मध्यप्रदेश में 2018 में हारे ये नेता बन सकते हैं अपनी ही पार्टी की मुश्किल! डैमेज कंट्रोल के लिए क्या है बीजेपी-कांग्रेस का प्लान?

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Harish Divekar
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मध्यप्रदेश में 2018 में हारे ये नेता बन सकते हैं अपनी ही पार्टी की मुश्किल! डैमेज कंट्रोल के लिए क्या है बीजेपी-कांग्रेस का प्लान?

BHOPAL. कहते हैं चावल जितना पुराना हो उतना ही अच्छा होता है। राजनीति में भी पुराने चावलों की खूब बखत है। ये चावल जब तक पार्टी के लिए तजुर्बा हैं तब तक ठीक है, लेकिन कहीं बागी हुए तो पूरी हांडी के चावलों के लिए मुश्किल बन जाते हैं। मध्यप्रदेश की चुनावी हांडी में तो ऐसे बहुत से पुराने चावल हैं जो पूरा चुनावी जायका ही बिगाड़ सकते हैं। ये पुराने चावल वो नेता हैं जिनकी राजनीति ही नहीं अपने क्षेत्र में पकड़ बहुत गहरी है और अब ये अपनी ही पार्टियों के गले की फांस बन चुके हैं। इस मामले में कांग्रेस और बीजेपी दोनों का हाल एक ही जैसा है।





विधानसभा चुनाव बीजेपी-कांग्रेस के लिए क्यों कठिन?





साल 2023 की जंग शुरू करने से पहले कांग्रेस और बीजेपी दोनों को अपने-अपने महारथी तैयार करने हैं। जो मैदान में उतरेंगे और अपनी पार्टी के लिए वोट की मांग करेंगे। ये चुनावी दस्तूर तो हर पार्टी को हर चुनाव से पहले निभाना पड़ता है, लेकिन इस बार अपने अपन लिए महारथी चुनना दोनों दलों के लिए इतना आसान नहीं है। दोनों ही पार्टियों की मुश्किल ये है कि जो चेहरे पिछले चुनाव में हार गए थे वो इस चुनाव में फिर ताल ठोंक रहे हैं। उन्हें टिकट दिया तो जीतने की संभावनाएं कम नजर आती हैं और उन्हें नजरअंदाज किया तो जीत बहुत दूर होगी ये भी तय माना जा सकता है। ऐसे एक-दो चेहरे नहीं हैं बल्कि ये लिस्ट बहुत लंबी है। जो दोनों ही दलों के लिए आज नहीं तो कल मुसीबत बनेगी।





बीजेपी के लिए ज्यादा मुश्किल!





मध्यप्रदेश में कौनसा नेता कौनसा दांव चलेगा। इसका अंदाजा अभी लगाना आसान नहीं है। उनके दांव तब खुलकर सामने आएंगे जब दोनों राजनीतिक दल अपने अपने प्रत्याशियों का ऐलान करेंगे। उस लिस्ट से बेदखल होने के बाद उनकी चाल का अंदाजा हो सकेगा। वैसे बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस के लिए मुश्किल थोड़ी कम है। कांग्रेस को अपने पुराने लीडर्स को मैनेज करना है, लेकिन बीजेपी को पुराने लीडर्स को मैनेज करने के साथ-साथ दल बदलकर आए उन नेताओं को भी मैनेज करना है जो पिछली बार हार गए थे। ये धाकड़ नेता ये भी साफ कर चुके हैं कि वो चुनाव लड़ने के लिए भी तैयार हैं।





कांग्रेसी नेता





अजय सिंह





अजय सिंह पूर्व नेता प्रतिपक्ष रहे हैं। साल 2018 के चुनाव में अजय सिंह अपनी पुरानी चुरहट विधानसभा सीट से बीजेपी के शरदेंदु तिवारी से  6402 वोटों से हार गए थे। अजय सिंह सीट पर सक्रिय हैं और चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हैं।





अरुण यादव





अरुण यादव कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष रहे हैं। 2018 के चुनाव में सीएम को चुनौती देने अपना क्षेत्र छोड़ बुदनी से चुनाव लड़े। वो 58 हजार 999 मतों से हारे।





मुकेश नायक





मुकेश नायक कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे हैं। पिछली बार प्रहलाद लोधी से 23 हजार 680 मतों से हार गए थे। एक बार फिर पवई से चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। मुकेश नायक ने बूथों का दौरा करना शुरू कर दिया है।





राजेंद्र सिंह





राजेंद्र सिंह विधानसभा उपाध्यक्ष रहे हैं। 2018 के चुनाव में अमरपाटन सीट से 3747 वोटों से हारे थे। उनकी जगह बीजेपी के रामखिलावन पटेल को जीत मिली। ये हार उनके लिए भी अप्रत्याशित थी।





रजनीश सिंह





रजनीश सिंह हरवंश सिंह के बेटे हैं। कई विवादों के चलते वो पिछले चुनाव में केवलारी से चुनाव हार गए। एक बार फिर चुनावी मैदान में सक्रिय हो चुके हैं।





राम निवास रावत





राम निवास रावत पिछले चुनाव में विजयपुर सीट से सीताराम जाटव से महज 2840 वोटों से हार गए थे।





इन सभी नेताओं के भाग्य का फैसला कमलनाथ के हाथ में है। कांग्रेस में भी ये साफ हो चुका है कि टिकट इंटरनल सर्वे की रिपोर्ट के आधार पर ही मिलेगा।





बीजेपी के नेता





अर्चना चिटनिस





अर्चना चिटनिस बीजेपी सरकार में कई बार मंत्री रही हैं। 2018 में बुरहानपुर सीट से निर्दलीय सुरेंद्र सिंह शेरा से चुनाव हारी थीं। वो ये कह भी चुकी हैं कि हम क्षेत्र में काम शुरू कर चुके हैं। फैसला पार्टी करेगी।





शरद जैन





शरद जैन कांग्रेस के विनय सक्सेना से चुनाव हारे थे। शरद जैन एक बार फिर जबलपुर पूर्व में सक्रिय हो चुके हैं। सामाजिक संगठनों में आना-जाना शुरू कर चुके हैं।





उमाशंकर गुप्ता





उमाशंकर गुप्ता भी बीजेपी सरकार में कैबिनेट का हिस्सा रहे हैं। उमाशंकर गुप्ता पिछला चुनाव भोपाल दक्षिण पश्चिम सीट से कांग्रेस के पीसी शर्मा से हारे थे।





जयभान सिंह पवैया





जयभान सिंह पवैया 2018 में प्रद्युम्न सिंह तोमर से चुनाव हार थे। अब प्रद्युम्न सिंह तोमर बीजेपी में शामिल हो चुके हैं और पवैया राष्ट्रीय कार्य समिति का हिस्सा बन चुके हैं।





लाल सिंह आर्य





लाल सिंह आर्य पिछला चुनाव रणवीर जाटव से हारे। अब जाटव भी बीजेपी का ही हिस्सा हैं। आर्य को मैनेज करने के लिए बीजेपी ने उन्हें अनुसूचित जाति मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया है।





इनके अलावा अंतर सिंह आर्य, रुस्तम सिंह, ललिता यादव, बालकृष्ण पाटीदार, जयंत मलैया और नारायण सिंह कुशवाह भी टिकट के लिए मैदान में दावेदारी जता सकते हैं। इन सभी के भाग्य का फैसला भी बीजेपी का संगठन ही करेगा।





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उपचुनाव में हारे नेता भी खड़ी करेंगे मुश्किल





बीजेपी के लिए इतने पर ही बस नहीं होता। दल बदलकर आए वो नेता भी मुश्किल खड़ी करेंगे जो उपचुनाव में हार गए थे। इनमें से अधिकांश सिंधिया समर्थक हैं। इमरती देवी, गिर्राज दंडोतिया, रणवीर जाटव, मुन्नालाल गोयल और जसवंत जाटव जैसे नेताओं के नाम शामिल हैं। जिन्हें बीजेपी ने फिलहाल निगम मंडलों में एडजस्ट कर शांत रखने की कोशिश की है। ये भी संभव है कि आने वाले चुनाव में ये नेता बीजेपी के पुराने ज्यादा दिग्गजों से ज्यादा भारी पड़ें। हारे हुए चेहरों ने मैदान में तो ताल ठोंक दी है। अब देखना ये है कि क्या सर्वे के आधार पर टिकट देकर या टिकट काटकर पार्टियां इन्हें मैनेज कर सकेंगी।





पार्टी के लिए दोधारी तलवार





टिकट का ऐलान करने के बाद बगावत की आवाजें उठना हर राजनीतिक दल के लिए आम बात होती है। नेताओं का शक्ति प्रदर्शन, भीतरघात का डर, कार्यकर्ताओं की नाराजगी, हर फैक्टर को मैनेज करना होता है। इस बार भी ये सब होगा ही लेकिन मामला हर बार जितना आम नहीं होगा। इस बार ऐसे दिग्गजों की संख्या ज्यादा है जिनके टिकट पर तलवार लटक रही है। ये तलवार पार्टी के लिए भी दोधारी तलवार ही है जिसके दोनों तरफ से खुद के ही घायल होने की संभावना ज्यादा है।



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