Bhopal. सरकारी सिस्टम लोगों के हेल्थ और हाइजीन से किस तरह खिलवाड़ कर सकता है,आदमपुर कचरा खंती इसका उदाहरण है, यहां 2019 से चल रहे 850 टन क्षमता वाले सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट के लिए अब एन्वायरमेंट क्लीयरेंस यानी ईसी की कवायद की जा रही है। जबकि इन 4 सालों में इस कचरा खंती की वजह से यहां का आसपास का एरिया नरक बन चुका है। हवा, पानी, मिट्टी सबकुछ जहरीला हो चुका है। ईसी मिलने में कोई दिक्कत न आए इसके लिए प्रशासन ने सभी हथकंडे तक अपनाए। यहां के न केवल प्रदूषण को छुपाया, बल्कि इसके लिए आयोजित लोक सुनवाई में कोई आवाज नहीं उठा सके, इसलिए इसकी किसी को जानकारी ही नहीं दी। हालांकि जानकारी मिलने पर पर्यावरणविद्, पंचायत स्तर के जनप्रतिनिधियों और ग्रामीणों ने इसका खासा विरोध किया, जिसके बाद इस प्रोजेक्ट के खटाई में पड़ने के आसार नजर आ रहे हैं।
लैंडफिल साइट का ये है प्लान
आदमपुर में लैंडफिल साइट मेसर्स ग्रीन रिसोर्सेस सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड द्वारा तैयार की गई है। दावा है कि इसे दस साल तक लैंडफिल साइट निष्क्रिय रखने के लिए डिजाइन किया है। 25 एकड़ जमीन में से दस एकड़ खाद संयंत्र व 15 एकड़ लैंडफिल साइट रहेगी। 3.80 लाख घनमीटर की लैंडफिल क्षमता है। 850 टन प्रतिदिन कचरे का निष्पादन होगा। 35 करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट है। 8.25 एकड़ भूमि पौधरोपण के लिए प्रस्तावित की गई है और 1.59 करोड़ रुपए पर्यावरण प्रबंधन पर खर्च किए जाएंगे।
पट्टा दिए जाने की झूठी जानकारी देकर भीड़ इकट्ठा की
ऐसे किसी भी प्रोजेक्ट जिसमें पर्यावरण पर असर पड़ सकता है उसके लिए State Environment Impact Assessment Authority Madhya Pradesh यानी सीआ से एन्वायरमेंट क्लीयरेंस यानी ईसी लेना जरूरी होता है। इससे पहले संबंधित एजेंसी को प्रोजेक्ट को लेकर लोक सुनवाई/जनसुनवाई आयोजित कर लोगों के सुझाव और आपत्ति लेना होता है, जिसके निराकरण की रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद ही ईसी ली जा सकती है। लोक सुनवाई/जनसुनवाई की सूचना ग्रामीण स्तर पर मुनादी के जरिए दी जाती है, ताकि ग्रामीणों को इस बारे में पहले से पता हो। जनपद सदस्य संतोष प्रजापति ने कहा कि 9 जनवरी, सोमवार को आदमपुर कचरा खंती के पास आयोजित इस लोक सुनवाई की पंचायत के प्रतिनिधियों या ऐसे ग्रामीण जो खुलकर बोल सकते थे, उन्हें जानकारी ही नहीं दी गई। बल्कि उल्टा जो ग्रामीण भोले भाले थे उनकी भीड़ यह कहकर इकट्ठा की गई कि पट्टे मिलने वाले हैं। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि प्रोजेक्ट को लेकर कोई विरोध न हो सके और लोक सुनवाई की फोटो और वीडियो के आधार पर ईसी ली जा सके।
अफसरों के पास गंदा पानी लेकर पहुंचे ग्रामीण, कहा इसे पीकर दिखाएं
निर्माण एजेंसी मेसर्स ग्रीन रिसोर्सेस सॉलिड वेस्ट के अधिकारियों और अफसरों ने बताया कि खंती से आसपास के क्षेत्र में पानी और हवा पर कोई असर नहीं होगा। इतना सुनते ही कुछ ग्रामीण बोरिंग से गंदा पानी लेकर आ गए और अफसरों से बोतल देकर कहा कि इसे पीकर दिखाए। हालांकि अफसरों ने पानी नहीं पिया। पूर्व उपसरपंच प्रशांत ठाकुर ने कहा कि यदि कोई भी ग्रामीण इस पानी को पी लेगा तो वह अपना सिर मुंडवा लेंगे। पर्यावरणविद सुभाष पांडे ने कहा कि यदि यह पानी अधिकारियों को साफ लगता है तो वह खुद इसे क्यों नहीं पीते। पानी को लेकर ग्रामीणों के बीच आक्रोश को देखकर अधिकारी भी सकपका गए और एक दूसरे की बगले झांकने लगे।
लोकसुनवाई से पहले लैंडफिल साइट बंद की, ताकि न आए बदबू
9 जनवरी सोमवार को लैंडफिल साइट को लेकर लोक सुनवाई होना थी इसलिए आदमपुर कचरा खंती यानी लैंडफिल साइट को बंद कर दिया गया, ताकि इससे बदबू बाहर न आए। हालांकि पूर्व उपसरपंच प्रशांत ठाकुर ने जब कहा कि इसकी बदबू बिलखिरिया थाने तक जाती है तो बिलखिरिया थाना प्रभारी ने हाथ उठाते हुए इस बात का समर्थन कर दिया। प्रोजेक्ट में बताया गया कि इससे वायु प्रदूषण नहीं होगा, लेकिन लैंडफिल साइट बंद होने की स्थिति में ही जब प्रदूषण को मापा गया तो पीएम—10 की वेल्यू 1100 गुना अधिक मिली। पर्यावरणविद् सुभाष पांडे ने कहा कि जब इस प्रोजेक्ट से कोई प्रदूषण नहीं है, हेल्दी एटमॉस्फीयर है तो इसे 4—ईमली क्षेत्र में क्यों नहीं बना देते। बता दें कि भोपाल का 4—ईमली वह इलाका है जहां प्रदेश के तमाम बड़े अफसर और मंत्री के बंगले है।
250 मीटर दूरी पर प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट, रिपोर्ट में 3 किमी बताया
प्रोजेक्ट को लेकर ईसी में कहीं कोई दिक्कत न आए इसलिए खंती से 250 मीटर दूरी पर जो प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट एरिया था, उसे प्रोजेक्ट रिपोर्ट में 3 किमी बता दिया गया। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि यदि खंती के पास कोई संवेदनशील जगह होगी तो उसकी अलग से समीक्षा कर रिपोर्ट प्रस्तुत करना पड़ेगा। सोशल एक्टिविस्ट कमल राठी ने कहा कि प्रोजेक्ट को लेकर डीएफओ से अनुमति नहीं ली गई, रेवेन्यू से जमीन तक नोटिफाई नहीं है, लोग बीमार हो रहे हैं, 5 साल में एक हैडपंप तक तो बंद नहीं करवा सके। इसके अलावा सोशल एक्टिविस्ट नितिन सक्सेना ने लोक सुनवाई पर ही आपत्ति उठाते हुए उसे बाद में आयोजित करने की मांग की। नितिन सक्सेना ने कहा कि हिन्दी की प्रोजेक्ट रिपोर्ट और इंग्लिश की प्रोजेक्ट रिपोर्ट में काफी अंतर है। हिंदी में जो प्रोजेक्ट रिपोर्ट है उसमें कहा है कि कचरे को 10 साल तक रखेंगे वहीं इंग्लिश में जो रिपोर्ट है उसमें 8 वर्ष रखने की बात कही गई है।
5 साल में नहीं लगवाए एक भी स्वास्थ शिविर
लोक सुनवाई में पूर्व उपसरपंच प्रशांत ठाकुर ने कहा कि हम सभी की बात पर भरोसा कर सकते हैं, लेकिन नगर निगम की बात पर जरा भी भरोसा नहीं कर सकते। 5 साल में एक भी स्वास्थ शिविर नहीं लगा, जबकि कचरा खंती लगाने से पहले स्वास्थ शिविर लगाने की बात कही गई थी। इस खंती की वजह से 70 परिवार बर्बाद हो गए और आप 60 लोगों को पन्नी बिनने के रोजगार की बात कह रहे हैं। वहीं समाजसेवी हरिओम शर्मा ने आपत्ति उठाई कि कंपनी ने सभी आंकड़े लगभग दिए हैं सटीक नहीं दिए जिससे मंशा पर सवाल खड़ा होता है। उन्होंने कहा कि कंपनी और नगर निगम के वादों पर हमें भी लगभग भरोसा नहीं है।
इसलिए की गई थी यह पूरी कवायद
लोक सुनवाई की लोगों को जानकारी नहीं देना, भीड़ इकट्ठा करने के लिए पट्टे वितरण की भ्रामक जानकारी फैलाना, गलत तथ्यों को रखना और प्रदूषण को छिपाने... दरअसल यह सारी कवायद इसलिए की गई ताकि इंवायरमेंट क्लीयरेंस मिलने में कोई दिक्कत न आए। ऐसा इसलिए क्योंकि नियमानुसार ईसी लैंडफिल साइट शुरू होने से पहले ही ली जाना थी, ऐसे में यदि मामला एनजीटी तक गया तो नगर निगम और कंपनी पर हैवी पेनाल्टी हो सकती है, इससे बचने के लिए ही गुपचुप तरीके से ईसी लेने का प्रयास किया गया। हालांकि इसे लेकर तर्क दिया जा रहा है कि कंपनी का नाम चेंज किया जाना है, साथ ही कुछ टेक्नीकल फेरबदल हो रहे हैं, इसलिए ये कवायद की जा रही है।
कंपनी से पूछा जाएगा 4 साल में आखिर उसने किया क्या
एडीएम संदीप केरकेट्टा ने कहा कि लोकसुनवाई की जानकारी लोगों को क्यों नहीं दी गई और कार्यक्रम स्थल पर पट्टे वितरित होंगे यह भ्रम कैसे फैला इसकी नगर निगम से जानकारी लेंगे। संदीप केरकेट्टा ने स्वीकार किया कि प्रोजेक्ट को लेकर ग्रामीणों में असंतोष है और जो 13 आपत्तियां आई है उन्हें लेकर कंपनी से पूछा जाएगा कि 4 साल में उन्होंने क्या किया, उस आधार पर रिपोर्ट सबमिट की जाएगी।