BHOPAL. कर्नाटक चुनाव से फारिग होकर बीजेपी आलाकमान ने चैन की सांस नहीं ली है। बल्कि एक्शन मोड ने और रफ्तार पकड़ ली है। कर्नाटक में प्रचार थमते ही पीएम नरेंद्र मोदी का राजस्थान में रुख करना इसी बात का बड़ा संकेत है। अब नजरें राजस्थान और छत्तीसगढ़ के अलावा मध्यप्रदेश पर जमी होंगी। बल्कि यूं कहें कि मध्यप्रदेश पर ही ज्यादा होंगी तो भी कुछ गलत नहीं होगा। चुनावी साल से पहले से ही मध्यप्रदेश में बीजेपी के कई नेता अपने-अपने स्तर पर सर्वे कर रहे हैं। कुछ सर्वे नेताओं की इच्छा से हुए तो कुछ को सर्वे करने और नब्ज जानने की जिम्मेदारी सौंपी गई। गिले, शिकवे, शिकायतें और कमजोरियां सब सामने आ चुकी हैं, लेकिन उन पर फैसला अब तक बर्खास्त रहा। अब समझ लीजिए कि एमपी में फैसले की घड़ी आ चुकी है। आलाकमान का सारा फोकस अब मध्यप्रदेश पर होगा। सख्त फैसले लिए जाएंगे और ताबड़तोड़ बदलाव भी हो सकते हैं। कुल मिलाकर ये समझ लीजिए बस कि आने वाले चंद दिनों में सारे संशय दूर होंगे और ये साफ हो जाएगा कि बीजेपी किस ट्रैक पर आगे बढ़ने वाली है।
खुद नड्डा और अमित शाह दौरे कर लोगों से मुलाकात कर चुके हैं
2023 के विधानसभा चुनावों को देखते हुए बीजेपी एक्टिव तो पहले हो गई, लेकिन किस राह चलना है ये तय न हो सका। कई दिग्गजों ने प्रदेश की नब्ज जानने की कोशिश की सर्वे पर सर्वे भी हुए। लेकिन उन सर्वे पर एक्शन क्या लिया गया ये अब तक नजर नहीं आया था। सरकारी और संगठन के स्तर पर भी कई योजनाओं का ऐलान हुए कई अभियान चलाए गए, लेकिन उनका हासिल कुछ दिखाई नहीं दिया। इधर चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं।
लेकिन अब आलाकमान यानी बीजेपी की वो तिकड़ी जिनके ऊपर पूरी पार्टी का दारोमदार है, पीएम नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा कर्नाटक से फ्री हो चुके हैं। अब उनकी नजरें राजस्थान और छत्तीसगढ़ पर तो होंगी ही मध्यप्रदेश पर खास फोकस भी होगा। इस प्रदेश को बीजेपी किसी हाल गंवाना नहीं चाहेगी, लेकिन यही वो प्रदेश है जहां बीजेपी को सबसे ज्यादा और सबसे अलग-अलग शिकायतें मिल रही हैं। जिन्हें जानने के लिए अब तक बहुत से सर्वे भी हो चुके हैं। खुद जेपी नड्डा और अमित शाह अलग-अलग दौरे कर
सत्ता और संगठन के लोगों से मुलाकात कर चुके हैं।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के सर्वे में चौंकाने वाले नतीजे आए हैं
क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल ने हर जिले में जाकर कार्यकर्ताओं से मुलाकात कर गोपनीय सर्वे किए हैं। सीएम शिवराज सिंह चौहान भी टिकट के ख्वाहिशमंदों की रिपोर्ट ले चुके हैं। टिकट के दावेदारों के लिए तो तीन तीन इंटरनल सर्वे का दावा भी किया जा रहा है। खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया भी अपने समर्थक और अपनी स्थिति जानने के लिए सर्वे करवा चुके हैं। हर सर्वे में चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं।
अफसरशाही के कारण लोकल नेताओं की सुनवाई नहीं हो रही
शाह और नड्डा की बैठक में भी ये बात सामने आई कि कार्यकर्ता बेहद नाराज है। जामवाल के सर्वे के वैसे तो बहुत से बिंदू गोपनीय हैं, लेकिन मोटे तौर पर ये बात सामने आई कि सत्ता और संगठन का तालमेल तकरीबन न के बराबर है कार्यकर्ताओं में नाराजगी है। सीएम के सर्वे में मंत्रियों के प्रति नाराजगी और संगठन की कमजोरी उजागर हुई तो संगठन ने अपने सर्वे में दावा किया कि अफसरशाही इतनी हावी है कि कार्यकर्ताओं और लोकल नेताओं की सुनवाई ही नहीं हो रही। सिंधिया के सर्वे का लब्बोलुआब भी ये रहा कि उन्हें पुरानी भाजपा का साथ नहीं मिल रहा है। बीजेपी की विकास यात्रा में भी एंटीइंकंबेंसी और जनप्रतिनिधियों के लिए नाराजगी साफ नजर आई।
रूठों को मनाने के लिए कुछ बड़े चेहरों पर गाज गिराई जा सकती है
कुल मिलाकर शिकायतें ही शिकायतें हैं। जिन्हें जमा करें तो शायद बीजेपी कार्यालय का एक कक्ष भी कम पड़ जाए। लेकिन ये कोई नहीं जानता कि आलाकमान के दरबार में भिजवाई जा चुकी इन शिकायतों का अब करना क्या है। पर अब तस्वीर साफ होने में ज्यादा वक्त नहीं बचा है। आने वाले चंद दिनों में ये साफ हो जाएगा कि बीजेपी किस तर्ज पर आगे बढ़ने वाली है। कार्यकर्ता और जनता की नाराजगी दूर करने के लिए कुछ सख्त फैसले लिए जा सकते हैं। सत्ता और संगठन के स्तर पर रूठों को मनाने के लिए कुछ बड़े चेहरों पर गाज गिराई जा सकती है। असंतुष्टों को मनाने या कम से कम पार्टी में बनाए रखने के लिए भी ठोस फैसले हो सकते हैं। अब तक जो बिखराव पार्टी में नजर आ रहा था वो बीजेपी की स्टाइल में एक सिस्टमैटिक रणनीति में ढलकर आगे चलता नजर आ सकता है।
शिवराज- वीडी पर गाज गिर सकती है और सिंधिया का कद घट सकता है
कर्नाटक चुनाव गुजरते-गुजरते एक बार फिर मध्यप्रदेश में बदलाव की अटकलें जोर पकड़ने लगी हैं। ये तय माना जा रहा है कि कर्नाटक में सख्त फैसलों की कामयाबी के बाद बीजेपी यहां भी सख्ती से ही फैसले लेगी। जिसका शिकार कई बड़े नेता हो सकते हैं। खासतौर से वो नेता जो बेबाकी के साथ अपना असंतोष और बगावत पार्टी के सामने जाहिर कर चुके हैं। उनको लेकर पार्टी का रुख क्या होगा ये बहुत कुछ बस चंद ही घंटों में तय हो जाएगा। बहुत समय से ये अटकलें हैं कि गुजरात और कर्नाटक की तरह शिवराज और वीडी शर्मा पर गाज गिर सकती है और सिंधिया का कद घट सकता है। इन अटकलों पर भी जल्द विराम लग सकता है। पार्टी किसी नए चेहरे के साथ मैदान में उतरेगी या शिवराज बने रहेंगे या सारे कंट्रोल आलाकमान के हाथ में होंगे। इस सवालों पर जमी धूल साफ होने में अब लंबा वक्त नहीं लगेगा।
फिलहाल मध्यप्रदेश में बहुत से फैक्टर्स पर बीजेपी की नजर है। जिसमें से कुछ कर्नाटक की राजनीति से मिलते जुलते हैं। यही वजह है कि कर्नाटक मॉडल की कामयाबी या नाकामी मध्यप्रदेश में बड़े बदलावों का कारण बन सकती है।
MP में ‘कर्नाटक मॉडल’ क्यों?
- दीपक जोशी कांग्रेस में शामिल होकर बागियों को रास्ता दिखा चुके हैं
ये भी माना जा रहा है बाकी प्रदेशों से मध्यप्रदेश का हाल अलग है
सख्त फैसलों की जद में उन नेताओं का आना तो लाजमी है ही जो बगावत जता चुके हैं। एंटीइंकंबंसी के चलते मंत्री मंडल विस्तार और फेरबदल से इंकार भी नहीं किया जा सकता। ये भी माना जा रहा है कि कई सिंधिया समर्थकों का कैबिनेट में कद घटेगा ताकि कार्यकर्ताओं की नाराजगी काबू में रह सके। गाज अगर सीएम के चेहरे या प्रदेशाध्यक्ष के पद पर गिरी तो भी हैरानी नहीं होगी। हालांकि, ये भी माना जा रहा है कि बाकी प्रदेशों से मध्यप्रदेश का हाल अलग है इसलिए यहां बीजेपी ज्यादा छेड़छाड़ नहीं करेगी। मंत्रीमंडल के चार पद भरने से लेकर कई ऐसे फैसले हैं जिन पर मध्यप्रदेश में कोई फैसला नहीं हुआ। वेट एंड वॉच खत्म होने की घड़ी आ ही चुकी है।
समीक्षाओं के बाद तय होगा कि आला पदों पर बदलाव होंगे या नहीं
कर्नाटक की भट्टी में तप कर सोना निकला तो यकीनन बीजेपी की वहीं भट्टी मध्यप्रदेश में तपेगी और अगर सारी मेहनत पिघल कर बह गई तो फिर मध्यप्रदेश में अलग से समीक्षाओं का दौर शुरू होगा। जिसके बाद ये तय होगा कि सीएम, प्रदेशाध्यक्ष जैसे आला पदों पर बदलाव होने हैं या नहीं। असंतोष जता रहे और टिकट की जिद पर अड़े नेताओं के साथ क्या रणनीति अपनाई जाएगी। इस पर सटासट फैसले हो सकते हैं। जिनके बाद प्रदेश बीजेपी में सियासी उबाल आना भी तय है।