Narsinghpur, Brijesh Sharma. नरसिंहपुर में ढाई से तीन एकड़ में ड्रिप सिस्टम से एक किसान ने भटे, मिर्च और टमाटर की फसल लगाई लेकिन मंडी में जब दाम एक , दो रु प्रति किग्रा हुए तो परेशान किसान ने सब्जी तुड़वाना भी महंगा समझा, खेत में ही पौधे सुखा दिए और अब उखाड़ कर फेंके जा रहे हैं। सरकार दावे करती है कि किसानों की आय दोगुनी हो गई है लेकिन नरसिंहपुर के समनापुर के किसान गजराज सिंह से पूछा जाए तो वे बताते हैं कि बीते कई साल से खेती में घाटे के सिवाय कुछ नहीं मिला।
सरकारी दावों के मुताबिक खेती-बाड़ी से अच्छी आमदनी या आय दुगनी करने के सपने किसानों के लिए सिवाय मुसीबत के और कुछ नहीं लेकर आए हैं। ग्राम समनापुर के उन्नतशील किसान गजराज सिंह ने 17 - 18 एकड़ के रकबे में से लगभग ढ़ाई तीन एकड़ रकबे में काली फिल्म फिल्म बिछवाई, ड्रिप सिस्टम तैयार कराया और भटे, मिर्च, टमाटर लगवा दिए। उम्मीद थी कि फसल अच्छी आएगी तो अच्छी आमदनी होने लगेगी, लेकिन उन्हें उम्मीदों पर पानी फिरता नजर आया। उन्हें सब्जी मंडी में टमाटर और बैंगन के रेट एक , दो रु प्रति किग्रा से ज्यादा देखने को नहीं मिले। किसान ने इस कम दाम पर भटे, टमाटर ,मिर्च तुड़वाना भी महंगा समझा और खेत में ही अपनी फसल सुखा दी। तपती धूप में टमाटर और भटे भी पीले पड़ गए, पौधे सूख गए और अब उनके पास पौधों को उखाड़ कर फेंकने के अलावा कोई चारा नहीं था।
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गुरुवार को 200 - 300 रु दिहाड़ी के 4 मजदूर खेत में लगे भटे, टमाटर ,मिर्च के पौधे उखाड़ कर फेंक रहे थे। गजराज सिंह कि यह उम्मीद की खेती बाड़ी से आय दुगनी होगी, अच्छी आय होगी , लेकिन किस्मत में घाटा लिखा था। इससे इतर दूसरे किसान भी यह देखकर हताश हैं। सरकार ने सब्जबाग जरूर दिखाया कि खेतीबाड़ी से आय दुगनी होगी पर किसानों के लिए यह सब्जबाग पिछले कई वर्षों से घाटे का सौदा हो रहा है, लागत ही नहीं निकल रही है। खेत में पौधे उखाड़ कर फेंक रहे मजदूर किसान मुन्ना झारिया और महिला मजदूर राधाबाई कहती हैं कि जब बाजार में दाम ही नहीं मिलेंगे तो फसल तोड़ना महंगा है, इसलिए पूरी फसल खेत में ही सुखा दी गई।
सरकार ने वृक्षारोपण को दिया था प्रोत्साहन
समनापुर के ही एक और किसान दौलत सिंह पटेल के भी यही हाल हैं। इन्होंने 20-22 एकड़ खेती में से लगभग ढाई एकड़ रकबे में आम की फसल लगाई और अन्तरवर्ती फसल के रूप में टमाटर लगाया। परंतु पिछले 4 साल का लेखा जोखा बतलाते हुए दौलत सिंह कहते हैं कि इससे बहुत अधिक नुकसान हो रहा है।आम और टमाटर की फसल साल भर में 50 हज़ार भी नहीं दे पाती। कहते हैं कि वर्ष 2017 में जब मुख्यमंत्री ने नमामि देवी नर्मदा यात्रा निकाली थी और 2 जुलाई 2017 को वृहद स्तर पर पौधारोपण करा कर गिनीज बुक में नाम दर्ज कराने का अभियान चलाया था। तब उनके खेत में अधिकारियों ने आकर पौधारोपण किया था। लेकिन इन 5 सालों में उन्हें ढाई 3 एकड़ रकबे में से लागत भी नही मिल पाई।
नहीं मिले 40 हजार
वह बताते हैं कि उद्यानिकी विभाग के जरिए उन्हें फलोद्यान योजना के तहत 40 - 40 हज़ार प्रति साल मिलना थी लेकिन वह अनुदान एक साल ही मिल सका और यह कहकर बंद कर दिया गया कि शासन ने फंड देना बंद कर दिया है। वे कहते हैं कि उनकी ढाई 3 एकड़ जमीन जबरदस्ती में इस पौधरोपण में फंस गई है। अब रोज बारिश और आंधी से उम्दा किस्म के आम टूट कर गिर रहे हैं, जो कौड़ी के भाव बिकते हैं। गजराज सिंह या दौलत सिंह पटेल उन्नतशील, बड़े काश्तकार हैं परंतु सीमांत किसानों के पास अगर एक दो एकड़ जमीन है और वह काश्तकारी कर रहे हैं। उनके लिए खेती से अब घर घर गृहस्थी चलाना टेढ़ी खीर हो रहा है। खेती-बाड़ी मौसम के बिगड़ते मिजाज और टूटते दामों की वजह से घाटे का सौदा बन रही है।