विंध्य क्षेत्र में जातिगत समीकरण होते हैं असरकारी, बीजेपी की आपसी गुटबाजी से सीटों पर असर पड़ने की ज्यादा आशंका

author-image
Ganesh Pandey
एडिट
New Update
विंध्य क्षेत्र में जातिगत समीकरण होते हैं असरकारी, बीजेपी की आपसी गुटबाजी से सीटों पर असर पड़ने की ज्यादा आशंका

BHOPAL. विंध्य क्षेत्र के चुनाव में विकास के आधार पर वोटिंग नहीं होती है। यहां जातिगत समीकरण बड़े असरकारी होते हैं। खासकर रीवा, सतना, सीधी में जातिगत आधार पर ही चुनाव लड़ा और जीता जाता है। मसलन प्रत्याशियों की जाति के आधार पर उन्हें मिलने वाले वोट का अंतर स्पष्ट नजर आता है। यही वजह रही कि ठाकुरों के हिमायती रहे राजनीति के चाणक्य स्वर्गीय अर्जुन सिंह और ब्राह्मण मतदाताओं का प्रतिनिधि करने वाले सफेद शेर स्वर्गीय श्रीनिवास तिवारी की वजह से ही विंध्य क्षेत्र में कांग्रेस को बढ़त मिलती रही है।



वोटों का ध्रुवीकरण



स्वर्गीय अर्जुन सिंह ने स्वर्गीय इंद्रजीत पटेल के मार्फत पटेल वोटों का भी ध्रुवीकरण किया। इसकी वजह से पटेल और ठाकुर वोटर कांग्रेस के वोट बैंक बन गए थे। स्वर्गीय इंद्रजीत पटेल के निधन के बाद कुर्मी-पटेल वोट बैंक कांग्रेसी, बिखरकर बीजेपी और बसपा की तरफ झुक गया। यही वजह रही कि 90 के दशक में बसपा दलित-आदिवासी और कुर्मी वोट बैंक के सहारे तीसरी राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरी। तब बसपा ने सोशल इंजीनियरिंग का दांव खेला और अगड़ा-पिछड़ा छोड़कर सभी के लिए दरवाजे खोले। हालांकि यह फॉर्मूला ज्यादा हिट नहीं हुआ और रीवा और सतना संसदीय क्षेत्र से ही सूपड़ा साफ होने लगा। अगर बसपा की कहानी में सबसे बड़ा तथ्य कुछ छिपा है तो वह यह है कि इसने कांग्रेस को हाशिये में डालने का काम किया है। इसके बाद से कांग्रेस अपने उस मजबूत स्वरूप में कभी नहीं आ सकी जो वो थी, क्योंकि बसपा ने एससी और एसटी का एक बड़ा तबका कांग्रेस से छीनकर अपने पाले में कर लिया।



बसपा का प्रभाव समाप्ति की कगार पर



बसपा सुप्रीमो मायावती की नीतियों के चलते विंध्य क्षेत्र में बसपा का प्रभाव लगभग समाप्त होने के कगार पर है। बसपा का दलित- आदिवासी वोट बैंक का 70 फीसदी मतदाता बीजेपी से जुड़ गया। इससे विंध्य क्षेत्र में बीजेपी एक ताकतवर पार्टी के रूप में स्थापित हो गई। बीजेपी के युवा सांसद गणेश सिंह को कुर्मी मतदाता अपना नेता मानने लगे हैं, क्योंकि कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य राजमणि पटेल और पूर्व मंत्री कमलेश्वर पटेल के नेतृत्व में वे अपने आपको राजनीतिक रूप से असुरक्षित महसूस करने लगे हैं।



2018 विधानसभा चुनाव



2018 के विधानसभा की बात करें तो इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 6 सीटें मिली थीं। क्षेत्र से चुनाव जीतकर कांग्रेस के 6 विधायक विधानसभा पहुंचे। हालांकि बाद में बिसाहूलाल सिंह बीजेपी में शामिल हो गए। 2018 के चुनाव में बसपा 2 सीटों पर नंबर 2 की पोजीशन पर थी। वहीं 1-1 सीटों पर समाजवादी पार्टी और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के प्रत्याशी दूसरे नंबर पर आए थे। यानी बीजेपी और कांग्रेस के अलावा दूसरे दलों को भी लोग यहां वोट देते हैं।



2013 का विधानसभा चुनाव



2013 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो इस विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को प्रचंड बहुमत मिला था। इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी को विंध्य में 30 में से 12 सीटों पर जीत मिली थी। साथ ही साथ बीएसपी के 2 विधायक चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। खास बात यह रही कि बीएसपी के 5 कैंडिडेट नंबर 2 पर भी रहे थे।



2008 विधानसभा चुनाव



2008 के विधानसभा चुनाव में विंध्य में भाजपा को बंपर जीत मिली थी। भारतीय जनता पार्टी को 24 सीटों पर विजय हुई थी। बता दें कि 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की विंध्य में बहुत ही करारी हार हुई थी, पार्टी को मात्र 2 सीटें मिली थीं। यहां तक कि कांग्रेस से ज्यादा तो चुनाव में बीएसपी को सीटें मिल गई थीं। बीएसपी के 3 प्रत्याशियों को जीत नसीब हुई थी।



2003 विधानसभा चुनाव



2003 के विधानसभा चुनाव में 10 साल कि दिग्विजय सरकार सत्ता में वापसी नहीं कर पाई थी और बीजेपी को बहुमत मिला था। बता दें कि विंध्य में भी बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन किया था और यहां पर पार्टी ने 28 में से 18 सीटों पर कब्जा किया था। वहीं कांग्रेस की बात करें तो पार्टी को सिर्फ 4 सीटों से ही संतुष्ट होना पड़ा था। साथ ही साथ समाजवादी पार्टी ने भी इस चुनाव में अपने प्रदर्शन से सबको चौंका दिया था। पार्टी के 3 प्रत्याशी भी चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे।



2023 के चुनाव में क्या होगा



विधानसभा का संभावित 2023 के चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन 2018 की तुलना में कमजोर होगा। इसकी वजह भी स्पष्ट है कि सतना सांसद गणेश सिंह का अति कुर्मी प्रेम से बीजेपी के ही ब्राह्मण और ठाकुर नेता नाराज हैं। मैहर विधायक नारायण त्रिपाठी अपने ही पार्टी के सांसद गणेश सिंह के खिलाफ लगातार बयानबाजी करते आ रहे हैं। पिछले चुनाव में दलित वोट बैंक का झुकाव बीजेपी की ओर इसलिए था, क्योंकि उज्ज्वला योजना और प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ मिला था। आगामी विधानसभा चुनाव में दलित वोट बैंक किधर जाएगा, यह अभी भविष्य के गर्भ में है। लगातार सत्ता से बाहर रहने के बाद कांग्रेस नेताओं में एकजुटता की झलक देखी जा रही है। जबकि बीजेपी में रीवा में ब्राह्मण नेताओं के बीच द्वंद्व चल रहा है, यानी विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम, सांसद जनार्दन मिश्रा और पूर्व मंत्री राजेंद्र शुक्ला के बीच पटरी नहीं बैठ पा रही है। इसी प्रकार सीधी में केदारनाथ शुक्ला और शरदेन्दु तिवारी के बीच मनभेद है। शिवराज के कैबिनेट मंत्री बिसाहूलाल सिंह ऊट-पटांग बयानबाजी से बीजेपी के नेता नाराज चल रहे हैं। कुल मिलाकर बीजेपी की आपसी गुटबाजी से सीटों में असर पड़ने की संभावना अधिक है। यदि आज चुनाव होते हैं तो कांग्रेस को एक दर्जन के लगभग सीट मिलने की उम्मीद है।


Whose government will be formed in MP गर्भ में सरकार-किसकी होगी जय-जयकार एमपी में किसकी बनेगी सरकार एमपी विधानसभा चुनाव 2023 Assembly Election MP-2023 एमपी में कांग्रेस की चुनौती एमपी में बीजेपी की चुनौती Scindia-Chambal and JYAS will decide the results in MP एमपी में सिंधिया-चंबल और जयस तय करेंगे नतीजे MP Assembly Election 2023