एमपी में सत्ता की चाबी आदिवासियों के पास, संघ का भी पूरा फोकस, क्या है आदिवासी प्रेम के पीछे हिडन एजेंडा?

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Vivek Sharma
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एमपी में सत्ता की चाबी आदिवासियों के पास, संघ का भी पूरा फोकस, क्या है आदिवासी प्रेम के पीछे हिडन एजेंडा?

अरुण तिवारी, BHOPAL . देश के साथ ही मध्यप्रदेश की सियासत भी इन दिनों आदिवासियों के इर्द-गिर्द ही घूम रही है। बीजेपी समेत संघ का भी आदिवासी वर्ग पर पूरा-पूरा फोकस है। हाल ही में गुजरात चुनाव में बीजेपी ने रिकॉर्ड तोड़ जीत दर्ज की है। जिसमें आदिवासियों ने भरपूर समर्थन दिया है। ये बात खुद पीएम मोदी ने स्वीकार की है। अब वनवासी कल्याण परिषद के जरिए संघ आदिवासियों में ये भाव जगा रहा है कि वो भारतीय समाज का अहम हिस्सा हैं। जाहिर है कि इस आदिवासी प्रेम के पीछे हिडन एजेंडा भी हो सकता है क्योंकि मध्यप्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में आदिवासी वर्ग की जेब में सत्ता की चाबी रहने वाली है।



गुजरात में आदिवासियों ने भरपूर समर्थन दिया 



गुजरात में बीजेपी को मिली प्रचंड जीत के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि गुजरात में बीजेपी को आदिवासियों ने भरपूर समर्थन दिया है। पीएम मोदी बीजेपी हेडक्वार्टर में पार्टी के बड़े पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं से मुखातिब थे। उनका वक्तव्य साफ बता रहा है कि आदिवासी वर्ग खास तौर पर सरकार के फोकस में है और यही समाज उसे सियासत में विजय पथ दिखा रहा है। मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव मुहाने पर खड़े हो गए हैं तो यहां भी आदिवासी केंद्रित सियासत जोर पकड़ने लगी है। सरकार के साथ खासतौर पर संघ भी आदिवासियों को विकास की धारा से जोड़ने के लिए ग्रास रूट पर काम कर रहा है।



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वनवासी कल्याण परिषद को नया रूप



 इसी कड़ी में भोपाल में वनवासी कल्याण परिषद के आश्रम को नया रूप दिया गया है। संघ ने ये काम सीएसआर फंड से की है। इस नए भवन की खास बात ये है कि यहां पर सरसंधान करता हुआ एकलव्य भी है और एक सूत्रवाक्य भी सूत्रवाक्य है तू-मैं एक रक्त... यानी हम सब एक हैं। अब सवाल ये उठ रहा है कि आखिर संघ को ये बात जताने की जरूरत क्यों पड़ी। वनवासी कल्याण आश्रम के क्षेत्रीय संगठन मंत्री प्रवीण ने द सूत्र से बातचीत में कहा कि हमारे लिए हर वर्ग एकसमान है। हम किसी में कोई भेद नहीं करते। 



सूबे की आदिवासी सियासत



अब आपको बताते हैं कि सूबे की आदिवासी सियासत किस तरह की है। मध्यप्रदेश में पिछले चार चुनावों का इतिहास देखें तो साफ जाहिर होता है कि आदिवासी जिसकी तरफ गए। सत्ता उसी को मिली... बीजेपी की सत्ता में हैट्रिक के पीछे आदिवासी वोट बैंक ही बड़ा फैक्टर रहा है। वहीं, साल 2018 में कांग्रेस की सरकार बनी तो इसके पीछे भी आदिवासियों का ही हाथ था। यानी इसमें कोई दो राय नहीं कि सत्ता की चाबी आदिवासियों के हाथों में ही है।



2003




  • 10 साल की कांग्रेस सरकार को हराकर बीजेपी ने बहुमत से सरकार बनाई


  • मध्यप्रदेश में 40 आदिवासी सीटें थीं, जिनमें से बीजेपी ने 38 सीटें हासिल की

  • कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक बीजेपी की तरफ खिसका तो कांग्रेस की सत्ता ही पलट गई 

  • कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पाई



  • 2008 




    • दोबारा बनी बीजेपी की सरकार 


  • मध्यप्रदेश की 47 आदिवासी सीटों में से 30 सीटें बीजेपी को हासिल  

  • कांग्रेस के हिस्से में आईं महज 16 सीटें



  • 2013




    • बीजेपी सरकार ने हैट्रिक लगाई


  • बीजेपी ने 47 में से 31 सीटें जीतीं 

  • कांग्रेस के खाते में सिर्फ 15 सीटें



  • 2018




    • 15 साल के सूखे के बाद कांग्रेस ने कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार बनाई


  • कांग्रेस ने 30 आदिवासी सीटें जीतीं 

  • बीजेपी 31 से घटकर 16 सीटों पर आ गई

  • कांग्रेस की सरकार 15 महीने ही चल पाई 

  • भारी सियासी उठापटक के बाद बीजेपी फिर से सत्ता में काबिज हो गई



  • पेसा एक्ट लागू किया



    हाल के दिनों में बीजेपी सरकार ने आदिवासियों के लिए पेसा एक्ट लागू करने के साथ ही कई नई योजनाएं चलाई हैं। युवाओं के लिए रोजगार और स्वरोजगार की खास चिंता की है।  वहीं, संघ भी आदिवासी युवाओं के लिए पढ़ाई की व्यवस्था के साथ कोचिंग भी चला रहा है। वनवासी कल्याण परिषद में आदिवासी युवाओं के लिए लाइब्रेरी और कंप्यूटर लैब समेत कई एडवांस्ड फेसिलिटीज मुहैया कराई जा रही हैं। अब 2023 में ये देखना दिलचस्प होगा कि आदिवासी समाज की धुरी आखिर किस तरफ घूमती है लेकिन ये बात तो तय है कि ये धुरी जिस तरफ घूमेगी सरकार उसी की बनेगी...                       


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