BHOPAL. अप्रैल महीना भी बीतने को आ गया, लेकिन गर्मी का अता-पता नहीं है। कभी बादल आकर बरस जाते हैं तो कभी ऐसी ठंडी हवा चलती है, जैसे सावन आ गया हो। मौसम का मिजाज भले ही अटपटा हो, किंतु राजनीतिक माहौल में तपन बढ़ती ही जा रही है। अभी कर्नाटक में बीजेपी-कांग्रेस दोनों तपिश महसूस कर रहे हैं तो उसकी आंच मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ तक पहुंच रही है। कुछ को कंपकंपी हो रही है तो कुछ आंच से झुलसने का खतरा महसूस कर रहे हैं। अब ये मत पूछियेगा कि कौन कांप रहा है तो कौन तप रहा है?
पापड़ बेलने लगे राजनीतिक दल
कमबख्त चुनावी राजनीति जो न कराए, कम है। मध्यप्रदेश में भी राजनीतिक दलों द्वारा पापड़ बेलने प्रारंभ हो गए हैं। मदारी डमरू बजा रहे हैं, जमूरे उछलकूद में लगे हैं और जनता जनार्दन हमेशा की तरह तमाशबीन बन ताली बजा रही है। उसे मतलब इस बात से है कि कौनसा मदारी अपनी झोली में से बताशा, पेड़ा या केला क्या निकाल कर दे पाता है।
मध्यप्रदेश चुनाव में होगा कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों का असर?
अहम सवाल ये है कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव परिणाम का असर नवंबर में होने वाले कुछ राज्यों के चुनाव पर कितना होगा या नहीं होगा। यूं देखा जाए तो सीधे तौर पर कर्नाटक से छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान की भौगोलिक, सामाजिक, राजनीतिक दूरी इतनी है कि वहां के हालात यहां ऐसा कोई प्रभाव नहीं डाल सकते कि बाजी ही पलट जाए। अलबत्ता राजनीतिक असर इस मायने में होता है कि नेताओं-कार्यकर्ताओं को इससे फर्क जरूर पड़ता है। ऐसे में कर्नाटक के चुनाव परिणाम मध्यप्रदेश और छ्त्तीसगढ़ का राजनीतिक माहौल अवश्य प्रभावित करेंगे।
अभी क्या संकेत दे रहे कर्नाटक के हालात?
ऐसे में ये जानना दिलचस्प हो जाता है कि कर्नाटक के अभी तक के हालात क्या संकेत दे रहे हैं? इस सुदूर दक्षिण भारतीय राज्य से छनकर आती हवा बता रही है कि वहां हाल-फिलहाल तो कांग्रेस जबरदस्त उत्साह में है। अभी माहौल कुछ ऐसा है कि जिस तरह से पश्चिम बंगाल के चुनाव में दिन-ब-दिन तृणमूल कांग्रेस से नेताओं की बीजेपी में जाने की गति ऐसी थी, जैसे डूबते जहाज से चूहे कूदकर भागते हैं, लेकिन अंततोगत्वा क्या हुआ? जैसे-जैसे परिणाम आते गए वे चूहे खुदकुशी कर लेने के अहसास में डूबते गए यानी तृणमूल न केवल बहुमत से सरकार बना ले गई, बल्कि बीजेपी रत्ती भर भी नुकसान नहीं कर पाई। तृणमूल की सीटें और बढ़ गईं। बीजेपी वहां पर 3 से 73 तो हुई, किंतु कांग्रेस और वामपंथियों को खत्म कर। ऐसे में कर्नाटक के लिए क्या अनुमान लगाए जाएं? अभी वहां बीजेपी सत्ता में है और उसके मौजूदा और पूर्व नेता (पूर्व मुख्यमंत्री तक) कूद-कूद कर कांग्रेस में जा रहे हैं, जिससे कांग्रेसियों में बल्ले-बल्ले है। यदि बीजेपी वहां सत्ता में लौटी तो वो इसे अपने दल से कचरा साफ होना मानेगी और निपट गई तो सोचेगी कि क्या गलती कर बैठी?
कर्नाटक में बीजेपी-कांग्रेस के बीच मुकाबला
सबसे पहले तो ये कि हर बार सरकार विरोधी हवा चले और उसका फायदा विपक्ष को मिले, ये जरूरी नहीं। ये बंगाल, गुजरात के चुनाव से साफ हो गया था। दूसरा, कर्नाटक में मुख्य प्रतिद्वंद्वी बीजेपी और कांग्रेस ही है। देवगौड़ा का जनता दल सरकार बनाने-बिगाड़ने में कितनी भूमिका निभा सकता है, ये अब पता चलेगा। वैसे त्रिशंकु विधानसभा में जेडीएस बीजेपी के साथ जाना चाहेगी। तीसरी बात ये कि यदि बंगाल की चुनावी तासीर यहां भी बरकरार रहने की उम्मीद करें तो कर्नाटक में बीजेपी से नाराजी कितनी भी हो सकती है, लेकिन वहां की जनता कांग्रेस को सत्ता सौंप दे, ये जरूरी नहीं। वो ये सोच सकती है कि अगले वर्ष लोकसभा के चुनाव होना है, जिसमें पूरी संभावना है कि बीजेपी की ही सरकार बनेगी तो क्यों बैठे-ठाले विपक्ष की सरकार राज्य में बनावाकर विकास कार्यों में अड़ंगों को आमंत्रित किया जाए? जनता की ये सोच बाजी पलट सकती है। वैसे अभी तक के अनुमान और खबरें बता रही हैं कि कर्नाटक में कांग्रेस का पलड़ा भारी है। कुछ महारथी इसे कांग्रेस के 55 तो बीजेपी के 45 प्रतिशत अवसर बता रहे हैं। कुछ तटस्थ खबरी इसकी पुष्टि करते हैं। यानी खेल में कांग्रेस आगे तो है, लेकिन अंत तक वो ये स्थिति बनाए रखेगी, इसकी खातिरी नहीं हो पा रही है। ताकत तो दोनों ने ही झोंक रखी है। अलबत्ता बीजेपी का आखिरी हल्ला बोल अभी बचा है। कहा जा रहा है कि जब कर्नाटक के रण में नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ कदम रखेंगे, तब से बाजी पलटने लगेगी, जो अंतत: बीजेपी के सिर ताज फिर से पहना देगी।
मध्यप्रदेश में क्या होगा?
अब वहां जो हो, वो होता रहे, मध्यप्रदेश में क्या होगा? तो सारा दारोमदार कर्नाटक चुनाव परिणाम पर निर्भर तो करेगा। रणनीति से लगाकर उम्मीदवारी तक सबकुछ उल्टा-पलटा हो जाने वाला है। यूं भी उलटफेर तो कम नहीं होंगे, लेकिन कर्नाटक के विपरीत परिणाम मध्यप्रदेश की चुनावी बिसात को पूरी तरह बदलकर रख देंगे, ये तो तय जानिए। इसलिए मध्यप्रदेश के कांग्रेस-बीजेपी नेताओं की सांस ऊपर-नीचे हो रही है। वे चाहते हैं कि कर्नाटक के परिणाम उनके अनुकूल आएं, ताकि वे नवंबर में राज्यारोहण का ताना-बाना बुन सकें। यानी अभी मध्यप्रदेश के आसमान में भले ही बादलों के छाने से बेमौसम ठंडक बनी हुई हो, मई में कर्नाटक चुनाव के परिणाम आने के बाद आग लगने वाली है, इतना तो पक्का है। फिर उसमें कांग्रेस झुलसे या बीजेपी, शिव तपें या कमल, राम जानें।