BHOPAL. सुप्रीम कोर्ट ने भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के लिए यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन और उसकी सहायक कंपनियों से अतिरिक्त मुआवजा दिलाने की केंद्र सरकार की याचिका को खारिज कर दिया। केंद्र सरकार ने 2010 में क्यूरेटिव पिटीशन के जरिए डाउ कैमिकल्स से 7800 करोड़ का अतिरिक्त मुआवजा दिलाने की अपील की थी। सुप्रीम कोर्ट ने यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन के पक्ष में फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन पर और ज्यादा मुआवजे का बोझ नहीं डाला सकता। पीड़ितों को नुकसान की तुलना में करीब 6 गुना ज्यादा मुआवजा दिया जा चुका है।
कैसे एक शहर बदला था श्मशान में
इतिहास के पन्नों में दर्ज एक दर्दनाक हादसा जो रह-रहकर लोगों के जहन में उठता है। जिसके निशान आज भी देखे जा सकते हैं। इस हादसे में किसी ने अपने पिता-माता, पत्नी-पति, बहन-भाई और बच्चों को खोया तो किसी ने कोख में पल रहे सपनों को भी दम तोड़ते देखा। एक सर्द रात में सूकुन से सोया शहर जापान के हिरोशिमा की तरह श्मशान में बदल गया। इस हादसे की एक तस्वीर विश्व पटल पर ऐसी छपी कि इसे सदी की तस्वीर कहा गया। इस तस्वीर को खींचने वाले 'भारतीय फोटोग्राफी के जनक' रघु राय ने अपने एक इंटरव्यू में इस तस्वीर और उस मंजर को याद कर नम आंखों और लड़खड़ती जुबां को लाख संभाला लेकिन उनकी हालत इसी विभिषिका को बयां कर गई थी।
इस रात के बाद की सुबह कई लोगों ने नहीं देखी
साल 1984 दिसबंर का महीना और वो रात थी 2-3 दिसंबर के बीच की, जब भोपाल सुकून की रात सोया था, लेकिन इस रात के बाद राजधानी के करीब-करीब 3787 लोग (मध्यप्रदेश सरकार का आंकड़ा) असमय काल के गाल में समा गए। भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड कीटनाशक संयंत्र से जहरीली गैस का रिसाव हुआ, इस गैस का नाम था मिथाइल आइसोसाइनेट करीब 40 टन मात्रा में इस गैस का रिसाव हुआ और देखते ही देखते चारों तरफ लाशें बिछ गईं। इस तरह रात को नींद में सोए हजारों लोग कभी जाग ही नहीं पाए। गैस पीड़ित संघ की मानें तो करीब 25 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। इस भयंकर त्रासदी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस हादसे के बाद लोगों को कई तरह की शारीरिक समस्याओं का सामना आज तक करना पड़ रहा है। भोपाल गैस त्रासदी के बाद से ही अजन्मे बच्चों और आने वाली पीढ़ियों के स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ा था।
गैस लीक होने का क्या था कारण?
प्लांट नंबर-C से गैस के रिसाव की सूचना मिली थी, आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, प्लांट को ठंडा करने के लिए इस्तेमाल किए गए पानी में मिथाइल आइसोसाइनेट मिला हुआ था। इस मिश्रण से गैसों की मात्रा उत्पन्न हुई, जिसने टैंक संख्या 610 पर जबरदस्त दबाव डाला। टैंक के ढक्कन पर गैस दबाव बनाने लगी जिससे कई टन जहरीली गैस निकली, जो बड़े क्षेत्र में फैल गई। मिथाइल आइसोसायनेट गैस के रिसाव से लगभग 5 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हुए थे।
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रिसाव के बाद बड़ी संख्या में लोग पहुंचने लगे थे अस्पताल
1984 की रात इस घटना के बाद में भोपाल की आधी से ज्यादा आबादी खांसी, आंखों में जलन, खुजली की शिकायत और सांस की समस्याओं का सामना कर रही थी। सौ-दो सौ नहीं, हजार-दो हजार भी नहीं, एक ही रात में करीब 50 हजार से ज्यादा लोग भोपाल के हमीदिया अस्पताल पहुंच गए थे, डॉक्टर कुछ नहीं समझ पा रहे थे कि आखिर हो क्या रहा है? कैसे और कितने लोगों का इलाज करें? यहां तक कि यूनियन कार्बाइड के डॉक्टरों को भी मिथाइल आइसासाइनेट से बचाव का तरीका नहीं मालूम था। जहरीली गैस ने किसी को नहीं छोड़ा था, क्या जवान, क्या बूढ़े और क्या बच्चे, सभी मरीज एक के बाद एक दम तोड़ रहे थे। लाशों का ना तो नाम था, ना पता, हर लाश को कुछ मिला था बस एक नंबर, मौत का नंबर। गैस के कारण शरीर के अंदर रक्तस्राव, निमोनिया से सबसे ज्यादा मौतें हुई। फैक्ट्री के आस-पास के इलाकों के गांव और झुग्गियां सबसे ज्यादा प्रभावित हुईं।
रात तो जैसे तैसे गुजर गई थी, लेकिन सुबह मानो श्मशान में जैसे काल खुद आकर बैठा हुआ था। कांधे पर आती लाशों का कारवां थमने का नाम ही नहीं ले रहा था। आसमान से गैस के बादल तो छंट गए थे, लेकिन उसकी जगह चिताओं से उठते धुएं ने ले ली थी। भोपाल में मातम पसरा था, लेकिन सरकार भी साजिश रच रही थी, साजिश मौत के आंकड़ों को कम करके बताने की। भोपाल से मातम विदा हुआ नहीं था लेकिन गुस्से की आग भड़क रही थी। हादसे के 3 दिन बाद नोबल पुरस्कार विजेता मदर टेरेसा भोपाल पहुंचीं। मदर टेरेसा ने भोपाल के लोगों से कहा कि वॉरेन एंडरसन को माफ कर दो। भला भोपाल कैसे अपने हत्यारे को माफ कर देता? वो हत्यारा जिसका इंतजार भोपाल को था, वो कातिल भोपाल आया भी लेकिन सरकार की मेहरबानी से बचकर निकल गया। और फिर कभी नहीं लौटा।
वॉरेन एंडरसन यूनियन कार्बाइड का पूर्व सीईओ था। ऐसा नहीं है कि एंडरसन कभी पकड़ में नहीं आया, वो तो खुद चलकर भोपाल आया था, 7 दिसंबर 1984 को उसकी गिरफ्तारी हुई थी। लेकिन 6 घंटे बाद ही एंडरसन को छोड़ दिया गया। एंडरसन को मध्यप्रदेश सरकार के विशेष विमान से दिल्ली तक पहुंचाया। एंडरसन पर ये मेहरबानी किसने की थी? ये किसका फैसला था? इस सवाल का जवाब आज तक सिर्फ बयानों में उलझा है। भारत से भागते हुए एंडरसन के चेहरे पर कोई पछतावा नहीं था, वो कार में बैठा, हाथ हिलाया और चला गया। हजारों लोगों का कातिल 2014 में मरने से पहले तक न्यूयॉर्क के हैम्पटंस बीच रिसोर्ट में ऐश की जिंदगी गुजार रहा था और भोपाल उस हादसे को भुला नहीं पा रहा था।
वो तस्वीर जो विश्व पटल पर छा गई
भोपाल गैस कांड और इससे जुड़ी एक तस्वीर को भारत और यहां के लोग कभी नहीं भूल सकेंगे। ये तस्वीर 4 दिसंबर 1984 को फोटोग्राफर रघु राय ने खींची थी। उस वक्त ये ब्लैक एंड व्हाइट थी। इसके बाद इस तस्वीर को पाब्लो बार्थोलमियो ने कलर इमेज के साथ नया रूप दिया था। पाब्लो एक स्वतंत्र फोटो जर्नलिस्ट के तौर पर काम करते थे। ये फोटो यूं तो भापोल गैस हादसे के दो दिन बाद खींची गई थी, लेकिन इस फोटो ने देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में तहलका मचाया था। ये फोटो आज भी इस हादसे की कहानी बयां करती है। इस तस्वीर को सदी की चुनिंदा भयावह तस्वीरों में भी शामिल किया गया है। रघु राय की एक इंटरव्यू में इस तस्वीर के बारे में बात करते हुए इतने साल बाद भी जुबां लड़खड़ा गई थी ये इस बात का द्योतक थी कि वो हादसा भुलाए नहीं भुलाया जा सकता है।
आज कैसे हैं हालात
भोपाल गैस कांड को 38 साल गुजर चुके हैं, इसके बाद भी आज तक यूनियन कार्बाइड कारखाने में पड़े 300 टन से ज्यादा जहरीले कचरे को नष्ट नहीं किया जा सका है। इसकी वजह से आसपास का पानी दूषित हो रहा है। कोर्ट इस पर कई बार नाराजगी जता चुका है। इस रासायनिक कचरे की वजह से यहां की करीब 50 कॉलोनियों में पानी का प्रदूषण स्तर सामान्य से कहीं अधिक है। लेकिन जिम्मेदारों का इस तरफ कोई ध्यान नहीं है। आज भी भोपाल को कब्रिस्तान और श्मशाम में बदलने वाला वो कारखाना वैसा ही खड़ा है मानो लोगों को कह रहा हो कि हजारों जिंदगी को निगलने वाला तुम्हारी आंखों के समाने खड़ा है और कभी ना भरने वाले तुम्हारे जख्मों को हर दिन, हर पल कुरेद रहा है। आने वाली पीढ़ी को खराब स्वास्थ्य के साथ-साथ खराब यादें भी दे रहा है। राजनीतिक-सामाजिक इच्छा शक्ति को चुनौती दे रहा है।