Gwalior. भीषण गर्मी का असर जहां लोगों के स्वास्थ्य पर दिख रहा है। वहीं इसकी वजह से फसलों को भी खासा नुकसान हुआ है। गर्मी जल्दी आने से गेहूं की पैदावार 20 फीसदी तक घट गई है। इसके साथ ही गेहूं का दाना भी पतला हो गया। जिसके कारण उसका वजन भी कम हुआ है। गेहूं की पैदावार घटने से गेंहू की मांग बाजार में बढ़ी है। यही कारण है कि गेहूं किसान समर्थन मूल्य पर न बेचकर सीधे मंडी में व्यापारियों को बेच रहे हैं।
मौसम की वजह से पैदावर पर असर
जब मौसम बदलता है तो उसकी प्रक्रिया धीरे धीरे होती है। पर जब भी अचानक से मौसम में परिवर्तन आता है तो उसका असर खेत में खड़ी फसल पर पड़ता है। क्योंकि ठंड से अचानक गर्मी पड़ने से फसल की नमी जाने लगती है और फसल सूखने लगती है। जिससे जो दाने धीमे-धीमे तैयार होने थे वह अचानक आई गर्मी के कारण उनकी नमी जाती रहती है और दाना पतला हो जाता है जिससे उसका वजन भी कम हो जाता है।
समर्थन मूल्य पर गेहूं नहीं बेच रहे किसान
इस बार समर्थन मूल्य पर अनाज न आने से गोदाम भी खाली पड़े हुए हैं। सागर में जिन किसानों ने तेजस गेहूं की फसल को समर्थन मूल्य पर बेचा है उस फसल में चमक कम होने से एफसीआई खरीदने के लिए तैयार नहीं है। जिसको लेकर परेशानी आ रही है। समर्थन मूल्य पर गेहूं की फसल 31 मई तक सरकार खरीद करेगी। खाद्य विभाग ने गेहूं की खरीद की तिथि बढ़ा दी है। इस बार गेहूं की फसल समर्थन मूल्य पर किसान नहीं बेच रहे। इसलिए सरकारी गोदाम खाली पड़े हुए हैं।
सहकारी सोसायटियों के कांटे बंद रखे हुए हैं। पहली बार है जबकि एक भी किसान पिछले डेढ़ महीने में गेहूं,चना व सरसों बेचने के लिए सरकारी केंद्रों पर नहीं पहुंचा। उसका कारण बाजार में गेहूं,चना व सरसों की फसल के दाम समर्थन मूल्य से कहीं अधिक है। इस बार व्यापारी भी किसानों को नगद भुगतान कर रहे हैं।
फसल सीधे व्यापारी को बेच रहे
दूसरा बड़ा कारण यह भी बताया जा रहा है कि सरकार ने इस बार छन्ना लगाकर किसान की फसल तुलाने की शर्त रखी थी। इसलिए इस बार किसान ने समर्थन मूल्य की अपेक्षा व्यापारी को फसल बेचना ज्यादा सुविधा जनक माना। क्योंकि किसान को बाजार में भाव भी अच्छा मिला और छन्ना भी फसल पर नहीं लगवाना पड़ा। किसान ने बाजार में गेहूं की फसल 2200 रुपये में बेचा और चना 6500 और सरसों 7000 रुपए में बेचा है। समर्थन मूल्य से 200 से एक हजार रुपये अधिक किसान को फसल पर बाजार में मिल रहे हैं। भुगतान के लिए भी किसान को परेशान नहीं होना पड़ रहा है। इसलिए किसान व्यापारियों को सीधे तौर पर फसल बेच रहा है।