विधायक भी मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए दावेदारी करते हैं। अंचल और जातिगत समीकरणों को साधने के लिए ये बीजेपी की बड़ी मजबूरी भी है। चंद रोज और उसके बाद ये साल खत्म होगा। चुनावी साल शुरू हो जाएगा। ये साल हर राजनीतिक दल के लिए अहम है। इसके मद्देनजर कई बड़े फैसले लिए जा सकते हैं। 





चुनाव जैसे जैसे नजदीक आते हैं। मंत्रिमंडल विस्तार की मांग जोर पकड़ने लगती हैं। कौन से चेहरे शामिल हो सकते हैं। कौन से चेहरे बाहर हो सकते हैं, ये अटकलें भी तेज होती हैं। इस बार भी बहुत से विधायक अपनी बारी आने का इंतजार कर रहे हैं। देखना ये है कि इस बार मंत्रिमंडल विस्तार या फेरबदल की खबरें सिर्फ अटकलें ही साबित होती हैं या चुनावी साल में प्रवेश करने से पहले बीजेपी सत्ता और संगठन कोई अहम फैसला लेते हैं।



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