इस शिव को अमृत चाहिए, बदल गए महाराज, प्रदेश की राजनीति में विष्णु की धमक

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इस शिव को अमृत चाहिए, बदल गए महाराज, प्रदेश की राजनीति में विष्णु की धमक

हरीश दिवेकर। चैत के पहले ही गर्मी रंग में आने लगी है। भैया, कस के ठंड पड़ी तो गर्मी भी तो झेलनी पड़ेगी। प्रकृति भेदभाव नहीं करती। यूपी में योगी की ताजपोशी हो चुकी है। वैसे तो इस समय कश्मीर फाइल्स का जोर है। फिर डायरेक्टर साहब यानी विवेक अग्निहोत्री का ‘होमोसेक्सुअल’ वाले बयान का वीडियो सुर्खियां भड़का गया। कांग्रेस के कद्दावर नेता दिग्विजय सिंह को एक साल की सजा हो गई। हालांकि उन्होंने जमानत के लिए अर्जी लगा दी है। मध्य प्रदेश में 2023 विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां शुरू हो गई हैं। सूबे के मुखिया अपनी कैबिनेट के साथ पहाड़ पर चिंतन करने गए हैं। वैसे कांग्रेस की हालत पतली है, पर भांजी मारने वालों का खतरा हमेशा रहता है। जाहिर है शिवराज इसी के बंदोबस्त में लगे हैं। लीड खबरों के अलावा मध्य प्रदेश में कई अन्य खबरें भी पकीं, आप तो सीधे अंदर उतर आइए....



मंथन का अमृत कौन पिएगा: शिवराज (cm shivraj) बीजेपी शासित राज्यों में सबसे लंबी पारी खेलने वाले सीएम का खिताब हासिल कर चुके हैं। ऐसा करने के बाद शिवराज इनोवेटिव मोड में आ गए हैं। पचमढ़ी (Pachmarhi) में अपनी कैबिनेट के साथ मिशन 2023 के लिए सियासी कुंभ का इवेंट कर रहे हैं। यहां उन्होंने सबसे लंबी कैबिनेट बैठक करने का इतिहास बनाया। शिवराज विरोधियों का कहना है कि ये सारी कवायद हाईकमान के सामने अपने आप को इनोवेटिव मुख्यमंत्री साबित करने के लिए की जा रही है। 2018 में उनके नेतृत्व को जनता नकार चुकी है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या हाईकमान इस चिंतन-मनन के मंथन से निकले अमृत को शिवराज को पीने देगी या फिर ऐन वक्त पर अमृत का घड़ा लेकर कोई ओर पी जाएगा। बहरहाल ये आने वाला समय ही बताएगा। हाल फिलहाल शिवराज चुनाव से डेढ़ साल पहले अपने साथियों के साथ प्रकृति के बीच अमृत मंथन करने को लेकर दिल्ली तक चर्चा में बने हुए हैं।



दिल्ली के फाइव स्टार रूम 270 की चर्चा: संघ के एक पदाधिकारी का बीजेपी के एक युवा नेता के साथ दिल्ली के जनपद स्थित फाइव स्टार होटल में ठहरना चर्चा का विषय बना हुआ है। इन पदाधिकारियों के चाहने वालों ने तो होटल के कमरा नंबर 270 की पड़ताल भी कर ली। बताते हैं कि इंदौरी युवा नेता उनकी तिमारदारी कर रहे हैं...करें भी क्यों न पावर में रहते हुए उन्होंने भी तो इस युवा को इंदौर में स्थापित किया है। चाहने वाले कहते फिर रहे हैं कि संघ के पदाधिकारी से कार्यकर्ता तक सादा जीवन उच्च विचार की विचारधारा की थ्योरी को जीता है, लेकिन ये पदाधिकारी कुछ साल बीजेपी संगठन में क्या रह लिए इन्हें भी नेताओं जैसी लग्जरी लाइफ जीने की आदत हो गई। फ्लाइट से आना-जाना, फाइव स्टार होटल में रहना, महंगे मोबाइल और कपड़े इनके शौक बन गए। अब ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अब वे फिर से स्वयंसेवक संघ में प्रचारक की कठिन जीवन शैली को जी पाएंगे।  



सच में बदल गए हैं सिंधिया: ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) जब से भाजपाई हुए हैं, तब से बदल भी गए हैं। ऐसा खुद भाजपाई कहने लगे हैं। हां, कुछ मामलों में वे बिल्कुल नहीं बदले हैं ऐसा हम कह रहे हैं। अभी ताजा-ताजा मामला लो। इंदौर पधारे। तीन-चार आयोजनों में शिरकत की। इसी शिरकत में एक राजनीति होते-होते सिंधिया ने ही पकड़ ली और कई विघ्नसंतोषियों की योजना की हवा निकाल दी। दरअसल इंदौर के आयोजन निपटाकर सिंधिया को महू की माधवराव सिंधिया गोल्ड कप फुटबॉल स्पर्धा में पुरस्कार देने जाना था। सिंधिया का ही समर्थक एक वजनदार धड़ा नहीं चाहता था कि सिंधिया महू जाकर महू वाले मेजबान का मान बढ़ाएं। सो धड़े ने धड़ाक से चाल चली कि महाराज देपालपुर चलो। मिश्रा जी की कथा में। भारी भीड़ है। उत्साहियों ने मोबाइल पर कथा की भीड़ के फोटो तक दिखा दिए। महू और देपालपुर दो विपरीत दिशा में है। मकसद यही था कि देपालपुर में इतने लेट हो जाएंगे कि तब तक महू में फुटबॉल की हवा निकल जाएगी। महू के मेजबान मुकेश शर्मा तीसरी पीढ़ी तक सिंधिया के समर्थक हो गए हैं। माधवराव से चले थे..आर्यमन सिंधिया तक वफादारी निभा रहे हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने विघ्नसंतोषियों की मंशा को किनारे करते हुए दो टूक कह दिया-मुकेश के कार्यक्रम में महू जाऊंगा, जल्दी जाऊंगा और थोड़ा मैच भी देखूंगा। उनकी इस घोषणा के बाद विरोधियों का जो मुंह फूला वो फुटबॉल से कमतर कतई नहीं था रे बाबा। अपने समर्थकों के लिए कुछ भी करने के मामले में बिल्कुल नहीं बदले हैं सिंधिया। 



ग्वालियर में भी वीडी की धमक: सिंधिया के बीजेपी में आने के बाद ग्वालियर-चंबल में दिग्गज नेताओं की भरमार हो गई है। सब एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में लगे हैं। वहीं दूसरी ओर बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा AVBP के युवाओं को महत्वपूर्ण पद पर पदस्थ कर अपनी धमक बनाए हुए हैं। ग्वालियर में भी ये ही हुआ...सभी दिग्गज अपना जोर लगाते रह गए लेकिन ग्वालियर भाजयुमो अध्यक्ष पर वीडी समर्थक प्रतीक तिवारी की ही नियुक्ति हुई। इस पद पर अपने समर्थक को पदस्थ करने के लिए सबसे ज्यादा बेताब जयभान सिंह पवैया (Jaibhan Singh Pawaiya) और विवेक शेजवलकर थे। उन्होंने पूरा जोर लगा रखा था। दिग्गज नेताओं की खींचतान के बीच अपने समर्थक को अध्यक्ष बनाकर बता दिया कि उनकी धमक ग्वालियर में भी बरकरार है।  



मेंदोला मॉडल की राजनीति: इंदौर की राजनीति में कथा, भोजन भंडारे का प्रवेश कैलाश विजयवर्गीय और रमेश मेंदोला (Ramesh Mendola) की देन हैं। करीब 20 साल पहले जब ये दोनों इस राह पर चले थे। तब कांग्रेसी तो ठीक खुद भाजपाई ही कहा करते थे कि कथा-भंडारे की राजनीति से कोई चुनाव जीता जाता है क्या? ये अलग बात है कि वो भजन-भोजन के अलावा भले की राजनीति करते रहे हैं। खैर, जैसे-जैसे राजनीति आगे बढ़ी। मेंदोला मॉडल ने दूसरे नेताओं के ह्रदय में भी पैठ कर ली। उनके घोर विरोधी पूर्व विधायक सुदर्शन गुप्ता ने चुनरी यात्रा निकालना शुरू किया। फिर अन्य विधानसभा क्षेत्रों में कथाएं होने लगीं। अब तो कांग्रेसी भी मेंदोला मॉडल की राजनीति पर उतर आए हैं। पंडित मिश्रा जी जो इन दिनों खूब ख्याति बटोर रहे हैं, वो अगले कुछ महीनों में कम से कम तीन कांग्रेसी विधायकों की विधानसभा में कथा करते नजर आएंगे। बात पक्की होना बाकी है लेकिन ये पक्की बात है कि तीनों ही विधायक कथा कराने का कथानक लिख चुके हैं। समय का इंतजार करिए। समय और तारीख धीरे-धीरे सामने आती जाएंगी। 



अफसर खुश, पत्नी को किया नाराज: एक प्रमुख सचिव सीएस के सामने नंबर बढ़ाने के फेर में अपने घर में लंका लगा बैठे.... दरअसल वे सीएस को बताना चाहते थे कि वे अपने काम के प्रति बहुत संजीदा हैं...उसे पूरा करने के लिए दिन रात मेहनत कर रहे हैं....इसके चलते साहब ने पहले तो देर रात तक मंत्रालय में बैठना शुरू किया....बात नहीं बनी तो अवकाश वाले दिन भी ऑफिस आना शुरू कर दिया..साहब की इस सनक से स्टाफ तो परेशान हुआ ही साथ में घर में भी पत्नी ने मोर्चा खोल दिया। साहब को हिदायत मिल गई कि अब आप मंत्रालय में ही अपना बिस्तर लगा लीजिए....घर कोई धर्मशाला नहीं है। इधर साहब की इतनी त्याग तपस्या के बावजूद सीएस की नजरों में साहब के नंबर भी नहीं बढ़े। साहब ने अपनी ये व्यथा जब अपने सखा को सुनाई तो उन्होंने हंसते हुए कहा कि तुम्हारी स्थिति को देखते हुए मुहावरा याद आता है। दोनों दीन से गए पाण्डे हलुआ मिला न मांडे।



दोस्त दोस्त न रहा: जब दोस्त बड़े पद पर पहुंचा तो एसीएस के पद से रिटायर हुए साहब को बड़ी खुशी हुई। उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि मैं खुद प्रशासनिक मुखिया बन गया हूं। हो भी क्यों ना हो, दोनों की दोस्ती पूरे मंत्रालय में चर्चा का विषय बनी रहती थी। दरअसल बड़े साहब किसी के साथ ठहाके लगाते हैं....धुंआ उड़ाते हैं तो सिर्फ अपने इसी दोस्त के साथ। यहां तक तो सब ठीक है लेकिन अब मामला कुछ गड़बड़ होता दिख रहा है। रिटायरमेंट के बाद अपने दोस्त से पुनर्वास की आस लगाए साहब का धैर्य टूटने लगा है। दरअसल एक-एक करके सभी अहम पद भरते जा रहे हैं। लेकिन साहब का नंबर ही नहीं आ रहा है। अब सूचना आयुक्त के पद पर पुनर्वास का ही भरोसा बचा है लेकिन बड़े साहब हटो बचो वाले स्वभाव को देखते हुए उन्हें कम ही भरोसा हो रहा है। कहने वाले कह रहे हैं कि कल तक ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे का गाना गाने वाले साहब कुछ दिनों बाद दोस्त दोस्त न रहा....वाला गाना गाने ना लग जाएं।

 


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