राहुल शर्मा । भोपाल. चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग (Vishvas Sarang) ने हिंदी दिवस पर चिकित्सा शिक्षा (Medical Education) के पाठ्यक्रमों को हिंदी में पढ़ाने की घोषणा तो कर दी। इसके लिए एक कमेटी बनाने की बात भी हुई, लेकिन सच्चाई में यह जुमलेबाजी के अलावा और कुछ नहीं है। जरा हकीकत पर भी एक नजर डालिए... तर्क, इतिहास और हालात सभी इस बयान को गप साबित करते हैं। यहां तक कि भाजपा (BJP) के केंद्रीय नेतृत्व के लोग ही सालों पहले इस आइडिया को खारिज कर चुके हैं।
हिंदी यूनिवर्सिटी: दस साल में एक किताब तक नहीं छाप सके
राजधानी भोपाल में 2011 में हिंदी यूनिवर्सिटी की स्थापना हुई थी। जिसे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee Hindi University, Bhopal) का नाम दिया गया है। इस यूनिवर्सिटी के मूल उद्देश्यों में यह भी था कि मेडिकल कोर्स को हिंदी (Medical course in Hindi) में पढ़ाया जाएगा। विवि को बने हुए दस साल हो गए हैं, मगर मेडिकल कोर्स को हिंदी में पढ़ाने की बात तो छोड़िए, एक पुस्तक का प्रकाशन तक हिंदी में नहीं हो सका।
यूनिवर्सिटी का तो संचालन ही प्रदेश सरकार के जिम्मे हैं, मतलब कोई बहाना भी नहीं। इसके बाद भी न कभी हिंदी में कोर्स को शुरू करने का प्रयास ही हुआ और न ही कभी इसके लिए संसाधन जुटाने की कोशिशें। कुल मिलाकर मंत्री विश्वास सारंग का दावे हिंदी दिवस पर दिए गए भाषण की चंद लाइनों से ज्यादा कुछ नहीं है।
जेपी नड्डा भी नकार चुके हैं यह आइडिया
मंत्री विश्वास सारंग इस लोक लुभावन घोषणा से पहले ये तो पता कर लेते कि खुद उनकी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष क्या कह चुके हैं... भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और तात्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा (JP Nadda) 2018 में कह चुके हैं कि मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया छात्रों को हिंदी भाषा में शिक्षित करने के फैसले के खिलाफ है। इसके पीछे तर्क दिया गया कि शिक्षा के माध्यम के रूप में हिंदी में चिकित्सा शिक्षा प्रदान करने के लिए पर्याप्त शिक्षण संसाधन सामग्री का अभाव है। उस वक्त नड्डा ने यह भी कहा था कि वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति के आधार पर पाठ्यक्रम और पाठ्यक्रम को समय पर अपडेट करने की आवश्यकता है, जिनमें से अधिकांश अंग्रेजी भाषा में ही उपलब्ध है।
और... अगर अब भी कुछ कंफ्यूजन है तो इसे पढ़ें...
मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) 2018 में वैज्ञानिक और तकनीकी उन्नति के लिए हिंदी में चिकित्सा शिक्षा को अस्वीकार कर चुकी है। एमसीआई के अनुसार अंग्रेजी एक वैश्विक भाषा है और छात्रों को अधिक एक्सपोजर देती है। एमसीआई ने यह भी देखा है कि विकसित देशों और अधिकतर पड़ोसी देशों में चिकित्सा शिक्षा के लिए अंग्रेजी शिक्षा का माध्यम है। अंग्रेजी भाषा में निर्देश भारतीय चिकित्सा स्नातकों को अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शन और अनुभव के अवसर प्रदान करता है।
विशेषज्ञ बोले, नकली राष्ट्रवाद चल पड़ा है
एमसीआई (MCI) के पूर्व चेयरमैन डॉ. भरत छापरवाल कहते हैं कि आजकल नकली राष्ट्रवाद चल पड़ा है। जिसका जो मन करे वो विचार थोप देना। दरअसल हिंदी के खिलाफ मेडिकल में कोई नहीं है, आप शुरुआत तो करिए। पर पाठ्यक्रम सामग्री है ही नहीं। तैयार ही नहीं है। हिंदी में यदि पाठ्यक्रम आ जाएगा तो केरल (Kerala) के मेडिकल स्टूडेंट क्या करेंगे?